आज ही मुझे अपनी नौकरी के लिए जाना था | मै बड़ी उत्साहित थी क्योंकि मै घर के साथ बाहर की दुनिया में भी कदम रखने वाली थी | बचपन से ही मैं ऐसी महिलाओं के प्रति आकर्षित थी जिन्होंने अपने घर-परिवार के साथ-साथ घर के बाहर भी अपनी एक पहचान बनाई|
अनुभव
आज ही मुझे अपनी नौकरी के लिए जाना था | मै बड़ी उत्साहित थी क्योंकि मै घर के साथ बाहर की दुनिया में भी कदम रखने वाली थी | बचपन से ही मैं ऐसी महिलाओं के प्रति आकर्षित थी जिन्होंने अपने घर-परिवार के साथ-साथ घर के बाहर भी अपनी एक पहचान बनाई| उनके बारे में पढ़कर-सुनकर न जाने मेरे मन में भी ऐसी भावना कब जाग गई मुझे पता ही न चला | पुरुष सत्ता में स्त्री का वर्चस्व भला क्या मायने रखता | मेरी ससुराल में मेरे साथ भी यही रवैया था| धीरे-धीरे ही सहीं लेकिन मैंने अपने ससुराल के लोगों की सोच को बदला और इस शर्त के साथ कि नौकरी के साथ-साथ घर की जो जिम्मेदारियां मेरी है उसका निर्वाह मुझे करना है| मुझे तो एक पहचान बनानी थी या यूँ कहूँ कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना और चुनौतियों से रूबरू होने हेतु मैं शर्तों को स्वीकार कर खुले आसमान में निकल पड़ी |
आज मेरा मेरे कार्यालय में पहला दिन| हम सारे लगभग २० -२५ लोग | सभी ने मेरा बहुत अच्छे से स्वागत किया मुझे भी बड़ा अच्छा लगा जैसे ये सारे लोग मुझसे बहुत प्रेम करते है | मेरा व्याहारिक ज्ञान शून्य था | मैं अपने भावों को जो मैं महसूस करती बता देती थी | काफी दिनों तक मुझे ये पता ही नहीं चला कि मैं इन सारे लोगों में अकेली हूँ, क्योंकि इन २०-२५ लोगों के आपस में समूह बने हुए थे और वे मेरे पीठ पीछे मेरा मजाक उड़ाते थे | मैं अपने दिए काम को बढ़िया तरीके से समाप्त करती किन्तु इसका सेहरा कोई और अपने सर पर बांध लेता | मजेदार बात तो यह होती कि इन बातों से मैं अनभिज्ञ रहती |
खैर मैं काम को ज्यादा महत्त्व देती थी | ये सारी बातें कि "काम मेरा और शाबाशी किसी और को" मिल रही है, मुझे इन बातों से फर्क नहीं पड़ता था | मेरा मानना है यदि फूल में खुश्बू है तो वह फैलेगी ही | मेरा भ्रम तो बादमे टूटा कि आज का जमाना तो नकली फूलों का है खुश्बू फैलाने के लिए इन नकली फूलों पर सुगंध का छिड़काव करना पड़ेगा |
अपने मुँह से अपनी प्रशंसा करें मुझमे इसकी बड़ी कमी है | मेरे लिए काम ही पूजा है चाहे मुझे कोई देखे या न देखे मैं अपना काम निबटाने में विश्वास रखती थी, और मेरे सहकर्मी काम कम और अपनी प्रशंसा करने में बड़े माहिर थे | समय आगे सरकता और मैं सिर्फ़ अपने काम में डूबी रहती | बढ़ोतरी होती लेकिन मुझे मेरे परिश्रम से कम ही आँका जाता |
घर में इस अतिरिक्त आय के आने से घर में जरूरतें बढ़ चुकी थी | इन आवश्यकताओं को समेटना कठिन था | नौकरी छोड़ना भी मुश्किल था | कई बार प्रयत्न किया कि इस नौकरी से त्यागपत्र देकर कोई नई नौकरी में जाऊं, किन्तु इस नौकरी से छूटना मुश्किल था क्योंकि नौकरी की शर्तें थी और और इन शर्तों को पूरा कर सोचती कि अब नौकरी बदल लूँगी यहाँ तब तक कोई और जाल बुन जाता | धीरे-धीरे मैं भी आदि होने लगी | किन्तु मेरा व्यवहारिक ज्ञान वही का वही था | इस व्यवहारिक ज्ञान के न होने से मैं हमेशा खिन्न रहने लगी | इसका प्रभाव मेरे काम पर और मेरी सेहत दोनों पर हो रहा था | मुझे अपने आपको खुश रखने के लिए कुछ करना था, लेकिन क्या ? कैसे ?
यह रचना जयश्री जाजू जी द्वारा लिखी गयी है . आप अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं . आप कहानियाँ व कविताएँ आदि लिखती हैं .
जीवन में अनुभव ही सब कुछ सिखाता हैं.
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