अब आपका समय है, जागिए, खड़े होइए और चलते ही जाइए. परमात्मा आपको कुछ नए मुकाम रचनें के लिए भेजा है. मुझे पूरा यकीन है कि आप वैसा सब कुछ कर जाएगे, जैसा और दूसरा कोई नहीं किया होगा. क्यूँकि आप अद्वितीय हैं.
याद कीजिए ! आप अद्वितीय हैं
अद्वितीय यानी जिसके जैसा दूसरा न हो. इसे ही अंग्रेजी में यूनिक ( Unique ) भी कहा जाता है. खैर यह बिल्कुल
सच भी है कि दुनियाँ का प्रत्येक प्राणी अद्वितीय है. यकीन मानिए आप जैसा न कोई इस दुनियाँ में हुआ है और आने वाले वक्त में न होगा ही. जरा गौर कीजिए, क्या इस दुनियाँ के सम्पूर्ण जड़ चेतन में कभी भी दो चीजें पूर्णतः एक जैसी दिखाई दी हैं ...?? शायद नहीं. परमात्मा ने प्रत्येक को एक अद्वितीय सामर्थ देकर अलग अलग कार्य के लिए भेजा है. कुल मिलाकर जीवन के मर्मों को समझने के लिए हमें अपनी अन्तःचेतना को केन्द्रित करना ही होगा. शायद यही वजह है कि सदियों से आज तक योग साधना में ध्यान को विशेष महत्वता दी गई है. अर्थात जब हम स्वयं से रूबरू हो जाएगें तो हमें जीवन में भौतिक लझ्य तलाशने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. हम स्वतः जीवन के मूल उद्देश्य को समझकर सन्मार्ग की ओर अग्रसर हो जाएगें.
गौरतलब है कि आज अत्याधुनिकता के दौर में हम सारी दुनियाँ को जानने समझने की बात करते हैं और उसके लिए हर सम्भव प्रयास भी करते हैं. इतना ही नहीं, सच यह भी है कि समूची दुनियाँ गूगल-मय हो गयी है. मानो गूगल नाम के परिन्दें ने समूचे जड़ चेतन को अपने आप में समेट लिया है. यकीनन हम सब गूगल उपयोग करने में बड़ा फ़क्र महसूस करते हैं परन्तु उसके मूल को जानने की कभी कोशिश ही नहीं करते, जिसने ऐसे अनोखे गूगल का इज़ात किया. निश्चित रूप से वह भी हम जैसा मानव ही होगा. परन्तु उसमें और हममें खास फर्क यह है कि उसने स्वयं की क्षमता और ऊर्जा को समझा है. न जाने आज हम लोग क्यूँ दिन प्रतिदिन वास्तविकता से परे होकर काल्पनिक और क्षणिक भौतिकता में मशगूल होते जा रहे हैं....??
एक हास्यास्पद बात यह है कि जो स्वयं को नहीं समझ सकता, वो दुनियाँ को कितना समझ पाएगा...?? असल में हमारे जीवन यात्रा की शुरूआत स्वयं को समझने से होनी चाहिए. कई बार हमने देखा है कि जब लोग झगड़ते है तो कहते हैं कि तू मुझे नही जानता कि मै कौन हूँ और क्या कर सकता हूँ ? इसके जवाब में सामने वाला भी यही कहता है . वास्तविकता तो यह है कि वो दोनो स्वयं को नहीं जानते हैं और न ही जानने की कोशिश करते हैं.
जरा दिमाक की रील को पीछे चलाइए, कुछ वर्ष पहले आप एक पराक्रमी योद्धा थे और आपने अपने पराक्रम से
शालिनी तिवारी |
यक़ीन मानिए, विश्व के सबसे सुपर कम्प्यूटर का मालिक अमेरिका नहीं बल्कि आप हैं. आपके दिमाक में लगा कम्प्यूटर हरपल आपका साथ देता है, रचनात्मकता लाने की पुरजोर कोशिश करता है. फिर भी आप इतने लाचार एवं बेवस क्यूँ .. ? क्यूँकि हमें दिमाक के सुपर कम्प्यूटर को आपरेट करना नहीं आता. क्या आपनें कभी गौर किया है कि अत्याधुनिकता के दौर में हमारे सुपर कम्प्यूटर को हम नहीं बल्कि कोई और चला रहा है. यहाँ तक कि हमारे इस कम्प्यूटर को समाज, भय, कल्पना आदि शक्तियाँ चला रहीं हैं.
अब आपका समय है, जागिए, खड़े होइए और चलते ही जाइए. परमात्मा आपको कुछ नए मुकाम रचनें के लिए भेजा है. मुझे पूरा यकीन है कि आप वैसा सब कुछ कर जाएगे, जैसा और दूसरा कोई नहीं किया होगा. क्यूँकि आप अद्वितीय हैं.
रचनाकार परिचय -
अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है ।
bahoot hi achchha hi lekh thank you
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