श्री की यह उपन्यास एमएमएस कांड की शिकार हुई एक लड़की पर उपन्यास आधारित है।देखा जाए तो आजकल कालेजों में एमएमएस के मामले बढ़ने लगे हैं लेकिन क्या लोग इसके प्रति जागरूक हैं?
वो लड़की
वो लड़की |
आजकल बहुत सी किताबें लिखी जा रही हैं । यह कहना गलत नहीं होगा कि रोज सैकड़ों किताबों का विमोचन हो रहा है लेकिन किताबों के प्रकाशन की संख्या की तुलना में पाठकों की संख्या घटती जा रही है । इसका यह भी एक कारण हो सकता है कि पाठक किताबों से खुद को जोड़ न पाना लेकिन हाल ही में प्रकाशित किताब 'वो लड़की' इन सबसे परे है । इस उपन्यास के माध्यम से लेखिका इतिश्री सिंह राठौर (श्री) ने बहुत मजबूत संदेश देने की कोशिश की है । उन्होंने इस उपन्यास के माध्यम से युवाओं तक यह बात पहुंचाने की कोशिश की है कि आजकल युवा छोटी-छोटी बातों से परेशान होकर खुदकुशी कर लेते हैं लेकिन क्या परेशानी का एक ही हल जान देना होता है ? क्या जिंदगी से हारने के अलावा हमारा पास सचमूच कोई रास्ता नहीं बचता जिस पर हम चल सकें ?
एमएमएस कांड पर आधारित
श्री की यह उपन्यास एमएमएस कांड की शिकार हुई एक लड़की पर उपन्यास आधारित है।देखा जाए तो आजकल कालेजों में एमएमएस के मामले बढ़ने लगे हैं लेकिन क्या लोग इसके प्रति जागरूक हैं? कहानी की नायिका एक छोटे शहर में रहने वाली है लेकिन इसकी ख्वाहिशें बहुत बड़ी हैं । लाख मुश्किलों के बावजूद उसने ख्वाहिशों को हमेशा जिंदा रखा। कालेज में पढ़ाई करते समय वह लड़की एमएमएस कांड की शिकार होती है । कहानी की नायिका भी दूसरों की तरह खुदकुशी करना चाहती है । अब उसने आत्महत्या की या नहीं यह तो आपको किताब पढ़ने से ही पता चलेगा । लेकिन किसी भी दुर्घटना का शिकार किसी लड़की को लेकर हमारे समाज की मानसिकता को बखूबी उजागर करती है यह उपन्यास । हम चाहें जितने पढ़े-लिखे हों हमारी सोच कहीं न कहीं लड़कियों के मामले में आज भी थोड़ी सी पिछड़ी हुई है । अगर गुनाह लड़का और लड़की दोनों का है तब भी यह समाज केवल लड़कियों को ही गुनाह की सजा देने को उतारू हो जाती है और लड़के की गलतिय़ों को नजरआंदाज कर दिया जाता है । हम मानें न मानें यह होता है कि बचपन से ही केवल मर्यादा का पाठ लड़की को ही सिखाया जाता है लेकिन लड़कों को तमीज की शिक्षा नहीं दी जाती ।
उम्मीद की किरण
यह उपन्यास कतई नारीवादी पक्ष का समर्थन नहीं करती । इसमें पुरुष चरित्रों को भी समान महत्व दिया गया है । इस कहानी में एक लड़की की संघर्ष की दास्तां से लेकर घरवालों और समाज से उस लड़की के संबंध की कहानी को भलीभांति दर्शाया गया है । कहानी में एक उम्मीद की किरण नजर आती है । कहानी में बीच-बीच में लेखिका ने पंक्तियों के माध्यम से कुछ बेहतरीन संबाद पहुंचाने की कोशिश की । एक पंक्ति जो दिल में घर कर गई कुछ इस प्रकार है-
"मालुम है कुछ नामाकुलों की वजह से जिंदगी बेजार लगने लगी है लेकिन इस बात का कहां इल्म था कि लाशों के शहर में कब्रिस्तान की जरूरत नहीं होती "
लेखिका के बारे में :-
लेखिका के बारे में :-
इतिश्री सिंह |
इतिश्री सिंह राठौर (श्री) जी, कथाकार व उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में आप हिंदी दैनिक नवभारत के साथ जुड़ी हुई हैं. दैनिक हिंदी देशबंधु के लिए कईं लेख लिखे , इसके अलावा इतिश्री जी ने 50 भारतीय प्रख्यात व्यंग्य चित्रकर के तहत 50 कार्टूनिस्टों जीवनी पर लिखे लेखों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया. आप,अमीर खुसरों तथा मंटों की रचनाओं के काफी प्रभावित हैं.
:)
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