सारा आकाश का सारांश

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सारा आकाश का सारांश सारा आकाश नावेल समरी इन हिंदी सारा आकाश की कथा मध्यवर्गी परिवार की है .समर तथा उसका ८ सदस्यों का संयुक्त परिवार . समर ,उसके माता - पिता ,बड़े भाई धीरज ,उनकी पत्नी ,दो छोटे भाई तथा एक छोटी बहन मुन्नी . बाद में प्रभा तथा छोटा बच्चा के आ जाने पर संख्या बढ़कर दस हो जाती है .

सारा आकाश का सारांश

सारा आकाश
सारा आकाश
साराआकाश,राजेन्द्र यादव जी द्वारा लिखित एक सामाजिक यथार्थवादी उपन्यास है.सारा आकाश की कथा मध्यवर्गी परिवार की है . सम्पूर्ण तथा कुंठित व्यकित्व समर के इर्द - दिर्द घूमती है . समर कुंठित व्यक्तिव वाले युवकों का प्रतिनिधित्व करता है.राष्ट्रकवि दिनकर के शब्दों में उपन्यासकार ने निम्न मध्यवर्ग की एक ऐसी वेदना का इतिहास लिखा है ,जिसे हमने से अधिक लोगों ने भुगता होगा . वास्तव में सारा आकाश के सभी पात्र मध्य निम्न वर्ग से समबन्धित हैं . उसकी समस्याओं में भले ही रूपात्मक अंतर हो परन्तु उनकी मूल समस्या एक है . यह मूल समस्या आर्थिक विषयक है . अन्य समस्याएँ इसी से उत्पन्न होकर कथा विकास के साथ आगे आई हैं .
उपन्यास कथा का केंद्र है समर तथा उसका ८ सदस्यों का संयुक्त परिवार . समर ,उसके माता - पिता ,बड़े भाई धीरज ,उनकी पत्नी ,दो छोटे भाई तथा एक छोटी बहन मुन्नी . बाद में प्रभा तथा छोटा बच्चा के आ जाने पर संख्या बढ़कर दस हो जाती है . परिवार खर्च बाबू जी के २५ रूपए मासिक पेंशन तथा बड़े भाई धीरज के ९९ रूपए मारिक वेतन पर किसी तरह चल रही है . घर में समर ,अमर तथा कुंवर तीन पढ़ने वाले लडकें हैं . ऐसी हालत में स्वाभाविक है कि परिवार बिना क़र्ज़ के नहीं चल सकता है . मात्र १२४ रूपए में इतने सदस्यों के लिए दोनों समय कि रोटी कि भी समुचित व्यवस्था नहीं हो सकती है . इसी कारण क़र्ज़ लेकर सामान आता है और आये दिन घर में महाभारत मचा रहता है .
दयनीय आर्थिक हालत ,विपन्नता आदि के कारण बच्चों में कुंठा कि भावना पनपना स्वाभाविक है . सोचनीय दशा के कारण बच्चों का मानसिक तथा नैतिक विकास नहीं हो पाटा है . यह हालत उस समय आर भयानक हो जाती है जब एक ओर पिता बच्चों कि आवश्यक आवश्यकता कि पूर्ति नहीं कर पाटा और दूसरी ओर बच्चों के प्रति आतंक तथा पक्षपात पूर्ण व्यवहार करता है . इस हालत में बच्चें अपराधी मनोवृति के हो जाते है . समर के पिता कि हालत कुछ ही है . फीस के लिए पिता के सामने जाकर कहने में भी समर भयभीत है २५ रु. देकर पिता जी उसके साथ जो व्यवहार करते हैं उसके प्रति विद्रोह हो जाना भी स्वाभाविक है . यहाँ उपन्यास का नायक समर विद्रोह करने के लिए तैयार होकर वैसा भी नहीं कर पाटा क्योंकि वह पुरातन संस्कारों से जुदा है . समर के पिता गरीब अस्वश्य हैं परन्तु उनका संस्कार गरीब नहीं है . इसी कारण उसे दोहरी चोट सहन करनी पड़ती है . सम्पूर्ण परिवार धार्मिक तथा संस्कृति संपन्न है . अतः ऐसे परिवार का सदस्य समर विद्रोह या बगावत नहीं कर पाता है .

समर कुंठाग्रस्त युवक है . वह एम्.ए. करके प्रोफेसर बना चाहता है . परन्तु बाहरवीं में ही उसकी इच्छा के विपरीत उसका विवाह कर दिया जाता है. उसके सुनहले सपने टूट जाते हैं . सुहागरात हो ही उसकी पत्नी भी उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती हैं ,उसकी कुंठा पर एक और सघन आवरण पड़ता है . संयुक्त परिवार में एक मत और दृष्टि का अभाव है . समर तथा प्रभा कि दूरी के लिए बहुत हद तक भाभी जी भी उत्तरदायी हैं . वह प्रभा के विरुद्ध निरंतर समर का कान भरती है . अपने वैवाहिक जीवन को वह संतुलित नहीं कर पाटा है . भाभीजी पुत्री को जन्म देती है . परिवार में मायूसी छा जाती है . अर्थ व्यवस्था चरमरा जाती है . बाबू जी सोचते हैं चलो अच्छा ही हुआ पुत्र के नाम पर भोज तो नहीं देने पड़े . यह मार्मिक बिंदु है पुत्र के जन्म की विषमता और दुर्बल अर्थव्यवस्था को लेकर . 
ठाकुर साहब ने अपनी पुत्री मुन्नी का विवाह मुहल्लेवालों से उलाहना के स्वर से परेशान होकर कम उर्म में ही कर दिया था . इस विवाह में उन्होंने अपनी हालत से अधिक खर्च किया था . वह भी क़र्ज़ लेकर . उस क़र्ज़ को वह आज तक नहीं उतार पाए थे ,आशा थी कि समर के शादी में दहेज़ पाकर उसे चूका देंगे . परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ .ज़र्ज़र अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए ठाकुर का कहना उचित ही है कि समर पढाई - लिखाई छोड़कर नौकरी करे और घर को संभाले .समर की नौकरी लगते ही उनकी आशा बंध गयी . परन्तु एक माह बाद वेतन न पाने के कारण समर ने उसे छोड़ दिया . ऐसी हालत में समर कि कुंठा और प्रबल हो उठती है . उसकी कुंठा उस समय चरम सीमा पर पहुँच जाती है , जब उसकी माँ प्रभा को चूड़ियाँ पहनाने लगती है .यह परिवार के प्रति उसका भयानक किन्तु मौन आक्रोश था .इसी के बाद पिताजी द्वारा मार खाना ,मुन्नी की मौत का समाचार सुनना उसके जीवन को विषम बना देता है और वह अलक्षित अन्धकार में खो जाता है .यहाँ समर का आक्रोश उल्लेखनीय हैं :- 
"देखो ! आर्थिक संकटों से घिरे परिवार में पैदा होकर महान बनने के सपने देखने वाले ,देश के भावी कर्णधारों का ऐसा भयानक अंत होता .... लानत है ऐसे प्रजर्तंत्र पर जहाँ आदमी सिर्फ जानवरों कि तरह हर समय अपना पेट भर सकने कि तरकीबें ही ढूँढता रहता है . "
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर आते है कि उपन्यास कि कथा यथार्थवादी अनुभूति के साथ विकसित होती है और भयानक यथार्थ के बीच उसका अंत होता है . यह कथा सामाजिक यथार्थवाद को पूर्णरूपेण चित्रित करने में पूर्णतः समर्थ है . 

COMMENTS

Leave a Reply: 3
  1. Saara aakash me last me kya hota hai? Samaj nhi aaya uska last part. Koi bata sakta hai?

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    1. Usne last mein decision qap par chhoda jata hai ki use Kya karna chahiye Kya atamhatya Kar Leni chahiye ya musibaton ka wanna karna chahiye

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  2. Aajkal aise upanyaso aur aise sahitya ka akal ho gya...jbki samasya aaj bhi kuch hadd tak wahi hai. Middle class aur lower income class aaj bhi aisi hi structural samasyaon se joojh rhi hai. Aur aaj competition badhne ki wjah se samasya aur jyada gambhir hai...magar in sab samasyaon ko ek jeevant roop de pana aajkal k lekhakon k liye asambhav sa lgta hai. Sach toh yeh hai k..jha hme is technology ne antriksh tk pahucha diya hai, whi hamara yuva varg naukri ki kami se avsaad ki gahraiyon me khota ja rha hai aur badhti hui hui atmhatya ki darein iska saboot hai.

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सारा आकाश का सारांश
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