जिंदगी की राहों में कितने उतार चढ़ाव आते हैं कौन जानता है आने वाला समय खुद में क्या समेटे हैं, एक जगह रहते रहते मन उबने लगा था
शिवा
जिंदगी की राहों में कितने उतार चढ़ाव आते हैं कौन जानता है आने वाला समय खुद में क्या समेटे हैं,
एक जगह रहते रहते मन उबने लगा था दिल कही बाहर जाने के लिए बेचैन हो रहा था,रोजमर्रा की व्यस्त जिंदगी से कुछ दिनों के लिए मन आज़ाद होना चाहता था।
इसलिए हमने सोचा अल्मोड़ा चलते हैं वहाँ हमारा गेस्ट हाऊस खाली पड़ा था जो अधिकांशतः लेखको के लेखन
कार्य के लिए एक शांत व बेहद शुकुन भरे माहौल के लिए जाना जाता है।
कार्य के लिए एक शांत व बेहद शुकुन भरे माहौल के लिए जाना जाता है।
अगले दिन हम ड्राइवर के साथ चल दिए अपने अल्मोड़ा सफर के लिए।
बहुत ही लुभावना मौसम था क्योंकि अभी अभी बारिश होकर थमी थी, चेहरे को छूकर जाती ठंडी हवाएं दिल को शुकुन पहुचाती थी,चारो और प्रकृति नही हुई सी प्रतीत होती थी हर तरफ धुला धुला सा मौसम था।
हमें अक्सर गाड़ी की खिड़किया खुली रखना पसंद है,आज भी गाड़ी की खिड़की खुली थी जिसमे पेड़ो से हवाओ के साथ-साथ पानी की एक दो बुँदे भी चेहरे को छूकर निकल जाती थी।
सड़को के घुमावदार मोड़ से होते हुए हमारी गाड़ी अल्मोड़ा पहुचंने ही वाली थी आसमान में अब भी घटाएं छायी हुई थी शाम होने को थी,धीरे- धीरे मकानों व् दुकानों में रोशनी के बल्ब जल चुके थे।
और अगले ही मोड़ पर था हमारा गेस्ट हाउस,
अब तक तो शायद केयर टेकर जा चूका होगा
हम सोच ही रहे थे क़ि ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी
गाड़ी गेस्ट हाउस पहुच चुकी थी
शाम के सात बजे चुके थे,गेस्ट हाउस में लाइट जल रही थी,इसका मतलब था कि केयर टेकर अभी तक यही था
गाड़ी का हार्न सुनकर वो बाहर आया गाड़ी से समान उतारा और कॉफी देकर चला गया।
अब दिन भर की थकावट कुछ खाने पीने की इजाजत नही देना चाहती थी इसलिए हम भी बीएस सो जाना चाहते थे।
ड्राइवर भी वापस जा चुका था,और अब हम थे और हमारी तन्हाई और बीएस शुकुन भरा एहसास.....
(2)
अगले दिन हम बाहर लोन में बैठे थे कि एक बॉल आकर सामने खिड़की से टकरा गई।आस-पास बच्चे खेलने चले आते थे कोई नई बात नही थी।
किन्तु ये कोई वक़्त नही था,बच्चे अक्सर शाम को खेलने आते थे सुबह -सुबह नही।
रोनी(केयर टेकर) ने बाहर जाकर देखा ,देखा क्या वो एक बच्चे को पकड़कर डॉटता हुआ अंदर ही ले आया था।
तुझे कितनी बार बोला है कही और जाकर खेलाकर पर तुझे..............
वो उसे मारने ही वाला था यदि हमने बढ़कर उसे उससे अलग न किया होता,उस मासूम की आँखों में पानी की बुँदे छलक आई थी पर वो बोला कुछ भी न था।
रोनी अंदर जा चुका था ,हमने उसे पानी पिलाकर थोड़ा सहज किया,
उसके बाद उसका नाम पूछा।
जवाब में वो अब भी मौन ही खड़ा था।रोनी बाहर आकर फिर उसे डांटने लगा था साथ ही हमें हिदायत देने लगा था ----
इन पहाड़ियों को सिर पर मत चढ़ाओ मैडम जी
(हमने उसे खामोश रहने के साथ-साथ अंदर जाने का इशारा किया और फिर वो भौहे चढ़ाता हुआ अंदर चला गया)
हमने फिर उससे पूछा
क्या नाम है बेटा तुम्हारा ?
शिवा.....उसने बहुत ही धीमी सी आवाज में जवाब दिया।
बड़ा प्यारा नाम है
कहाँ रहते हो
वो फिर मौन रहा...
हमने फिर दोहराया.....
कहाँ रहते हो बेटे....
कही भी....उसने बेपरवाह से लहजे में जवाब दिया
माता पिता कहाँ रहते है
उसकी आँखों में एक बार फिर से नमी उतर आई थी।और उसकी आँखों से निकलकर वे अनमोल मोती उसके गालो पर बिखर गए ।
हमे क्या मालूम था कि विधाता के अलावा उसका इस संसार में और कोई नही था।दस बारह वर्ष का एक मासूम और बेरहम संसार.....
इतनी भीड़ में वो एक अकेला बेसहारा अनाथ बालक,
उसने थोड़ा पानी पिया और फिर खामोश हो गया
सोते कहाँ हो
मंदिर में
(हाँ एक विधाता ही तो थे जो सबका साथ देते है,कोई पत्थर मारे अथवा पूजा करे)
कुछ खाया हमने फिर सवाल किया
उसने बस नही में सिर हिलाया।
उस वक़्त तो हमारे पास बिस्किट ही थे बस वही उसको दे दिए।
उसने बिस्किट ली और बॉल उठाकर चला गया।
हमने कल्पना भी न थी कि यह आकर हमारा पहला दिन ही ऐसा बीतेगा।
उसका मासूम चेहरा बार बार दिल को बेचैन किये जा रहा था जिस उम्र में बच्चे माँ का आँचल थाम कर चलते हैं उस उम्र में नसीब ने उसे ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया था।
हमारा समाज मानवता के नाम पर केवल केंडल मार्च और जैम लगा सकता है किंतु किसी मासूम के आंसू ,मुस्कुराहट में नही बदल सकता।
(3)
हम कॉरिडोर में खड़े बस अख़बार के पन्ने पलट रहे थे कि हमारी नजर सामने से आते शिवा पर पड़ी।वो आज भी अपनी आदत अनुसार खोया खोया सा ही था।वही पुरानी फ़टी हुई कमीज़ बिखरे बाल वही डूबी डूबी आँखे ।
न जाने क्यों दिल उसकी तरफ खिंचता सा चला जाता था।
"शिवा"
हमने उसे पुकारा
उसने इधर उधर देखा फिर उसकी नजर हम पर पड़ी तो अंदर चला आया।
आज हमने उससे कोई सवाल नही किया पर उसके चेहरे पर जो भाव आकार सिमट जाते थे।
वो बस टीस की तरह लगते थे।
वो खामोश बैठा अपनी गोटियों में ही खोया रहा।
दोपहर के दो बजे चुके थे रोनी ने खाने के लिए आवाज लगाई
हमने शिवा से खाने के लिए पूछा तो वो खामोश रहा हमने रोनी से कहकर एक प्लेट उसके लिए लाने को बोला।
रोनी न जाने क्यों बच्चो से इतना चिड़ा रहता था वैसे तो ठीक ठाक सा इंसान था।
वो उसे घूरता हुआ रसोई की तरफ चल गया और प्लेट लाकर मेज पर पटक दी।
ये कोन सी तहजीब हैं हमने रोनी को टोका।
उसने खाना खाया और फिर चला गया अपनी गलियों में।अब वो अक्सर यहाँ आने लगा था।साफ सुथरा रहने लगा था घुलने मिलने लगा था।उसका अधिकांश समय गेस्ट हाउस में ही बीतने लगा था।अब वो पहले की तरह बुझा बुझा सा नही रहता था मुस्कुराने लगा था।
एक दिन वो लोन में बैठा खेल रहा था,यही कोई शाम के चार बजे होंगे।वो उठकर मेरे पास आकर बोला.....
मेरे पास एक चीज़ है वो मैं आपको लाकर दूंगा मुझसे सब मांगते हैं पर मैंने किसी को नही दी।
इतना कहकर वो चला गया ।
हमने भी उसकी बात को इग्नोर सा कर दिया और अपने काम में लग गए।धीरे-धीरे शाम रात के अँधेरे में खोने लगी थी।
(4)
अगले दिन हाँ जल्दी जग गये थे,रोनी अभी तक आया नही था हम टेरिस पर खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे।
आज सड़क पर बड़ी चहल पहल थी लोग आ जा रहे थे।काफी देर से ये सिलसिला जारी था।
लोग आपस में बातें करते चले जा रहे थे,ये रास्ता तो मंदिर की तरफ जाकर लौट आता हेकिन्तु उनके हाथ में कोई पूजा सामग्री नही थी
ये मंदिर वही शिवालय था जिसका जिक्र कई बार शिव ने किया था,कल शाम भी वो मंदिर जाने वाला था।
हमारे कदम टेरिस से नीचे उतर आये और उस और जा मुड़े जिस और भीड़ भागी जा रही थी।हमरा दिल बेचेंन होने लगा था।हमने एक व्यक्ति से पूछा इतनी भीड़ क्यों है आज।
उसने जो कहा उसे सुनकर हमारे कदम दिशाविहीन होने को थे,दिमाग सुन:हो जाने स्थिति
जैसा था,फिर भी कदम बढ़ते ही जा रहे थे
मंदिर के सामने भीड़ जमा थी।भीड़ को हटाते हुए हम मंदिर की सीढ़ियों तक पहुँचे ।
सीढ़ियों पर रक्त जमा था और शिवा शिवलिंग की ओट में हमेशा के लिए सो चुका था।किसी निर्दयी ने निर्दयता की हर सीमा पार कर दी थी।
उसके चेहरे की पीड़ा दिल के लिए असहनीय हो रही थी,जैसे वो कह रहा हो....
मैं जिन चाहता हूँ जैसे वो मौत से भाग जाना चाहता था किंतु दुर्भाग्य ने उसे भागने नही दिया।
हम उसके पास गए उसकी बाये हाथ की मुठ्ठी(जो आधी खुली आधी बंद थी)में दो प्राचीन सिक्के थे जो उसका हाथ छूने से बिखर गए थे उन सिक्कों को हमने उठा लिया ।वे कोई मामूली सिक्के नही थे,ऐतिहासिक सिक्के थे जिन्हें पुरातात्विक म्यूजियम में रखते है।
सहसा हमारे होठो से उसका नाम निकल पड़ा
"शिवा"............
किन्तु शिव तो शिवमय हो चुका था।क्या इन सिक्कों का मूल्य उस मासूम की जिंदगी से ज्यादा था,क्या बिगाड़ा था किसी का उसने जो उससे जीने का अधिकार भी छीन लिया।
उस दिन के बाद शिवा फिर कभी नही लौटा बस हमारे दिल में वो कुछ यादें छोड़ गया था
सहसा आज भी उसका मासूम चेहरा इन आँखों में आंसू बनकर उतर आता है
हम शायद आज भी उसका इंतजार करते हैं कभी न ख़त्म होने वाला इंतजार...................
रूबी श्रीमाली
क़स्बा- बघरा
जिला-मुज़फ्फरनगर
पिन-251306
आप की ये कहानी शिवा दिल को छूती है रुबी जी आप और कहानी और रचना करते रहिए हमारी यही दुआ है
जवाब देंहटाएंbehatrin lekh
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