बाहुबली-द कनक्लूज़न सिर्फ इस बारे में नहीं है कि कट्टप्पा ने अमरेन्द्र बाहुबली को क्यों मारा। वो तो एक कसी हुई कहानी का एक छोटा सा हिस्सा है . अगर "द कंक्लूज़न" की कहानी की "द बिगिनिंग" से तुलना करें तो "द कनक्लूज़न" की कहानी ज्यादा दमदार और कसी हुई है।
बाहुबली - द कन्क्लूज़न
बाहुबली- द कन्क्लूज़न |
बाहुबली-द कनक्लूज़न सिर्फ इस बारे में नहीं है कि कट्टप्पा ने अमरेन्द्र बाहुबली को क्यों मारा। वो तो एक कसी हुई कहानी का एक छोटा सा हिस्सा है . अगर "द कंक्लूज़न" की कहानी की "द बिगिनिंग" से तुलना करें तो "द कनक्लूज़न" की कहानी ज्यादा दमदार और कसी हुई है।कहानी इतने बेहतरीन तरीके से गढ़ी गई है कि पूरी मूवी में आपको एक पल के लिए भी पॉपकॉर्न लाने तक का मौका नहीं मिलेगा। आप चाहकर भी अपनी सीट से नहीं उठेंगे।
बात किरदारों की करें तो इस मूवी में एस.एस राजामौली ने महिला किरदारों को सबसे महत्वपूर्ण और मज़बूत दिखाया है।बात चाहे शिवगामी देवी(रम्या कृष्णनन) की करें या देवसेना (अनुष्का शेट्टी) की। इन दोनों ने अभिनय को वो मुकाम दे दिया है कि अब आगे इनके लिए खुद के इस स्तर से मुकाबला मुश्किल होगा. अगर ये कहा जाए कि इस कहानी की असली बाहुबली 'देवसेना' है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
बाहुबली (प्रभास) और भल्लाल्देव (राणा डगुबती) पिछले भाग की तरह इस बार भी अपने-अपने किरदारों में मंझे हुए नजर आए। लेकिन बाहुबली "द कनक्लूज़न" के साथ अगर कोई किरदार अमर होगया तो वो है 'कटप्पा'। "बाहुबली- द बिगिनिंग" में आपने एक ऐसा कटप्पा देखा था जो कुत्ते कि तरह वफादार था। वही कटप्पा आपको "द कनक्लूज़न" में भी नजर आएगा और वो भी खुद को कुत्ता कहकर संबोधित करते हुए लेकिन जब आप कटप्पा के शुरुआती दिनों को देखेंगे तो आपको कटप्पा में हनुमान की भक्ति भी दिखेगी और कृष्ण की लीलाएं भी। इस हनुमान का कृष्ण रूप आपको इनके प्रभु श्री राम और सीता मिलन की घटना के दौरान दिखेगा।
प्रीतम कुमार |
बेहद भव्य सेट पर फिल्माई गई यह कहानी आपको पूरे समय माहिष्मति में होने का एहसास कराती है। फिल्म जहाँ पहले भाग के सस्पेन्स को तोड़ते हुए इस बात का उत्तर देती है कि 'कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा' वहीं राजपरिवारों में रचे जाने वाले षड्यंत्र और साजिशों की एक बानगी भी पेश करती है।
"बाहुबली-द बिगिनिंग" में विज़ुअल इफेक्ट्स इतने औसत दर्जे के थे कि आप अपने मोबाइल कि स्क्रीन पर भी उसकी कमियाँ देख सकते थे लेकिन इस बार लगभग 2.5बिलियन बजट की ये मूवी आपको सिल्वर स्क्रीन पर भी कोई कमी निकालने का मौका नहीं देगी। साथ ही VFX के बेहतरीन इस्तेमाल ने मूवी को और जानदार बना दिया है।
अगर कमियों की बात करें तो मूवी में एक बड़ी कमी जो नजर आती है वो है कुछ टिपिकल साऊथ इंडियन एक्शन सीन्स।लॉजिक लगायेंगे तो पाचक खाकर भी वो सीन्स आप नहीं पचा पाएंगे।लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं बाहुबली एक कम्पलीट फिक्शन फिल्म है तो आप उन 2-3 सीन्स पे माथापच्ची न करें। मूवी में पुराने ज़माने के आर्ट के साथ-साथ उस ज़माने के साइंस का भी बेहतरीन इस्तेमाल दिखाया गया है। सबसे बेहतरीन उदाहरण आप भाल्लाल्देव के रथ में देखेंगे जो जेम्स बांड की गाडियों कि तरह ऑटोमेटेड हथियारों से लैस है। फिल्म का पहला हिस्सा जहाँ काफी रोमांच भरा है वहीं दूसरे हिस्से के अंतिम पल थोड़े से कमजोर नजर आते हैं लेकिन मूवी कि भव्यता के आगे आप इस कमी को नज़रंदाज़ कर सकते हैं।
तमिल से हिंदी में डब होने के बावजूद इसके हिंदी गाने सुरीले लगते हैं खासकर दलेर मेहँदी का गया "साहोरे बाहुबली" और कैलाश खेर का गया हुआ "जय-जयकारा"।फिल्म की कोरियोग्राफी भी बेहद जानदार है। कुल मिलाकर 2घंटे 47मिनट्स कि इस फिल्म को देखकर आप जब बाहर निकलेंगे तो आप अपने टिकट के पैसे वसूल चुके होंगे।
प्रीतम कुमार
छात्र-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
Pritam bhaiya ki jai ho...!!
जवाब देंहटाएंNice article on Bahubali. Really Great Movie ever.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्टमार्टम किया है भाई।बहुत अच्छे
जवाब देंहटाएं