इलाहाबाद के संगम रेती पर चले जाइये, वहाँ साधु संतों का डेरा मिल जायेगा | तंबुओं का मेला कुंभ इलाहाबाद की शान | विदेशी भी आते हैं, यहाँ की भोली भाली सादगी देखकर, हर तरह का भेषभूषा, यहाँ पंजाबी भी मिल जायेंगें | गुजराती यहीं मिल जायेंगें, मराठी भी मिल जायेंगें |
इलाहाबाद का नजारा
कई शहर तो अपने में मायने रखते हैं लेकिन इलाहाबाद की माटी की खुशबू ही कुछ नया है जिसे इलाहाबाद की खूबियाँ देखनी हो तो उसे इलाहाबाद में आना चाहिये और इसकी सुगंध लेनी चाहिये | जिसका
इलाहाबाद |
मुझे बचपन में इलाहाबाद खराब लगा और खराब सोंच लिया कि यहाँ बात-बात पर मारपीट हो जाती है | इलाहाबाद वारदातों का भूखा शहर है | गरीबों की बस्ती है | दलालों का अड्डा है | जुआरियों का घर है | औरतों की इज्जत लूटने वाला शहर, लोगों की हत्या कर देने वाला शहर,अनाथों की बस्ती उजाड़ दी जाती है | विधवाओं का अपमान इलाहाबाद की शान है | मैं इलाहाबाद को घटिया समझ लिया, यही सोंच कर इलाहाबाद छोड़कर भाग गया | दिल्ली मुंबई की गलियों का खाक छानने लगा | बाद में एहसास हुआ कि यहाँ इन शहरों में तो बहुत गंदे लोग हैं | गंदी-गंदी बातें होती है, गंदी वारदात होती है,दया नाम की चीज नहीं है,पैसा ही यहाँ के लोगों का माई बाप है, माँ की भी इज्जत नहीं, यहाँ तो आत्मीयता नाम की चीज नहीं है | बड़ा निर्दयी शहर लगा | ये शहर जिसका मैंने बहुत नाम सुना था | तमाम तथ्यों के गहन अध्ययन के बाद वहाँ से झोला झंडा लेकर सुबह वाली ट्रेन से भागा | अगले दिन सुबह इलाहाबाद की माटी को चूम लिया और कहा धत्त तेरे नामी शहर की, यही दिल्ली मुंबई है,जहाँ बिना गाली की बात नहीं होती है, जहाँ अपनी ही कोई इज्जत नहीं | तभी से मैं इलाहाबाद के करीब हो गया, आज भी मजे की जिंदगी है | इलाहाबाद में देशी घी खाकर आठ दस घंटे इलाहाबाद के खेतों में काम करता हूँ और साहित्य जमकर लिखता हूँ | लेखक व कवि भी बन गया हूँ | वहाँ से भागा न होता तो सीधा शातिर अपराधी होता, तिहाड़ जेल की रौनक होता |
इस इलाहाबाद की माटी में हमने बहुत कुछ सीखा | बहुत कुछ पाया | स्वयं का व्यक्तित्व भी बना डाला | लोगों में मेरी अपनी पहचान है | इलाहाबाद ही ऐसी नगरी है जहाँ सब कुछ सस्ते में मिल जाता है | यहाँ की अपनी संस्कृति व संस्कार है, यहाँ का देशी लिबास है,देशी ठर्रा भी है | भांग भी मिल जाता है | नमकीन तो हर गली की दुकानों पर मिल जाता है | समोसा के बिना कोई मिठाई की दुकान न होगी | खोवा की मंडी है तो सब्जी की मंडी भी है | बड़ी बडी़ इमारतें हैं तो झोपड़पट्टी भी है | चमचमाती कार में जाता जज, वकील मिल जायेंगें | रिक्शा में बैठा कवि व लेखक शहर का अवलोकन करते हुये मिल जायेंगें | गाँव में भाभी अपने बेटवा के तेल मालिश करती मिल जायेगी | बड़की अम्मा गाय को भूसा सानी करती मिल जायेगी | दादा जी हुक्का थामें पुरानी बातों में मस्त मिल जायेंगें | गाँव की छोकरी कूदती फांदती मिल जायेगी तो गाँव का छोरा भोजपुरिया गीत गाते मिल जायेगा | लिपाई पुताई करती चाची मिल जायेगी तो शहर में बड़ी बड़ी मैम मिल जायेगी | चश्मा लगाये शहर की छोकरी युवाओं की शान को बढ़ाते मिल जायेगी तथा पुराने मुकदमें के लिये तीसरी पीढ़ी कोर्ट कचेहरी का चक्कर लगाते मिल जायेगी | और तो और हर महीने गाँव या शहर की गली में दुल्हा भी मिल जायेगा | मंदिर मस्जिद में भक्तों की भीड़ मिल जायेगी | दूध दही तो हर घर में मिल जायेगा | स्कूल यूनिवर्सिटी सब मिल जायेंगें | यहीं मिल जायेंगें मंत्री संत्री, बड़ेबाबू भी मिल जायेंगें | इलाज के लिये बड़ी-बड़ी हॉस्पिटल मिल जायेगी | जब सब कुछ यहीं है तो और जगह जाने की बात इलाहाबदियों के दिल में आता है तो उसका आँगन समझों कि सूना ही रह जायेगा |
जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी' |
इलाहाबाद के संगम रेती पर चले जाइये, वहाँ साधु संतों का डेरा मिल जायेगा | तंबुओं का मेला कुंभ इलाहाबाद की शान | विदेशी भी आते हैं, यहाँ की भोली भाली सादगी देखकर, हर तरह का भेषभूषा, यहाँ पंजाबी भी मिल जायेंगें | गुजराती यहीं मिल जायेंगें, मराठी भी मिल जायेंगें | काश्मीरी भी यहाँ बसा हुआ मिल जायेगा | देशी विदेशी सब प्रकार का लुक, कई प्रकार की बोलियाँ भाषा मिल जायेगी | विद्वानों की यहाँ लम्बी फेहरिस्त है | इलाहाबाद की तमाम खाशियत है जो लोगों को खींच ला रही है और इस प्रकार जादू टोना लग जाता है कि उसे यहाँ से जाने का मन ही नहीं करता है | देवता भी इलाहाबाद का दर्शन करने के लिये तरसते हैं | यहाँ हर जाति कौम के लोग मिल जायेंगें | यहाँ हिन्दू ,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई सब मिल जायेेंगें, मंदिर, मस्जिद, चर्च ,गुरूद्वारा भी मिल जायेगा, जोगी बैरागी भी मिल जायेंगें | भूखें प्यासे को भोजन पानी कराता दयालु सज्जन भी मिल जायेंगें | नेता अभिनेता भी मिल जायेंगें | कई बड़े बड़े कलाकार मिल जायेंगें | बड़ी बडी कलाकृतियाँ व पार्क मिल जायेंगें | ज्योतिषी भी मिल जायेगा |
भुलाया ही नहीं जा सकता है इस तरह का शहर , इस तरह के गाँव | जहाँ इस तरह की बातें हो,ऐसा नजारा हो, मानवीय संवेदना जहाँ हर हृदय में उबलता हो, करूणा का सागर जहाँ इस तरह से हो, उसको भुलाया ही नहीं जा सकता है | मधुर वाणी तो हर जिह्वा की निशानी है | दया व उपकार यहाँ की संस्कृति है | बड़ों का यहाँ सम्मान ही यहाँ का संस्कार है | साहित्य यहाँ की पूज्यनीय देवी की तरह है | अनुशासन यहाँ का सबसे लोकप्रिय है | सच्चा प्रेमी तो इलाहाबाद के हर कोने-कोने में मिल जायेगा | हर चेहरे पर भोला मुश्कान यहाँ की नरमशीलता है और बहुत कुछ है इस शहर में ...
यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र - कवि जयचन्द प्रजापति 'कक्कू' जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com
COMMENTS