cashless economy in india. भारत जैसे एक पिछड़े एवं विकासशील देश में कैशलेश व्यवस्था ना तो इतना आसान है और ना ही इतनी व्यस्थित व्यवस्था बन पा रही है, फिर भी यह एक सार्थक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ा
भारत देश से काले धन को ख़त्म करने के लिए भारत सरकार ने 500 और 1000 के नोटों को बंद कर दिया है और कैशलेस यानि बिना नकदी इस्तेमाल किए लेनदेन और ख़रीद फ़रोख्त के काम को बढ़ावा दिया जाने का सलाह दिया जा रहा है. नोटबंदी के बाद ये चर्चा है की हिंदुस्तान कैसेलेस अर्थव्यवस्था की और बढ़ रहा है।
कैशलेस अर्थव्यवस्था |
सरकार ने भी एक पैनल स्थापित किया:-
कैशलेस देश को अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए बड़े प्रयासों के हिस्से के रूप में, सरकार ने भी एक पैनल सभी सरकारी-नागरिक लेनदेन के लिए डिजिटल भुगतान करने के लिए स्थापित किया है। समिति अनुकूल डिजिटल पेमेंट को यूजर फ्रेंडली बनाने के लिए काम करेगी। एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के बाद ऑनलाइन भुगतान 300 प्रतिशत तक बढ़ गए है।विशेषज्ञों ने कहा है कि नकदी खत्म करने से लाभ से प्रेरित अपराधों का पूरी तरह उन्मूलन नहीं होगा, लेकिन उनकी लागत बढ़ जाएगी। भारतीय स्टेट बैंक की आर्थिक अनुसंधान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड से लेनदेन पीओएस के माध्यम से (बिक्री के प्वाइंट) टर्मिनलों और एम बटुआ और मोबाइल बैंकिंग की तरह प्रीपेड भुगतान के माध्यम से लेनदेन सहित डिजिटल बैंकिंग के मौजूदा आकार के आसपास करोड़ 1.2 लाख रुपये है, यह आकार 3 लाख करोड़ रुपये तक पंहुच सकता है।नोटबंदी का कदम अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने का सोचा समझ कदम है।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के माध्यम से पुनः चेताया :-
8 नवंबर को हिन्दुस्तान की लीडरशिप ने जब नोटबंदी का फैसला लिया, तब शायद उसके लिए यह कल्पना करना मुश्किल रहा होगा कि आने वाले वक्त में इस नीति को लेकर कितने तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे. पिछले बीस-बाइस दिनों में इस फैसले को लेकर सरकार के मन में जो संशय दिखता है उसकी वजह शायद यही है.यह बात सबसे ज्यादा देश और दुनिया में उभर कर सामने आ रही है कि नोटबंदी भारत को कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. प्रधानमंत्री ने अपनी ‘मन की बात’ में भी अपनी इस इच्छा को जताया है. लेकिन नोटबंदी के समर्थकों और आलोचकों दोनों के मन में यह सवाल है कि क्या भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए तैयार है? ग्रामीण, अशिक्षित और बैंक अकाउंट्स व स्मार्टफोन के बगैर एक बहुत बड़ी आबादी इस देश में रहती है जिसके लिए इस नई व्यवस्था से जूझना काफी मुश्किल होगा. हालांकि कैशलेस अर्थव्यवस्था के प्रस्ताव की प्रतिक्रिया में कई तरह की राय सामने आई है, जिसमें कुछ सकारात्मक और तसल्ली देने वाली हैं, तो कुछ बिल्कुल धुंधले भविष्य का दृश्य खींचती हैं.लोगों के पास स्मार्टफोन होने चाहिए:-
24 नवंबर, 2016 को द इकॉनामिक टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के हवाले से कहा गया कि चीन की मीडिया भारत की इस कोशिश को सही मानती है और उसका यह भी कहना है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास अगर स्मार्टफोन हों, तो यह पहलकदमी सफल हो सकती है. उनका आकलन है कि भारत स्मार्टफोन की बिक्री के लिए सबसे संभावनाशील बाजार है. इस संदर्भ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन की ही ज्यादातर कंपनियां स्मार्टफोन के निर्माण में शामिल हैं.बड़े शहरों तक सिमटा :-
बीबीसी में 25 नवंबर, 2016 को छपी समीर हाशमी की रिपोर्ट एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है. हालांकि उन्होंने इस बात को नोट किया है कि पेटीएम के साथ-साथ फ्रीचार्ज और मोबिक्वीक जैसी मोबाइल पेमेंट कंपनियों के कारोबार में बहुत बड़ा इजाफा आया है, लेकिन अपने फील्ड रिपोर्ट में उनका यह भी अनुभव था कि यह बड़े शहरों तक सिमटा है और छोटे शहरों में अभी भी इस नए तरीके को लेकर कारोबारी उत्साहित नहीं हैं. इस मसले पर बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा कराए सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी लोग यह मानते हैं कि भारत नगद आधारित अर्थव्यवस्था से मुक्त होने के लिए अभी तैयार नहीं है.
धन को ही खत्म कर दिया जाए:-
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मिहिर शर्मा कैशलेस अर्थव्यवस्था को कर चोरी करने वालों पर बड़ा हमला मानते हैं. 20 जुलाई, 2016 को ब्लूमबर्ग पर प्रकाशित उनके लेख में साफतौर पर कहा गया है कि, ‘नगदी का जितना कम से कम लेन-देन के लिए इस्तेमाल होगा, एजेंसियों के लिए टैक्स चोरी करने वालों को पकड़ना उतना ही आसान होगा. काले धन से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है कि धन को ही खत्म कर दिया जाए’.उस वक्त उनका अनुमान था कि भारत में दूसरे देशों की तुलना में कैशलेस अर्थव्यवस्था को ज्यादा तेजी से लागू किया जा सकता है. हावर्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री केनेथ रोगॉफ की स्थापना है कि कैशलेस अर्थव्यवस्था में लोग अपनी बचत को बिस्तर के गद्दे के नीचे नहीं, बल्कि बैंक में रखेंगे. लेकिन यह अभी देखना बाकी है कि जिस देश में लोगों के पास घर, शिक्षा और रोजगार नहीं है वे अपने काम चलाने भर के थोड़े से पैसे प्लास्टिक कार्डस और ई-मनी में कैसे संभालेंगे.
कैशलेस अर्थव्यवस्था के समर्थन में कैट:-
अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (कैट) ने डिजीटल भुगतान की व्यवस्था को तर्कसंगत बताते हुए आज कहा कि इससे कम नगद यानी कैशलेस को बढावा मिलेगा जिससे आगे चलकर देश की अर्थव्यवस्था कैशलेस यानी नगद रहित को सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात कार्यक्रम में लेस कैश के बारे में बात की और कैट का कहना है कि वह इस मुद्दे पर श्री मोदी का समर्थन करता है और इसके लिए डिजीटल भुगतान व्यवस्था
डा. राधेश्याम द्विवेदी |
कैशलेस अर्थव्यवस्था की पहल में आईआरसीटीसी :-
कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कोरपोरेशन लिमिटेड (आईआरसीटीसी) ने अपने परिचालन के डिजिटलीकरण के लिए खासतौर से ई-कैटरिंग, ई-टिकटिंग और पर्यटन खंड में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने का फैसला किया है। आईआरसीटीसी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. एके मानोचा ने बताया, “भारत तेजी से कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है और प्रधानमंत्री की नोटबंदी की नवीनतम पहल से इस प्रक्रिया को गति मिलेगी। हमने सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के तहत अपने कई खंडों को पहले ही डिजिटल बना लिया है और हम आगे प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके और अधिक आक्रामक तरीके से अपने यात्रियों के अनुकूल उपायों को बढ़ावा देंगे।”
कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा:-
हाल ही में आईआरसीटीसी ने ई-कैटरिंग सेवा ‘फू़ड ऑन ट्रैक’ की शुरुआत की है जिसे बड़ी सफलता मिली है। क्योंकि इससे रेल यात्री अपनी पसंद का खाना ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यात्री भोजन का भुगतान ऑनलाइन करते हैं और उन्हें नकदी लेकर चलने की जरूरत नहीं है।इस सेवा के लिए आईआरसीटीसी ने डोमिनोज, हल्दीराम, केएफसी और सरवन भवन जैसे लोकप्रिय रेस्तरांओं से साझेदारी की है, ताकि यात्री अपनी पसंद का भोजन खा सकें। यही नहीं यात्रियों को क्षेत्रीय भोजन मुहैया कराने के लिए आईआरसीटीसी ने नाबार्ड के सहयोग से महिला स्वयंसहायता समूहों से हाथ मिलाया है। कोंकण क्षेत्र में एमएएचइआर, एमएवीआईएम, ल्यूपिन ह्यूमन वेलफेयर रिसर्च फाउंडेशन जैसी महिला स्वयंसहायता समूह यात्रियों को ट्रेन की सीट पर स्वादिष्ट कोंकणी भोजन परोसती हैं। डॉ. मानोचा ने कहा, “ग्रामीण आबादी को ई-कैटरिंग के माध्यम से कैशलेस लेनदेने से जोड़ने के लिए यह आईआरसीटीसी की महत्वपूर्ण पहल है। इसमें समूह की महिलाओं को ऑनलाइन भुगतान किया जाता है। कोंकण रेलवे ने यह पायलट परियोजना शुरू की है।”मार्गन स्टेनले की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का इंटरनेट आधारित बाजार फिलहाल 16 अरब डॉलर का है जो साल 2020 तक 159 अरब डॉलर का हो जाएगा, जोकि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती ई-कॉमर्स अर्थव्यवस्था है।
यद्यपि भारत जैसे एक पिछड़े एवं विकासशील देश में कैशलेश व्यवस्था ना तो इतना आसान है और ना ही इतनी व्यस्थित व्यवस्था बन पा रही है, फिर भी यह एक सार्थक कदम के रूप में देखा जा सकता है। जिस प्रकार ग्रामीण भारत की जनता ईवीएम की मशीन से मत देने के लिए दक्ष व सहज हो चुकी है। गांव के बच्चे से लेकर बड़े-वूढ़े मोवाइल फोन का आवश्यकता के अनुसार उपयोग करने लगे हैं। उसी प्रकार कैशलेश लेनदेन को भी समुचित प्रशिक्षण के उपरान्त प्रशिक्षित होकर अपना सकती है। भारत सरकार प्रदेश सरकार के माध्यम से प्रत्येक प्राइमरी वेसिक तथा इन्टर कालेज में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों व जानकारों को सिखाये फिर वे अगले क्रम में कमपढ़े लिखों को क्रमबद्ध सिखा सकते हैं ।
बहुत ही शानदार पोस्ट .... bahut hi badhiya .... Thanks for sharing this!! :) :)
जवाब देंहटाएंसभी दुकान्दर cashless system का use नहीं कर रहे l
जवाब देंहटाएंइसे सख्ती से लागू करे,एवं जिसके पास कैश लेस system नहीं है उस दुकान को बंद करवा दे l ताकी कोई भी अपनी इंकम न छुपा सकेl
देश के शहर क्षेत्र मे 80% लोगो का इंकम 250000 से ज्यादा है लेकिन टैक्स पे करने वाले 10%भी नहीं होंगे और वो भी सही नहीं भरते l