बात करना मिलना जुलना एक खाब हो गया, दौर पिछला ही सही था अब खराब हो गया | अब जो कहने जा रहा हूं चोंकने की बात है , जुगनू का कद सिमट के ,आफताब हो गया ||
जानी फोस्टर
कुछ खुशबू ,कुछ इंद्र धनुष.
......क्षेत्रपाल शर्मा
अलीगढ में मेरी मुलाक़ात जब हुई तो शीर्षक के उक्त शब्दों के साथ ही जानी फोस्टर का परिचय डा. शारिक अली जी ने एक समारोह में दिया |.
“ पान सडा , घोडा अडा , विद्या निष्फल जाय,
चूल्हे का अंगा जला ,जाको अर्थ बताय | “
उत्तर : फेरा यानि रियाज़ , अर्थात अभ्यास
अभ्यास से हुनर का निखार बढ जाता हे हबीब पेन्टर ( जल से पतला कौन है और कौन भूमि से भारी ......जवाब आया कि जल से पतला ग्यान है और पाप भूमि से भारी , कलंक है काजर से भी कारी , बहुत कठिन है डगर पनघट की , कैसे मै भर लाऊं मधवा से मटकी ) के बाद अलीगढ में , ग़ज़ल गायकी में अद्भुत समा बिखेरने वाले , कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत ,सुर के ज़ादूगर ,फनकार उस्ताद जानी फोस्टर का नाम आदर से लिया जा सकता है इन की आवाज़ तो बेमिसाल है पर सह्ज प्रतिभा के भी धनी हें कई स्कूलों के तराने , अलीगढ नुमाइश का तराना लिखा और संवारा भी अपनी आवाज़ से , अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का तराना भी अपनी आवाज़ से संवारा है |
हिंदी के संबंध में 1987 में लिखा उनका यह गीत :
“ हिंदी ”
हम सब की पहचान है हिंदी ,
यानी हिंदुस्तान है हिंदी ||
क्षेत्रपाल शर्मा |
संस्कृत कई भाषा की जननी,
संस्कृत की संतान है हिंदी ||
चंद दिनों में सब सीखे हें ,
कुछ इतनी आसान है हिन्दी ||
जो हिंदी हें उनकी खातिर,
एक ज़ुदा वरदान है हिंदी ||
फूल हैं जिसमें कई भाषाओं के ,
एसा एक गुलदान है हिंदी ||
खुसरो, नीरज और नज़ीर ,
प्रेमचंद , रसखान है हिंदी ||
“ मज़हब कोई हो एक ही सब का पयाम है ,
नफरत खुदा के बंदों से सुन लो हराम है |
देखी जो हम इनसान की आपस की दूरियां ,
है फिक्र मे रहीम भी ,सदमे में राम है ||
नेकी भलाई प्यार हे जिसके मिजाज में ,
जन्नत के दावेदारों में उनका ही नाम है |
नफरत के बीज वो ही तो बोएं हें हर तरफ ,
चांदी के चंद सिक्कों का जो भी ग़ुलाम है || “
“ उसके बंदों से मुझे जिस दम मोहब्बत हो गई
आसमां से इक फिक्र सदा आई इबादत हो गई “
“पंजाबी गुजराती राजस्थानी है ,
साझा संस्कृति की एक निशानी है |
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बाद में ,
सबसे पहले हम सब हिंदुस्तानी हैं | | “
“बात करना मिलना जुलना एक खाब हो गया,
दौर पिछला ही सही था अब खराब हो गया |
अब जो कहने जा रहा हूं चोंकने की बात है ,
जुगनू का कद सिमट के ,आफताब हो गया ||
जिक्र में मेरे किसी का नाम तक आया नहीं,
शर्म से चेहरा किसी का क्यूं गुलाब हो गया |
जाते जाते एक तबस्सुम मेरे नाम करके वो ,
कह गया लो बराबर सब हिसाब हो गया | | “
गुलज़ार ने जो गीत की लाइन गुलामी फिल्म में अमीर खुसरो से लीं , (“ ज़ेहाले मिस्कीं .....) तो संदर्भ से जोडकर ही अर्थ लिया जाएगा तब ही अर्थ सटीक समझ आएगा ,कई जगह खुसरो ने खुद को राज दुलारी कहा , एक जगह कहा कि “ इत गंगा , उत जमुना , कागा के बोल सुहावने , बोल तो कोयल के सुहावाने होते हें लेकिन इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब जानते हें कि सुबह गर काग मुंडेर पर बोल गया हे तो घर अतिथि आयेगा यह एक सगुन संकेत हे .) यह समझना होगा जिस तरह खुसरो ने अपने गीतों में ब्रज के शब्दों को पिरोया उसकी मिठास का जिकर एक बातचीत में श्री एन के गर्ग साहब (जो अलीगढ और लखनऊ में ए डी जे रहे हैं) , ने मेरा ध्यान खींचा था |
जानी फोस्टार फन के माहिर हैं , एसे फनकार को जब भी मौका मिले, जरूर सुनियेगा |
संपर्क : 9411858774
ई मेल : kpsharma05@gmail.com
यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जी, द्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकाता, मद्रास तथा पुणे से भी आपके आलेख प्रसारित हो चुके है .
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