बड़े घर की बेटी का चरित्र चित्रण बड़े घर की बेटी saransh बड़े घर की बेटी का उद्देश्य बड़े घर की बेटी कहानी का उद्देश्य bade ghar ki beti summary in hindi प्रेमचंद की कहानी बड़े घर की बेटी का सारांश बड़े घर की बेटी मुंशी प्रेमचंद bade ghar ki beti kahani ka saransh in hindi bade ghar ki beti saransh in hindi bade ghar ki beti ka saransh in hindi bade ghar ki beti ka uddeshya premchand bade ghar ki beti wiki
बड़े घर की बेटी प्रेमचंद की कहानी
बड़े घर की बेटी हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना है। यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि समाज के कई महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाती है। प्रेमचंद की सरल भाषा और चरित्र चित्रण इस कहानी को और भी प्रभावशाली बनाते हैं।बड़े घर की बेटी एक ऐसी कहानी है जो सामाजिक रूढ़ियों, पारिवारिक कलह और महिलाओं के सशक्तिकरण पर प्रकाश डालती है। यह दर्शाता है कि कैसे दयालुता और धैर्य किसी भी कठिनाई से पार पाने में मदद कर सकते हैं।
बड़े घर की बेटी कहानी का सारांश
बड़े घर की बेटी मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कहानी है । इस कहानी में उन्होंने संयुक्त परिवार में उत्पन्न होने वाली समस्याओं , कलहों ,बात का बतंगड़ बन जाने और फिर आपसी समझदारी से बिगड़ती परिस्थिति को सामान्य करने का हुनर को दर्शाया है। बड़े घर की बेटी में कहानीकार ने पारिवारिक मनोविज्ञान को बड़ी ही सूक्ष्मता से दिखाया गया ।
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े सम्पन्न थे लेकिन अब स्थिति बदल चुकी थी। ठाकुर साहब अपनी आधी से ज्यादा सम्पत्ति वकीलों को दे चुके थे। बेनीमाधव सिंह के दो बेटे थे बड़ा बेटा श्रीकंठ बी. ए. पास कर एक दफ्तर में नौकरी कर रहा था वहीं छोटा बेटा लाल बिहारी दोहरे बदन का सजीला जवान था। उसका चेहरा भरा हुआ और चौड़ी छाती थे लेकिन स्वभाव में श्रीकंठ के बिल्कुल विपरीत था ।
श्रीकंठ अंग्रेजी डिग्री प्राप्त करने के बावजूद अपनी प्राचीन सभ्यता के प्रशंसक थे तथा संयुक्त परिवार के उपासक थे। वे दशहरे पर रामलीला में अभिनय भी करते थे। एक छोटी सी रियासत के ताल्लुकेदार भूपसिंह की चौथी लड़की आनन्दी जो बहुत सुन्दर व गुणी थी, से श्रीकंठ का विवाह हुआ। श्रीकंठ का घर एक सीधा-सादा देहाती का मकान था। आनन्दी सुख-सुविधाओं में पली बढ़ी थी लेकिन उसने कुछ ही दिनों में स्वयं को परिस्थितियों में ढाल लिया।
एक दिन दोपहर के समय आनन्दी भोजन बना के चुकी तभी लाल बिहारी ने उससे दो चिड़िया पकाने के लिए कहा। घर में जो पावभर घी था आनन्दी ने वह मांस में डाल दिया। जब लाल बिहारी ने बिना घी की दाल देखी तो इसी बात पर आनन्दी से उसकी कहासुनी हो गयी। लाल बिहारी ने आनन्दी के मैके पर ताना मारा तो आनन्दी आपे से बाहर हो गयी। इस पर अनपढ़, उजड्ड लाल बिहारी ने खड़ाऊँ फेंककर आनन्दी पर मारी। आनन्दी ने हाथ से खड़ाऊँ रोक ली अन्यथा उसका सिर ही फट जाता। श्रीकंठ शहर में नौकरी करता था और शनिवार को घर आता था इसलिए आनन्दी उस समय खून का घूँट पीकर रह गयी व श्रीकंठ के आने का इंतजार करने लगी। श्रीकंठ के आने में दो दिन थे। इस बीच आनन्दी बिना खाये-पिये कोपभवन में ही रही।
शनिवार की शाम जब श्रीकंठ घर आए तो गाँव वालों से इधर-उधर की बातें करते-करते रात के दस बज गए। एकांत मिलने पर लाल बिहारी ने आनन्दी की शिकायत करते हुए कहा कि भैया आप भाभी को समझा दें कि वे मुँह सँभालकर बोला करें। अपने मायके के सामने हमें कुछ नहीं समझतीं। बेनीमाधव ने भी लाल बिहारी की बात का समर्थन किया।
श्रीकंठ ने आनन्दी के पास पहुँचने पर पूछा कि तुमने घर में उपद्रव क्यों मचा रखा है। तब आनन्दी ने श्रीकंठ को सारी घटना कह सुनायी और बताया कि लाल बिहारी के प्रहार करने पर उसका सिर फूटते-फूटते बचा। यह कहकर आनन्दी रोने लगी । यद्यपि श्रीकंठ धैर्यवान व शांत स्वभाव के थे। लेकिन पत्नी के आँसू व लालबिहारी के पशुवत व्यवहार से उसका क्रोध भड़क गया। वे स्त्रियों की मान प्रतिष्ठा को बनाए रखने के पक्षधर थे। अतः अपनी ही स्त्री पर अत्याचार को बर्दाश्त करना असहनीय हो जाने पर प्रातः होते ही पिता से कह दिया कि अब इस घर में मेरा रहना सम्भव नहीं है।
बेनीमाधव ने श्रीकंठ को समझाने की कोशिश की लेकिन वे लाल बिहारी की गलती मानने को तैयार नहीं थे। दोनों में तीखी बहस होने लगी। ठाकुर साहब को भी क्रोध आ गया। इसी बीच गाँव के कुछ ऐसे लोग जो इस कुल की नीतिपूर्ण गति से जलते थे ठाकुर के परिवार का तमाशा देखने किसी न किसी बहाने से वहाँ एकत्र होने लगे। बेनीमाधव उनका इरादा भाँप गए इसलिए उन्होंने बात पलटने की कोशिश की। लेकिन अनुभवहीन श्रीकंठ पिता का आशय न समझ सके और आवेश में आकर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि या तो लाल बिहारी घर में रहेगा या वह ।
लाल बिहारी पिता से अधिक बड़े भाई का लिहाज करते थे। दोनों भाइयों में अत्यधिक स्नेह था। आज भाई के मुँह से ऐसी बातें सुन उसे बड़ी ग्लानि हुई। उसे पछतावा भी हो रहा था वह फूट-फूटकर रोने लगा। आनन्दी से क्षमा माँग कर घर छोड़कर जाने की बात कहते-कहते रोने लगा।
आनन्दी का क्रोध शांत हो गया उसने लाल बिहारी को अपनी सौगंध दे उसे जाने से रोका व श्रीकंठ से भी उसे क्षमा करने को कहा अंत में श्रीकंठ का हृदय भी पसीज गया और उसने लाल बिहारी को क्षमा करते हुए गले लगा लिया। बेनी माधव भी यह सब देख प्रसन्न हो गए और सब आनन्दी की प्रशंसा करते हुए कहने लगे-"बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं।"
बड़े घर की बेटी शीर्षक की सार्थकता
बड़े घर की बेटी कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक है । कहानी के केंद्र में आनंदी की प्रमुझ भूमिका है । आनंदी भूपसिंह की बेटी है . देखें में सबसे सुन्दर और गुणवान बेटी उसके पिता उसे बहुत प्यार करते है . वह बचपन से ही धन्य -धान्य से परिपूर्ण माहौल में रही है ,लेकिन विवाह के बाद श्रीकांत के घर आने पर वह अलग वातावरण पाती है ,लेकिन उसने बड़ी समझदारी से ससुराल के सभी अभावों से समझौता कर लेती है । कुछ दिनों में उसने स्वयं को इस वातावरण में ऐसे ढाल लिया की जैसे वह बहुत दिनों से यहाँ रहती आ रही हो । आनंदी अपने परिवार को टूटने से रोकती है तथा अपने देवर को क्षमा कर देती है । उसे घर छोड़ कर जाने से रोक लेती है ,उसके सद्व्यवहार के कारण परिवार का वातावरण सामान्य हो जाता है ।
कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक है। कहानी के केंद्र में आनंदी की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आनंदी एक रियासत के ताल्लुकेदार की बेटी है जिसका घर धन-धान्य, सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण था। जब आनंदी अपने ससुराल आती है तो वहाँ की अभावपूर्ण स्थितियों से समझौता कर लेती है। ससुराल में आनंदी ने थोड़े ही दिनों में स्वयं को इस नई अवस्था के अनुकूल ऐसा बना लिया मानो उसने विलास के सामान कभी देखे ही न थे। यही उसका बड़प्पन था। इतना ही नहीं, आनंदी पति के परिवार को टूटने से रोक लेती है। आनंदी अपने देवर लालबिहारी सिंह को क्षमा कर देती है और उसे घर छोड़कर जाने से रोक लेती है। भारतीय समाज में बहू के व्यवहार व संस्कार को मायके से जोड़ कर देखा जाता है। आनंदी के इसी व्यावहारिक गुणों से प्रसन्न होकर बेनीमाधव सिंह बोल उठे कि बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं, बड़े घर की बेटियाँ बिगड़ते हुए काम को बना लेती हैं। यहाँ आनंदी की उदारता व बड़प्पन को पूरे गाँव में सराहा गया। आनंदी में व्याप्त महान गुण इस कहानी के शीर्षक 'बड़े घर की बेटी' को सार्थकता प्रदान करता है।
अतः कहा जा सकता है आनंदी सही अर्थों में बड़े घर की बेटी है ,जिसने घर -परिवार के साथ आपसी रिश्तों को भी टूटने से बचा लिया . गाँव में जिसने भी सुना वही कहने लगा बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती है । इसी प्रकार हम कह सकते है की बड़े घर की बेटी कहानी का शीर्षक सार्थक व उचित है ।
बड़े घर की बेटी कहानी का उद्देश्य
बड़े घर की बेटी कहानी में मुंशी प्रेमचंद जी ने पारिवारिक रिश्तों और संबंधों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। हमें अपनी सूझ-बूझ व समझदारी से रिश्तों को टूटने से बचाना चाहिए। शांति व सौहार्द को महत्त्व देते हुए पारिवारिक रिश्तों को टूटने से बचाना चाहिए। इस कहानी में 'आनंदी' की उदारता व क्षमा के कारण श्रीकंठ एवं लालबिहारी सिंह का संबंध बिखरने से बच जाता है। हमें समाज के उन लोगों से सावधान रहना चाहिए जो आपसी संबंधों में भेद-भाव बढ़ाना चाहते हैं। इसी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए श्रीकंठ के पिता बेनीमाधव सिंह अपने बेटे 'श्रीकंठ' की बातों को शांतिपूर्वक सुनते हैं और उसका हल निकालने का प्रयास करते हैं। इस कहानी में 'परोपकार' एवं 'विनम्र स्वभाव' का परिचय देते हुए श्रीकंठ गाँव के अन्य परिवारों को भी कलह से बचाता है, उन्हें जोड़ने का प्रयास करता है। सद्व्यवहार मनुष्य को सम्मान के शिखर पर पहुँचा देता है। 'आनंदी' के व्यवहार से प्रसन्न होकर सारा गाँव उसकी प्रशंसा करता है।
आनंदी का चरित्र चित्रण
मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित बड़े घर की बेटी प्रसिद्ध कहानी है . आनंदी इस कहानी में मुख्य पात्र बन कर उभरती है . वह एक उच्च तथा समृद्ध परिवार गुणवती व रूपवती कन्या है . उसका विवाह एक सामान्य परिवार के पुरुष श्रीकंठ से हो जाती है .अपनी समझदारी से वह सुख - साधनों को भुलाकर वह परिवार में सामंजस्य बिठा लेती है । आनंदी के चरित्र मे निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं -
- समझदार- आनंदी एक समझदार स्त्री है। वह अपनी सूझबूझ और समझदारी के द्वारा बेनीमाधव के घर को टूटने से बचा लेती है। उसकी समझदारी पर प्रसन्न होते हुए बेनीमाधव बोल उठे कि "बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती है। आनंदी की समझदारी की प्रशंसा सारा गाँव कर रहा था।'
- व्यावहारिक- आनंदी पत्नी, बेटी और बहू के रूप में एक व्यावहारिक स्त्री है। ससुराल आकर उसने खुद को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लिया। लेखक ने भी लिखा है कि "उसने खुद को ऐसा अनुकूल बना लिया, मानो उसने विलास के सामान कभी देखे ही न थे। "
- स्वाभिमानी - वह स्वभाव से अत्यन्त स्वाभिमानी थी। वह अपने मायके की निंदा सह नहीं पाती है। अपने देवर को उत्तर देते हुए कहती है हाथी मरा भी तो नौ लाख का। वहाँ इतना घी नित्य नाई कहार खा जाते हैं।"
- कर्त्तव्यपरायण- एक ज़िम्मेदार बहू की तरह आनंदी ने अपने घर के कामकाज को भी संभाल रखा था। अपने घर के सभी लोगों का वह बहुत ख्याल रखती थी। कलह होने के बाद भी वह घर छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।
- उदार एवं क्षमाशील- आनंदी उदार एवं क्षमाशील थी। आनंदी ने लाल बिहारी की शिकायत तो की थी, लेकिन अब मन में पछता रही थी। वह स्वभाव से ही दयावती थी। देवर के माफ़ी माँगते ही उसका क्रोध पानी पानी हो गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
इस प्रकार आनंदी बड़े घर की बेटी की तरह हर जगह प्रशंसा की पात्र है ।
बड़े घर की बेटी में श्रीकंठ का चरित्र चित्रण
श्रीकंठ सिंह बड़े घर की बेटी कहानी का प्रमुख पात्र है। वह बेनीमाधव सिंह का बड़ा पुत्र है। वह एक परिश्रमी युवक है। उसने बी०ए० तक की शिक्षा प्राप्त की है। यद्यपि वह एक पढ़ा-लिखा युवक है परन्तु अंग्रेजी शिक्षा का विरोधी है। वह धार्मिक प्रवृत्ति का युवक है जो हिंदू सभ्यता का पक्षधर है। श्रीकंठ सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है-
- शिक्षित युवक- श्रीकंठ पढ़े-लिखे युवकों का प्रतिनिधित्व करता है। बी०ए० पास होने के कारण श्रीकंठ में अहं का भाव भी है। वह अपने पिता से कहता है- "मैं मूर्ख नहीं हूँ। पढते-पढ़ते श्रीकंठ निर्बल हो गया था। उसका चेहरा कांतिहीन हो गया था।"
- सरल व स्पष्टवादी- श्रीकंठ स्पष्टवादी युवक था। उसके मन में कोई छल-कपट नहीं था और वह दूसरों की कपट भावना से अनभिज्ञ था। लेखक ने कहा है- “इन हथकंडों की उसे क्या खबर?"
- धार्मिक- श्रीकंठ धार्मिक स्वभाव का युवक था। वह प्रत्येक वर्ष 'रामलीला' में किसी न किसी पात्र का अभिनय करता है। वह हिंदू सभ्यता का पक्षधर है। हिंदू परिवारों के संयुक्त रूप को स्वीकार करता है। वह अपने पिता से कहता है कि “आप स्वयं जानते हैं कि मेरे समझाने बुझाने से इसी गाँव में कई घर सँभल गए। "
- सिद्धांतवादी- वह एक स्वाभिमानी युवक है जो हर परिस्थिति में अपने सिद्धांतों की रक्षा करता है। स्त्रियों पर अत्याचार का विरोध करते हुए श्रीकंठ अपने सिद्धांतों को प्रकट करने में झिझकता नहीं है। अपने भाई के अत्याचार का विरोध करते हुए अपने पिता से वह कहता है कि “लाल बिहारी को मैं अपना भाई नहीं समझता।
- कर्त्तव्यनिष्ठ- श्रीकंठ एक कर्त्तव्यनिष्ठ युवक है। वह अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य का निर्वाह करता है। वह अपनी नौकरी के प्रति सदा सजग रहता है और इसी कर्त्तव्यपरायणता के कारण वह घर से दूर भी रहता है।
इस प्रकार उसके त्याग की भावना का भी परिचय मिलता है।
बड़े घर की बेटी कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. बेनीमाधव कौन थे ? उनके कितने पुत्र थे ?
उ. बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार थे ।पहले उनकी आर्थिक इस्थिति अच्छी थी .लेकिन समय के साथ उनकी हालत डावांडोल होती गयी । उनके दो पुत्र थे । बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह तथा छोटे का नाम लाल बिहारी .श्रीकंठ बी.ए. पास थे व दुबला पतले थे जबकि लालबिहारी दोहरे बदन के गठीले नौजवान थे ।
प्र. गाँव की ललनाएँ श्री कंठ सिंह की निंदक क्यों थी ?
उ . गाँव की ललनाएँ श्री कंठ सिंह की निंदक थीं क्योंकि वह सम्मिलित कुटुंब के एकमात्र उपासक थे । आजकल स्त्रियों को कुटुंब में मिलजुल कर रहने की जो अरुचि होती हैं ,उसे वह जाति और देश दोनों के लिए हानिकारक समझते थे । इसीलिए गाँव की ललनाएँ श्री कंठ सिंह की निंदक थी।
प्रश्न. श्रीकंठ व उसके भाई में क्या अन्तर था ?
उत्तर- श्रीकंठ एक पढ़ा-लिखा शांत स्वभाव का शरीर से निर्बल व चेहरे से कांतिहीन था जबकि उसका छोटा भाई अनपढ़, क्रोधी, दोहरे बदन का सजीला जवान था। इस तरह दोनों की दशा एक-दूसरे से विपरीत थी ।
प्रश्न. भूपसिंह कौन थे? उनका स्वभाव कैसा था ? भूपसिंह किसे सबसे अधिक स्नेह करते थे और क्यों?
उत्तर- भूपसिंह एक छोटी सी रियासत के ताल्लुकेदार व आनन्दी के पिता थे। उनके यहाँ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ थी। भूपसिंह उदारचित्त वाले प्रतिभाशाली पुरुष थे। भूप अपनी चौथी लड़की आनन्दी को सबसे अधिक स्नेह करते थे क्योंकि आनन्दी अपनी सब बहनों से अधिक रूपवती और गुणवती थी तथा सुन्दर सन्तान को अक्सर उसके माता-पिता भी अधिक प्यार करते हैं।
प्र. ठाकुर साहब ने अपनी बेटी का विवाह श्रीकंठ से करने का निश्चय कब तथा क्यों किया ?
उ. एक दिन श्रीकंठ सिंह ठाकुर साहब के पास चंदे का रुपया माँगने आये . भूपसिंह उनके स्वभाव पर रीझ गए और उन्होंने धूमधाम से श्रीकंठ के साथ आनन्दी का विवाह कर दिया .
प्र. लालबिहारी को आनन्दी की कौन सी बात बुरी लगी ?
उ . लालबिहारी ठाकुर बेनीमाधव सिंह का छोटा बेटा था . दाल में घी न डालने का कारण पूछने पर उसकी भाभी आनन्दी ने उत्तर दिया - "आज तो कुछ पाव पर घी रहा होगा . वह सब मैंने माँस में दाल दिया ."लालबिहारी को भाभी की यह बात बहुत बुरी लगी .
प्र. आनंदी के विचार के अनुसार जीवन जीने का उत्तम तरीका क्या है ?
उ. आनंदी के अनुसार जीवन जीने का सर्वोत्तम तरीका यही है कि आये दिन की कलह से बचना चाहिए तथा इस प्रकार जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा यही उत्तम है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाय .
प्र. आनंदी के मायके और ससुराल में क्या अंतर था ?
उ. आनंदी के मायके और ससुरल में बहुत अंतर था .उसके मायके में धन - धान्य की कोई कमी नहीं थी ,हाथी थे ,घोड़े थे परन्तु ससुराल में कोई साधन नहीं था . मायके में बड़े मकान ,नौकर चाकर थे ,लेकिन ससुराल में इसके उलट था .यहाँ बड़ा सीधा सादा जीवन था .लेकिन आनंदी ने बड़ी ही समझदारी और धैर्य से खुद को नए वातावरण में ढाल लिया ।
प्रश्न . श्रीकंठ की आँखें लाल क्यों हो गयीं?
उत्तर- लालबिहारी के द्वारा आनन्दी पर खड़ाऊँ से प्रहार की बात सुन श्रीकंठ की आँखें लाल हो गयीं। जरा सी बात पर लाल बिहारी के द्वारा अपनी भावज पर खड़ाऊँ से प्रहार करने की बात सुन श्रीकंठ की आँखें लाल हो गई क्योंकि यदि आनन्दी हाथ से न रोकती तो उसका सिर ही फट जाता।
प्र. घर के झगड़ें में बेनीमाधव का पक्ष क्या था ?
उ. बेनीमाधव, पुरुष प्रधान समाज के पक्षधर थे . वे स्त्रियों को समाज में बराबरी का दर्ज़ा नहीं देना चाहते थे .जब आनंदी ने लालबिहारी ने व्यवहार का विरोध किया तो बेनीमाधव को अच्छा नहीं लगा . तह बेनीमाधव की पुरुष प्रधान मानसिकता को दर्शाता है .
प्र. लालबिहारी ने श्रीकंठ सिंह से आनंदी की क्या शिकायत की ?
उ. लालबिहारी ने आनंदी की शिकायत इसीलिए की क्योंकि दाल में घी कम पड़ने पर जब आनंदी से झगड़ा किया तो उसने तीखा जबाब दिया था .आनंदी के इस प्रकार पलट कर जबाब देने से उसके अंह को चोट पहुंची थी . उसने एक औरत के आगे खुद हो छोटा नहीं होने देना चाहता था .
प्रश्न. आनन्दी क्यों पछताने लगी?
उत्तर- आनन्दी दयालु स्वभाव की थी। उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि बात इतनी बढ़ जाएगी। जब उसने लालबिहारी को क्षमा माँगते सुना तो उसका रहा-सहा क्रोध भी खत्म हो गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे तथा पति के भी अधिक गर्म होने पर उसे झुंझलाहट होने लगी।
प्रश्न. आनन्दी ने किसका हाथ पकड़ा और क्यों ?
उत्तर- जब लालबिहारी घर छोड़कर जाने लिए दरवाजे की ओर बढ़ा तो आनन्दी ने बाहर आकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे घर न छोड़ने के लिए अपनी कसम दी क्योंकि आनन्दी का क्रोध शान्त हो चुका था और वह बहुत दयालु औरत थी।
प्रश्न. बेनीमाधव ने बड़े घर की बेटी किसे कहा और क्यों?
उत्तर- बेनीमाधव ने आनन्दी को बड़े घर की बेटी कहा क्योंकि उसने ही जरा सी बात के लिए दोनों भाइयों के अलग होने के झगड़े को समाप्त कर बिगड़े काम को बना दिया था। इसलिए बेनीमाधव ने आनन्दी की तारीफ करते हुए कहा कि बड़े घर की बेटियाँ होती ही ऐसी हैं जो बिगड़ते काम को भी बना देती हैं।
प्र. बड़े घर की बेटी कहानी से मुंशी प्रेमचंद क्या सन्देश देना चाहते हैं ?
उ. लेखक ने बड़े घर की बेटी कहानी के माध्यम से संयुक्त परिवार के महत्व को दर्शाया है . उनका मानना है कि रिश्तों और संबंधों की गहराई को समझने के लिए आपसी समझ होना जरुरी है . हमें बड़ों का सम्मान करते हुए अपने छोटों को प्यार देना चाहिए .आपसी रिश्ते बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं, अतः हमें उन रिश्तों को बनाए रखने के लिए अपने अहं भाव को भूल कर प्रेम और समझदारी से काम करना चाहिए . मानवीय गुणों को उभारना तथा संबंधों को महत्व देना आवश्यक है .
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kindly give me the sameeksha on hindi story Bisathi by jayasankar prasad
जवाब देंहटाएंThe summary of the story 'Badi ghar ki Beti' was very helpful for me. Perfect explanation is given. Thank you and Keep it up !
जवाब देंहटाएंStory ka beginning kaha hai??? Explanation sahi hai par beginning hi nahi hai
जवाब देंहटाएंPlease update this questions and answers according to 2018 questions
जवाब देंहटाएंMain bhi apni kahani sunane ki ichchha hai ki ha
जवाब देंहटाएंBahut hi achi explanation very much helpful to me. ...loved loved it
जवाब देंहटाएंKal mera exam hai
जवाब देंहटाएंto hum kya kare
हटाएंBade ghar ki beti kahani kis samasya ko darshaya h
जवाब देंहटाएंMuhje lalbihari ka chatri chitran chahiye
जवाब देंहटाएंMuhje lalbihari ka chatri chitran chahiye
जवाब देंहटाएंI want Chatra Chitran of Bhoop Singh
जवाब देंहटाएंSuper tha
जवाब देंहटाएंBhada ghar ki deti
जवाब देंहटाएंSaare characters Ka charitra chitran update kr dein (Bade Ghar ki beti)
जवाब देंहटाएंvery helpful for me
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