नरेन्द्र कोहली के गीता पर आधारित उपन्यास ‘शरणम’ की भाषा की प्रौढ़ता, प्रांजलता विषय और चरित्रों के अनुकूल है। पात्रों का चरित्र चित्रण भी रोचक है और धृतराष्ट्र व गांधारी आदि का चरित्र बहुत सजीव व दिलचस्प हैं। पुस्तक में गीता की मौलिक व्याख्या की गई है।
नरेंद्र कोहली के उपन्यास ‘शरणम’ पर गोष्ठी
विश्व पुस्तक मेले में दिनाँक 11/01/2017 को वाणी प्रकाशन के स्टॉल (हॉल 12 ए (277-288) पर नरेंद्र कोहली के ‘शरणम’ उपन्यास पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन पत्रकार अनंत विजय ने किया।
नरेन्द्र कोहली के गीता पर आधारित उपन्यास ‘शरणम’ की भाषा की प्रौढ़ता, प्रांजलता विषय और चरित्रों के अनुकूल है। पात्रों का चरित्र चित्रण भी रोचक है और धृतराष्ट्र व गांधारी आदि का चरित्र बहुत सजीव व दिलचस्प हैं। पुस्तक में गीता की मौलिक व्याख्या की गई है।
इसमें मुख्य पात्र धृतराष्ट्र और संजय के संवाद तो हैं, पर उपन्यास का ताना बाना खड़ा करने के लिए इस प्रकार
नरेन्द्र कोहली |
उपन्यास में नरेन्द्र कोहली भारत के क्षात्रधर्म का भी आह्वान करते हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य में आजादी के बाद महाभारत पर लिखे महत्त्वपूर्ण काव्य नाटक ‘अंधायुग’ का उल्लेख किया, जो युद्ध के पश्चात हुए विध्वंस और शान्ति की बात करता है। यह पुस्तक धर्म का ग्रंथ नहीं है। ऐसा स्वंय लेखक का कहना है। यह ‘गीता’ की टीका या भाष्य भी नहीं है। यह एक उपन्यास है, शुद्ध उपन्यास, जो ‘गीता’ में चर्चित सिद्धांतों को उपन्यास के रूप में पाठक के सामने रखता है। यह उपन्यास लेखक के अन्दर उठने वाले प्रश्नों का नतीजा है। जिसमें सामाजिक मानदंड की एक सीमा तय की गयी है जो पाठक को आकर्षित करने में सक्षम है।
गोष्ठी का आरम्भ नरेन्द्र कोहली के सम्मान के साथ हुआ। अनंत विजय ने पुष्प-गुच्छ के साथ उनका स्वागत करते हुए, बताया नरेन्द्र कोहली बिहार के रहने वाले हैं, और ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ और ‘गीता’ जानकार ही नहीं, बल्कि व्यंग्यकार भी हैं। कोहली जी ने विपुल साहित्य की रचना की है। उन्होंने कहानी लेखन से अपनी यात्रा आरम्भ की थी।
पहला प्रश्न करते हुए अनंत विजय ने पूछा कि, अगर आप लिखते नहीं तो क्या करते। जवाब में कोहली जी ने बहुत ही सहजता से कहा कि – मैं अगर लिखता नहीं तो मर जाता, मैं लिखने के लिए ही जीवित हूँ। कोहली जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज व्यंग्य की धारा दूषित हो चुकी है। आज के व्यंग्य में धार नहीं है, वह फीका सा है। पाठक पर उसका कोई खास असर होता नहीं दिखाई देता। ‘आप व्यंग्य लेखन को छोड़कर कहानी लेखन क्यों करने लगे’ के जवाब में कोहली जी ने कहा कि मेरी कोई मजबूरी नहीं है कि मैं व्यंग्य ही लिखू, लेकिन एक कारण यह है कि आज व्यंग्य की जगह हास-परिहास ने ले ली है। लोग अब उसे निजी हानी के तौर पर ग्रहण करते हैं। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि आज विचारधारा ने व्यंग्य को मात दे दी है। वह व्यंग्य पर हवी हो चुकी है। और कोई भी साहित्य जब तक किसी विचारधारा या पंथ में जकड़ा हुआ है, वह विकास नहीं कर सकता।
‘राम-कथा’ लिखने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? अनंत विजय के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि 1971 के ‘बांग्लादेश की मुक्ति’ के लिए हुए युद्ध ने मुझे ये महसूस करा दिया की हमारी दुनिया को राम की जरूरत आज कही बड़े पैमाने पर है। जिसने मुझे राम-कथा लिखने के लिए प्रेरित किया। और मैंने उसे आधुनिक बनाकर पेश किया। ताकि हमारे समय के मुद्दे उसमें सारगर्भित हों।
नरेन्द्र कोहली ने ‘महाभारत’ जैसे महाग्रंथ पर, उससे भी ज़्यादा लिखा है। पूरे परिवेश को व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है। इसकी विशेषता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें सिर्फ पांडवों की ही बात की गयी है। कोहली जी ने कहा कि मैंने 10 साल बाकी रहते ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। तब मुझे पागल तक कह दिया गया था। लेकिन मुझे खुशी है कि जिस उद्देश्य को लेकर मैं चला था लगभग वह पूरा हो चुका है। अन्त में कोहली जी ने कहा कि जिन लोगों ने ‘महाभारत’ को छुआ तक नहीं था, उन्हें मैंने ‘रामायण’, ‘महाभारत’, और ‘गीता’ तीनों पढ़ा दिये।
इस कार्यक्रम में अनंत विजय, इक़बाल रिजवी, विजय शंकर तिवारी और प्रवीण शर्मा ने हिस्सा लिया। गोष्ठी का समापन सफल रहा।
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