हमने बड़ा नाम सुना था बाहुबली 2 फ़िल्म का। मेरी भी जिज्ञासा थी देखने की। पर करूँ तो क्या करूँ? पेपर जो सिर पर था,जोर तोर से पेपर की तैयारी में लगा था। मैंने तो ट्रेलर भी नही देखा था । बस अपने मित्र मंडली में सुनाई पड़ जाता था कि मूवी बहुत धांसू है।
अंगूर खट्टे है
हमने बड़ा नाम सुना था बाहुबली 2 फ़िल्म का। मेरी भी जिज्ञासा थी देखने की। पर करूँ तो क्या करूँ?
बाहुबली 2 |
पेपर जो सिर पर था,जोर तोर से पेपर की तैयारी में लगा था। मैंने तो ट्रेलर भी नही देखा था । बस अपने मित्र मंडली में सुनाई पड़ जाता था कि मूवी बहुत धांसू है।
पर मेरा क्या ?
मैं तो अपना निर्णय खुद लेता हूं सोच के मन ही मन मे बोला। कौन सा धांसू ,कैसा धांसू? इतनी धांसू मूवी ,की हम लोग देखने से इनकार कर रहे है। मेरा सोचना भी लाजमी था , पेपर था इसलिए मेरे लिए तो अंगूर खट्टे ही थे।
हम लोग उन दिनों पिछले 1 माह से पेपर की तैयारी में लगे थे। धीरे धीरे 25 अप्रैल भी आ गया , जिस दिन पेपर था । हमने पेपर दिया और तीन दिन बाद जब पेपर खत्म हुआ । घर आते ही हम लोग कब और कैसे सो गये कुछ पता ही ना चला। 28 अप्रैल को हम लोग आराम से सुबह 10 बजे सो के उठे, फिर थोड़ी देर सभी एक ही जगह पर बैठ के तफरी काटी और चाय पी ।धीरे धीरे समय बढ़ रहा था। दोपहर होने को था । इतने में अस्वनी बोल उठा ,चलो क्यों न हम लोग भी मूवी देखने चलें। फिर करना क्या था जैसे ही उसने कहा मैं तुरंत मोबाइल से book my show पर गया और लखनऊ के जितने पिक्चर हाल जनता था सारे पिक्चर हाल में टिकट देखा । पर सब के सब हॉउसफुल ।
मैं थोड़ा सा उदास हुआ । पर ये उदासी बस 5 मिनट के लिए थी। क्योंकि मैंने पहले से ही सोच रखा था अंगूर खट्टे है।
तभी अचानक एक मित्र बोल उठा -" एस आर एस मॉल में देखो"। मैंने नीरस मन से उसमे भी देख लिया, पर देखते ही मुझे अपनी आँखों पर भरोसा ही नही हो रहा था। कि आखिर इसमे सीटें खाली कैसे रह गई। मुझे कुछ ज्यादा सोचने का मौका भी नही मिला। अस्वनी बोल उठा -"जल्दी से बुक करो वरना अभी ये भी बुक हो जाएंगी"।
अभिनव कुमार त्रिपाठी |
मैंने ना आव देखा न ताव तुरंत बिना लेट लतीफ किये 3 टिकट बुक कर दी।
सवा तीन बजे का शो था। हम लोग तीन बजकर दस मिनट पर ही पहुँच गए। फिर अपना टिकट दिखाया पिक्चर हॉल मे पहुच गए ।अन्ततोगत्वा हम लोग अपने आप को भाग्यशाली मान रहे थे।
कुछ ही समय मे पिक्चर शुरू हो गई और पर्दे पर मूवी का नाम बड़े ही स्टाइलिस्ट ढंग से लिख कर आया । नाम इतने स्टाइलिस्ट ढंग से लिखा था कि मैं पढ़ ही नही पाया।
फिर राष्ट्रगान शुरू हुआ । हम लोगो ने खड़े होकर राष्ट्रगान का सम्मान किया । मूवी शुरू देख कर हम लोग बहुत खुश थे।
10 मिनट बीत गए कुछ समझ मे नही आया।
15 मिनट, 20 मिनट , धीरे धीरे ऐसे समय बीतता गया।
मूवी का दृश्य तो बहुत धांसू था पर बोल क्या रहा था कुछ समझ मे नही आ रहा था।
मेरे आगे पीछे के बहुत सारे लोग जोर जोर से ठहाके लगा के हँस रहे थे। पर मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था ।थोड़ी देर तक मैं यही सोचता रहा कि साउथ इंडियन मूवी है शायद इसलिए कुछ देर वहाँ की स्थानीय भाषा मे दिखा रहे है। पर समय बीतता गया। और धीरे धीरे इंटरवल हो गया।
मैं बाहर निकला और मैनेजर रूम की तरफ बढ़ा। मैने मैनेजर से थोड़ा ताव में आके पूछा - आपके यहाँ मूवी में कुछ समझ में क्यों नही आ रहा ? हिंदी में ये मूवी नही है क्या?
मैनेजर ने बड़े शिष्ट ढंग से- सर टिकट दिखाइए प्लीज।
मैने उसी अंदाज में टिकट निकाल कर मैनेजर के हाथ मे थमा दिया।
मैनेजर बोला- सर आपने तो तेलगू शो बुक किया है। इसलिए आपकी मूवी तेलगु में चल रही।
मैं तुरंत हाल की तरफ बढ़ा।
मैंने हाल में बैठे एक लड़के से पूछा- भाई आपने भी तेलगू
शो बुक किया है क्या? इतने में उसने पता नही किस भाषा का प्रयोग करके क्या बोला , मुझे समझ नही आया। पर इतना समझ मे आ गया कि उसने तेलगू शो ही बुक किया होगा।
फिर से मूवी चली और हम लोगोे ने पूरा ध्यान मूवी की दृश्य पर है केंद्रित किया। आखिर समझना जो था कि कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा।
बहुत ही रोचक ढंग से मूवी देखने का प्रयास कर रहा था। उसके बाद मूवी समाप्त हुई ।हम लोग बाहर आ गए।
पूरी मूवी में हमे कुछ समझ मे भले ही न आया पर हमारे समझ मे इतना तो आ ही गया था कि अंगूर खट्टे थे।।
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Written by- अभिनव कुमार त्रिपाठी
( बी.पी.एड., बी.टी.सी.)
ek tarah se adventures movie dekhli aapne to :)
जवाब देंहटाएंjindagi bhar yeh movie yad rhegi.... khair aise experience life me khushi bhar hi dete hai...puri life sochkar sochkar mood achha hota rhega
hahaaaa,,,
हटाएंसच मे सोच सोच के खुद मजे ले लेते है
बहुत ही मजेदार experience रहा आपका, बाहुबली ये फ़िल्म आपको हमेशा याद रहेंगी.
जवाब देंहटाएंExperience......
हटाएंHahaana.
Shi kha aapne....
Majedar experience .....😆