ताज हेरिटेज कॉरीडोर पर हरियाली विकसित करने को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को निर्देश दिए थे।
आगरा के उद्यानों का संरक्षण
बागों पर विचार करने पर जब हम इतिहास के झरोखों में झांकते हैं तो आर्यों के पूर्व की आरण्यक संस्कृति की झलक दिखलाई पड़ती है। मोहन जोदारों में भी पीपल बृक्ष की पूजा वाली मोहर प्रकाश में आई है।उस समय मानव जंगल-जंगल भोजन की तलाश में घूमता था। वेद-उपनिषदों में सुन्दर उद्यानों का वर्णन मिलता है। हमारे ऋषि-मुनि इन्हीं में बैठकर अपनी साधना करते रहे हैं। रामायण-महाभारत का सारा कथानक भी जल, जंगल और जमीन के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। बौद्धों के तपोवन में बोधि बृक्ष इसी कड़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुप्तकालीन हिन्दू उद्यान के विवरण तत्कालीन संस्कृत तथा पालि के जातक साहित्य में लिखित तथा स्मारकों के दृश्यों के चित्रणों के रुप में देखने को मिलने लगता है। इसके बहुत बाद मुगलपूर्व ईरानी प्रभाव वाले बाग विकसित हुए हैं। बाबर का चारबाग का प्रचलन उसके पूर्व से हमारे साहित्य में मिलता आया है।
आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं,बेगमों उच्च पदस्थ लोगों तथा साधु महात्माओं के स्मारकों, महलों ,बाग बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है।मुगल पूर्व बागों में कैलाश, रेनुकता, सूरकुटी, बृथला, बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी श्रृंखला यहां देखने को मिलती है।ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. अस्तित्व या वजूद वाले, 2. विना अस्तित्व वाले या विलुप्त और 3. केवल नाम के बाग। इनमें कुछ अवशेष के रूप में देखे जा सकते हैं कुछ समय के साथ मोहल्ले एवं बस्तियों की आवादी के कारण समाप्त हो चुके हैं। इन बागों में फल फूलों, सजावटी वृक्षों , छायादार वृक्षों , मेवादार वृक्षों तथा औषधिवाले वृक्षों का भरमार है। इनके पास कुएं, हौज, नदी, ताल , रहट फव्वारे तथा सीढ़ियां आदि भी होती रही यहां तरबूज, अंगूर, गुले सुर्ख, गुले नीलोफर के पौधे लगे हुए थे।
आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं,बेगमों उच्च पदस्थ लोगों तथा साधु महात्माओं के स्मारकों, महलों ,बाग बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है।मुगल पूर्व बागों में कैलाश, रेनुकता, सूरकुटी, बृथला, बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी श्रृंखला यहां देखने को मिलती है।ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. अस्तित्व या वजूद वाले, 2. विना अस्तित्व वाले या विलुप्त और 3. केवल नाम के बाग। इनमें कुछ अवशेष के रूप में देखे जा सकते हैं कुछ समय के साथ मोहल्ले एवं बस्तियों की आवादी के कारण समाप्त हो चुके हैं। इन बागों में फल फूलों, सजावटी वृक्षों , छायादार वृक्षों , मेवादार वृक्षों तथा औषधिवाले वृक्षों का भरमार है। इनके पास कुएं, हौज, नदी, ताल , रहट फव्वारे तथा सीढ़ियां आदि भी होती रही यहां तरबूज, अंगूर, गुले सुर्ख, गुले नीलोफर के पौधे लगे हुए थे।
सिकन्दर लोदी , बाबर एवं हुमायूं के समय आगरा जमुना के दोनों तरफ आबाद था। अकबर के समय यह पूरब की अपेक्षा पश्चिम की ओर ज्यादा आबाद हुई थी। यमुना के दोनों किनारे लगभग 4 कोस के दायरे में मकबरे, हवेलियां , मंदिर, मस्जिद तथा बागों की लम्बी श्रृंखला थी। आगरा के 40 बागों का जिक्र शैलचन्द्र की फारसी तथा मुन्शी कमरूद्दीन की उर्दू किताब में हुआ जिसका ही आधार लेकर 45 बागों का अध्ययन आस्ट्रेलियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपने ‘कम्पलीट गार्डन आफ आगरा’ में किया है।उसके द्वारा ताजनगरी में खोजी गई मुगलिया विरासत को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सहेजने की कवायद में जुटा है। ये विरासतें ज्यादातर लीज पर चल रही है। ज्यादातर उद्यानों की भूमि पर पट्टे हैं। जिन पर ईंट-पत्थरों के मकान बन चुके हैं। ऐसे में इन उद्यानों का संरक्षण किया जा रहा है। इस पर चर्चा के लिए विगत वर्षों में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार किया गया था। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने ताजनगरी में यमुना नदी के दोनों ओर बने मुगलकालीन उद्यानों को संरक्षित करने की योजना बनाई थी। इस बाबत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, उप्र पर्यटन और जिला प्रशासन को ऑस्ट्रियाई इतिहासकार ईवा कोच की पुस्तक 'द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवर फ्रंट गार्डंनस ऑफ आगरा’ में उल्लेखित उद्यानों को चिन्हित करने और वर्तमान स्थिति रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था।इसमें ईवा कोच के साथ करीब तीन दर्जन देसी- विदेशी इतिहासकार और अधिकारी भाग लिये थे । वर्तमान में उद्यानों की भूमि पर जो पट्टे हैं, वह वर्ष 1955 के कुछ साल पहले तक जारी हुए थे। इनकी अवधि 90 साल तक बताई जाती है। लिहाजा इनको निरस्त करना भी आसान नहीं है। ऐसे में उद्यानों को संरक्षित करने के लिए इस अवधि के खत्म होने तक इंतजार करना पड़ सकता है। आयोजित कार्यशाला उद्घाटन पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अपर सचिव संस्कृति केके मित्तल ने कहा कि 45 में से 13 उद्यान ही फिलहाल संरक्षित हैं। इनमें आठ का संरक्षण एएसआई कर रही है। 32 उद्यानों का अस्तित्व मिट चुका है। ऑस्ट्रिया की इतिहासकार ईवा कोच ने अपने शोध कार्य में यमुना किनारे फैले 45 उद्यानों पर प्रकाश डाला था।
मुगल शहंशाह शाहजहां के दरबार में कभी जिनका प्रभाव था, जिनकी हवेलियां ताजमहल के एकदम नजदीक थीं, वक्त ने न केवल उन हवेलियों का नाम ही भुला दिया बल्कि उनके अवशेष तक आंखों से ओझल होने के कगार पर थे। 350 साल पहले शहंशाह का बनवाया ताज तो बुलंदी से दुनिया भर में छाया, लेकिन मुगलिया दौर की ये धरोहरें उससे सटी होने पर भी अपना वजूद न बचा सकीं। मुगलिया दौर की दो हवेलियों समेत चार स्थलों के संरक्षण की कवायद अब शुरू हुई है। टास्क फोर्स की रिपोर्ट के बाद प्री-नोटिफिकेशन और उस पर तीन महीने में आपत्तियां मांगने के बाद यह धरोहरें एएसआई के संरक्षण में आ जाएंगी। इन स्मारकों का प्री-नोटिफिकेशन मई 2015 में हो चुका है, परन्तु अन्तिम या फाइनल नोटिफिकेशन जो 3 माह के बाद ही हो जाना चाहिए था, अभी तक नहीं हो पाया है। ये अभी संरक्षित घोषित नहीं हुई हैं और ना ही भारत सरकार के स्वामित्व में आ पायी हैं। यूंकि 4 हवेलियों की स्मृति को समेटने वाला ‘रीक्लेम्ड एरिया आफ ताज हेरिटेज कारीडोर’ की निगरानी माननीय सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है इसलिए विनापूरी औपचारिकता के इस बाग के संरक्षण और विकास का कार्य शुरु कर दिया गया है। वीरानी छोड़कर यही धरोहरें न केवल ताज का दीदार कराएंगी, बल्कि ताज और मुगलिया सत्ता से जुड़े इतिहास से भी रूबरू कराएंगी।
1.हवेली खान-ए-दुर्रान:-
मुगल बादशाह शाहजहां के दक्षिण के गवर्नर खान ए दुर्रान की हवेली ही अब ताज टैनरी के नाम से प्रचलित है। 1633 में दौलताबाद किले में उनका अहम योगदान रहा। मुगलिया दौर में ताजमहल से एकदम सटी उनकी हवेली ब्रिटिश काल में टैनरी में तब्दील हो गई, जिसमें आजादी के बाद तक आगरा की प्रमुख जूता कंपनी द्वारा टैनिंग का काम होता रहा। मुगलिया दौर के साथ कई निर्माण इसमें ब्रिटिश काल के भी हैं। इन दिनों ये वीरान है।।यह हवेली नदी के तट से लगा हुआ है।
2.हवेली आगा खां:-
शहंशाह शाहजहां के दरबारी और फौजदार आगा खां की हवेली, खान-ए-दुर्रान हवेली और ताजमहल के बीच में है। आगा खां पर नदियों के किनारे कानून व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी थी और मुगल सेना के हजारों घोड़ों की देखरेख उनके पास थी। 1658 में आगा खां की मृत्यु हुई। हवेली की फाउंडेशन ही अब शेष है। यमुना नदी में कई बार आई बाढ़ से इस हवेली को नुकसान पहुंचा।।यह हवेली नदी के तट से लगा हुआ है।
3.हाथी खाना:-
ताजमहल के पूर्वी गेट की ओर यमुना नदी के पास विशाल दरवाजा हाथीखाना के नाम से प्रचलित है। 17वीं सदी में अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित पादशाहनामा में हाथीखाना का जिक्र है। एएसआई के मुताबिक ताजमहल के निर्माण के दौरान संगमरमर और भारी पत्थरों को ढोने वाले हाथी इसी जगह रात को बांधे जाते थे। गुंबद के साथ यह दरवाजा विशाल है और किसी बड़े बाड़े का गेट प्रतीत होता है। यह भवन खाने दौरा के विल्कुल पीछे स्थित है।
4. होशदारखान, आजमखान, मुगलखान और इस्लामखान हवेलियों की जगह पर प्रस्तावित ताज हेरिटेज कारीडोर संरक्षित:-
ताजमहल और आगरा किला के बीच 20 एकड़ में फैली जमीन यमुना नदी का हिस्सा है, लेकिन रिवर फ्रंट गार्डन के तहत मुगलिया दौर में मौजूद बागीचों को इस कारीडोर स्थल पर बनाने की योजना है। साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने कारीडोर पर ग्रीन बेल्ट बनाने के आदेश दिए थे, लेकिन 8 साल बाद एएसआई ने कारीडोर को संरक्षित करने का प्रस्ताव भेजा है। इसे मुगलिया बागीचों की तरह विकसित किया जाएगा। 13 साल पहले सूबे की बसपा सरकार को हिला देने वाले ताज हेरिटेज कारीडोर पर सालों तक रहा सन्नाटा अब टूटने वाला है। आगरा किला
डा. राधेश्याम द्विवेदी |
ताज हेरिटेज कॉरीडोर पर हरियाली विकसित करने को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को निर्देश दिए थे। पिछले वर्ष केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय के दखल के बाद इसके लिए टास्क फोर्स गठित किया था। एएसआइ ने इसके लिए हाल ही में ताज हेरिटेज कॉरीडोर स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करने को प्रारंभिक अधिसूचना जारी की है। जिसमें हाथी घाट से लेकर बाग खान-ए-आलम तक का यमुना किनारे का क्षेत्र शामिल है।बाग खान-ए-आलम से आगरा किला के बीच मुगल सरदारों की हवेलियां थीं। जिनमें हवेली असालत खां, हवेली महाबत खां, हवेली आजम खां, हवेली मुगल खां और हवेली इस्लाम खां शामिल हैं। इनके अवशेष ही कहीं-कहीं नजर आते हैं। ताज हेरिटेज कॉरीडोर के संरक्षण व रिवरफ्रंट गार्डन विकसित करने में यहां पड़ी गंदगी, मलबा आदि बड़ी चुनौती साबित होगा। रेलवे पुल के नीचे सड़क का स्तर नीचा किए जाने के बाद उसका मलबा भी यहीं डाल दिया गया है। ताज हेरिटेज कॉरिडोर स्थल पर कार्य की शुरुआत से पूर्व यहां फेंसिंग की जानी है। यहां सीमेंट के पोल लगाकर कंटीले तारों से फेंसिंग की जाएगी। इस पर करीब 1.10 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
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