एक जंगल था , बहुत प्यारा था सभी की आँख का तारा था। वक्त की आंधी आई, सभ्यता चमचमाती आई। इस सभ्यता के हाथ में आरी थी। जो काटती गई जंगलों को बनते गए ,आलीशान मकान , चौखटें ,दरवाजे ,दहेज़ के फर्नीचर।
अनुत्तरित प्रश्न
एक जंगल था ,बहुत प्यारा था
सभी की आँख का तारा था।
वक्त की आंधी आई,
सभ्यता चमचमाती आई।
इस सभ्यता के हाथ में आरी थी।
जो काटती गई जंगलों को
बनते गए ,आलीशान मकान ,
चौखटें ,दरवाजे ,दहेज़ के फर्नीचर।
मिटते गए जंगल सिसकते रहे पेड़
और हम सब देते रहे भाषण
बन कर मुख्य अतिथि वनमहोत्सव में।
हर आरी बन गई चौकीदार।
जंगल के जागरूक कातिल
बन कर उसके मसीहा नोचते रहे गोस्त उसका।
मनाते रहे जंगल में मंगल।
औद्योगिक दावानल में जलते
आसपास के जंगल चीखते हैं।
और हमारे बौने व्यक्तित्व अनसुना कर चीख को ,
मनाते हैं पर्यावरण दिवस।
सिसकती शक्कर नदी के सुलगते सवाल
मौन कर देते हैं हमारे व्यक्तित्व को।
पिछले साल कितने पौधे मरे ?
कितने पेड़ कट कर आलीशान महलों में सज गए ?
हमारी नदी क्यों मर रही है ?
गोरैया क्यों नहीं चहकती मेरे आँगन में ?
इन सब अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोज रहा हूँ ,
और लिख रहा हूँ एक श्रद्दांजलि कविता
अपने पर्यावरण के मरने पर।
सुशील कुमार शर्मा
क्या मै लिख सकूँगा
कल एक पेड़ से मुलाकात हो गई।चलते चलते आँखों में कुछ बात हो गई।
बोला पेड़ लिखते हो संवेदनाओं को।
उकेरते हो रंग भरी भावनाओं को।
क्या मेरी सूनी संवेदनाओं को छू सकोगे ?
क्या मेरी कोरी भावनाओं को जी सकोगे ?
मैंने कहा कोशिश करूँगा कि मैं तुम्हे पढ़ सकूँ।
तुम्हारी भावनाओं को शब्दों में गढ़ सकूँ।
बोला वो अगर लिखना जरूरी है तो मेरी संवेदनायें लिखो तुम |
अगर लिखना जरूरी है तो मेरी भावनायें लिखो तुम |
क्यों नहीं रुक कर मेरे सूखे गले को तर करते हो ?
क्यों नोंच कर मेरी सांसे ईश्वर को प्रसन्न करते हो ?
क्यों मेरे बच्चों के शवों पर धर्म जगाते हो ?
क्यों हम पेड़ों के शरीरों पर धर्मयज्ञ करवाते हो ?
क्यों तुम्हारे सामने विद्यालय के बच्चे तोड़ कर मेरी टहनियां फेंक देते हैं ?
क्यों तुम्हारे सामने मेरे बच्चे दम तोड़ देते हैं ?
हज़ारों लीटर पानी नालियों में तुम क्यों बहाते हो ?
मेरे बच्चों को बूंद बूंद के लिए तुम क्यों तरसाते हो ?
क्या मैं तुम्हारे सामाजिक सरोकारों से इतर हूँ ?
क्या मैं तुम्हारी भावनाओं के सागर से बाहर हूँ ?
क्या तुम्हारी कलम सिर्फ हत्याओं एवं बलात्कारों पर चलती है ?
क्या तुम्हारी लेखनी क्षणिक रोमांच पर ही खिलती है ?
अगर तुम सचमुच सामाजिक सरोकारों से आबद्ध हो।
अगर तुम सचमुच पर्यावरण के लिए प्रतिबद्ध हो।
सुशील कुमार शर्मा |
पर्यावरण संरक्षण को अपने आचरण में लाने की कोशिश करो।
कोशिश करो कि कोई पौधा न मर पाये।
कोशिश करो कि कोई पेड़ न कट पाये।
कोशिश करो कि नदियां शुद्ध हों।
कोशिश करो कि अब न कोई युद्ध हो।
कोशिश करो कि कोई भूखा न सो पाये।
कोशिश करो कि कोई न अबला लुट पाये।
हो सके तो लिखना की नदियाँ रो रहीं हैं।
हो सके तो लिखना की सदियाँ सो रही हैं।
हो सके तो लिखना की जंगल कट रहे हैं।
हो सके तो लिखना की रिश्ते बंट रहें हैं।
लिख सको तो लिखना हवा जहरीली हो रही है।
लिख सको तो लिखना कि मौत पानी में बह रही है।
हिम्मत से लिखना की नर्मदा के आंसू भरे हुए हैं।
हिम्मत से लिखना की अपने सब डरे हुए हैं।
लिख सको तो लिखना की शहर की नदी मर रही है।
लिख सको तो लिखना की वो तुम्हे याद कर रही है।
क्या लिख सकोगे तुम गोरैया की गाथा को?
क्या लिख सकोगे तुम मरती गाय की भाषा को ?
लिख सको तो लिखना की तुम्हारी थाली में कितना जहर है |
लिख सको तो लिखना की ये अजनबी होता शहर है |
शिक्षक हो इसलिए लिखना की शिक्षा सड़ रही है |
नौकरियों की जगह बेरोजगारी बढ़ रही है |
शिक्षक हो इसलिए लिखना कि नैतिक मूल्य खो चुके हैं।
शिक्षक हो इसलिए लिखना कि शिक्षक सब सो चुके हैं।
मैं आवाक था उस पेड़ की बातों को सुनकर।
मैं हैरान था उस पेड़ के इल्जामों को गुन कर।
क्या वास्तव में उसकी भावनाओं को लिख पाऊंगा?
या यूँ ही संवेदना हीन गूंगा रह जाऊँगा।
यहं रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |
अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
"पेड बचाओ आक्सीजन पाओ"
जवाब देंहटाएंपेड़ों को बचाने की आवश्यकता इन दिनों सबसे अधिक इस लिए भी ही गया है कारण यह की अंधाधुंध पेड़ों की कटाई होने लगी है | जत्र - तत्र जंगल काटते जा रहे जब की हम अपनी जरूरतों के हिसाब से प्रयोग करते तो विश्व में पौधों की लाखों प्रजातिया जो मौजूद है उनके गुणों को जनता तक पहुचाकर पेड़ों की और अधिक सुरक्षा कर सकते हैं|
यह सभी अनपढ़ हों अथवा पढ़े लिखे लोग सभी जानते हैं कि पेड़ हमें आक्सीजन प्रदान कराता है और तापमान को नियंत्रित करता है| शहरों में पेड़ बाढ़ डिग्री सेल्सियस तक तापमान कम करता है |एक पर्याप्त पेड़ चार लोगों को आक्सीजन देकर जरूरत की पूर्ती करता है | इसी प्रकार प्रदान कार्बन अवशोषित करता है |
पेड़ जहाँ आक्सीजन देता है वहीं कार्वन अवशोषित करने के साथ ही वातावरण में नही कायम रखने का काम करता है |अतएव कहा जा सकता है कि चाहे ग्लोबल वार्मिंग ही अथवा कार्वन उत्तसर्जन पेड की महत्ता जीवन के लिए उपयोगी है |
"सपना "
जवाब देंहटाएंअपनों को साथ रखना ,
पुरखों का इलाज करना \
रिश्तों के पास से
वे लम्हे निकल बिकल गये |
जीवन में देखा सपना,
सभी धू धू के जल गये|
मंगल कहाँ तलक जपता ,
जब सबके सब फिसल गये|
जिसके लिए नित हांफता ,
माजरे वे नित पूछते रहे !
सारे गम छोड़ चले ,
और संग लग चले |