एक छोटे से कमरे में बारह लड़कियां ठूंसी गई थीं. उनकी उम्र १५ से २० वर्ष के बीच थी. कमरे में केवल एक छोटी सी खिड़की थी. इतने लोगों के कारण बहुत घुटन थी.
इंद्रधनुष
एक छोटे से कमरे में बारह लड़कियां ठूंसी गई थीं. उनकी उम्र १५ से २० वर्ष के बीच थी. कमरे में केवल एक छोटी सी खिड़की थी. इतने लोगों के कारण बहुत घुटन थी.
पूनम खिड़की पर खड़ी थी. कुछ ही देर पहले बारिश रुकी थी. आसमान का जो टुकड़ा खिड़की से दिख रहा था उस पर इंद्रधनुष खिला था. उसे देख कर पूनम को अपने गांव की याद आ गई.
सुदूर पहाड़ों पर बसा उसका गांव बहुत सुंदर था. दूर तक फैले मैदान, कल कल बहती नदी, पेंड़ पौधे, पशु पक्षी सभी मनोहारी थे. वहाँ आज़ाद पंछी की तरह चहकती फिरती थी वह.
कमी थी दो वक्त पेट भर खाने की. तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ों की. वह उसकी माँ और छोटा भाई सभी खेतों में काम करते थे. कड़ी मेहनत के बाद जो मिलता उसका बड़ा हिस्सा उसके पिता की शराब की लत की भेंट चढ़ जाता. जो बचता उससे दो वक्त चूल्हा जलाना संभव नही था. अपने कष्टों के बावजूद भी वह खुश थी.
आशीष कुमार त्रिवेदी |
अचानक ही एक हलचल की तरह सुशील गांव आया. पांच साल पहले वह मुंबई भाग गया था. अब जब लौटा था तो उसके ठाट ही निराले थे. फिल्मी हीरो जैसा हुलिया बना रखा था. सभी बस उसी के बारे में बात कर रहे थे.
पूनम भी उसकी तरक्की से प्रभावित थी. वह भी उससे बात किया करता था. पूनम उसकी ओर आकर्षित हो गई. दोनों रोज़ ही एक दूसरे से मिलते थे. सुशील मुंबई के किस्से सुनाता था. पूनम मन ही मन मुंबई जाने के सपने देखती थी.
एक दिन जब दोनों नदी के किनारे बैठे थे तो सुशील ने कहा "मेरे साथ मुंबई चलेगी. तेरे दिन फिर जाऐंगे. यहाँ दिनभर खेत में खटती है तो भी पेट भरने लायक नही मिलता. वहाँ घरेलू काम के अच्छे पैसे मिलेंगे. यह समझ ले नोट बरसेंगे."
उसकी बात सुनकर पूनम ललचा गई और बोली "क्या सचमुच"
"हाँ मुझे ही देख. मैंने नही कमाए नोट. वहाँ मेहनत की कदर है."
सारी रात वह जागती रही. सुशील के शब्द उसके कानों में गूंजते रहे 'नोट बरसेंगे.' वह सुखद भविष्य के सपने देखने लगी. अगले दिन उसने घर में बात की. समझाया कि यदि वह गई तो पैसे घर भेज उन लोगों की मदद कर सकेगी. माँ ने तुरंत मना कर दिया कि अंजान शहर में अकेली कैसे रहेगी. लेकिन उसके शराबी पिता को केवल नोट दिख रहे थे. उसने उसकी माँ को डपट दिया.
पूनम सुशील के साथ मुंबई आ गई. सुशील ने मुंबई पहुँच कर उसे एक छोटी सी खोली में रखा. यहाँ पूनम को घुटन होती थी. वह बार बार काम के बारे में पूंछती थी. सुशील कहता कि काम खोजने में समय लगता है. इस तरह कुछ दिन बीत गए. एक दिन सुशील आया और बोला कि वह तैयार हो जाए. आज वह उसे काम पर ले जाएगा. पूनम खुशी खुशी तैयार होकर चल दी.
वह दोनों एक बड़े से बंगले में पहुँचे. बंगले में एक बड़ा स्वीमिंगपूल था. पूनम बहुत कौतुहल से सब कुछ देख रही थी. सुशील उसे लेकर बंगले के भीतर गया. वहाँ एक कमरे में एक स्थूलकाय औरत थी. उसके सामने ले जाकर सुशील बोला "यही है वह." उस महिला ने उसे सिर से पांव तक देखा. जैसे आंखों ही आंखों में उसे तौल रही हो. फिर एक लिफाफा सुशील को पकड़ा दिया. उसे जेब में रख मुस्कुराते हुए वह बाहर निकल गया. पूनम कुछ समझ नही पा रही थी.
जब तक उसे समझ आया बहुत देर हो गई थी. वह भयानक नर्क में फंस चुकी थी. रोज़ कुछ दरिंदे आकर उसे नोचते थे. कई दिनों तक उसकी चीखें उस बंगले के भीतर दम तोड़ती रहीं. फिर उसने चीखना भी बंद कर दिया. दिन भर उसे और उसके साथ अन्य लड़कियों को बंगले के सबसे ऊपरी हिस्से में क़ैद रखा जाता था. शाम को उन्हें तैयार कर हवस के भूखे भेड़ियों को सौंप दिया जाता था.
छह महिने हो गए थे उसे इस नर्क में आए जहाँ हर रात उसके लिए वेदना लेकर आती थी. किंतु इन सब के बीच भी उसके मन में एक आस थी कि एक दिन वह अपने गांव अवश्य जाएगी. आज इंद्रधनुष देख कर उसकी आस और मजबूत हो गई.
यह कहानी आशीष कुमार त्रिवेदी जी द्वारा लिखी गयी है . आप लघु कथाएं लिखते हैं . इसके अतिरिक्त उन लोगों की सच्ची प्रेरणादाई कहानियां भी लिखतें हैं जो चुनौतियों का सामना करते हुए भी कुछ उपयोगी करते हैं.
Email :- omanand.1994@gmail.com
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