पूरे मोहल्ले में गौरी के गिरफ्तार होने की चर्चा थी। ड्रग्स बेचने और रेव पार्टी आयोजित करने के लिए गौरी को कल रात ही पुलिस ने गिरफ्तार किया था। गौरी को मैं ज्यादा तो नहीं जानती थी।
गौरी
पूरे मोहल्ले में गौरी के गिरफ्तार होने की चर्चा थी। ड्रग्स बेचने और रेव पार्टी आयोजित करने के लिए गौरी को कल रात ही पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
गौरी को मैं ज्यादा तो नहीं जानती थी। कुल पांच से छह मुलाकात ही हुई थी उससे। जहां मैं गिटार सीखने जाती थी वहां गौरी भी आती थी। दो साल पहले की ही तो बात है ये। वह ज्यादातर शांत ही रहती थी, लेकिन जब बोलती तो उसे खुद भी पता नहीं होता कि वह क्या बोल रही है। पहली मुलाकात में ही उसकी बातें मुझे कुछ असामान्य सी लगी थीं। दूसरी मुलाकात में हमारी कोई बात नहीं हुई थी। लेकिन तीसरी क्लास में ही मेरी उससे जबरदस्त बहस हो गई थी। उसे अपने देश, यहां के सिस्टम, रीति-रिवाजों, धार्मिक आयोजनों से खासी चिढ़ थी। उसे विदेश, वहां के लोग, वहां के सिस्टम, कानून सब बहुत प्रभावित करते थे।
बातों-बातों में ही मैंने जाना था कि उसके माता-पिता ने उसे कभी भी समय नहीं दिया था। न ही उसे वो प्यार मिला था, वो संभाल मिली थी जो इस उम्र के बच्चों को मिलनी चाहिए थी।
गौरी की उम्र ज्यादा नहीं थी। वह महज 20-21 साल की एक अल्हड़ सी लड़की थी। शायद यही वजह थी कि आज उसकी गिरफ्तारी सभी न्यूज चैनलों और लोगों के लिए कौतूहल का विषय थी। लेकिन गौरी की गिरफ्तारी से मुझे कोई झटका नहीं लगा था। उससे जितनी बार भी मुलाकात हुई थी मेरी बातों-बातों में कई बार उसने ड्रग्स और उसके सेवन को सही ठहराने की कोशिश की थी।
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गौरी के पिता अकसर अपने काम के सिलसिले में शहर से बाहर ही रहते थे। मां प्राॅपर्टी डीलर थीं, सो वह भी देर रात ही घर आती थीं। गौरी का बड़ा भाई भी बिजनेस के सिलसिले में देश-विदेश की यात्रा पर रहता था। पैसे और सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी गौरी की जिंदगी में। कमी थी तो अपनों के प्यार की, साथ की। प्यार की भूखी थी वह। उसे अपनों का साथ चाहिए था। कोई ऐसा चाहिए था जो उसे समझ सके, उसकी बातें सुन सके। ऐसे में उसके ऊपर की मंजिल पर किराए पर रहने के लिए जब दो विद्यार्थी राहुल और रमन आए तो सहज ही
गौरी से उनकी दोस्ती हो गई। राहुल और रमन गौरी से महज डेढ़-दो साल ही बड़े थे। बस यहीं से गौरी की सोच विकृत होनी शुरू हो गई। पिछले दो सालों में गौरी में काफी बदलाव आ गया था। हमेशा शांत रहने वाली गौरी अब काफी मुखर हो गई थी। बात-बे-बात किसी से भी लड़ने पर उतारू रहने लगी थी। पिछले साल तो ग्रेजुएशन के फस्र्ट ईयर में वह फेल भी हो गई थी। और आज खबर आई कि उसे पुलिस ने ड्रग पैडलिंग और रेव पार्टी आयोजित करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है।
असल में गौरी के घर में किराए पर रहने वाले राहुल और रमन, काॅलेज के फस्र्ट ईयर में ड्रग पैडलर के संपर्क में आए थे। ड्रग्स की लत लगने के बाद उन दोनों ने अपने खर्चे निकालने के लिए काॅलेज के छात्रावास में ही ड्रग बेचना शुरू कर दिया था। लेकिन काॅलेज प्रिंसिपल के संदेह होने पर दोनों ने छात्रावास छोड़ दिया था और बाहर किराए पर रहने लगे थे।
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राहुल और रमन का व्यवहार बहुत दोस्ताना था। यही कारण था कि गौरी शीघ्र ही उनके साथ घुल-मिल गई। धीरे-धीरे इन तीनों की दोस्ती गहराने लगी। चूंकि घर पर गौरी अकेली रहती थी, इसलिए तीनों एक साथ ही खाते-पीते और पढ़ाई करते। गौरी ओपन स्कूल से पढ़ाई कर रही थी, ऐसे में राहुल उसे पढ़ा देता था। दोनों के विषय एक ही थे। अब गौरी बेहद खुश रहने लगी थी। राहुल और गौरी में नजदीकियां काफी बढ़ चुकी थीं। हालांकि गौरी अभी भी राहुल और रमन के ड्रग पैडलर होने की बात से अनजान थी। एक दिन जब गौरी किसी काम से राहुल के कमरे में गई तो उसने उसे फोन पर किसी से ड्रग के लेन-देन की बातचीत करते सुना। गौरी को सामने पाकर राहुल घबरा सा गया और फोन बीच में ही काट दिया। जब गौरी ने राहुल से इस संबंध में पूछताछ की तो पहले तो उसने आना-कानी की, लेकिन बाद में उसे सबकुछ साफ-साफ बता दिया कि वे और रमन दोनों ही इस काम में साझेदार हैं। वे दोनों ही विश्वविद्यालय में ड्रग सप्लाई करते हैं। राहुल की बातें सुन गौरी तो जैसे सुन्न सी हो गई। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। वह सोच में पड़ गई कि जिस राहुल और रमन को वह मेघावी विद्यार्थी समझती थी, वे तो ड्रग के दलदल में धंसे पड़े हैं। लेकिन जब राहुल ने उसे इस धंधे में होने वाली कमाई के बारे में बताया तो गौरी आश्चर्य से भर गई।
राहुल को अब इस बात का डर सता रहा था कि कहीं गौरी उनका भंडाफोड़ न कर दे और कहीं उन्हें यह घर भी न छोड़ना पड़े। इस मुश्किल से निकलने के लिए राहुल ने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए। जब उसे कुछ भी नहीं सूझा तो उसने गौरी से अपने धंधे में शामिल होने की बात कही। लेकिन गौरी ने राहुल को स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया और कहा कि उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। गौरी ने राहुल को भी इस धंधे से दूरी बनाने की सलाह दी। उस समय राहुल ने कुछ भी नहीं कहा और गौरी से नीचे चले जाने को कहा। गौरी उदास मन से नीचे चली आई। उसे लगा कि राहुल उससे नाराज हो गया है। राहुल का साथ छूटने के डर ने उसे भीतर तक कंपा दिया था। नीचे आकर वह देर तक रोती रही थी। लेकिन राहुल भी कहां हार मानने वाला था, गौरी के नीचे जाते ही वह उसे मनाने की युक्ति ढंू़ढ़ने लगा।
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‘गौरी दरवाजा खोलो।’
दरवाजे पर रमन खड़ा था।
‘अरे तुम कब आए।’
‘पिछले 10 मिनट से तुम्हें आवाज दे रहा हूं। सोयी थी क्या?’
‘नहीं तो।’
इससे पहले की रमन कुछ कहता, गौरी ने उसे जता दिया था कि उसे उसके ड्रग पैडलर होने की बता पता है। साथ ही यह भी जता दिया था कि वे और राहुल गलत काम कर रहे हैं और कभी भी वे पुलिस की गिरफ्त में आ सकते हैं।
‘तुम जो कह रही हो वह सही है गौरी, लेकिन अब हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हमे पैसे चाहिए। इस शहर में रहने के लिए और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए। और इस धंधे में खूब पैसा है। और फिर हम अपने पास ड्रग्स कहां रखते हैं। हम तो बस बिचैलिए का काम करते हैं।’ रमन ने गौरी का गुस्सा ठंडा करने के लिए कहा।
‘खैर मैं तुम्हें यह बताने आया था कि कल सुबह हम तुम्हारा मकान छोड़कर चले जाएंगे।’
‘क्या राहुल भी।’ गौरी ने पूछा।
‘हां, क्योंकि उसे लगता है कि हमारी सच्चाई जानकर तुम हमसे नाराज हो गई हो। ऐसे में हमारा यहां रहना ठीक नहीं है। मैं तो अभी इसी समय अपने घर जा रहा हूं। मां बीमार हैं, लेकिन कल सुबह राहुल मकान खाली कर देगा।’
इतना बोलकर रमन सीधे बाहर निकल गया था।
रमन के जाते ही गौरी दरवाजा बंद कर अंदर आ गई। जिसका डर था आखिर वही हुआ। अब राहुल भी उसकी जिंदगी से चला जाएगा। वह फिर से अकेली रह जाएगी। लेकिन वह एक ड्रग पैडलर से प्यार कैसे कर सकती है।
नहीं, नहीं, राहुल जाता है तो जाए, उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह इस दर्द से बाहर निकल आएगी। लेकिन गलत का साथ नहीं देगी।
लेकिन ड्रग्स लेना तो आजकल का फैशन है। और राहुल तो कभी-कभार ही लेता है। वह अपने पास ड्रग्स भी कहां रखता है। वह तो किसी और से लेकर उसे दूसरों तक पहुंचा देता है। वो भी इसलिए ताकि वो अपनी पढ़ाई और दिल्ली में रहने का खर्च उठा सके।
पर है तो यह गैरकानूनी धंधा ही। तो आजकल काूनन कौन मानता है भला। उसके पिता और भाई भी तो पैसा कमाने के लिए अपने बिजनेस में गलत काम करते हैं। काफी देर तक गौरी इसी ऊहापोह में फंसी रही। तभी दरवाजे पर एक बार फिर खट-खट की आवाज हुई। बाहर जाकर देखा तो दरवाजे पर राहुल खड़ा था।
‘गौरी अंदर आ जाऊं?’
‘आ जाओ।’
‘यहां क्यों आए हो?’
‘तुम्हें बताने कि तुम्हें कितना प्यार करता हूं? कल सुबह मैं तुम्हारा मकान खाली कर दूंगा, ताकि तुम्हें मेरे कारण किसी तरह की कोई परेशानी न हो। अंकल-आंटी को कोई परेशानी न हो। लोग तुम्हारे बारे में उल्टी-सीधी बातें न करें। आज रात आंटी को बता दूंगा। तुम ये किराए के पैसे रख लो।’
‘लेकिन किराया तो एडवांस चलता है।’
‘फिर भी तुम ये पैसे रख लो, मैं अचानक से तुम्हारा मकान छोड़कर जो जा रहा हूं।’
‘कहां जाओगे?’
‘अपने दोस्त के घर रह लूंगा कुछ दिन। इसी बीच दूसरा मकान तलाश लूंगा।’
‘तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया राहुल? क्यों मुझसे नजदीकियां बढ़ाई, जबकि तुम जानते थे कि तुम एक ड्रग पैडलर हो?’
‘मैं शुरू से ड्रग पैडलर नहीं था गौरी। मुझे इस हालत में पहुंचाने का काम यहां के सिस्टम और कानून ने किया है। मेरी बहन को उसके ससुरालवालों ने दहेज के लिए जलाकर मार डाला था। वो पैसे वाले लोग थे और हम मीडिल क्लास। पुलिस ने पैसे लेकर मामले को रफा-दफा कर दिया। हमें रोज-रोज जान से मारने की धमकियां मिलने लगी थीं। बहन के असमय मर जाने से हमारे माता-पिता टूट चुके थे। पैसे न होने की बेचारगी उनके चेहरे पर साफ नजर आती थी। पैसे होते तो दहेज के कारण उनकी बेटी की जान न जाती। बसी उसी पल मैंने सोच लिया था कि चाहे जो भी तरीका अपनाना पड़े, सही या गलत, मुझे बहुत सारा पैसा कमाना है।’
बोलते-बोलते आंसूओं से पूरा चेहरा भर गया था राहुल का।
‘एक और बात मैं कहना चाहता हूं गौरी, मैं तमसे बहुत प्यार करता हूं, लेकिन यहां के सिस्टम और कानून से उतनी ही नफरत करता हूं। अब ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम मेरे बारे में क्या धारणा बनाती हो। मैंने अपनी सारी सच्चाई तुम्हारे सामने रख दी है।’
तरू श्रीवास्तव |
‘हां, एक बात और, मैं इस धंधे से पीछे नहीं हटने वाला हूं। सिस्टम और कानून ने मुझे जितनी तकलीफ दी है, उसके विरुद्ध जाकर मुझे बेहद शांति मिल रही है।’
गौरी की प्रतिक्रिया जानने के लिए राहुल कुछ देर गौरी के कमरे में रूका, लेकिन जब गौरी ने कुछ भी नहीं कहा तो वह वहां से चला गया।
बहुत देर तक गौरी यूं ही शांत बैठी रही। वह चुपचाप टकटकी लगाए घड़ी की ओर देखती रही। रात के 10 बज चुके थे। गौरी की मम्मी अब तक घर नहीं आई थीं। गौरी उन्हें फोन करने जा ही रही थी कि तभी फोन की घंटी बज उठी।
‘ट्रिन-ट्रिन। हैलो, हां मम्मी, बोलो।’
‘आज मैं घर नहीं आऊंगी। तेरी नानी की तबियत खराब है। उनके पास जा रही हूं। मुझे एक सप्ताह लग जाएगा। मैंने राहुल से बोल दिया है, वह तेरा ख्याल रखेगा।’
‘लेकिन मम्मी, राहुल क्यों? मैं खुद भी तो अपना ख्याल रख सकती हूं।’
‘हां, जानती हूं।’ और मम्मी ने फोन काट दिया था।
कुछ देर सोचने के बाद गौरी ऊपर राहुल के कमरे में गई।
‘राहुल तुमने मम्मी को क्यों नही बताया कि तुम कल सुबह फ्लोर खाली कर रहे हो?’
‘ इससे पहले की मैं कुछ कहता, आंटी ने तुम्हारी जिम्मेदारी मुझे सौंप दी। मैं उनका विश्वास नहीं तोड़ सकता हूं गौरी।’
‘तो फिर तुम कल नहीं जा रहे हो?’
‘नहीं। जब आंटी आ जाएंगी तब चला जाऊंगा। वैसे तुमने मेरे बारे में क्या सोचा है गौरी? मुझे माफ करोगी? मैं इस धंधे में इतना आगे पहुंच चुका हूं कि अब पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं है।’
गौरी एकदम से राहुल का मुंह निहारने लग गई थी। कुछ देर शांत रहने के बाद गौरी राहुल से लिपट गई।
‘मुझे छोड़कर मत जाओ राहुल। तुम तो जानते हो कि मैं कितनी अकेली हूं। और फिर तुमने कुछ भी गलत नहीं किया है। तुम्हें ऐसा बनने के लिए सिस्टम ने मजबूर किया है। और हां, एक बात और, आज से तुम्हारे धंधे में मैं भी शामिल हो रही हूं। सब गलत तरीके से पैसे कमाते हैं, तो हम क्यों नहीं। और फिर जिसके पास पैसे होते हैं, वह तो हर अपराध करके बच निकलता है। हम भी बच निकलेंगे।’
एक ही सांस में बोल गई थी गौरी। राहुल चुप उसका मुंह ताकता रह गया था। उस रात दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गई थीं। सुबह होने पर दोनों के मन में रात की घटना को लेकर कोई पछतावा नहीं था।
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गौरी के इस धंधे में शामिल होने की खुशी में राहुल ने शानदार पार्टी दी थी। अब तो ऐसी पार्टियां हर महीने होने लगी थीं। इन पार्टियों की आड़ में राहुल और गौरी घर से ही ड्रग्स का धंधा चलाने लगे थे।
सिस्टम और कानून चाहे कितना भी लचर क्यों न हो, समाज में कुछ तो ईमानदार लोग होते ही हैं। बस ऐसे ही कुछ लोगों से उस दिन अपने पड़ोस में उलझ गई थी गौरी। उसके बदले तेवर, हर महीने होने वाली पार्टी और घर पर लड़कों के जमावड़े ने उन ईमानदार लोगों के मन में शक के बीज बो दिए थे।
कई बार गौरी के पड़ोसी दीनानाथ जी ने उसे समझाने की कोशिश की थी, उसे देर रात तक पार्टी न करने की सलाह दी थी। लेकिन गौरी हर बार उन्हें टका सा जवाब देती हुई कहती,
‘मेरी मर्जी, मैं अपने घर में जो चाहे करूं। आप होते कौन हैं नसीहत देने वाले।’
गौरी का इस तरह अपने पिता को जवाब देना दीनानाथ जी की बेटी अलका को बिल्कुल ही पसंद नहीं आता था।
वह दीनानाथ जी से अकसर कहती, ‘आप क्यों गौरी को हमेशा टोकते हैं। जमाना बदल चुका है। लेट नाइट पार्टी आज की जीवनशैली का हिस्सा है। ऐसे में गौरी कुछ भी गलत नहीं कर रही है।’
अलका के इस तरह के विचार ने उसे गौरी और राहुल के नजदीक ला दिया था। अब तीनों ही दोस्त बन चुके थे। अलका ने अपनी इस दोस्ती को बनाए रखने के लिए अपने पिता की तरफ से राहुल और गौरी से माफी भी मांग ली थी।
अलका का यूं माफी मांगना गौरी को अपनी बड़ी जीत लगी। उसे लगा कि उससे डरकर दीनानाथ जी ने अलका को माफी मांगने भेजा है। अब वह खुलकर अलका के सामने ड्रग्स का लेन-देन करने लगी थी। गौरी के इस धंधें में शामिल होने के बाद से राहुल कहीं पीछे छुपता चला गया था। या यूं कहें कि वह गौरी को इस दलदल में धकेल खुद को इस धंधे से एक तरह से अलग कर चुका था। इस तरह 6 महीने तक चली इस दोस्ती ने अलका को राहुल और गौरी की हर एक गतिविधियों की जानकारी दे दी थी।
और जब कल रात गौरी ने रेव पार्टी आयोजित की तो अलका ने चुपके से पुलिस को फोन कर इसकी जानकारी दे दी थी। उसके थोड़ी देर बाद ही उसके घर पुलिस का छापा पड़ गया था। छापे के दौरान गौरी, राहुल सहित दूसरे कई विद्यार्थी भी वहां से गिरफ्तार किए गए थे। गौरी के माता-पिता को जब उसके ड्रग पैडलर होने और उसके गिरफ्तार होने की बात पता चली तो उनके तो जैसे होश ही उड़ गए।
गौरी की मम्मी का तो रो-रोकर बुरा हाल था। ‘मेरी बेटी ड्रग पैडलर हो ही नहीं सकती। वह तो बेहद शांत और सीधी है। हां, पिछले दो सालों में उसका स्वभाव जरूर बदला है, पर यह बदलाव तो उम्र बढ़ने के साथ सबके स्वभाव में आता है। नहीं-नहीं पुलिस उनकी बेटी पर गलत इल्जाम लगा रही है।’ वह बार-बार इसी बात की रट लगाए जा रही थीं।
‘नहीं मां, पुलिस जो कह रही है वह बिल्कुल सच है। मैं राहुल के साथ मिलकर ड्रग्स का धंधा करती हूं और इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है। आप इन्हें मुंहमांगा पैसा दे दीजिए, मेरी और राहुल की बेल हो जाएगी। बाद में पैसे के दम पर हम मुकदमा भी जीत जाएंगे।’
‘तड़ाक।’ एक जोरदार थप्पड़ रसीद किया था महिला पुलिस अधिकारी ने गौरी के गाल पर। कड़ककर बोली था -
‘हर कोई बिकाऊ नहीं होता है गौरी। ठीक उसी तरह, जिस तरह हर लड़की तुम्हारी तरह अपराधी नहीं होती है।’
‘देखिए इसे हमने रंगे हाथों पकड़ा है और इसकी बेल नहीं हो सकती है। आप लोग जा सकते हैं।’ महिला पुलिस अधिकारी ने गौरी के मम्मी-पापा से कहा।
‘इसे लाॅक अप में बंद कर दो।’
गौरी अवाक खड़ी उस महिला पुलिस अधिकारी का मुंह ताकती रह गई थी। ड्रग्स के धंधे में राहुल का साथ देना उसके भविष्य को चैपट कर गया था। बहुत ही चालाकी से राहुल ने उसे इस धंधे में धकेलकर खुद को आजाद कर लिया था।
राहुल सहित दूसरे विद्यार्थियों को ड्रग्स लेने के जुर्म में छह महीने की सजा हुई थी, जबकि गौरी को ड्रग पैडलिंग के लिए सात साल की सजा सुनाई गई थी। अकेलापन और राहुल पर अंधविश्वास ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया था।
- तरु श्रीवास्तव
परिचय : वास्तविक नाम आरती श्रीवास्तव, तरू श्रीवास्तव के नाम से कविता, कहानी, व्यंग्य लेखन।
शैक्षणिक योग्यता : जंतु विज्ञान में एमएससी, बीजेएमसी, कथक और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में प्रभाकर।
कार्यानुभव :
पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्ष 2000 से कार्यरत। हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरिभूमि, कादिम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं में बतौर स्वतंत्र पत्रकार विभिन्न विषयों पर कई आलेख प्रकाशित। हरिभूमि में एक कविता प्रकाशित।
दैनिक भास्कर की पत्रिका भास्कर लक्ष्य में 5 वर्षों से अधिक समय तक बतौर एडिटोरियल एसोसिएट कार्य किया। तत्पश्चात हरिभूमि में दो से अधिक वर्षों तक उपसंपादक के पद पर कार्य किया। वर्तमान में एक प्रोडक्शन हाऊस में कार्यरत।
आकाशवाणी के विज्ञान प्रभाग के लिए कई बार विज्ञान समाचार का वाचन यानी साइंस न्यूज रीडिंग किया।
कहानी का मर्म समझ जाए तो नौजवानों को भटकने से रोक सकती है |
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