आग लगने की वजह वहाँ पर लगा ट्रांसफॉर्मर था। कुछ लोग कह रहे थे कि दिन में 3 बार यह ट्रांसफॉर्मर जला था पर पावर हाउस पर फ़ोन करने के बाद कोई न कोई कर्मचारी आके आग बुझा देता और फिर से लाइट लाइन चालू हो जाती थी। ऐसा दिन में 3 बार हो चुका था ।
अपराधी कौन
रात का समय था । चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। गोलो की तेज आवाज से अचानक मेरे नींद टूटी तो मैंने
अपना हाथ मोबाइल की तरफ बढ़ाया। मैंने मोबाइल में देखा तो उस समय 2 बज के 10 मिनट हो रहे थे।
अप्रैल के महीना था। उन दिनों शादी विवाह कुछ ज्यादा ही हो रहे थे। गोलो की आवाज तो स्वाभाविक थी , पर इस समय , इतनी रात को गोलो की आवाज।
मैने एक तकिया अपने सिर के नीचे तो दूसरी से मुँह पर रखके दोनो कान को ढकने का प्रयास किया। पर गोलो की आवाज के साथ साथ जोर का शोर भी होने लगा। मैं उठ के बैठ गया । एक मिनट बाद मुझे प्रतीत हुआ कि यह शादी विवाह का शोर नही है। मैं तुरन्त छत पर गया । छत पर पहुचते ही मुझे दिखा की बगल की झुग्गियों में आग लगी है। झुग्गियों में लगे बांस जोर की आवाज के साथ फट रहे थे।
मैं तुरन्त नीचे उतरा और बाहर उस स्थान पर गया जहाँ आग लगी थी। आग फैलती जा रही थी। देखते ही देखते वहाँ की पांचो झुग्गियां आग के हवाले हो गई।
आग लगने की वजह वहाँ पर लगा ट्रांसफॉर्मर था। कुछ लोग कह रहे थे कि दिन में 3 बार यह ट्रांसफॉर्मर जला था पर पावर हाउस पर फ़ोन करने के बाद कोई न कोई कर्मचारी आके आग बुझा देता और फिर से लाइट लाइन चालू हो जाती थी। ऐसा दिन में 3 बार हो चुका था ।
अभिनव कुमार त्रिपाठी |
इधर अभी दमकल के सरकारी कर्मचारी फ़ोन करने के बावजूद भी नही पहुच पाए ,दूसरी तरफ प्राइबेट मीडिया वाले बिना किसी फ़ोन के किये अपना टनडीला लेके आये और लगी आग का लाइव कवरेज दिखाने लगे।
सब कुछ जल जाने के तक़रीबन बीस मिनट बाद दमकल कर्मचारी पहुँचे और जल चुकी झुग्गियों पर पानी डाला।
अगले दिन सुबह हुआ । आस पास के नेता लोग अपनी वाह वाही के लिए पहुचने लगे। दोपहर में एक नेता जी आये और जले मकान में उनके परिवार वालो के साथ खड़े होके फ़ोटो खिंचवाया और चले गए। नेता नगरी के बहुत से नेता आये और लगभग सबने यही फ़ोटो खीचने खिंचवाने का काम किया। शायद सबको अपनी समाज सेवा की फ़ोटो फेसबुक ,व्हाट्सएप्प और ट्वीटर पर शेयर करने की पड़ी थी।
कहने को तो था कि नेता जी आये । पर उनको अपने जनता की तनिक भी चिंता न थी । किसी की कोई मदद नही। बोलने को तो बोले कि सरकार से अच्छा मुआवजा देने की मांग करूँगा। पर उनकी तुरंत की कोई जरूरत पूरी न की। आये और सबके साथ खड़े होके फोटो लेके चले गए।
हद तो तब हो गई जब एक नेता जी मीडिया को साथ लेके पहुचे और जनता के साथ बात करने की लाइव कवरेज दिखा रहे थे और जनता के दुःख में शामिल होने को कह के दिखावटी आंशू भी बहा दिए। उन्होंने भी जनता को आश्वाशन दिया और मीडिया के साथ चलते बने।
एक तरफ झुग्गी वालो को खाने के लाले पड़े थे तो दूसरी तरफ नेता जी को अपने सोशल साइट्स पर समाज सेवा के फोटो अपलोड करने की पड़ी थी। सवाल तो ये था की गरीब परिवार को सुबह की रोटी कहाँ से मिले।
आखिर इस बदहाल और खस्ता व्यवस्था का जिम्मेदार कौन है? इस प्रकार की मूलभूत आवश्यकता की बदहाल व्यवस्था किसकी लापरवाही (गलती) से उपज रही है?
विधुत विभाग , फायर ब्रिगेड या सबकी सहायता करने की ढोंग करने वाले नेता जी की?
कही ऐसा तो नही की इस बदहाल व्यवस्था का अपराधी पूरा सरकारी विभाग है ।।
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Written by- अभिनव कुमार त्रिपाठी
(बी.पी.एड., बी.टी.सी.)
इन सब के जिम्मेदार नेता लोग और सरकारी कर्मचारी होते है ।
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