आज भी बरखा मैम और उनकी बेटी के लिए वही प्यार मेरे आँखो में झलक रहा था जो कभी 8 शाल की उम्र में हुआ करता था...मेरा पहला प्यार
पहला प्यार बरखा मैडम
शोहेल बाबू के रिटायर होने से जितनी ज्यादा ख़ुशी मिली थी वो ख़ुशी तब और दुगनी हो गई जब स्कुल में उन मरखण्डे गुरु जी के जगह नई मैडम आई थी ..."बरखा सिंह" हमारे ही मुह्हले में रूम ले ली थी रहने के लिये।
उस वक़्त मेरी उम्र करीब 7 शाल या 8 की होगी ..प्रेम और मोह्हबत के बारे में जानता तो नही था पर उस जमाने में ओनिडा कम्पनी का ब्लैक एण्ड वाइट टीवी पर छाये गोविंदा और आशिकी फ़िल्म के हीरो राहुल राय की मूवी ने दिल में कुछ कुछ असर पैदा कर ही दिया था .. नई मैम की तुलना मेरे दिल ने आयशा जुल्का से कर रखी थी ..वही नैन वही नक़्श आगे से थोड़ी जुल्फें कटी हुई बिलकुल हूबहू सेम हिरोहीन की तरह ......... बरखा सिंह मैथ की टीचर थी पांचवी क्लास में और उस वक्त मेरा मैथ बहुत वीक था शोहेल बाबू के क्लास के वक्त तो सरकारी स्कुल की खिड़की मेरा चोर दरवाजा हुआ करता था खिसकने के लिये पर जब से मैडम आई थी दिल करता था उन्हें क्लास से जाने ही न दूँ बेसक मैं उनके पढ़ाये कोई शब्द नही समझ पाता और उन्हें देख कर उस उम्र में पता नही क्या फीलिंग जागी थी की समझ ही नही आया जबकि उस उम्र में प्यार मोह्हबत के बारे में कुछ भी नही पता था फिर भी मैं उनके लिये रोज रोज गुलाब लाया करता और क्लास की एंट्री गेट पर ही खड़ा रहता ..वो भी मुस्कुरा कर मुझसे गुलाब ले लेती और प्यार भरे नजरों से देख कर सर पर हाँथ फिराती क्लास के अंदर आजाती और जब भी क्लास में आती तो बस उन्ही को देखता रहता और इस बात को वो भी भांफ गई थी मेरे बचपने भरे इस मन को ...जैसा की अक्सर कुछ बच्चे बचपने में नादानी वस घर के ही किसी मेम्बर को पसंद कर लेते हैं की इनसे ही शादी करूँगा और तभी उन्होंने एक दिन बोल दिया विकाश क्या तुम मैथ में ध्यान से पढा करोगे मेरी खातिर प्लीज ..उनका इतने प्यार से मुझसे विनती करना अपना असर शुरू कर दिया जैसे मैडम की विनती न होकर ब्रह्मा जी का अमिट लकीर हो
और मैं धीरे धीरे सुधर गया..मेरे मैथ विषय के लिए अब वो कुछ अलग से समय निकाल कर पढ़ाने लगीं ..और मैंने फिर इस हद्द तक गणित विषय में अपनी मजबूती बनाई की मेरे हर विषय से टॉपर नम्बर मैथ का रहता ..वो बहूत खुश हुई मेरे लगन और मेहनत को देखकर और एक रोज मुझे अपने साथ घर ले गईं कुछ घरेलू हेल्प के लिये ...उनके घर पर उनकी सासु एक छोटी सी बच्ची को गोद में ली हुई थी तब बरखा मैम अपनी सासु से वो बच्चे को लेकर मेरे गोद में देते हुए बोली -लो विकाश अपनी बेटी को सम्हालो ..मै घबरा सा गया मैंम के इन शब्द् से ..और मैडम मुस्कुराते हुए फ्रेश होने के लिये चली गई।
विकाश शुक्ला |
बड़ी प्यारी बच्ची थी बिलकुल मैडम जैसी ..अब तो उसकी खूबसूरती और भी मेरे नजरो में बढ़ गई थी .."मेरी बेटी" उसे प्यार से खेला रहा था तभी मेरे शरीर में कुछ गर्म गर्म घुसता हुआ सा महशुस होने लगा झट से निचे देखा तो वो छुटकी शु शु कर दी थी और मैं कभी उसे घूरता कभी अपने कपड़ो को ..तब तक वो बेबी रोने लगी ..बरखा मैम फ्रेश हो चुकी थी वो आई बेबी को गोद में ले कुछ कहे बगैर मेरी मजबूरी समझ गई ..बोली ये तौलिया लपेट कर अपने कपड़े मुझे दे दो प्रेश करके सुखा दूँ ..मैं शरमा रहा था कपड़े उतारने में तो मैम मेरे पास आकर मेरे शर्ट के बटन खोलते हुए प्यार से गाल पर एक जोरदार पुच्ची लेते हुए बोली - बाप बनना इतना आसान नही है बुद्धु .. अभी तो शुरुआत है ..अब वक्त निकाल कर अपने इस घर भी आ जाया करो
..चार रातों तक नींद हराम रही न उस तरफ के गाल को धोता और न किसी को हाँथ रखने देता ..वो बचपन का पहला असरदार प्यार की दोस्ती वर्षो तक चली ।
आज उस वाक्या के वर्षो बीत गए मैं दिल्ली आगया और वो गॉंव में रही । बड़े शहर में आकर उन्हें भूल सा गया पर हमारे वजह से हमारे और उनके घर की दोस्ती बनी रही क्योकि बचपन में अपनी बिटिया को रोज घर ले आया करता था और सभी को बोलता था मेरी बेटी है। पर अब सब फरछाइ सी बन चुकी थी ख्यालो में ....करीब तीन महीने पहले भाई की शादी में गांव गया घर के सारे मेम्बर बाहर खड़े ..टैक्सी से उतरते मुझे देख रहे थे ..तभी एक देखने में हमउम्र सी लड़की दौड़ती हुई मुझसे लिपट गई और बोली पापा पहचाना मुझे मैं आपकी आँखों की लाड़ली "कंचन"
मेरे पैर कापने लगे दोनों हाथ आप व आप उसके चेहरे पर था।उसकी आँखो में भी प्रेम के आँसु थे और मेरे भी ..फिर दोनों लिपट ही गए ।
तभी अचानक कान में आवाज गुंजी ..सिर्फ बेटी से ही मिलोगे अपनी बरखा से नही ।
सामने वही मूरत खड़ी थी ज्यो की त्यों ..कुछ न बदला ..न प्यार.. न व्यवहार बस थोड़ी ज्यादा उम्र की दिखने लगीं थी और सर के कुछ बाल सफेद हो चुके थे।
उन्हें देख आंशुओं को रोक न पाया झट उनके पैरो में गिरना चाहा उन्होंने उतनी ही फुर्ती से मेरे हाँथ थाम लिये और अपने गले लगा लिए|
आज भी बरखा मैम और उनकी बेटी के लिए वही प्यार मेरे आँखो में झलक रहा था जो कभी 8 शाल की उम्र में हुआ करता था...मेरा पहला प्यार
रचनाकार परिचय
विकाश शुक्ला
निवास स्थान - हनुमान मन्दिर,
राजुपार्क,खानपुर,
नई-दिल्ली-110062
यह कहानी कम और आपबीती ज्यादा लगती है.
जवाब देंहटाएंअयंगर