कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं ! रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू ! प्रेम का सागर लिखूं !या चेतना का चिंतन लिंखू ! प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिंखू !
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
प्रेम का सागर लिखूं !या चेतना का चिंतन लिंखू !
प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिंखू !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
कंस के लिए विष लिखूं या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
पृथ्वी का मानव लिखूं या निर्लिप्त योगश्वर लिखूं।
चेतना चिंतक लिखूं या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।
यह रचना सुशील
कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और
अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी
प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय,
गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत
हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक
मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय
जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | अापकी
रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य
शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :-
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
जेल में जन्मा लिखूं या गोकुल का पलना लिखूं।
देवकी की गोदी लिखूं या यशोदा का ललना लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
गोपियों का प्रिय लिखूं या राधा का प्रियतम लिखूं।
रुक्मणी का श्री लिखूं या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
देवकी का नंदन लिखूं या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं या नन्द का गोपाल लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
नदियों सा बहता लिखूं या सागर सा गहरा लिखूं।
झरनों सा झरता लिखूं या प्रकृति का चेहरा लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
आत्मतत्व चिंतन लिखूं या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।
स्थिर चित्त योगी लिखूं या यताति सर्वात्मा लिखूं।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं !कितना लिखूं !
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिंखू !
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की सभी को शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंकविता के रचियता का नाम आपने मिटा दिया किन्तु उसके सारे डिटेल्स लिखे हुए हैं
हटाएंये मेरी कविता है कृपया मेरे नाम के साथ पब्लिश करें
सुशील शर्मा
अब सही कर दिया गया है .
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं