ये अचानक मुझे क्या हुआ बहुत धोखा हो गया,ऐसी तो हालत कभी न थी सब कुछ तो है कमी क्या है मुझे, सब है बीवी,बच्चे इतना सुखी छोटा सा परिवार जिसे अपर्णा ने इतने प्यार से दुलार से अपनेपन से सहेज के रखा है
बीए पास
ये अचानक मुझे क्या हुआ बहुत धोखा हो गया,ऐसी तो हालत कभी न थी सब कुछ तो है कमी क्या है मुझे, सब है बीवी,बच्चे इतना सुखी छोटा सा परिवार जिसे अपर्णा ने इतने प्यार से दुलार से अपनेपन से सहेज के रखा है बिल्कुल उसी तरह जैसे तिनको- तिनको से सवारती है चिड़िया अपने घोसले को।फिर उसी घोसले को छोड़ उड़ जाती है मगर अपर्णा मेरी हर गलती को भुला देती है और फिर जुट जाती है सवारने में अपना घोंसला।
घड़ी की सुईया भी इतनी पाबंद नही होंगी जितनी कि अपर्णा बिना बैटरी के घड़िया बंद हो सकती है मगर अपर्णा बीमार हो तो भी नही रुकती चलती रहती है लगातार। फिर मुझे ऐसा क्यों हो रहा है।
मैं अनायास ही लौटता जा रहा हूँ उस बीते हुए कल में। कुछ भूले कितनी भारी कितनी असहनीय हो जाती है। ये तो मैंने अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मार ली है।
नही! नही! कुछ भी हो इस द्वंद से तो बाहर आना ही होगा। मैं अपनी गलती की सजा किसी और को नही दे सकता। अब मेरी शादी हो चुकी है।यही सोचते सोचते सलिल पुरानी यादों में खो गया जब उसने पहली बार अपर्णा को देखा था।
गाँव की एक शादी में इतनी लड़कियों के बाद भी उसकी निगाह अपर्णा पे टिक गई।अपर्णा थी ही इतनी खूबसूरत।फिर क्या था जुगत शुरू हुई नंबर लेने की। आजकल के समय मे नंबर मिलना मुश्किल भी कहा है। नंबर मिलते ही बातो का सिलसिला ऐसा चला कि फिर शादी पे आकर ही रुका। तब तो दिन रात बाते होती मगर अब तो अपर्णा घर और बच्चों में इतना उलझ गई है कि उसके पास अपने लिए भी फुरसत नही है।
सर् बॉस ने ये फ़ाइल भेजी है, किसी की आवाज आयी।
सलिल चौककर हाँ रख दो टेबल पे।
उफ्फ! आज तो बहुत देर हो गयी लंच टाइम कब बित गया पता नही चला। कुछ खा कर आता हूँ।
कैंटीन जाते वक्त सलिल की नजर अनायास ही शोभा के कैबिन की तरफ चली गयी। शोभा कुछ उलझी थी उसके भाव बात रहे थे कि वो कुछ परेशान है। मगर सलिल ने अपने काम से काम रखना बेहतर समझा और कैंटीन की तरफ मुड़ गया।
श्रद्धा मिश्रा |
अभी तो तीन ही महीने बीते थे शोभा को आये मगर आधा ऑफिस उसी पे डिपेंड हो गया है। कोई काम किसी का भी अटका तो मिस शोभा व्हाट शुड आई डु? मैं भी सोच में हु की ऐसा क्या है शोभा में, जब मैंने इसे फोटो में देखते ही शादी के लिए मना कर दिया था तब तो मुझे इसमें ऐसी कोई बात नजर नही आई। इसने तो शायद मुझे जाना भी न हो। जानेगी भी कैसे बुझे बुझे से इसके पिता जी गावँ भर में लड़के ही तो ढूंढते थे इसे क्या पता कि बेचारी को किसने मना किया। शायद शोभा नही उसके पिता ही उसकी शादी न होने का कारण थे क्योंकि वो जिस तरह की लाचारगी दिखाते लगता कि कोई बेटी नही किसी ऐसे समान को बेचना चाह रहे हो जो उनके घर में फालतू में पड़ा हो।
तभी तो पिता जी ने इनको लताड़ा था, मैने भी क्या क्या नही बोला था। हमे पढ़ी लिखी लड़की चाहिए, आपकी लड़की बीए पास भी नही।पढ़ा नही सकते पाल नही सकते तो बेटियां पैदा ही क्यो करते हो। और जाने क्या अनाप सनाप पिता जी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि आपकी लड़की बोझ है बोझ ही रहेगी जीवन भर। कभी कभी तो लगता है कि लड़के लड़कियों का ये फर्क हम जैसो की वजह से कभी कम नही होता।
आज पूरे एक साल बीत गए इस बीच सलिल और शोभा कई बार आमने सामने आए। कुछ इम्पोर्टेन्ट डिसकशन भी हुए मगर कभी घर परिवार की बाते नही हुई। हालांकि सलिल ये जानने को हमेशा उत्सुक रहता कि क्या हुआ उसके साथ कैसे वो यहाँ तक पहुँची।
आज सुबह से ही ऑफिस में रोज से ज्यादा चहल पहल थी हर कोई आता ऑफिस, कैबिन में बैग रखता और तुरंत पहुँच जाता शोभा के कैबिन में। मैंने भी एक से पूछ लिया क्या बात है भाई आज कुछ खाश है क्या तो उसने कहा आपको नही पता चला , मिस शोभा का प्रमोशन हो गया है।
मेरी तो स्थित ऐसी की काटो तो खून नही। पांच सालों में मैं वही का वही और यहाँ एक साल में ही ये प्रमोशन। हालांकि सलिल मन ही मन जानता था कि इस डूबते ऑफिस को संभालने में शोभा ने बहुत मेहनत की है। मगर फिर भी पुरुष का अहम है आखिर ऐसे कैसे स्वीकार कर ले।
प्रमोशन पार्टी में ऑफिस में अपनी वाइफ और बच्चो के साथ सलिल मिस शोभा को बधाई देने गए। और अपनी फैमली से मिलाने लगे।
बच्चो को खूब प्यार करने के बाद तब मिस शोभा ने सलिल जी की तरफ देख कर कहा कि आपकी बेटी बहुत प्यारी है इसे बोझ मत बनने दीजियेगा। बीए से आगे पढियेगा। उनकी इतनी बात सुनते ही मैं आवक रह गया। इन्हें तो सब पता...
उसके बाद ऑफिस के अन्य लोग उन्हें बधाई देने आ गए।
रचनाकार परिचय
श्रद्धा मिश्रा
शिक्षा-जे०आर०एफ(हिंदी साहित्य)
वर्तमान-डिग्री कॉलेज में कार्यरत
पता-शान्तिपुरम,फाफामऊ, इलाहाबाद
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