समस्त भूमण्डल विभिन्न प्राकृतिक एवम् मानवीय प्रक्रियाओं से सम्बद्ध एक अत्यंत जटिल तंत्र है। निरन्तर बढ़ रही वैश्विक जनसंख्या से यह पृथ्वीरूपी जटिल तंत्र् शनैः शनैः तनावग्रस्त होता जा रहा है।
भारत में सुदूर संवेदन
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
समस्त भूमण्डल विभिन्न प्राकृतिक एवम् मानवीय प्रक्रियाओं से सम्बद्ध एक अत्यंत जटिल तंत्र है। निरन्तर बढ़ रही वैश्विक जनसंख्या से यह पृथ्वीरूपी जटिल तंत्र् शनैः शनैः तनावग्रस्त होता जा रहा है। फलस्वरूप पृथ्वी के सभी पारिस्थितिक तंत्रों की जीवंतता को बनाये रखने में मानवजाति को बड़े ही कठोर संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है। निःसंदेह इसके लिए मनुष्य स्वयं उत्तरदायी है। एक ओर जहाँ मानवीय महत्वाकांक्षाओं ने मनुष्य को समस्त भूमण्डल का स्वामी बनाया है, वहीं दूसरी ओर वह अपनी ही बनाई जटिलताओं के प्रश्नों में फँस भी गया है। मनुष्य एक अतिसंवेदनशील प्राणी है क्योंकि उसकी संवेदनाएँ आत्मिक पीड़ा से जुड़ी हुई होती हैं। मनुष्य ने अपनी संवेदनाओं को भी विज्ञान से अछूता नहीं रखा। सुदूर संवेदन जैसी तकनीकी द्वारा उसने अपनी संवेदनाओं का भी वैज्ञानिकीकरण कर डाला है। यद्यपि यह उसकी अब तक की सबसे बड़ी भूमण्डलीय विजय कही जा सकती है।
सुदूर संवेदन से तात्पर्य एक ऐसी सुविकसित वैज्ञानिक तकनीकी से है, जिसके माध्यम से बिना किसी भौतिक स्पर्श के किसी वस्तु अथवा घटना के विषय में सम्पूर्ण जानकारियाँ अर्जित की जा सकती हैं। वर्तमान में इन हवाई संवेदी तकनीकियों का उपयोग पृथ्वी की सतह, उसके वातावरण और महासागरों के ऊपर प्रचारित संकेतों जैसे एयरक्राफ्ट अथवा उपग्रहों से उत्सर्जित वैद्युतचुम्बकीय विकिरणों के माध्यम से विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवम् घटकों की पहचान एवम् उनके वर्गीकरण हेतु किया जा रहा है। महासागर और वातावरण के उपग्रहीय सुदूर संवेदन (Satellite remote sensing of the ocean and atmosphere) के क्षेत्र में अनुसंधानों में तेजी से विकास हो रहा है। दुनिया के अनेक विकसित व विकासशील देशों द्वारा परिचालन संवेदकों की एक बड़ी श्रृंखला पहले से ही पृथ्वी की कक्षा में स्थापित की जा चुकी हैं और इन संवेदी क्षमताओं में बढ़ोत्तरी करने के उद्देश्य से लगातार असंख्य परियोजनाओं को आरम्भ किया जा रहा है। इन समस्त सुदूर संवेदी तकनीकियों का आधार भौगोलिक सूचना तंत्र [geographic information system (GIS)] है।
सुदूर संवेदी तकनीकी से अर्जित किए जाने वाले सभी आँकड़ों का प्रक्रियण एवम् विश्लेषण विभिन्न कम्प्यूटर सॉफ्टवेयरों द्वारा किया जाता है। इन कम्प्यूटर सॉफ्टवेयरों के बिना सम्पूर्ण सुदूर संवेदी प्रक्रियाएँ असम्भव हैं। ये सॉफ्टवेयर ही इस तकनीकी को किसी सफल परिणाम तक पहुँचाते हैं। अतः इनकी संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करना आवश्यक है। कुछ प्रमुख सुदूर संवेदी कम्प्यूटर सॉफ्टवेयरों के नाम निम्नानुसार हैं–
• टीएनटीमिप्स
• पीसीआई जिओमेटिका
• आईडीआरआईएसआई
• इमेजएनालिस्ट
• रिमोट व्यू
• ड्रेगन/आईपीएस
• ओएसएसआईएम
• ऑप्टिक्स
• ऑरफियो टूलबॉक्स
• ग्रास जीआईएस
• इलविस
• क्यूजीआईएस
• टेरालुक
भारत में सुदूर संवेदी कार्यक्रमों का शुभारम्भ सत्तर के दशक में दो अनुप्रयोगी सुदूर संवेदी उपग्रहों भास्कर–1 तथा भास्कर–2 के सफल प्रक्षेपणों के साथ हुआ था। इन भास्कर उपग्रहों द्वारा सेटेलाइट माइक्रोवेव रेडियोमीटर (समीर) के साथ मिलकर प्राप्त किए गए अनेक महासागरीय एवम् वातावरणीय आँकड़ों का सम्बद्ध क्षेत्रों में संसाधन प्रबंधन हेतु सफल उपयोग किया गया। इन सफल अनुप्रयोगों के अनुभवों की सहायता से ही भारत ने 1988 में आईआरएस–1ए (इण्डियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सीरीज़–1ए) का शुभारम्भ किया। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए 1991 में आईआरएस–1बी तथा 1994 में आईआरएस–पी2 प्रक्षेपित किए गए। इन सभी को समग्र रूप से मिलाकर एनएनआरएमएस (National Natural Resource Management System) नामक एक विशिष्ट भारतीय उपग्रहीय संगठन को समस्त विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर भारत ने अपनी सुदूर संवेदी प्रवीणता का परिचय विश्व विज्ञान विरादरी को कराया। इसके बाद से अब तक निरन्तर आईआरएस–1सी जैसी अनेक अत्याधुनिक सुदूर संवेदी उपग्रह श्रृंखलाओं के सफल प्रक्षेपणों के साथ साथ उनसे लगातार अर्जित किए जा रहे महत्वपूर्ण व उपयोगी आँकड़ों के माध्यम से भारत ने विज्ञान के सुदूर संवेदी क्षेत्र में अपनी एक अतिविशिष्ट पहचान बना ली है। भारत द्वारा प्रक्षेपित किए गए उपग्रहों का विवरण निम्नलिखित सूची में दिया गया हऐ।
सूची-1 भारत के प्रमुख उपग्रहों का विवरण।
क्रमांक
|
उपग्रह
|
प्रक्षेपण की तारीख
|
प्रक्षेपण यान
|
आर्यभट्ट
|
19 अप्रैल 1975
|
यू-11इण्टरकासमास
| |
भास्कर-I
|
7 जून 1979
|
सी-1 इण्टरकासमास
| |
रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड
|
10 अगस्त 1979
|
एसएलवी-3
| |
रोहिणी आरएस-1
|
18 जुलाई1980
|
एसएलवी-3
| |
रोहिणी आरएस-डी 1
|
31 मई 1981
|
एसएलवी-3
| |
एरियन यात्री पेलोड प्रयोग
|
19 जून 1981
|
एरियन-1 (वी-3)
| |
भास्कर -II
|
20 नवंबर 1981
|
सी -1 इण्टरकासमास
| |
इनसैट -1 ए
|
10 अप्रैल 1982
|
डेल्टा 3910 पीएएम-डी
| |
रोहिणी आरएस-डी 2
|
17 अप्रैल 1983
|
एसएलवी-3
| |
इनसैट -1 बी
|
30 अगस्त 1983
|
शटल [पीएएम-डी]
| |
स्ट्रैच्ड रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (एसआरओएसएस-1)
|
24 मार्च 1987
|
एएसएलवी
| |
आईआरएस-1 ए
|
17 मार्च 1988
|
वोस्तोक
| |
स्ट्रैच्ड रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (एसआरओएसएस-2)
|
13 जुलाई 1988
|
एएसएलवी
| |
इनसैट -1 सी
|
21 जुलाई 1988
|
एरियन-3
| |
इनसैट -1 डी
|
12 जून 1990
|
डेल्टा 4925
| |
आईआरएस -1 बी
|
29 अगस्त 1991
|
वोस्तोक
| |
इनसैट-2डीटी
|
26 फरवरी 1992
|
एरियन-44एल एच10
| |
स्ट्रैच्ड रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (एसआरओएसएस-3)
|
20 मई 1992
|
एएसएलवी
| |
इनसैट-2ए
|
10 जुलाई 1992
|
एरियन-44एल एच10
| |
इनसैट -2 बी
|
23 जुलाई 1993
|
एरियन-44एल एच 10 +
| |
आईआरएस-1ई
|
20 सितंबर 1993
|
पीएसएलवी-डी 1
| |
स्ट्रैच्ड रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (एसआरओएसएस-सी2)
|
4 मई 1994
|
एएसएलवी
| |
आईआरएस-पी2
|
15 अक्टूबर 1994
|
पीएसएलवी-डी 2
| |
इनसैट -2 सी
|
7 दिसंबर 1995
|
एरियन-44एल एच10-3
| |
आईआरएस -1 सी
|
29 दिसंबर 1995
|
मोलनिया
| |
आईआरएस-पी 3
|
21 मार्च 1996
|
पीएसएलवी-डी 3
| |
इनसेट 2 डी
|
4 जून 1997
|
एरियन-44एल एच10-3
| |
आईआरएस -1 डी
|
29 सितंबर 1997
|
पीएसएलवी-सी 1
| |
इनसैट -2 ई
|
3 अप्रैल 1999
|
एरियन-42पी एच10-3
| |
ओशनसैट -1 (आईआरएस-पी 4)
|
26 मई 1999
|
पीएसएलवी-सी 2
| |
इनसैट -3 बी
|
22 मार्च 2000
|
एरियन-5जी
| |
जीसैट -1
|
18 अप्रैल 2001
|
जीएसएलवी-डी 1
| |
प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह (टीईएस)
|
22 अक्टूबर 2001
|
पीएसएलवी-सी 3
| |
इनसैट -3 सी
|
24 जनवरी 2002
|
एरियन-42एल एच10-3
| |
कल्पना -1 (मेटसेट)
|
12 सितंबर 2002
|
पीएसएलवी-सी 4
| |
इनसैट -3 ए
|
10 अप्रैल 2003
|
एरियन-5जी
| |
जीसैट 2
|
8 मई 2003
|
जीएसएलवी-डी 2
| |
इनसैट-3ई
|
28 सितंबर 2003
|
एरियन-5जी
| |
रिसोर्ससैट-1 (आईआरएस-पी6)
|
17 अक्टूबर 2003
|
पीएसएलवी-सी 5
| |
एडुसैट
|
20 अक्टूबर 2004
|
जीएसएलवी-एफ01
| |
हेमसैट
|
5 मई 2005
|
पीएसएलवी-सी 6
| |
कार्टोसैट -1
|
5 मई 2005
|
पीएसएलवी-सी 6
| |
इनसैट -4 ए
|
22 दिसंबर 2005
|
एरियन-5जीएस
| |
इनसेट -4 सी
|
10 जुलाई 2006
|
जीएसएलवी-एफ02
| |
कार्टोसैट -2
|
10 जनवरी 2007
|
पीएसएलवी-सी 7
| |
स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरीमेंट (एसआरई -1)
|
10 जनवरी 2007
|
पीएसएलवी-सी 7
| |
इनसैट -4 बी
|
12 मार्च 2007
|
एरियन-5ईसीए
| |
इनसैट -4 सीआर
|
2 सितंबर 2007
|
जीएसएलवी-एफ04
| |
कार्टोसैट -2 ए
|
28 अप्रैल 2008
|
पीएसएलवी-सी9
| |
आईएमएस -1 (तीसरी विश्व सैटेलाइट - टीडब्ल्यूसैट)
|
28 अप्रैल 2008
|
पीएसएलवी-सी9
| |
चंद्रयान -1
|
22 अक्टूबर 2008
|
पीएसएलवी-सी 11
| |
रीसैट -2
|
20 अप्रैल 2009
|
पीएसएलवी-सी12
| |
अनुसैट
|
20 अप्रैल 2009
|
पीएसएलवी-सी12
| |
ओशनसैट-2(आईआरएस-पी4)
|
23 सितंबर 2009
|
पीएसएलवी-सी 14
| |
जीसैट -4
|
15 अप्रैल 2010
|
जीएसएलवी डी 3
| |
कार्टोसैट -2 बी
|
12 जुलाई 2010
|
पीएसएलवी-सी15
| |
स्टुडसैट
|
12 जुलाई 2010
|
पीएसएलवी-सी15
| |
जीसैट 5पी / इनसैट-4डी
|
25 दिसंबर 2010
|
जीएसएलवी-एफ06
| |
रिसोर्ससैट -2
|
20 अप्रैल 2011
|
पीएसएलवी-सी 16
| |
यूथसैट
|
20 अप्रैल 2011
|
पीएसएलवी-सी 16
| |
जीसैट -8 / इन्सैट 4 जी
|
21 मई 2011
|
एरियन -5 वीए-202
| |
जीसैट -12
|
15 जुलाई 2011
|
पीएसएलवी-सी17
| |
मेघा-ट्रापिक्यूज़
|
12 अक्टूबर 2011
|
पीएसएलवी-सी18
| |
जुगनू
|
12 अक्टूबर 2011
|
पीएसएलवी-सी18
| |
रीसैट -1
|
26 अप्रैल 2012
|
पीएसएलवी-सी19
| |
एसआरएमसैट
|
26 अप्रैल 2012
|
पीएसएलवी-सी18
| |
जीसैट -10
|
29 सितंबर 2012
|
एरियन -5 वीए-209
| |
सरल
|
25 फरवरी 2013
|
पीएसएलवी-सी20
| |
आईआरएनएसएस-1ए
|
1 जुलाई2013
|
पीएसएलवी-सी22
| |
इनसैट -3 डी
|
26 जुलाई 2013
|
एरियन -5
| |
जीसैट -7
|
30 अगस्त 2013
|
एरियन -5
| |
मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम)
|
5 नवंबर 2013
|
पीएसएलवी-सी 25
| |
जीसैट -14
|
5 जनवरी 2014
|
जीएसएलवी-डी 5
| |
आईआरएनएसएस -1 बी
|
4 अप्रैल 2014
|
पीएसएलवी-सी24
| |
आईआरएनएसएस -1 सी
|
16 अक्टूबर 2014
|
पीएसएलवी-सी26
| |
जीसैट -16
|
7 दिसंबर 2014
|
एरियन -5
| |
आईआरएनएसएस -1 डी
|
28 मार्च 2015
|
पीएसएलवी-सी27
| |
जीसैट -6
|
27 अगस्त 2015
|
जीएसएलवी-डी 6
| |
एस्ट्रोसैट
|
28 सितंबर, 2015
|
पीएसएलवी-सी30
| |
जीसैट -15
|
11 नवंबर, 2015
|
एरियन 5 वीए-227
| |
आईआरएनएसएस-1ई
|
20 जनवरी 2016
|
पीएसएलवी-सी31
| |
आईआरएनएसएस-1एफ
|
10 मार्च 2016
|
पीएसएलवी-सी32
| |
आईआरएनएसएस-1जी
|
28 अप्रैल 2016
|
पीएसएलवी-सी33
|
भारत की चल रहीं अनेक सुदूर संवेदी परियोजनाओं के अन्तर्गत किए जा रहे कार्यों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग देश के विभिन्न संस्थानों, उद्योगों और विभागों द्वारा बड़े पैमाने पर भूजल पेयजल जैसे अनेक प्राकृतिक संसाधनों हेतु स्थानीय मानचित्रों, फसलों व कृषि उत्पादनों के पूर्वानुमानों एवम् वनों संबंधी जानकारियों, तथा जैवविविधता, हिमपात व हिमनद अध्ययनों आदि के लिए किया जा रहा है। दुनिया के प्रत्येक विकसित व विकासशील देश के विकास में निश्चितरूप से उसके सुदूर संवेदी उपग्रहीय सफलताओं का बड़ा योगदान है। रिमोट सेंसिंग अर्थात् सुदूर संवदी तकनीकियों का उपयोग साधारण दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने से लेकर विशिष्ट वैज्ञानिक उपलब्धियों को पाने तक किया जा रहा है। पिछले चार दशकों से उच्च स्थानिक सुदूर संवेदी उपग्रहों के माध्यम से अनेक क्षेत्रों विशेषरूप से कृषि, वानिकी, वातावरण, भूमि एवम् महासागरीय संसाधनों के दोहन तथा इन सभी के संरक्षण तथा मूल्यांकन में बड़ी सहायता मिली है।
सुदूर संवेदन से प्राप्त उपग्रहीय चित्रों का उपयोग महासागरीय अनुसंधानों में भी किया जा रहा है। हाँलाकि यह कहा जा सकता है कि यह अनुप्रयोग अभी अपनी शैशवावस्था में ही है। उपग्रहीय चित्रों में महासागर के विभिन्न रंगों के माध्यम से महासागरीय संसाधनों की पहचान कर पाना सुदूर संवेदी तकनीकी का इस क्षेत्र में किया गया प्राथमिक अनुप्रयोग है। इस दृष्टि से अनेक सुदूर संवेदी उत्कृष्ट तकनीकियों जैसे कोस्टल जोन कलर स्केनर, मॉडेरेट रिसाल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (एमओडीआईएस), सीडब्ल्यूआईएफएस, आर्कजीआईएस, एसपीएसएस, एवक्यूएल सर्वर, एवीएचआरआर तथा आर्कमेराइन आदि का उपयोग विभिन्न महासागरीय अनुसंधानों जैसे पादपप्लवकीय व हरितलवकीय उत्पादन, विविध जैवभूरासायनिक चक्रों, समुद्र सतही तापमान, टोपोग्राफी, बेथिमिट्री आदि में किया जा रहा है।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा |
उपर्युक्त तकनीकियों के प्रयोग से देश की विभिन्न समस्याओं का हल निकाला जा रहा है। सुदूर संवेदी तकनीकियों द्वारा समुद्र के ऐसे क्षेत्रों का पता लगाया जा रहा है जहाँ दोनों प्रकार के जैविक व अजैविक संसाधन अधिक मात्रा में उपलब्ध हों। जैविक संसाधनों अर्थात् विभिन्न तरह की मछलियों एवम् अन्य समुद्री जीवों जिनका उपयोग खाद्यानों के रूप में किया जाता है, की समुद्र में उनकी बहुलता दर्शाने वाले क्षेत्रों के विषय में पता लगाने के लिए विभिन्न सुदूर संवेदी तकनीकियों का उपयोग किया जा रहा है। इस मिशन के सफल होने से बड़ी मात्रा में समुद्री खाद्यानों पर निर्भर रहने वाली एक बड़ी तटवर्ती आबादी की खाद्य संबंधी समस्या को सुलझाने में सहायता मिल सकेगी। इन तकनीकियों द्वारा महासागरों में छिपी अकूत अजैविक समुद्री सम्पदाओं जैसे बहुमूल्य वस्तुओं, खनिज व तेल के भण्डारों का भी पता लगाया जा रहा है, जिससे विश्वस्तर पर संबंधित वाणिज्यिक व आर्थिक व्यवस्था में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इन तकनीकियों के माध्यम से अब मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं, जिनके द्वारा कृषि संबंधी उचित व त्वरित निर्णय लेने में सरलता हो जाती है। इसके अलावा साथ ही समुद्री आपदाओं जैसे तूफानी चक्रवातों या सूनामी की चेतावनी समय पर मिल जाने से सम्भावित जानमाल के नुकसान से भी बचा जा सकता है। इसी तरह सुदूर संवेदी तकनीकियों के उपयोग से पड़ोसी देशों की समुद्री पनडुब्बीय घुसपैठ का भी आसानी से पता लगाया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि सुदूर संवेदी तकनीकियों के महासागरीय अनुसंधान के क्षेत्र में अनुप्रयोग से देश की वैज्ञानिक छवि में निखार के साथ साथ अप्रत्यक्ष रूप से उसकी आर्थिक, सामाजिक एवम् रक्षा के क्षेत्र में भी सुधार व सुदृढ़ता आ रही है। फलतः देश को गरीबी व भुखमरी जैसी जानलेवा समस्याओं से मुक्त कराया जा सकेगा और भारत को उसके समृद्ध व सुसम्पन्न देश होने की विलुप्त हो चुकी प्रतिष्ठा से पुनः विभूषित किया जा सकेगा।
अंत में यही कहा जा सकता है कि रिमोट सेंसिंग तकनीकियों ने मानो मानव को ईश्वर तक पहुँचाने का मार्ग दिखला दिया है। अपने उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर वह पहले ही ईश्वर का पड़ोसी होने का दर्जा हासिल कर चुका है। और अब वह दिन दूर नहीं जब वह अपनी इन्हीं सुदूर संवेदी तकनीकियों के उपयोग से महासागर के गर्भ से अमृत को निकालने में कामयाब होगा।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण पुस्तक "भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ" और काव्य संग्रह "प्रेम काव्य सागर" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्रा के साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।
This a superb post!….!!
जवाब देंहटाएं