डाक्टर सबसे जायदा पढा लिखा इंसान होता है, पेसे वाला और जिनमे सबसे जायदा ठसक भरी होती है ! रितिका हमेशा कहती है कि डाक्टर दूसरों के लिये मिशाल बन सकते हैं लेकिन अपने परिवार के लिये शायद कभी नहीं !
डॉक्टर से नफ़रत है मुझे
आज सुब्ह सोकर उठी तो देखा कि मां रो रही हैं, आन्सू गिर रहे थे चुपचाप से, जेसे अपने वजूद की तलाश अब भी हो !
पिता मे कभी तमीज़ नहीं आयी केसे अपनी बीवी और बेटी से बोलना है ! हां बेटा कभी मां बाहिन की भी सुना दे तो कोई फर्क नहीं पडता, आखिर बेटे मे खुद का खून जो है और बेटा अपना है !
जेसा डाक्टर ललित के दादा ने उनकी दादी के साथ किया, पिता ने मां के साथ उसी नक्से कदम पर वो भी थे !
खुद की गलती हो तो भी अपनी बीवी पर चिल्लाना है और दूसरे की हो तो भी ! और किसी तीसरे को कुछ नहीं बोल पाये तो उसकी गुस्सा भी बीवी पर !
ठसक जो भरी है मर्द की, उनको लगता है कि उनकी बीवी उनके पेसो से, अच्छे घर मे रहने की वज्ह से आज तक टिकी हुई है, मरी नहीं !
लेकिन उन्हें क्या पता कि उन जेसे दो कोडी के इन्सानों मे इतनी तमीज़ नहीं है, ना ही औकात है जो एक निश्वार्थ प्रेम को समझ सके ! जो आये दिन अपनी बीवी पर शक करता हो !
अगर बीवी ने उस सच को बोला जिसमे ललित गलत साबित होता है और कोई 20 साल का लड़का सही तो
वो घटिया आदमी उस लड़के के साथ अपनी 48 साल की बीवी का नाम जोड़ देता है ! कि
" खसम है वो तुम्हारा "
इसीलिये तो वो सही है ! शादी के 28 साल बाद भी उस घटिया आदमी को समझ नहीं आया कि ये औरत अपनी है ! इन सालो मे पचासो आदमियो के साथ उसने अपनी बीवी का नाम जोडा !
संस्कार नाम की चीज होती तो पता होता कि तमीज़ क्या होती है ! खुद के पिता के नाम के बारि मे शायद संतुष्ट नहीं हैं, तभी हर औरत को गलत नजरिये से देखते हैं ! क्युकी ललित के पिता को हमेशा अपनी बीवी पर शक था, इसीलिये ललित का खुद पर शक है तो अच्छा ही है !
ये औरतो पर शक करना, पुरानी 3 पीढीयो से चला आ रहा था ! बेचारी पदमा ना मर पा रही थी ना ही जी पा रही थी ! जिन्द्गी नरक से भी बत्तर थी, सच बोलो तो आये दिन नये खसम बन जाते हैं, घर के काम का कुछ बोलो तो चिल्लाना शुरू...
मां बहिन की जो हर बात मे गाली दे, समझ जाओ वो जिसे अपना बाप कहता है, वो उसका बाप है ही नहीं ! बल्कि वो खुद एक गलती है और जिससे उसकी शादी होगी वो उस गलती को जिन्द्गी भर भुकतेगी !
एक गलती पदमा के मां बाप ने करी थी 28 साल पहले, जिसकी सज़ा आज तक पदमा भुगत रही थी !
जयति जैन |
तबियत कभी ठीक नहीं रहती और बच्चे अपनी पढाई की वज्ह से घर से दूर ! लेकिन जब पदमा का दर्द असहनीय हो गया तब उसने अपने बच्चो के सामने अपने पिता की घटिया सोच रखी, क्युकी उसकी सहनशक्ति अब जबाब दे गयि थी ! मरने का खयाल सर्वोपरी था कि सारी झंझटो से छुटकारा मिल जाये ! पर अपनी बेटी की वज्ह से चुप रहती थी, कोई भी ऐसा कदम अब नही उठाया था, क्युकी वो जानती थी कि अगर उसे कुछ हुआ तो उसकी बेटी की जिन्द्गी बर्बाद हो जायेगी, बेटे को तो सम्भाल लेगा ललित ! आज भी बेटा कुछ बोल दे, तो कुछ नहीं बोलेगे उससे ! लेकिन यदि कभी बेटे पर गुस्सा आया तो वो भी पदमा को ही सुन्ने मिलता !
दूसरे लोगो के सामने देवता बना बैठा वो पाखन्डी जो औरत को पैर की जूती समझता है, रात मे बीवी चाहिये बिस्तर पर और दिन में भेडिये से कम नहीं ! पदमा को डर रहता है हमेशा कि कहीं उसका बेटा भी ऐसा ही ना निकले, जो औरतों की इज़ज़त ना करे, यदि उसके बेटे ने ऐसा किया तो वो भूल जायेंगी कि वो उसका बेटा है और उसे गोली मार देगी ! अभी तक वो बस इसीलिये चुप है कि इतने सालो मे जो इज़ज़त बनाई है, वो मिट्टी मे मिल जायेगी ! खुद को मिटाने मे 2 लगेगे लेकिन इज़ज़त की चिंता है बस !
पदमा अकेले मे, सामने रो लेती लेकिन ललित को कोई फर्क नहीं पडा कभी! ना ही वो अच्छा पति है ना ही पिता , हो ही नहीं सकता था जब अच्छा इंसान ही नहीं है !
आज रितिका को डाक्टर पेशे से शख्त नफ़रत है, वज्ह आप जान ही चुके होगे ! क्युकि पुरा परिवार डाक्टरी मे... दादा, पापा, चाचा और सब एक जेसे घटिया ! डाक्टर सबसे जायदा पढा लिखा इंसान होता है, पेसे वाला और जिनमे सबसे जायदा ठसक भरी होती है ! रितिका हमेशा कहती है कि डाक्टर दूसरों के लिये मिशाल बन सकते हैं लेकिन अपने परिवार के लिये शायद कभी नहीं ! डाक्टर मे तमीज़ नहीं होती बोलने की, घमंड होता है, शोषण करते हैं महिलाओ का ! परिवार नही दिखता सिर्फ पेसे दिखते हैं, सिर्फ पेसे !
लेखिका - जयति जैन, रानीपुर झांसी
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