आज सुबह से ही रामदीन उदास था। दीपावली आने में केवल एक मास बचा था और अभी तक कहीं से भी दीये बनाने का ऑर्डर नहीं मिला था उसे।
सुनहरी मिट्टी
आज सुबह से ही रामदीन उदास था। दीपावली आने में केवल एक मास बचा था और अभी तक कहीं से भी दीये बनाने का ऑर्डर नहीं मिला था उसे। निराशा से घिरा हुआ रामदीन उन दिनों को याद कर रहा था जब लगभग तीन माह पहले से ही उसे छोटे-बड़े दीये,सुंदर-सुंदर मटकियाँ और मिट्टी की कंदील बनाने के ऑर्डर मिलने शुरू हो जाते थे। कभी-कभी तो इतना काम मिल जाता था कि वह पूरे परिवार के साथ मिलकर दिन-रात एक कर देता था, तब कहीं जाकर मुश्किल से ऑर्डर समय पर दे पाता था। दीपावली के दिन रुपयों से भरा बक्सा देखकर वह फूला न समाता था। बेटा विजय तरह-तरह की मिठाइयाँ, आतिशबाज़ी और नए-नए कपड़े पाकर चहक उठता था। अपनी पत्नी कमला की आँखों में एक श्रेष्ठ पति होने की छवि रामदीन को भीतर तक गुदगुदा देती थी। शाम को परिवार के साथ हँसते-खिलखिलाते गणेश जी और माँ लक्ष्मी की पूजा में बैठा वह स्वयं को धन्य समझता था।
आज स्थिति पहले जैसी नहीं रही। चारों ओर चीनी सामान का बोलबाला है। वे स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए कितने
हानिकारक हैं, यह कोई नहीं देखता। बस सस्ता सौदा पसंद आता है सबको। मिट्टी के दीयों की पंक्तियाँ जलती हुई कितनी सुंदर लगती थीं, और तभी तो दीपावली नाम सार्थक होता था त्योहार का। त्योहार के बाद भी वापिस मिट्टी में मिलकर पेड़-पोधों का कितना भला कर देते थे वे दीये। चीनी सामान तो प्रयोग के बाद एक नई सिरदर्दी बन जाते हैं। लेकिन एक भेड़ चाल है। सब भाग रहें हैं उसी ओर।
रामदीन का बेटा विजय एक बैंक में ड्राईवर है। पेट भर खाने का प्रबंध तो हो ही जाएगा उसकी कमाई से। प्राणी भी कितने थे घर में-वह, बेटा विजय, बहू आशा और एक तीन महीने की पोती। पत्नी कमला तो कब की भगवान के पास जा चुकी थी। किन्तु बेटे की कमाई पर वह निर्भर नहीं होना चाहता था। इसके अतिरिक्त वह काम में व्यस्त भी रहना चाहता था। सारा जीवन व्यस्त रहने पर वृद्धावस्था में स्वयं को नकारा महसूस करना व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।
उदास मन से वह बाहर कुर्सी डालकर बैठ गया। अपने मन को समझाने का अथक प्रयास कर रहा था वह। मन में एक हलचल सी थी।
“रामदीन अंकल !” सुनते ही उसकी तंद्रा भंग हुई।
“कौन?” चश्मे के भीतर से झाँकती रामदीन की निराश आँखें आगंतुक को पहचानने का प्रयास कर रहीं थीं।
“मैं दीपक.... भूल गए? एक बार आपके पास कुछ विदेशी लोगों को लेकर आया था, उन्होने आपसे मिट्टी के खिलौने खरीदे थे। ।“ दीपक ने मुसकुराते हुए नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए।
“ओह! आप....” आदर से खड़े होकर रामदीन ने भी नमस्ते की उससे।
दोनों घर के भीतर आ गए। रामदीन ने आशा से उसका परिचय करवाया। दीपक के पैर छूकर वह चाय बनाने चल दी। दीपक ने कुछ इधर-उधर की बातें कीं और फिर अपने आने का कारण बताया।
दीपक केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग में उच्च पद पर कार्यरत था। जिस सरकारी कॉलोनी में वह रहता था वहाँ अन्य अधिकारी भी थे। बड़े-बड़े मकान और उन सबके साथ नौकरों के लिए अलग से घर। उनमें रहने वाले कुछ नौकरों के बुज़ुर्ग माता-पिता बुढ़ापे में भी रिक्शा चलाने, साफ़-सफ़ाई करने या दैनिक मज़दूरी जैसे काम करने को विवश थे। दीपक व अन्य अधिकारियों ने मिलकर विचार किया कि यदि नौकरों के बूढ़े माता-पिता कुछ व्यक्तियों की देख-रेख में मिट्टी की सुंदर-सुंदर वस्तुएँ बनाएँ तो भारतीय कला से बने सजावट के अद्भुत नमूने
मधु शर्मा कटिहा |
तैयार हो सकते हैं । दीपक को याद था कि रामदीन न केवल मिट्टी की बहुत सुंदर कलाकृतियाँ बनाता है, बल्कि उन पर रंग करने की कला में भी वह दक्ष है। । ऐसे ही कुछ व्यक्तियों की तलाश थी उसे। वह चाहता था कि रामदीन उनके द्वारा शुरू किए जाने वाले अभियान का हिस्सा बने। कुछ अन्य गरीब किन्तु गुणी कलाकारों को दीपक एक संस्था के माध्यम से जानता था। रामदीन व अन्य सबकी मदद से तैयार कलाकृतियों को वह विदेशी पर्यटकों के सामने रखना चाहता था । समय-समय पर इस प्रकार की प्रदर्शनी लगाने से भारत का पर्यटन भी मज़बूत होगा तथा गरीब कलाकारों को काम भी मिल जाएगा। उनकी प्रतिभा का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता था ? नौकरों के बुजुर्ग माता-पिता को भी यह काम अवश्य पसंद आएगा।
दोनों की बातचीत चल ही रही थी कि आशा चाय लेकर आ गयी। दोनों ने आराम से चाय पी और अपनी बातचीत जारी रखी। रामदीन ने भी कुछ प्रश्न पूछकर अपनी शंकाओं को दूर किया। वह वहाँ के समय, नियम व कायदे आदि जानना चाहता था। दीपक ने सब समझाकर उसे पूरी तरह आश्वस्त कर दिया और उससे विदा ली। दो कदम चलते ही उसे याद आया की एक बात तो वह रामदीन हो कहना ही भूल गया। खड़े-खड़े ही वह बोला, “अंकल एक बात और है। इस बार कॉलोनी में सबने फ़ैसला किया है कि मिट्टी के दीये जलाकर ही हम सब दिवाली मनाएंगे। तुम्हें कल हर घर से ऑर्डर लेकर जल्दी ही काम शुरू करना होगा। मैंने हमारे वॉटसएप के ग्रुप में सबको तुम्हारे बारे में पहले ही बता दिया है।“ रामदीन को अगले दिन गाड़ी भेजकर बुलाने का वादा कर दीपक चला गया।
रामदीन का चेहरा एक बच्चे की भाँति खिल गया। उसे जैसे खोई खुशियाँ वापिस मिल गईं हों। ईश्वर का धन्यवाद कर वह विजय को फ़ोन लगाने लगा। आशा तो पहले ही सब सुन चुकी थी और अपने ससुर जी की प्रसिद्धि पर फूला न समा रही थी। दीपावली से पहले ही दीपक ने आकर प्रकाश फैला दिया था रामदीन के घर में। रामदीन अपने आँगन में रखे मिट्टी के ढेर को स्नेह से निहार रहा था। मिट्टी का सुनहरा रंग उसे सोने से भी कहीं अधिक चमकदार लग रहा था।
यह रचना मधु शर्मा कटिहा जी द्वारा लिखी गयी है . आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से लाइब्रेरी साइंस में स्नातकोत्तर किया है . आपकी कुछ कहानियाँ व लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
Email----madhukatiha@gmail.com
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