गाँव की हलचल की बात ही कुछ निराली है | गांव का वातावरण मन मोह लेता है लेकिन उससे ज्यादा कहीं काकी की बातें ज्यादा मन मोह लेती है |
काकी
गाँव की हलचल की बात ही कुछ निराली है | गांव का वातावरण मन मोह लेता है लेकिन उससे ज्यादा कहीं काकी की बातें ज्यादा मन मोह लेती है | काकी से जब मिलता हूँ तो लगता है कि वास्तव में हमारी काकी में दम है | बहुत ही सहजता लिये हुये अगर हमारी काकी जैसी काकी सबको मिले तो हर समय सावन झूमता रहे | मन मयूर हुआ रहे | रातों रात किस्मत चमक जाये | कितना सुंदर अट्टहास | जब हँसती हैं तो पूरा गाँव मोहल्ला सुन जाता था | लोग समझ जाते थे कि आज जरूर नई बात किसी की बहुरिया की हुई है जो इतना बड़ा ठहाका काकी ने लगाया है | काकी हमारी गुस्सैल हैं ही नहीं | बहुत ही प्रेमी किस्म की हैं | मजाल है कि कोई घर से बिना पानी पिये चला जाये | बहुत ही नेकशील चरित्र मिला है हमारी काकी को | यही सब बातें गाँव में आने से काकी से सबकुछ सीखने को मिलता है |
सुबह उठते ही काकी अपनी गायों की सेवा में लग जाती हैं | भूसा चारा पानी देना,गायों की सेवा खूब जमकर करती हैं | कहती हैं कि गऊ सेवा सबसे बड़ी सेवा है | इनकी सेवा से सभी देवता खुश होते हैं | पूजा पाठ करने में हर कोई पिछड़ सकता है | एक घंटे से ज्यादा तक पूजा करती हैं | नहा धोकर मंदिर में प्रवेश जब करती हैं तो मजाल है किसी की हिम्मत पड़ जाये कि काकी थोड़ा हट जाइये जल्दी से जल चढ़ा कर जा रही हूँ | मेरा ललना रो रहा है | काकी टस से मस नहीं होंगी | यह सब गुण तो बचपन से ही भरा है | काम करने में इतनी तेज हैं कि आज कल की छोकरियां देखती रह जायें | बड़ी मेहनती हैं | अब भी ओखली में धान कूटती हैं | भोर में उठ जाती हैं | कम सोने की आदत है | कहती हैं कि ज्यादा सोने से सौ बीमारियां होती हैं | आजकल की बहुरिया तो इतनी आलसी होती हैं कि बिना हॉस्पिटल गये बच्चा नहीं पैदा कर सकती हैं लेकिन हम तो कभी हॉस्पिटल गयी ही नहीं फिर भी दसों बच्चे का जन्म दे दी |हमारी काकी लगभग पचास की हो गईं हैं जब भी गाँव जाता हूँ तो काकी का वही मांसल शरीर जो बचपन में देखा था | कोई कह ही नहीं सकता है कि पचास की हैं | सुंदर अब भी दिखती हैं | कसा बदन है.चेहरे पर मुश्कान सदैव बनी रहती है.निराशा तो झलकती ही नहीं है | अपार साहस व उर्जा से लबरेज | किसी भी काम में भिड़ा दीजिये,लगी रहती हैं पूरे समय तक | थकती नहीं है | तमाम नौजवान लड़कियाँ तो क्या पूरे गाँव की औरतें उनकी तारीफ करती हैं | कहती हैं कि कामचोर मत बनों | जीवन मिला है तो खूब डटकर मेहनत करिये | कुछ कर जाइये कि मरद पूरी तरह जान छिड़कने लगे कि आखिर बड़ी मेहनती है हमारी श्रीमती | मिले तो सबको ऐसी ही पत्नी मिले | जिससे जीवन में किसी प्रकार का संशय न हो | दूध व दही की वह बहुत चहेती हैं | मट्ठा मारने की रूचि तो उन्हें बचपन से ही था | काकी का यही सब गुण मुझे भाता है | जी ललच जाता है कि हमारी काकी कितनी साहसी हैं | उनकी छत्रछाया जीवन भर मिलता रहे और अपनें को गाँव से जोड़े रहें ताकि हमारा मन गाँव की वादियों में लगा रहे और बचपन ,जवानी व बुढ़ापा गाँव की वादियों में रहे और सुंदर व स्वच्छ वातावरण का दर्शन होता रहे |
जब से काका जी इस संसार को छोड के चले गये | भरी जवानी में विधवा हो गई हमारी काकी लेकिन काकी हमारी धैर्य का परिचय दिया | काकी हमारी बड़ी मेहनत करके दो बच्चों को पाली | पूरा शिक्षा भी उनको दिलाया | काकी पढ़ी तो हैं नहीं लेकिन शिक्षा का महत्व समझती हैं | कहती हैं कि बिना शिक्षा के गाँव की तरक्की नहीं हो सकती है अगर देश की तरक्की करना है तो गाँव को सुधारो | गाँव जब सुधरा तो देश में अपने आप खुशहाली आयेगी और धन धान्य से हमारा जीवन मधुमय हो जायेगा | हमारी काकी पूरे गाँव की आईकॉन हैं | लोग उनसे सीखते हैं | उनको सलाम करते हैं | उनके कर्मठ भावों को लोग तारीफ करते फिरते हैं | पूरा गाँव आज उनकों अपना मुखिया मानता है | वह किसी के प्रति अन्याय की भावना रखती ही नहीं...सच में काकी तू महान है |
यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र - कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू' जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com
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