कृष्ण चरित्र सबको लुभाता है। कृष्ण सम्पूर्ण जिंदगी के पर्याय हैं उनका जीवन सन्देश देता है की जो भी पाना है संघर्ष से पाना है।
अपरिभाषित कृष्ण
जन्माष्टमी पर विशेष
सुशील कुमार शर्मा
कृष्ण पर क्या लिंखू ?कितना लिंखू ?क्योंकि कृष्ण तो जगत का विस्तार हैं। चेतना के सागर हैं ,जगद्गुरु हैं ,योगेश्वर
हैं। उन्हें शब्दों में बँधाना उतना ही कठिन है जितना सागर की लहरों को
बाजुओं में समेटना। ग्वालों एवं बालाओं के साथ खेलने वाला सरल सा कृष्ण
इतना अगम्य है की उसे जानने के लिए ज्ञानियों को कई जन्म लेने पड़ते है तब
भी उसे नहीं जान पाते। कृष्ण कई ग्रंथों के पत्र हैं आज उनपर सैंकड़ो ग्रन्थ
लिखा जा चुके हैं और लगता की उन्हें तो किसी ने छुआ भी नहीं है। उन पर
सैंकड़ो वर्षों तक लिखने के बाद भी उनकी एक मुस्कान को ही परिभाषित नहीं
किया जा सकता ।
पौराणिक
मान्यताओं के आधार पर विष्णु भगवान ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वन्तर के
अट्ठाइसवें द्वापर में अट्ठाइसवें अवतार के रूप में देवकी के गर्भ से
भाद्रपद कृष्ण अष्ठमी के दिन रोहणी नक्षत्र में रात के ठीक बारह बजे
जन्म लिया। ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर कृष्ण का जन्म 1500 ई.पूर्व . में हुआ था। हिन्दू काल गणना के अनुसार 5235 वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म हुआ था।
कृष्ण क्या हैं ? मनुष्य हैं ,देवता हैं ,योगी हैं ,संत हैं ,योद्धा हैं ,चिंतक हैं ,सन्यासी हैं ,लिप्त हैं , निर्लिप्त हैं ? क्या कोई परिभाषित कर सकता हैं? इतना
बहुआयामी व्यक्तित्व जो जन्म से ही मृत्यु के साये में जीता है।कृष्ण का
जन्म जेल में हुआ घनघोर बारिश में नंदगांव पहुंचे व जन्म से ही जिसकी
हत्या की बिसात बिछाई गई हो ,जिसे जन्म से ही अपने माता पिता से अलग कर दिया हो ,जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन तलवार की धार पर जिया हो ,वो ही इतने विराट व्यक्तित्व का धनी हो सकता है। कृष्ण जीवन भर यताति रहे भटकते रहे ,लेकिन दूसरों का सहारा बने रहे ,बाल लीलाएं कर के गांव वालों को बहुत सी व्याधियों से बचाया ,दिखावे से दूर कर्मयोगी बनाया बुरी परम्पराओं से आज़ाद कराया।
कृष्ण
चरित्र सबको लुभाता है। कृष्ण सम्पूर्ण जिंदगी के पर्याय हैं उनका जीवन
सन्देश देता है की जो भी पाना है संघर्ष से पाना है। कृष्ण आत्म तत्व के
मूर्तिमान स्वरुप है कृष्ण की लीलाएं बताती हैं की व्यक्ति और समाज आसुरी
शक्तियों का हनन तभी कर सकता है जब कृष्ण रुपी आत्म तत्व चेतन में
विराजमान हो। ज्ञान और भक्ति के अभाव में कर्म का परिणाम कर्तापन के अहंकार
में संचय होने लगता है। सर्वात्म रूप कृष्ण भाव का उदय इस अहंकार से हमारी
रक्षा करता है। कंस गो हत्या का प्रवर्तक था उसके राज्य में नरबलि होती थी
जरासंध 100
राजाओं का सर काट कर शिवजी पर बलि चढ़ाने वाला था कृष्ण ने इन दोनों आसुरी
शक्तियों का संहार किया युद्धिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उन्होंने
ब्राह्मणों की जूठी पत्तल उठाने का कार्य अपने हाथ में लिया था।
कृष्ण का चरित्र व्यक्ति के सुखों एवं दुखों में आवद्ध है राम का शैशव
किसी को याद नहीं है सिर्फ बालकाण्ड तक सीमित है लेकिन कृष्ण का बालकाल्य
हर घर की शोभा है। हर माँ अपने बालक के बचपन की तुलना कृष्ण के बचपन से
करती है। उनका घुटनो के बल चलना ,पालने से नीचे गिरना ,माखन के लिए जिद करना ,माता को प्रतिपल सताना हर घर का आदर्श है।
राधामकृष्णस्वरूपम वै, कृष्णम राधास्वरुपिनम; कलात्मानाम निकुंजस्थं गुरुरूपम सदा भजे।
राधा
कृष्ण का प्रेम तो त्याग तपस्या की पराकाष्ठा है। अगर प्रेम शब्द का कोई
समानार्थी है तो वो राधा कृष्ण है। प्रेम शब्द की व्याख्या राधाकृष्ण से
शुरू हो कर उसी पर समाप्त हो जाती है। राधाकृष्ण की प्रीती से समाज में
प्रेम की नई व्याख्या एक नवीन कोमलता का आविर्भाव हुआ। समाज ने वो भाव पाया
जो गृहस्थी के भार से कभी भी बासा नहीं होता। राधाकृष्ण के प्रेम में कभी
भी शरीर बीच में नहीं था। जब प्रेम देह से परे होता है तो उत्कृष्ट बन
जाता है और प्रेम में देह शामिल होती है तो निकृष्ट बन जाता है। रुक्मणी व
कृष्ण की अन्य रानियों ने कभी भी कृष्ण और राधा के प्रेम का बहिष्कार नहीं
किया। रुक्मणी राधा को तबसे मानती थी जब कृष्ण के वक्ष स्थल में तीव्र जलन
थी नारद ने कहा की कोई अपने पैरों की धूल उनके वक्ष स्थल पर लगा दे तो
उनका कष्ट दूर हो जायेगा कोई तैयार नहीं हुआ क्योंकि भगवान के वक्ष स्थल
पर अपने पैरों की धूल लगा कर हज़ारों साल कौन नरक भोगेगा ,लेकिन
राधा सहर्ष तैयार हो गयीं उन्हें अपने परलोक की चिंता नहीं थी कृष्ण की
एक पल की पीड़ा हरने के लिए वह हज़ारों साल तक नरक भोगने को तैयार थी।उस समय
तो रुक्मणी चमत्कृत थी जब कृष्ण के गरम दूध पीने से राधाजी के पूरे शरीर
पर छाले आ गए थे कारण था कि राधा तो उनके पूरे शरीर में विद्यमान हैं।
कृष्ण ने यौवन का पूर्ण आनंद लिया जो संयमित था उनकी उद्दीप्त मुरली की तान
ने कभी भी मर्यादों की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया।
राधा के प्रति प्रेम तो अनन्य है लेकिन सभी अपनों के प्रति उनके प्रेम
में कोई अलग भाव नहीं था अपने दोनों माताओं एवं पिताओं अपनी रानियों , ग्वाल बालों ,संगी साथियों ,ब्रज वनिताओं ,से भी कृष्ण उतने ही घनिष्ठ थे ,उन्होंने रास रचाया लेकिन रास है क्या ?जब
कोई मनोवेग इतना प्रबल हो जाये की चुप न रह सके चिल्ला उठे तो वह रास बन
जाता है उस महारास का मुख्य उद्देश्य था महिलाओं की जाग्रति बेचारी
महिलायें अपने मन की बात कैसे करें समाज का बंधन ,परिवार का बंधन ,उस
महारास में ब्रज की महिलाओं ने अपने अस्तित्व को नई पहचान दी थी। कृष्ण
की कुशलता थी की उन्होंने सब को एक जैसा स्नेह दिया पशु पक्षी ,शिक्षित अशिक्षित ,रूपवान कुरूप सभी को सम दृष्टि से देखा और अपने स्नेह से वश में कर लिया
कृष्ण
का भारतीय जनमानस पर अद्भुत प्रभाव है। जन्म से लेकर मोक्ष तक वो भारतीय
जनमानस से जुड़े रहे। उनके चरित्र को लोग इतने निकट पातें है की लगता है की
ये सब उनके घर में ही घटित हुआ हो। अपने पूरे जीवन काल में वो भारतीय
जनमानस का नेतृत्व करते हुए दिखाई देते हैं। बचपन में इंद्र के अभिमान को
चूर्ण करके प्रकृति के स्वरुप गोवर्धन की पूजा करवाते हुए ग्रामीण जनो एवं
किसानों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाई देते हैं। अन्यायी कंस का वध करके
पूरे परिवार एवं समाज को भयमुक्त बनाते हैं। गरीब सुदामा के प्रति उनका
प्रेम समाज के दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान का प्रतिनिधित्व करता है।
गीता का सम्बोधन समस्त मानव जाति को बुराइयों से बचने का सन्देश है।
राम मर्यादा पुरषोत्तम कहे जाते है लेकिन कृष्ण की कोई एक उपाधि नहीं हैं कृष्ण कही योगी ,कंही प्रेमी कंही योद्धा ,कंही युद्ध भूमि से भागे रण छोर ,कंही कूटनीतिज्ञ ,कंही भोले भाले ग्वाले। मनुष्य जीवन के जितने रंग ,जितने सद्गुण ,जीवन
जीने के जितने आदर्श और व्यवहारिक दृष्टिकोण हैं वो सब कृष्ण में समाहित
हैं। आसक्ति से अनासक्ति का भाव सिर्फ कृष्ण में है। आसक्ति और विरक्ति की
पराकाष्ठा कृष्ण का जीवन है। मेघ की तरह बरस कर रीता हो चल दिया । इसलिए
कृष्ण भारतीय जनमानस के नायक हैं।
कृष्ण
कहते है "मद्भक्त एतद विज्ञाय मद्भावयोप पद्यते " यदि मुझे पाना है तो
मेरे सदृश्य बनो अपने अपने कर्म करते हुए कर्मयोगी बनकर ईश्वर की स्वकर्मणा
पूजन करो। ये जीवन शयन क्षेत्र नहीं कर्म क्षेत्र है।
जन्माष्टमी
जो कि कृष्ण का अवतरण दिवस है को मोह रात्रि कहा जाता है यह आसुरी वृत्ति
रुपी बुराइयों से दूर रहने की रात है। आज हम इस जन्माष्टमी के पर्व पर
संकल्पित होकर उनके चरित्र के कुछ अंशो को कुछ आदर्शों को अपने जीवन में
निहित करें।
वासुदेव सुतं देवम कंस चाणूर मर्दनं ,देवकी
परमानंदम कृष्ण वन्दे जगद गुरूम।
|| हाथी घोडा पालखी जय कन्हैयालाल की ||
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की शुभकामनाये