जिसका नुकसान हुआ उसे मुआवजा न मिल सका, गाँव बाला भी कोई कुछ न बोल रहा था, कम से कम पटवारी को तो बता सकते थे, लेकिन फिर मुझे ध्यान आया कि पटवारी तो खुद आधे हिस्से में शामिल है, वह तो मिल बाँट कर खाने में बिश्वास रखता है जो हमारी भारतीय परम्परा है, उससे कह कौन मुसीबत मोल लेगा|
मुआवजा
शाम का समय था, घर के बाहर से एक आदमी ने मुझे आवाज दी, जाकर देखा तो मोहल्ले का आदमी था, अशोक| उसने बताया कि अपनी कालोनी में रहने वाले रमन ने अपने गाँव में आग लगा कर अपनी जान दे दी है|
मुझे ये सुनकर बहुत आश्चर्य भी हुआ और दुःख भी| रमन जैसा जिंदादिल आदमी आग लगाकर अपनी जान कैसे दे सकता है, में इतना सोच अशोक के साथ रमन के गाँव चल दिया|
दरअसल रमन हमारी कालोनी में ही रहता था, कुछ दिन पहले उसने अपना घर बेच दिया था| रमन की शादी हो चुकी थी और दो बच्चे भी थे, उसकी बीबी अपने बच्चो को लेकर अपने मायके चली गयी| कारण था रमन का शराब पीना| पत्नी मना करती लेकिन रमन नही मानता था| इसी कारण रमन की बीबी ने मकान बिकवा कर पैसा लिया और मायके चली गयी|
में और अशोक रमन के गाँव पहुच चुके थे, रमन का घर गाँव की शुरूआत में ही था| रमन के घर में काफी भीड़ जमा थी, में और अशोक भी भीड़ में घुस गये, देखा तो रमन का शव को पुलिस घेरे खड़ी थी| रमन की बीबी भी अपने मायके से आ चुकी थी, जो अभी भी रोये जा रही थी, पुलिस पूरी तफ्तीस कर चल दी|
गाँव के लोग आपस में बातें कर रहे थे कि कल शाम तक रमन ठीक ठाक था, रात में इसने आग लगाई है| वो लोग कह रहे थे कि बिल्लू को सारी बात पता है, वह रात से पहले तक इसके साथ था| मुझे रमन के आग लगने के बारे में जानने की बड़ी इच्छा थी, मैंने वहां के लोगों से बिल्लू का घर पूछा, लोगों ने मुझे घर बता दिया| में बिल्लू के घर पहुंचा, अशोक रमन के ही घर रह गया था|
बिल्लू से दुआ सलाम के बाद मैंने अपना परिचय दिया और पूंछा कि आप को तो पता होगा ये रमन के साथ क्या हुआ| बिल्लू पहले तो हिचकिचाया फिर बताने लगा, “क्या बताएं भैय्या दो तीन दिन से रमन परेशान था, बीबी मकान बेच कर सारा पैसा ले गयी, थोडा सा इसको दे गयी थी सो इसने दारू में उडा दिया, कई दिनों से वह पत्नी से पैसा मांग रहा था तो वह इसको गाली सुनती थी और खेत का पट्टा भी बीबी ले गयी थी, अब रमन को पैसा कहाँ से आया, कल शाम रमन ने मेरे साथ बैठ कर दारु पी, फिर बीबी को फोन किया और उससे पैसे मांगे, जब बीबी ने वही पुराना जबाब दिया तो रमन बोला कि या तो पैसा दे जा नही तो आग लगाकर मर जाऊंगा, बीबी सोच रही थी कि वैसे ही बक रहा है, इसी कारण पैसे के लिए हाँ न की, मैंने भी बहुत समझाया कि आग वाग मत
धर्मेन्द्र राजमंगल |
बिल्लू की बात से में संतुष्ट था, उसे धन्यवाद दे में रमन के घर की तरफ चल दिया, जहाँ अशोक भी खड़ा था| वहां जाकर देखा तो पता चला कि कोई अधिकारी आया है, शायद पटवारी या कानूनगो| वह अपनी डायरी में कुछ लिख कर ले गया था| गाँव वालों में घुसर पुसर हो रही थी| सुनने पर पता चला कि रमन को मुआवजा मिलेगा क्योंकि उसने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या की थी, फसल भी इस साल ठीक नही हुई थी|
मैंने कहा चलो ये तो अच्छा हुआ, कम से कम फसल का नुकसान तो पूरा हुआ लेकिन थोड़ी देर हो गयी अगर जीते जी मिल जाता तो शायद आज ये जिन्दा होता|
एक गाँव वाला मेरी बात सुन तुनककर बोला, “क्या खाक अच्छा हुआ, इसकी कौन सी फसल बर्बाद हुई, इसका खेत तो पट्टे पर था श्यामू पर और श्यामू तो बेचारा कुढ़ कुढ़ कर मर गया, वहां तो कोई पटवारी न पहुंचा उसे तो कोई मुआवजा न मिला, आपको पता है इसमें क्या हुआ है, इस मुआवजे के पैसे में से आधा पटवारी और प्रधान खायेगा, वाकी बचा पैसा इसकी बीबी को मिल जायेगा, सारा नुकसान तो श्यामू का हुआ, बेचारा लडकी की शादी करके भी न जा पाया|”
उस आदमी की बात सुन में कुछ न बोल पाया, अशोक को साथ ले घर लौट आया| मुझे आश्चर्य हो रहा था| जिसका नुकसान हुआ उसे मुआवजा न मिल सका, गाँव बाला भी कोई कुछ न बोल रहा था, कम से कम पटवारी को तो बता सकते थे, लेकिन फिर मुझे ध्यान आया कि पटवारी तो खुद आधे हिस्से में शामिल है, वह तो मिल बाँट कर खाने में बिश्वास रखता है जो हमारी भारतीय परम्परा है, उससे कह कौन मुसीबत मोल लेगा|
इसमें किसको फायदा हुआ ये तो मेरी समझ से बाहर था, लेकिन एक बात थी कि रमन को पैसा मिल रहा था, परन्तु वह अब इस पैसे की दारू पीने के लिए जीवित न था, लेकिन जहाँ भी होगा इस खेल को देख खुश रहा होंगा|
रचनाकार परिचय
लेखक का नाम---धर्मेन्द्र राजमंगल
जन्मतिथि—28 जून 1993 -जिला हाथरस(उप्र)
भाषा—हिंदी
विधाएँ—कहानी, उपन्यास, कविता
मुख्य कृतियाँ—
प्रकाशित उपन्यास— मंगल बाज़ार (जुलाई 2016) ब्लू रोज पब्लिशर्स-दिल्ली|
कहानी संग्रह—कितनी हैं, मेरी बीस कहानियां, चिल्ड्रन बाबा|
कविता—पापा मुझे पूंछा तो होता, माँ मुझे माफ़ कर दोगी, में आत्महत्या न करता तो क्या करता, हाल चाल, पापा में इतनी भी बुरी नही हूँ, मुझे अकेले छोड़कर, मेरे साथ चल, फटाफट चल पड़, बच्चों बारिश आएगी|
ईमेल—authordharmendrakumar@gmail.com
वाह रे सरकारी सिस्टम.
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