अपने बच्चे से बिछुड़ने का दुख क्या होता है, यह वह भली-भांती जानते थे। सो, मकेसर का दुःख उनसे देखा नहीं गया।
संपत्ति
‘‘कौन है अंदर, बाहर आओ।’’‘‘हम हैं।’’
‘‘हम कौन?’’
‘‘हम, मकेसर।’’
‘‘अरे तू। तू इहां क्या कर रहा है? तेरा काम तो इस बिल्डिंग में खत्म हो गया था। मैंने तो तुझे सामने वाली बिल्डिंग में काम करते हुए देखा है। फिर तू इस बिल्डिंग में कैसे आ गया? तुझे पता भी है, इहां लाखों रुपए का छड़, सिमेंट रखा हुआ है।’’
रतन चैकीदार ने कड़ककर मकेसर से पूछा।
‘‘ये क्या, अंदर तो कोई औरत भी है?’’ रतन के इतना कहने पर मकेसर ने उत्तर दिया -
‘‘मेरी घरवाली है भाई।’’
‘‘अच्छा, तो तूने यहां अपना घर बसा लिया है। चल बाहर निकल। जा सामने वाली बिल्डिंग में रह।’’ रतन ने लगभग फटकारते हुए मकेसर से कहा।
तरु श्रीवास्तव |
‘‘क्या हुआ रतन? कौन है इस बिल्डिंग में? यहां ताला क्यों नहीं बंद था?’’ बिल्डिंग के मालिक अभय ने रतन से पूछा।
‘‘बाकी कमरे तो बंद थे साब, लेकिन इ कमरा में कुछ नहीं रखा था सिवाय थोड़े-बहुत गिट्टी के, इसलिए इसमें ताला नहीं लगा था। कमरे को खुला देख इ मकेसर इहां रहने आ गया।’’
‘‘इ मकेसर कौन है?’’
‘‘साब जब इ बिल्डिंग बन रहा था तो इ इहां मजूरी करता था। अब सामने वाली बिल्डिंग में काम कर रहा है। उहां छत नहीं बना है ना, त इ इहां आ गया है है रहने। अभी थोड़ी देर पहले हुई बारिश में इसके टेंट से पानी चूने लगा था।’’
इससे पहले की अभय कुछ कहते, मकेसर ने उनका पैर पकड़ लिया और गिड़गिड़ाकर बोला -
‘‘साब हमका इहां से मत निकालो। हम आपकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या चोरी करने के लिए इहां नहीं आए हैं। हम आपकी संपत्ति को कवनो नुकसान नहीं पहुंचाएंगे साब। ओइसे भी जिस कमरे में सब सामान रखा है, उहां त ताला पड़ा है। साब हमरा लड़िकवा को बहुते तेज बुखार है। एही लिए हमरी घरवाली उसे इहां लेके आ गई। साब हमरा पांच-पांच बच्चा टूट गया है। इहे एगो जिंदा बचा है। अइसे मेें भीग गया त का जाने कहीं इहो----।’’ कहते-कहते बिलख पड़ा था मकेसर। खुद को संभालते हुए वह आगे बोला -
‘‘साब अपनी संपत्ति के साथ हमरी संपित्त का भी थोड़ा फिकर कर लो साब। इ लड़िका ही हमार संपत्ति है। इहो अगर टूट गया त हम आ हमरी घरवाली किसके लिए जिएंगे।’’
‘‘ठीक है, ठीक है। रतन इसे उस कमरे की चाबी भी दे दो, जहां हमारी संपत्ति, आई मीन टू से छड़, सिमेंट आदि रखा है। मकेसर आज से तुम्हारे साथ इसी बिल्डिंग में रहेगा। यह लो पांच हजार रुपए, अपने लड़के का इलाज करा लेना।’’ अभय ने मकेसर को पांच हजार रुपए देते हुए कहा।
‘‘भगवान आपकी संपत्ति में दिन दूनी चार चैगुनी बढ़ोत्तरी करे मालिक।’’
इससे पहले की मकेसर अभय को यह दुआ देता, अभय तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ चुके थे। मकेसर की बातों ने उनके घाव हरे कर दिए थे। पिछले महीने ही तो एक सड़क दुर्घटना में उनके बेटे की मृत्यु हुई थी। अपने बच्चे से बिछुड़ने का दुख क्या होता है, यह वह भली-भांती जानते थे। सो, मकेसर का दुःख उनसे देखा नहीं गया।
- तरु श्रीवास्तव
यह कहानी तरु श्रीवास्तव जी द्वारा लिखी गयी है . आप कविता, कहानी, व्यंग्य आदि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य करती हैं . आप पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्ष 2000 से कार्यरत हैं। हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरिभूमि, कादिम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं में बतौर स्वतंत्र पत्रकार विभिन्न विषयों पर कई आलेख प्रकाशित। हरिभूमि में एक कविता प्रकाशित। दैनिक भास्कर की पत्रिका भास्कर लक्ष्य में 5 वर्षों से अधिक समय तक बतौर एडिटोरियल एसोसिएट कार्य किया। तत्पश्चात हरिभूमि में दो से अधिक वर्षों तक उपसंपादक के पद पर कार्य किया। वर्तमान में एक प्रोडक्शन हाऊस में कार्यरत हैं.आकाशवाणी के विज्ञान प्रभाग के लिए कई बार विज्ञान समाचार का वाचन यानी साइंस न्यूज रीडिंग किया।
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