अपनों से अपनी ही भाषा में बात करने में कैसी हीनता या लज्जा या संकोच होना चाहिए? विडम्बना तो यह है कि सदी पूर्व गाँधी के हिन्दी के प्रति पूछे गए ये प्रश्न आज भी प्रश्नचिन्ह लगे यथावत खड़े हैं।
गाँधी के प्रयासों से लेकर अब तक हिन्दी की राष्ट्रभाषा बनने की अनुत्तरित आशा
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् पूरी दुनिया के पत्रकार अपने समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में भारतीय नेताओं के वक्तव्य और संदेश छापने के लिए अलग अलग नेताओं से साक्षात्कार ले रहे थे। उसी समय की एक घटना है कि एक विदेशी पत्रकार ने महात्मा गांधी से अपना संदेश अँग्रेजी में देने का अनुरोध किया। बापू ने मना कर दिया और कहा कि वे हिन्दी में ही जबाब देंगे, तो पत्रकार कहने लगा कि आपका यह संदेश सिर्फ भारतीयों के लिए नहीं है अपितु पूरे विश्व के लिए है, अतः आपको तो अंग्रेजी में ही बोलना पड़ेगा। वह पत्रकार लगभग जिद पर उतर आया, महात्मा गांधी कुछ समय तक तो शांत रहे लेकिन उस पत्रकार की हठधर्मिता को देखते हुए लगभग गुस्से में बापू ने कहा कि दुनिया से कह दो कि गांधी अंग्रेजी नहीं जानता। यह प्रसंग गाँधी के हिन्दी भाषा के प्रति सर्वोच्च सम्मान का परिचायक है।
देखा जाए तो भारत में राजनेता के रुप में महात्मा गाँधी ही वे पहले व्यक्ति कहे जा सकते हैं, जिन्होंने राष्ट्रहित के लिए हिन्दी को एक राष्ट्रभाषा के होने की संकल्पना को प्रस्तुत किया था। 1921 में ‘यंग इण्डिया’ में प्रकाशित अपने एक लेख के माध्यम से गाँधी जी ने इस बात को स्पष्ट किया था कि भारत में हिंदी का अपना भावनात्मक एवम् राष्ट्रीय महत्व है और भारत की स्वतंत्रता के लिए समस्त राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को हिंदी सीखना आवश्यक होगा, जिससे राष्ट्र की सभी कार्यवाहियाँ हिंदी में ही की जा सकें। उन्होंने इसके लिए पूरे देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में जोरदार ढंग से प्रचार-प्रसार करते हुए हिन्दी को राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और स्वाभिमान के रुप में
प्रतिष्ठित किया। राष्ट्रभाषा प्रचार अभियान के दौरान एक बार गांधीजी ने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। अतः भारत की भी एक राष्ट्रभाषा होना अनिवार्य है, ताकि भारत अपनी बात बोल सके। इसके लिए उन्होंने हिंदी को सर्वश्रेष्ठ माना क्योंकि पूरे भारत में मात्र हिन्दी ही आपसी सहयोग, साहचर्य एवं प्रेम की भाषा है। महात्मा गांधी की मातृभाषा गुजराती थी और उन्हें अंग्रेजी भाषा का उच्चकोटि का ज्ञान था और सभी भारतीय भाषाओं के प्रति उनके मन में विशिष्ट सम्मान भावना भी थी। परन्तु इस सबके बावजूद अनेक सामाजिक व राजनीतिक कारकों के अलावा गाँधी जी ने हिंदी में छिपी भारतीय मूल्यों और परंपराओं के संवर्द्धन तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की क्षमता को परखते हुए भारत की स्वतंत्रता में इसके उपयोग को भी ढाल बनाया।
सन् 1909 में हिन्द स्वराज में गाँधीजी ने एक भाषा-नीति की घोषणा करते हुए लोगों से अपील की थी कि सम्पूर्ण भारत के लिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा होना चाहिए भले ही इसे उर्दू या देवनागरी लिपि में लिखा जाए। लिपि लेखन की वैकल्पिक धारणा के पीछे भी गाँधी का हिन्दू-मुस्लिम एकता बनी रहने का दृष्टिकोण स्पष्ट दिखाई देता है। वे ऐसा करके भारतीयों में आपस में व्यवहार में लाई जा रही अंग्रेजी भाषा को दूर करना चाहते थे। इतिहास साक्षी है कि 6 फरवरी 1916 को गाँधीजी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में अपना प्रथम सार्वजनिक भाषण हिन्दी में देकर न केवल वहां बैठे श्रोताओं को स्तब्ध कर दिया था, बल्कि समारोह का संचालन अँगरेजी में किए जाने पर आपत्ति जताते हुए गहरा दुख भी प्रकट किया था। 1916 में ही कांग्रेस अधिवेषन में भी गाँधी ने हिन्दी में भाषण दिया था। वास्तव में देखा जाए तो 1917 में भागलपुर में आयोजित एक छात्र-सम्मेलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा दिए गए हिन्दी भाषण ने राष्ट्रभाषा हिन्दी की नींव भारतीय जनमानस विशेषकर युवाओं के मन-मस्तिष्क में डाली थी।
1917 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रभाषा प्रचार संबंधी सम्मेलन में तिलक के अंग्रेजी में भाषण देने की गांधीजी ने जमकर आलोचना की थी। उन्होंने अपनी अपील में वहाँ उपस्थित सभी लोगों से कहा था कि हर भारतीय को हिन्दी सीखनें की आवश्यकता है, क्योंकि अपनों तक अपनी बात हम अपनी भाषा द्वारा ही पहुंचा सकते हैं। महात्मा गांधी किसी भाषा के विरोधी नहीं थे, वरन् वे तो अधिक से अधिक भाषाओं को सीखने में रुचि रखने की सीख देते थे। लेकिन इसके बावजूद भी वे प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसकी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी के सदैव सबल समर्थक रहे। गाँधी ने गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर एवम् लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे महान भारतीयों के साथ साथ अनेक राष्ट्रीय नेताओं से हिन्दी सीखने का आग्रह किया था। पहली बार महात्मा गांधी ने भाषा के प्रश्न को स्वराज्य से जोड़ते हुए देश के करोड़ों भूखे, अनपढ़ और दलितों जैसे आम भारतीय की भाषा हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने पर बल दिया। गांधीजी ने अपने रचनात्मक कार्यक्रमों में हिंदी प्रचार को भी महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया था।
एक बार 1918 में इंदौर में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में गाँधी को सभापति बनाया गया था।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा |
गाँधी ने अपने अनेक भाषणों और लेखों के माध्यम से लोगों को समझाने का भरसक प्रयास किया कि यदि हमने अपनी मातृभाषा की उन्नति नहीं की और इस पूर्वाग्रह से ग्रसित रहें कि अॅग्रेजी के माध्यम ही हम अपने उच्च विचार प्रकट कर सकते हैं और उनका विकास कर सकते हैं, तो निःसंदेह भारतीय सदा के लिए गुलाम बनकर रह जाएंगे। अपनों से अपनी ही भाषा में बात करने में कैसी हीनता या लज्जा या संकोच होना चाहिए? विडम्बना तो यह है कि सदी पूर्व गाँधी के हिन्दी के प्रति पूछे गए ये प्रश्न आज भी प्रश्नचिन्ह लगे यथावत खड़े हैं। सम्भवतः भाषायी गुलामी हमें आनुवांशिक बीमारी के रुप में मिल गई है। आज भी हम हिन्दी को लेकर उन्हीं प्रयोगों और प्रयासों में जुटे हैं, जिनको लेकर गाँधी जी ने इतना परिश्रम किया था। आज भी एक अनुत्तरित आशा हाथ फैलाए राह जोट रही है कि शायद हिन्दी को अपनों से ही कभी इंसाफ अवश्य मिलेगा या कि हम मानसिक गुलामी की आनुवांशिक बीमारी का इलाज खोज सकेंगे।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण पुस्तक "भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ" और काव्य संग्रह "प्रेम काव्य सागर" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्रा के साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।
संपर्क सूत्र - डॉ. शुभ्रता मिश्रा ,स्वतंत्र लेखिका, वास्को-द-गामा, गोवा, मोबाइलः :08975245042,
ईमेलः shubhrataravi@gmail.com
सुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर एवं विद्वतापूर्ण लेख, बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर एवं विद्वतापूर्ण लेख, बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर एवं विद्वतापूर्ण लेख, बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर एवं विद्वतापूर्ण लेख, बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसमग्रता, सारगर्भिता से परिपूर्ण प्रभावी आलेख बहुत बहुत आभार एवं शुभकामनाएं मैम!!...
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