नशे के प्रभाव से न केवल एक जीवन वरन सम्पूर्ण परिवार का विनाश हो जाता है। शस्त्र एवं पेट्रोलियम उद्योग के बाद अवैध मादक द्रव्यों का धंधा विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। नशे के फैलाव से देशों का आर्थिक विकास पिछड़ रहा है। एवं समाज में आपराधिक प्रवृतियां पनप रही हैं। नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थायें इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं।
नशा -विनाश की ओर बढ़ते कदम
(31 मई विश्व तम्बाखू निर्मूलन दिवस पर)
अनुभूतियों और संवेदनाओं का केन्द्र मनुष्य का मस्तिष्क है। सुख-दुःख का , कष्ट-आनन्द का , सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है तथा मस्तिष्क ही प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने के जोड-तोड बिठाता हैं|कई व्यक्ति इन समस्याओं से घबड़ा कर अपना जीवन ही नष्ट कर डालते है । परन्तु अधिकाँश व्यक्ति जीवन से पलायन करने के लिए कुछ ऐसे उपाय अपनाता है, जैसे शुतुरमुर्ग आसन्न संकट को देखकर अपना सिर रेत में छुपा लेता है । इस तरह की पलायनवादी प्रवृतियों में मुख्य है मादक द्रव्यों की शरण में जाना । शराब ,गाँजा ,भाँग ,चरस ,अफीम ,ताडी आदि नशे वास्तविक जीवन से पलायन करने की इसी मनोवृति के परिचायक है। लोग इनकी शरण में या तो जीवन की समस्याओं से घवडा जाते है अथवा अपने संगी साथियों को देखकर इन्हें अपनाकर पहले से ही अपना मनोबल चौपट कर लेते है |
मादक द्रव्यों के प्रभाव से वह अपनी अनुभूतियों ,संवेदनाओं , तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझ-बूझ और सोचने विचारने की क्षमता भी खो देता है। मादक द्रव्य इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वाले को तत्काल ही अपने
आसपास की दुनिया से काट देते है और उससे विक्षिप्त कर देते है । दो उदाहरण जो मादक द्रव्यों के प्रभाव एवं उनकी विध्वंसता को दर्शाते हैं।
चित्र साभार - haribhoomi.com |
1.कैलीफोनियों के एक एल॰एस॰डी॰ प्रेमी को नशे की झोंक में यह सनक सवार हो गयी कि वह पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकता है। इसी सनक को पूरा कर दिखाने के लिए वह एक इमारत की दसवी मंजिल पर चढ़ा और वहाँ से कूँद पडा और मौत का शिकार बन गया ।
2. एक होस्टल में रह रहे दूसरे विद्यार्थी को नशे में यह विभ्रम हो गया कि वह अपने आकार से दुगुना हो गया है और उसके पैर छह फुट लम्बे हो गये हैं। छह फुट लम्बे पैर से उसने पास वाली मंजिल पर कूदने के लिए उसी अन्दाज से छलाँग लगायी और वह आठ मंजिल नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
कोई भी ऐसी वस्तु जिसकी मांग हमारा मस्तिष्क करता है किन्तु उससे शरीर का नुकसान हो नशा कहलाता है।मानसिक स्थिति को उत्तेजित करने वाले रसायन जो नींद ,नशे या विभ्रम की हालत में शरीर को ले जाते हैं वो ड्रग्स या मादक दवाएं कहलाती है। नशे को दो भागों में बांटा जा सकता है
1. पारंपरिक नशा -इसके अंतर्गत तम्बाखू ,अफीम ,भुक्की ,खैनी, सुल्फा एवं शराब आते हैं या इन से निर्मित विभिन्न प्रकार के पदार्थ।
2. सिंथेटिक ड्रग्स -इसके अंतर्गत इसके अंतर्गत स्मैक ,हेरोइन ,आइस ,कोकीन ,क्रेक कोकीन ,LSD ,मारिजुआना ,एक्टेक्सी ,सिलोसाइविन मशरूम ,फेनसिलेडाइईन मोमोटिल ,पारवनस्पास ,कफसिरप आदि मादक दवाएं आती हैं।
मादक दवाओं के गुण एवं प्रभाव
मादक दवाओं को 5 भागों में बांटा गया है tranquilizers, anti psychotics, antidepressants और psychostimulants इन के अधिक सेवन से मस्तिष्क विकृत हो जाता है। इनको अधिक मात्रा में लेने से व्यक्ति इनका आदी हो जाता है जिससे उसे शारीरिक ,मानसिक एवं आर्थिक हानि उठानी पढ़ती है।
1. कोकीन :- यह ट्रोपेन एलकालाइड है इसको सूंघ कर एवं धूम्रपान कर नशा किया जाता है। यह मानसिक स्थिति को विभ्रम करता है। यह ह्रदय की गति को तेज कर उच्च रक्तचाप बढ़ाता है। इसमें नशा लेने वाले को आनंद की अनभूति होती है। एक ग्राम के आठवें हिस्से की कीमत चार हज़ार रूपये है।
2. मेथामेप्टामाइन :-यह साइकोस्टूमेलेन्ट है इसे मैथ या आइस भी कहते हैं। इसको धूम्रपान से या इंजेक्ट कर लिया जाता है। इसको लेने से शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होती है एवं आनंद का अनुभव होता है। इसको लेने से अवसाद ,उच्च रक्त चाप एवं नपुंसकता होती है।
3.क्रेक कोकीन :-इससे पूरा स्नायु तंत्र प्रभावित होता है एवं हृदय को नुकसान पहुँचता है। हृदय गति बढ़ जाती है। धमनिया सुकड़ जाती है। इसके नशे का आदी अपराधी प्रवृति की और अग्रसर होता है। इसको लेने से अवसाद ,अकेलापन एवं असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। क्रेक कोकीन के नशे का आदी व्यक्ति को गलतफहमी होती है की वह बहुत ताकतवर है।
4. एलएसडी (LSD ):-यह लाइसर्जिक अम्ल से बनती है जो अरगट (ERGOT ) में पाया जाता है। यह गोलियों के रूप में मिलती है। इसका नशा लेने से व्यक्ति का मस्तिष्क अत्यंत क्रियाशील हो जाता है। करीब 30 से 90 मिनिट बाद इसका प्रभाव शुरू होता है। इस मादक द्रव्य को लेने से व्यक्ति के भाव तेजी से बदलने लगते है। आदिक मात्रा में लेने से व्यक्ति के समक्ष काल्पनिक विभ्रम पैदा होते हैं जिससे उसे आनंद की अनुभूति होती है। इसको लेना वाला नशेड़ी अवसाद ग्रस्त ,वस्तुओं के आकार एवं रंग में भ्रमित एवं मधुमेह व उच्च रक्तचाप का रोगी हो सकता है। एक बार के नशे में करीब 10 से 12 घंटे तक असर रहता है।
5. हेरोइन :-यह डायएसिटिल ईस्टर (Diacetyle Ester ) है एवं मॉर्फिन से बनता है। यह नशा शीघ्र प्रभाव देने वाला होता है। यह नशा व्यक्ति के श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालता है। इस नशे को लेने वाले को निमोनिया होने की तीव्र सम्भावना होती है। इसके प्रभाव से धमनियों में थक्का जमने लगता है एवं फेंफड़े ,लिवर व किडनी ख़राब हो सके हैं। इसको नशे के आदी ग्लास टूब से धुंए के रूप में लेते हैं।
6. मारिजुआना :-टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोलिक एसिड (THCA ) है जो की केनिबस पौधे से प्राप्त किया जाता है। यह एक खतरनाक नशा है एवं प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसको धूम्रा पण के रूप में लिया जाता है इसे हशीश भी कहते हैं। इस नशे को लेने वाले व्यक्ति की आँखे लाल रहती हैं ,नींद बहुत आती है ,वह अकेला रहने लगता है ,सहयोग की भावना ख़त्म हो जाती है। यह नाश भरम उत्पन्न करता है जिससे वयक्ति निरयण नहीं ले पता है एवं अनावश्यक बातें करता है। समय को सही नहीं पढ़ पाता है।
7. एक्टेसी (Ecstasy ):-इसे MDMA भी कहते हैं। यह 3,4-Methylenedioxy-N- Methylamphetamine) है। यह उत्तेजना पैदा करने वाली दवा है। इससे शरीर का तापमान इतना बढ़ जाता है की शरीर के अंग जैसे किडनी ,हृदय काम करना बंद कर सकते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति हर उस वास्तु को छूने की कोशिश करता है जो उसे आनंद प्रदान करे। उसके प्रभाव से मांसपेशियों में खिंचाव ,उत्तेजना एवं भ्रम पैदा होता है।
नशा के आदी होने के कारण
मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक संभ्यताओं भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है |जिसमें व्यक्ति यान्त्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगो का भी ध्यान नहीं रहता । नशा एक अभिशाप है एक ऐसी बुराई जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत के आगोश में चला जाता है।एवं उसका परिवार बिखर जाता है। व्यक्ति के नशा का आदी होने के कई कारण हो सकते हैं। यह कारण व्यक्तिगत ,पारिवारिक ,सामाजिक, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं जिनमें से कुछ मुख्य कारण अधोलिखित हैं।
➧माता पिता की अति व्यस्तता बच्चों में अकेलापन भर देती है। माता पिता के प्यार से वंचित होने पर वह नशा की और मुड़ जाता है। परिवार में कलह का वातावरण व्यक्ति को नशे की ओर ढकेल देता है।
सुशील कुमार शर्मा |
➧ मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण व्यक्ति नशे की आदत डाल लेता है यह मानसिक परेशानी पारिवारिक आर्थिक एवं सामाजिक हो सकती है।
➧बेरोजगारी नशा की ओर उन्मुख होने का एक प्रमुख कारण है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। दिन भर घर में खाली एवं बेरोजगार बैठे रहने से व्यक्ति हीन भावना एवं ऊब का शिकार होता है। एवं इस हीन भावना व ऊब को मिटाने के लिए वह नशे का सहारा लेने लगता है।
➧ शारीरिक कमजोरी व पढ़ने में कमजोर होने के कारण बच्चे उस कमी को पूरा करने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं।
➧जो व्यक्ति तनाव ,अवसाद एवं मानसिक बीमारी से पीड़ित है वो नशे का आदी हो जाता है।
➧परिवार के व्यक्ति ,दोस्त एवं अपने आदर्श व्यक्ति को नशा लेते देख कर युवा नशे का शिकार होते हैं।
➧अकेलापन नशे को निमंत्रित करता है।
➧लोग ये सोच कर नशा लेते हैं की नशा तनाव को दूर करता है।
➧किसी दूसरे की दवा को स्वयं पर आजमाने से व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है। चोट या दर्द की वजह से डाक्टर दवा लिखता है जिससे आराम मिलता है। जब भी चोट लगती है या दर्द होता है वो वह दवा बार बार लेने लगता है जिससे वह नशे का आदि हो जाता है।
➧पुरानी दुखद घटनाओं को भूलने के लिए लोग नशे का सहारा लेते हैं।
➧लोग सोचते हैं की ड्रग्स लेने से वह फिट एवं तंदुरुस्त रहेंगे विशेष कर खिलाड़ी इसी कारण मादक द्रव्यों की चपेट में आ जाते हैं।
➧ बच्चों में अत्यंत भेदभाव करने पर वो हीं भावना से ग्रसित हो जाते है एवं विद्रोह स्वरुप नशे की और मुड़ जाते हैं।
➧पत्र ,पत्रिकाओं एवं टेलीविज़न पर तम्बाखू एवं शराब के विज्ञापनों से प्रभावित हो कर बच्चे एवं युवा इनका प्रयोग शुरू कर देते हैं।
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे आफ इण्डिया की रिपोर्ट बहुत ही चौकाने वाली है भारत का युवा एवं बचपन किस तरह से नशे का शिकार हो रहा है इनकी बानगी इन आंकड़ों से स्पष्ट झलकती है।
1. भारत में तम्बाखू के द्रव्यों का सेवन करने वालों में खैनी का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। करीब 13 % लोग इसका सेवन करते हैं।
2. 2009-10 के ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (विश्व वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण) के मुताबिक भारत में तब 12 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन कर रहे थे।
3. तंबाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर 2011 में भारत में 1,04,500 करोड़ रुपए खर्च हुए।
4. एक सिगरेट आपकी जिंदगी के 9 मिनिट पी जाती है।
5. तम्बाखू की एक पीक आपकी जिंदगी के तीन मिनिट काम कर देती है।
6. हर 7 सेकेण्ड में तम्बाखू एवं अन्य मादक द्रव्यों से एक मौत होती है।
8. भारत में हर साल 10. 5 लाख मौतें तम्बाखू के पदार्थों के सेवन से होती हैं।
9. 90 %फेंफड़े का कैंसर ,50 %ब्रोन्काइटस एवं 25 %घातक ह्रदय रोगों का कारन धूम्रपान है।
10.ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे आफ इण्डिया के अनुसार शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में नशे का सेवन करने वाले महिला पुरुष के आंकड़े।
नशे का प्रकार
|
पुरुष
|
महिला
|
ग्रामीण
|
शहरी
|
कुल
|
तम्बाखू खाने वाले
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47.9%
|
20.3%
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38.4%
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25.3%
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34.6%
|
सिगरेट एवं बीड़ीपीने वाले
|
18.3%
|
2.4%
|
11.6%
|
8.4%
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10.7%
|
खैनी
|
19%
|
4.7%
|
9.6%
|
4.5%
|
13.1%
|
गुटखा
|
12.1%
|
2.9%
|
5.3%
|
8.4%
|
9.5%
|
लिंग
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तम्बाखू खाने वाले
|
तम्बाखू पीने वाले
|
दोनों प्रकार का नशा करने वाले
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पुरुष
|
23.6
|
15.6
|
9.3
|
महिला
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17.3
|
1.9
|
1.1
|
नशा और अपराध
अपराध ब्यूरो रिकार्ड के अनुसार , बडे छोटे अपराधों, बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, राहजनी आदि तमाम तरह की वारदातों में नशे के सेवन का मामला लगभग 73. 5 % तक है । और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में तो ये दर 87 % तक पहुंची हुई है । अपराधजगत की क्रियाकलापों पर गहन नज़र रखने वाले मनोविज्ञानी बताते हैं कि अपराध करने के लिए जिस उत्तेजना, मानसिक उद्वेग और दिमागी तनाव की जरूरत होती है उसकी पूर्ति ये नशा करता है। जिसका सेवन मस्तिष्क के लिए एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है ।
2014 में नारकोटिक्स ड्रग्स एक्ट (NDPS )के तहत 43290 केस दर्ज किये गए जिसमे सबसे अधिक पंजाब में 16821 ,उत्तर प्रदेश में 6180 ,महाराष्ट्र में 5989 तमिलनाडु में 1812 ,राजस्थान में 1337 ,मध्यप्रदेश में 1027 तथा सबसे कम गुजरात में 73 ,गोवा में 61 तथा सिक्किम में 10 केस दर्ज किये गए।
पु नर्वास एवं उपचार
नशे की लत वाले व्यक्ति को विभिन्न स्तरों पर उपचार की आवश्यकता होती है। इसके लिए निपुण चिकित्सक की देख रेख में उपचार जरूरी है। अधिकांश इलाज लोगों को नशे के सेवन को बंद करने में मदद करने पर केन्द्रित हैं, जिसके बाद उन्हें नशा के प्रयोग पर पुनः लौटने से रोकने में उनकी मदद करने के लिए जीवन प्रशिक्षण और/या सामाजिक समर्थन की आवश्यकता होती है। कुछ विधियां निम्नानुसार हैं।
1. विषहरण एवं औषधीय तरीके से उपचार (DETOXIFICATION )-यह उपचार का प्रारंभिक स्तर है। इसमें नशे के परिणामों को कम करने के लिए दूसरी दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसमें नशीले पदार्थों का प्रतिस्थापन दवाओं से किया जाता है।यह कठिन एवं कष्ट दायक होता एवं इस स्तर पर रोगी की नशा की ओर वापसी संभव होती है अतः इसका प्रवंधन बहुत सतर्कता से किया जाना चाहिए। दवा उपचार ,अनुकूलन और मनोवैज्ञानिक सहायता के बिना संभव नहीं है।
2. बहुत ही गंभीर नशे के बीमार व्यक्ति को लम्बे आवासीयउपचार की जरूरत पड़ती है। इसमें रोगी को 24 घंटें चिकित्सक की निगरानी में रखा जाता है। इसमें 8 से 12 माह लगातार सामाजिक ,पारिवारिक एवं मानसिक स्तरों पर चिकित्सक उपचार करते हैं। छोटा आवासीय उपचार में रोगी करीब 3 से 6 सप्ताह तक चिकित्सक की निगरानी में रहता है।
3. बाह्य रोगी उपचार :-यह उपचाररोगी की स्थति एवं मादक द्रव्य के असर पर निर्भर करता है। यह उपचार समूह या व्यक्तिगत रूप से दिया जाता है। इसमें रोगी को आंशिक रूप से अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है।
4. व्यक्तिगत परामर्श :-व्यक्तिगत परामर्श उपचार में रोगी के सम्पूर्ण इतिहास पर परामर्श दिया जाता है।रोगी की पारिवारिक पृष्टभूमि ,रोजगार ,सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के बारे में गहन अध्ययन कर चिकित्सक उसके योग्य उचित सलाह एवं इलाज का परामर्श देते हैं। परामर्श दाता सप्ताह में एक दिन कुल 12 सप्ताह तक रोगी को नशे से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
अन्य उपचार जो की व्यक्ति के नशे की लत के स्तर पर चिकित्सक द्वारा प्रस्तावित किये जाते है निम्न हैं।
1.आचरण या व्यवहार वाद उपचार (Behaviorism )
2. मानववादी उपचार (humanistic therapy )
3. संज्ञानात्मक व्यवहार उपचार (CBT )
4. द्वंदात्मक व्यवहार उपचार (DBT )
5. मानसगति उपचार (Psychodynamic treatment )
6. अर्थपूर्ण उपचार (expressive Treatment )
7. एकीकृत उपचार (Integrated treatment )
8. हार्म रिडक्शन ट्रीटमेंट (harm reduction treatment )
9. जानवर आधारित उपचार (animal based treatment )
राष् ट्रीय स्तर पर नशा रोकने के उपाय
नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थायें इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। नशे रोकने में सबसे बड़ी समस्या है कि हम सिर्फ जागरूकता पर जोर देते है उसकी रोकथाम के प्रयास कम करते हैं। जागरूकता सिर्फ बड़ों को नशे की लत से दूर करती है जबकि रोकथाम बचपन में नशे की लत न लगे इसके लिए जरूरी है। राष्ट्रीय स्तर पर चेतना जरूरी है नशा को रोकने के लिए निम्न प्रयासों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
1. सामाजिक स्तर पर नशा रोकथाम कार्यक्रम बनना चाहिए।
2. नशा का व्यापक फैलाव समाज से संबंधित है अतःऐसे समाजों को चिन्हित करके व्यापक जागरूकता अभियान चलना चाहिए।
3. स्वस्थ ,सफल एवं सुरक्षित छात्र कैसे बनें इस थीम पर सभी विद्यालयों में नशा मुक्ति अभियान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।
4. नशा रोकने के लिए कारगर रणनीति राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित होनी चाहिए।
5. राष्ट्रीय युवा नशा मुक्ति आंदोलन महाविद्यालयीन स्तर पर पाठ्यक्रम में लागू होना चाहिए।
6. बच्चे नशे से दूर रहे ऐसे क्षेत्रों पर नशा रोकथाम केंद्रित होना चाहिए। इसके लिए तीन स्थानो पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(1)विद्यालय (2 )कालेज (3 )कार्य क्षेत्र
7. नशे की रोकथाम वाली संस्थाओं एवं कानून एवं न्याय की संस्थाओं में आपसी समन्वय व सूचनाओं का आदान प्रदान होना चाहिए।
8. नशे की हालत में गाड़ी चलने पर रोकथाम के लिए कड़े कानून का प्रावधान होना चाहिए।
9. नशे से सुरक्षित सड़क (addiction free road ) कार्क्रम चलना चाहिए।
10. मादक दवाओं से जुड़े लोगों पर कठिन दंड का प्रावधान होना चाहिए।
11. आवासीय उपचार कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
12. विद्यालय एवं परिवार में बच्चों एवं युवाओं के नशे के संकेत पहचानने वाले कार्यक्रमों का आयोजन एवं प्रशिक्षण होने चाहिए।
13. नशा मुक्ति संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए।
14.नशा मुक्ति के लिए निम्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाये जाते हैं।
1. 31 मई को अंतर्राष्ट्रीय तम्बाखू निषेध दिवस।
2. 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस।
3. 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यपान निषेध सप्ताह।
4. 18 दिसंबर को मद्यनिषेध दिवस।
इन दिवसों पर राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक जागरूकता कार्यक्रमों में अधिक से अधिक नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
नशीले पदार्थों के सेवन विश्व स्तर पर आपात स्थिति निर्मित हो गई है। नशे के प्रभाव से न केवल एक जीवन वरन सम्पूर्ण परिवार का विनाश हो जाता है। शस्त्र एवं पेट्रोलियम उद्योग के बाद अवैध मादक द्रव्यों का धंधा विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। नशे के फैलाव से देशों का आर्थिक विकास पिछड़ रहा है। एवं समाज में आपराधिक प्रवृतियां पनप रही हैं। नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थायें इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं।
यहं रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |
अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
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