महेंद्रभटनागर स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता के बहुचर्चित यशस्वी हस्ताक्षर हैं। उनकी कविता मानवतावाद से आध्यात्म की ओर उन्मुख है। नव-प्रगति...
महेंद्रभटनागर स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता के बहुचर्चित यशस्वी हस्ताक्षर हैं। उनकी कविता मानवतावाद से आध्यात्म की ओर उन्मुख है। नव-प्रगतिवादी कविता के वे केन्द्रीय कवि माने जाते हैं; यद्यपि उनका कवि-व्यक्तित्व किसी 'वाद' विशेष की परिधि में आबद्ध नहीं है। जीवन के राग-विराग की मार्मिक अभिव्यक्ति उनके काव्य में परिलक्षित है।
महेंद्रभटनागर-साहित्य के छह खंड 'महेंद्रभटनागर-समग्र' अभिधान से प्रकाशित हो चुके हैं। 'महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा' के तीन खंडों में उनकी अठारह काव्य-कृतियाँ समाविष्ट हैं। महेंद्रभटनागर की कविताओं के अंग्रेज़ी में ग्यारह संग्रह उपलब्ध हैं। फ्रेंच में एक-सौ-आठ कविताओं का संकलन प्रकाशित हो चुका है। तमिल में दो, तेलुगु में एक, कन्नड़ में एक, मराठी में एक कविता-संग्रह छपे हैं। बाँगला, मणिपुरी, ओड़िया, उर्दू, आदि भाषाओं के काव्य-संकलन प्रकाशनाधीन हैं।
'राग-संवेदन' उनकी अठारहवीं काव्य-कृति है। इसमें उनकी पचास कविताएँ सम्मिलित हैं; जिनका रचना-काल सन २००३ से २००४ है।राग- संवेदन काव्य संग्रह की कुछ कविताओं की बानगी देखिये -
सड़ती लाशों की
दुर्गन्ध लिए
छूने
गाँवों-नगरों के
ओर-छोर
जो हवा चली _
उसका रुख़ बदलो!
ज़हरीली गैसों से
अलकोहल से
लदी-लदी
गाँवों-नगरों के
नभ-मंडल पर
जो हवा चली
उससे सँभलो!
उसका रुख़ बदलो!
****************************************छूने
गाँवों-नगरों के
ओर-छोर
जो हवा चली _
उसका रुख़ बदलो!
ज़हरीली गैसों से
अलकोहल से
लदी-लदी
गाँवों-नगरों के
नभ-मंडल पर
जो हवा चली
उससे सँभलो!
उसका रुख़ बदलो!
हो विरत ...
एकान्त में,
जब शान्त मन से
भुक्त जीवन का
सहज करने विचारण _
झाँकता हूँ
आत्मगत
अपने विलुप्त अतीत में _
चित्रावली धुँधली
उभरती है विशृंखल ... भंग-क्रम
संगत-असंगत
तारतम्य-विहीन!
औचक फिर
स्वत: मुड़
लौट आता हूँ
उपस्थित काल में!
जीवन जगत जंजाल में!
एकान्त में,
जब शान्त मन से
भुक्त जीवन का
सहज करने विचारण _
झाँकता हूँ
आत्मगत
अपने विलुप्त अतीत में _
चित्रावली धुँधली
उभरती है विशृंखल ... भंग-क्रम
संगत-असंगत
तारतम्य-विहीन!
औचक फिर
स्वत: मुड़
लौट आता हूँ
उपस्थित काल में!
जीवन जगत जंजाल में!
***********************************सहधर्मी / सहकर्मी
खोज निकाले हैं
दूर - दूर से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
किन्तु / रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से,
चारों छोरों से
पक्के डोरों से!
अब कहाँ अकेला हूँ ?
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह!
जाते - जाते
कैसे बरस पड़ा झर - झर
विशुध्द प्यार घनेरा यह!
नहलाता आत्मा को
गहरे - गहरे!
लहराता मन का
रिक्त सरोवर
ओर - छोर
भरे - भरे!
दूर - दूर से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
किन्तु / रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से,
चारों छोरों से
पक्के डोरों से!
अब कहाँ अकेला हूँ ?
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह!
जाते - जाते
कैसे बरस पड़ा झर - झर
विशुध्द प्यार घनेरा यह!
नहलाता आत्मा को
गहरे - गहरे!
लहराता मन का
रिक्त सरोवर
ओर - छोर
भरे - भरे!
*******************************************************
सब भूल जाते हैं ...
केवल
याद रहते हैं
आत्मीयता से सिक्त
कुछ क्षण राग के,
संवेदना अनुभूत
रिश्तों की दहकती आग के!
आदमी के आदमी से
प्रीति के सम्बन्ध
जीती-भोगती सह-राह के
अनुबन्ध!
केवल याद आते हैं
सदा !
जब-तब
बरस जाते
व्यथा-बोझिल
निशा के
जागते एकान्त क्षण में,
डूबते निस्संग भारी
क्लान्त मन में!
अश्रु बन
पावन!
केवल
याद रहते हैं
आत्मीयता से सिक्त
कुछ क्षण राग के,
संवेदना अनुभूत
रिश्तों की दहकती आग के!
आदमी के आदमी से
प्रीति के सम्बन्ध
जीती-भोगती सह-राह के
अनुबन्ध!
केवल याद आते हैं
सदा !
जब-तब
बरस जाते
व्यथा-बोझिल
निशा के
जागते एकान्त क्षण में,
डूबते निस्संग भारी
क्लान्त मन में!
अश्रु बन
पावन!
यहां पर राग संवेदन को ई -पुस्तक के रूप में उपलब्ध कराया जा रहा है। आप इस पुस्तक को यहां से पढ़ें ,खुद पढ़ें और अपने मित्रों को भी पढ़ने के लिए वितरित करें ।
बहुत बढिया रचनाएं हैं बधाई।
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