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नेताजी का चश्मा (Netaji ka Chashma )
नेता जी का चश्मा, कहानी स्वयं प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी ,एक प्रसिद्ध कहानी है । यह कहानी देशभक्ति, त्याग और बलिदान की भावनाओं को प्रेरित करती है। यह कहानी आज भी प्रासंगिक है और हमें अपने देश के प्रति अपना कर्तव्य याद दिलाती है।लेखक स्वयं प्रकाश जी ने अपनी कहानी नेताजी का चश्मा के माध्यम से यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करना ही देशभक्ति नहीं है वरन् देश की समृद्धि व विकास के लिए कार्य करना, देशभक्तों के प्रति आदर व सम्मान का भाव रखना भी देशभक्ति है। हो सकता है देशभक्ति दर्शाने के तरीके अलग हों।
नेताजी का चश्मा कहानी का सारांश
नेताजी का चश्मा कहानी के माध्यम से लेखक ने देश के निर्माण में लगे उन देशभक्तों के त्याग, समर्पण और योगदान को उजागर करने का प्रयत्न किया है, जिनकी समाज में उपेक्षा की जाती है। उनकी देशभक्ति को पागलपन समझा जाता है व उनका उपहास किया जाता है । जिस प्रकार यहाँ कैप्टन चश्मे वाले को पागल समझा जाता है।
हालदार साहब को कंपनी के काम के सिलसिले में एक कस्बे से हर पंद्रहवें दिन गुजरना पड़ता था। कस्बा बड़ा नहीं था। उसमें कुछ पक्के मकान थे, लड़के और लड़कियों का एक-एक स्कूल था, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी। नगरपालिका सड़क पक्की करवाने, पेशाब घर बनवाने, कबूतरों की छतरी बनवाने, कवि सम्मेलन करवाने आदि का कार्य किया करती थी । नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी थी । मूर्ति कस्बे के इकलौते ड्राइंग मास्टर ने बनाई थी। मूर्ति सुंदर थी, फौजी वर्दी में थी । मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक दो फुट ऊँची थी । मूर्ति देखते ही 'दिल्ली चलो', 'तुम मुझे खून दो ...' आदि नारे याद आने लगते थे। उसमें केवल एक बात की कमी थी कि मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था; चश्मा था लेकिन सचमुच के काले चौड़े फ्रेम वाला था।
हालदार साहब जब अगली बार कस्बे से गुजरे तो चौराहे पर पान खाने रुके। उनकी दृष्टि मूर्ति पर गई, मूर्ति का चश्मा बदला हुआ था। यह देखकर वे सोचने लगे वाह ! क्या आइडिया है, मूर्ति पत्थर की लेकिन चश्मा रियल! कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास उन्हें सराहनीय लगा। दूसरी बार मूर्ति पर तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था तो सोचने लगे मूर्ति कपडे नहीं बदल सकती; चश्मा तो बदल सकती है। हर बार बदले हुए चश्मे को देखकर हालदार साहब के मन में जिज्ञासा हुई और उन्होंने पानवाले से कि मूर्ति पर चश्मा कौन बदलता है, तो पानवाले ने बताया कि मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल मूर्ति को चश्मा लगाना भूल गए थे। इसलिए कैप्टन रोज चश्मा लगा देता है। हालदार साहब कैप्टन चश्मे वाले की देशभक्ति से प्रभावित हुए कि उसके मन में नेताजी के लिए सम्मान है। तब हालदार साहब ने पानवाले से पूछा कि कैप्टन चश्मे वाला आजाद हिंद फ़ौज का सिपाही है क्या? तो पानवाले ने मुस्कुराते हुए कहा कि वह लँगड़ा फौज में क्या जाएगा और उसकी तरफ इशारा करते हुए बताया कि वह रहा कैप्टन चश्मे वाला। हालदार साहब ने देखा कि वह दुबला-पतला बूढ़ा मरियल-सा व्यक्ति था। बाँस पर चश्मे टँगे थे। साथ में छोटी सी संदूकची थी। उसकी अपनी कोई दुकान नहीं थी। वह फेरी लगाकर चश्मे बेचा करता था । अधिक पूछने पर पानवाले ने उन्हें कुछ नहीं बताया।
हालदार साहब दो साल तक लगातार कस्बे से गुजरते रहे और नेता जी की मूर्ति के बदले हुए चश्मे देखते रहे। एक दिन जब वे कस्बे से गुजर रहे थे तो उन्हें नेता जी की मूर्ति पर चश्मा दिखाई नहीं दिया। पानवाले से पूछने पर उसने बताया कैप्टन मर गया। यह सुनकर वे सोचने लगे कि देश के भविष्य का क्या होगा, जिसकी जनता स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान नहीं करती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। पंद्रह दिन बाद हालदार साहब जब वहाँ से गुजरे तो उन्होंने सोचा था कि वे अब मूर्ति की ओर नहीं देखेंगे परंतु आदत से मजबूर उनकी आँखें मूर्ति की तरफ उठ गई और उन्होंने देखा मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना हुआ छोटा-सा चश्मा रखा हुआ है जैसा बच्चे बना लेते हैं। इतनी सी बात पर ही उनकी आँखें भर आई । उन्होंने बच्चों की भावना का सम्मान करते हुए मूर्ति के सामने सावधान की मुद्रा में खड़े होकर नेता जी को प्रणाम किया।
नेताजी का चश्मा कहानी का मूल भाव
नेताजी का चश्मा स्वयं प्रकाश की एक प्रसिद्ध कहानी है जो देशभक्ति, त्याग और बलिदान के भावों को प्रेरित करती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने देश के प्रति समर्पित रहना चाहिए और हमेशा इसके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए।कहानी का मूल भाव यह है कि देश के छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े सभी में देशभक्ति की भावना होती है और यह भावना समय-समय पर सब अपने तरीकों से प्रकट करते रहते हैं। किसी के छोटे प्रयासों की हँसी न उड़ाकर हमें उसकी भावना को समझते हुए उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ।
नेताजी का चश्मा शीर्षक की सार्थकता
नेता जी का चश्मा कहानी स्वयं प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी ,प्रसिद्ध कहानी है . प्रस्तुर कहानी में प्रारंभ से लेकर अंत तक नेता जी सुभाषचंद्र बोस और उनका चश्मा दोनों ही साथ - साथ चलते हैं . चौराहे पर नेता जी की मूर्ति स्थापित होना ,उसमें चश्में की अनुपस्थिति ,कैप्टन द्वारा मूर्ति को चश्मा पहनाना ,समय -समय पर चश्में बदलते रहना और कैप्टन की मृत्यु के बाद मूर्ति पर सरकंडे से बना चश्मा दिखाई देना ,ये सभी घटनाएँ बहुत ही मनोरंजन तरीके से पाठकों को जोड़े रखती हैं ।
कहानी में लेखक ने नेताजी के चश्मे के माध्यम से देशभक्ति की भावना को उजागर किया है। हालदार साहब को काम के सिलसिले में जिस कस्बे से गुजरना पड़ता था, उसके मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की एक संगमरमर की मूर्ति थी। उस मूर्ति की आँखों में संगमरमर का चश्मा न होकर सचमुच का चश्मा था। यही कारण था कि हालदार साहब इस मूर्ति की ओर आकर्षित थे। चश्मा लगाने वाले कैप्टन की मृत्यु के बाद नेताजी की आँखों पर चश्मा न देखकर हालदार साहब को दुःख हुआ। कहानी के अंत में नेताजी की आँखों पर सरकंडे का बना हुआ चश्मा देखकर हालदार साहब खुश होते हैं कि आज भी देशभक्ति जीवित है। अतः कहा जा सकता है कि शीर्षक 'नेताजी का चश्मा' पूर्णत: सार्थक है।
नेताजी का चश्मा कहानी का उद्देश्य / संदेश
नेताजी का चश्मा कहानी का मुख्य उद्देश्य देशभक्ति की भावना को जागृत करना तथा देशभक्ति को प्रदर्शित करने के लिए किए गए छोटे-छोटे प्रयासों का भी सम्मान करने के लिए प्रेरित करना है। स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना चाहिए। किसी के तुच्छ से तुच्छ योगदान का भी उपहास नहीं करना चाहिए । कहानी का उद्देश्य यह प्रकट करना है कि देश के छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े सभी में देशभक्ति की भावना होती है और यह भावना समय-समय पर सब अपने तरीकों से प्रकट करते रहते हैं। किसी के छोटे प्रयासों की हँसी न उड़ाकर हमें उसकी भावना को समझते हुए उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ।
नेताजी का चश्मा कहानी के पात्रों का चरित्र चित्रण
नेताजी का चश्मा कहानी के पात्र देशभक्ति, त्याग और बलिदान के भावों का प्रतीक हैं। कैप्टन चश्मे वाले का चरित्र एक आदर्श देशभक्त के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने देश के प्रति समर्पित है और हमेशा इसके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता है।इसके प्रमुख पात्रों का चित्रण निम्नलिखित है -
हालदार साहब का चरित्र चित्रण
नेता जी का चश्मा कहानी स्वयं प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी ,एक प्रसिद्ध कहानी है .प्रस्तुत कहानी में हालदार साहब एक प्रमुख पात्र बन कर उभर कर आते हैं . हालदार साहब एक जिम्मेदार नागरिक हैं .वे जब भी क़स्बे से गुजरते हैं तो नगरपालिका के द्वारा किये गए प्रयासों की सराहना करते हैं . हालदार साहब ने उस क़स्बे क़स्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति देखि तो इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर क़स्बे के नागरिकों का प्रयास सराहनीय था . हालदार साहब एक जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति थे . यहाँ तक पानवाले ने चश्मेवाले कैप्टन के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार प्रकट किया तब उन्हें यह भी बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा . वह समाज के हर वर्ग तथा सभी लोगों से सभ्य व्यवहार ,प्रेम तथा सद्व्यवहार की अपेक्षा करते हैं . वह स्वभाव से संदेंशील तथा भावुक हैं . कैप्टन के प्रति उनके मन में संवेदना का भाव था . उनकी मृत्यु की खबर सुनकर उन्हें धक्का सा लगा . हालदार साहब के चरित्र मे निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं -
- ज़िम्मेदार नागरिक - हालदार साहब एक ज़िम्मेदार नागरिक हैं। वे जब कस्बे से गुज़रते हैं तो नगरपालिका के द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं। हालदार साहब ने उस कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति देखी तो इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का प्रयास सराहनीय था।
- देशप्रेमी - हालदार साहब एक देशप्रेमी व्यक्ति थे। नेताजी की मूर्ति देखकर उन्हें देशप्रेम से पूर्ण नेताजी के वे नारे याद आ गए- जैसे 'दिल्ली चलो, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा।' कस्बे के चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति से उन्हें विशेष लगाव हो गया था जो कि उनके देश प्रेम का परिचायक है।
- जिज्ञासु प्रवृत्ति - हालदार साहब एक जिज्ञासु व्यक्ति थे। जब-जब वे कस्बे से गुज़रते थे तो नेताजी के चश्मे में आए अन्तर को बहुत ध्यान से देखते थे और अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण 'पानवाले' से कई सावल पूछते रहते थे। अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए उन्होंने कैप्टन के बारे में पूछा था कि “क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है या आज़ाद हिंद फौज का पूर्व सिपाही ?"
- सुधारवादी प्रवृत्ति - हालदार साहब कस्बे के बारे में, कस्बे की नगरपालिका एवं वहाँ के लोगों की प्रशंसा करते हैं। पानवाले के मन में 'कैप्टन चश्मेवाला' के प्रति अवहेलना का भाव देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे सभी लोगों के मन में देश-प्रेम, देशभक्ति की भावना की अपेक्षा करते हैं।
- संवेदनशील व भावुक- हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाले के प्रति संवेदना का भाव था। उसकी मृत्यु का समाचार सुनकर अगली बार उन्हें उस कस्बे में रुकने की इच्छा नहीं थी। पानवाले के हँसने पर उन्होंने कहा कि, "क्या होगा उस क़ौम का जो अपने देश की ख़ातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है। "
अतः कहा जा सकता है कि कहानी में हालदार साहब एक अच्छे चरित्र के रूप में उभर कर सामने आते हैं .उनके चरित्र में वें सभी गुण हैं जो की एक अच्छे नागरिक के अन्दर होनी चाहिए ।
कैप्टन चश्मेवाला का चरित्र चित्रण
चश्मेवाला कैप्टन अपने नाम के विपरीत एक बेहद मरियल-सा लंगड़ा आदमी था, जिसने सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा पहने हुआ था। उसके एक हाथ में छोटी-सी संदूक थी और दूसरे हाथ में एक बाँस पर बहुत से चश्मे टाँगे घूमता था। उसकी दुकान नहीं थी, वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। अपनी देशभक्ति और नेताजी के प्रति सम्मान की भावना के कारण वह नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं पाता था और अपने फ्रेमों में से एक फ्रेम उन्हें लगाकर उनके प्रति आदर प्रकट करता था।चश्मेवाला के चरित्र मे निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती है -
- परिश्रमी व्यक्ति - कैप्टन एक परिश्रमी व्यक्ति हैं। वह अपने चश्मे की दुकान को बहुत मेहनत से चलाता है। पैर से अपाहिज होने के बावजूद भी वह नेताजी को नया चश्मा पहना देता है। यह इस बात को इंगित करता है कि परिश्रमी होने के साथ-साथ नेताजी की मूर्ति से उसका गहरा लगाव है।
- देशप्रेमी -कैप्टन एक सच्चा देशभक्त है। देशप्रेम की भावना उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। नेताजी की मूर्ति देखकर स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की याद उसके दिमाग में आ जाती है।
- साहसी और धैर्यवान - कैप्टन साहसी होने के साथ-साथ धैर्यवान भी हैं। पैर से लंगड़ा होने के बावजूद भी वह अपने चश्मे की दुकान पर काम करता है।
- स्वाभिमानी - कैप्टन एक स्वाभिमानी व्यक्ति है। वह किसी दूसरे से मदद लेने में विश्वास नहीं करता है, अपितु स्वाभिमान की जिंदगी जीता है।
- दृढ़ व्यक्तित्व - कैप्टन किसी भी कार्य को दृढ़ संकल्प के साथ करता है और उसे बखूबी अंजाम देता है।
इस प्रकार चश्मेवाला का चरित्र बहुत ही सशक्त है ।
पान वाले का चरित्र चित्रण
पानवाला काला, मोटा और खुशमिज़ाज व्यक्ति था। वह हमेशा पान खाता रहता था। उसके हँसने से उसकी तोंद हिलती थी। लगातार पान खाते रहने से उसके दाँत लाल-काले हो रहे थे। वह कैप्टन का मज़ाक उड़ाता था और उसे पागल कहता था, पर कैप्टन की मौत पर उसकी भी आँखें नम हो गईं थीं।
लेखक स्वयं प्रकाश का जीवन परिचय
स्वयं प्रकाश का जन्म 20 जनवरी, 1947 को मध्यप्रदेश के इंदौर नामक शहर में हुआ। इनका बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बीता। आजकल आप भोपाल में रहकर साहित्य-सृजन कर रहे हैं तथा 'वसुधा' पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। आप एक सशक्त कहानीकार तथा उपन्यासकार हैं। अब तक इनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी कहानियों का अनुवाद रूसी भाषा में भी हुआ है। इन्हें वर्ष 2011 के प्रतिष्ठित 'आनंद सागर कथाक्रम सम्मान' से सम्मानित किया गया । इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी ने भी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया । इनकी कहानियों में वर्ग शोषण के विरुद्ध चेतना है। इनकी भाषा शैली सहज तथा प्रभावोत्पादक है।
नेताजी का चश्मा के प्रश्न उत्तर
प्र.हालदार साहब कौन हैं ?
उ.हालदार साहब शहर में रहने वाले एक नौकरीपेशा व्यक्ति हैं . वह एक कंपनी में किसी बड़े पद पर काम कर रहे हैं . अक्सर काम के सिलसिले में उन्हें शहर से बाहर जाना पड़ता हैं .
प्र.मूर्तिकार का क्या नाम था और उसने चश्मा क्यों नहीं बनाया ?
उ.मूर्तिकार का नाम मोतीलाल था .वास्तव में मूर्ति बनाते समय मास्टर मोतीलाल नेताजी के चेहरे पर चश्मा लगाना भूल गए थे .
प्र. क़स्बे की नगरपालिका क्या क्या काम करवाया करती रहती थी ?
उ . क़स्बे की नगरपालिका हमेशा कुछ न कुछ काम करवाती ही रहती थी . कभी कोई सड़क पक्की करवा दी ,तो कभी कबूतरों के लिए छत्री बनवा दी , तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया .इसी प्रकार नगरपालिका के बोर्ड ने एक बार नेता जी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी .
प्र. नेता जी की मूर्ति में क्या कमी रह गयी थी ?
उ. नेता जी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा बहुत सुन्दर बन पड़ी थी ,लेकिन मूर्तिकार प्रतिमा में नेताजी की आँखों पर चश्मा लगाना भूल गया था .
प्र. मूर्ति के चश्मे कौन बदलता था और क्यों ?
उ . मूर्ति के चश्में कैप्टेन नाम का चस्मावाला बदलता था .वह चश्में की फेरी लगाता था . उसे नेता जी की बिना चश्मे वाली प्रतिमा बुरी लगती थी ,इसीलिए वह अपनी दूकान पर से चश्मे का फ्रेम लगाकर नेता जी की मूर्ति पर पहना देता था .जब भी कोई ग्राहक आता तो वह फ्रेम ग्राहक को देकर नेता जी को कोई दूसरा फ्रेम लगा देता .
प्र. कैप्टन कौन था और वह क्या काम करता था ?
उ.कैप्टन एक बूढ़ा आदमी था . वह अत्यंत कमज़ोर था . वह पैर से लंगड़ा भी था .उसके सर पर एक गांधी टोपी भी थी और आँखों पर काला चश्मा था . एक हाथ में एक छोटी सी संदूकची थी और वह चश्मा बेचने का काम करता था .
प्र. हालदार साहब दुखी क्यों हो गए ?
उ.पानवाला उस कैप्टेन की हँसी उड़ा रहा था जिसे सुनकर हालदार साहब दुखी हो गए . उन्होंने सोचा की अपने देश की खातिर घर -गृहस्थी जिंदगी त्याग कर देश भक्तों पर हँसने वाले देश और देशवासियों की कभी उन्नति नहीं हो सकती है.
प्र.नेता जी का चश्मा कहानी के माध्यम से लेखक क्या सन्देश देना चाहता हैं ?
उ. नेता जी का चश्मा कहानी स्वयं प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी ,एक प्रसिद्ध कहानी है .लेखक का कहना है कि देश भक्ति की भावना सभी नागरिकों में होना चाहिए .एक बड़े आदमी से लेकर छोटे से छोटे तक सभी देश तथा समाज के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं . इस कहानी में एक सामान्य तथा साधारण से कैप्टन चश्मे वाले के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है देशभक्ति सभी में होनी चाहिए .सभी को अपने सामर्थ्यभर देश हित के लिए कार्य करना चाहिए .
प्रश्न. मूर्ति किसकी थी और वह कहाँ लगाई थी ?
उत्तर- मूर्ति नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की थी तथा वह कस्बे के मुख्य मुख्य चौराहे पर नगरपालिका द्वारा लगवाई गयी बाजार के थी।
प्रश्न. यह मूर्ति किसने बनाई थी और इसकी क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की संगमरमर की मूर्ति स्थानीय स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल ने बनायी थी। मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी, सुन्दर थी, नेताजी फ़ौजी वर्दी में सुंदर लग रहे थे।
प्रश्न . मूर्ति में क्या कमी थी ? उस कमी को कौन पूरा करता था और कैसे ?
उत्तर- नेताजी की मूर्ति की आँखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं था। उसकी कसर देखते ही खटकती थी। उस कमी को चश्मे बेचने वाला एक बूढ़ा, अपाहिज व्यक्ति जिसे लोग कैप्टन कहते थे, पूरा करता था। वह नेताजी की मूर्ति पर एक ओरीजनल चश्मा लगा देता था।
प्रश्न. नेताजी का परिचय देते हुए बताइए कि चौराहे पर उनकी मूर्ति लगाने का क्या उद्देश्य रहा होगा ? क्या उस उद्देश्य में सफलता प्राप्त हुई ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- नेताजी सुभाषचन्द्र बोस एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए आजाद हिन्द फौज का गठन किया तथा अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए। कस्बे के मुख्य मिकी बाजार के मुख्य चौराहे पर उनकी मूर्ति लगाने का उद्देश्य शहीद देशभक्तों को सच्ची श्रद्धांजलि देना व उनके प्रति आदर व सम्मान को व्यक्त करना था। नेताजी की मूर्ति वान होते लगवाने के उद्देश्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। कस्बे के छोटे-छोटे बच्चे भी देखभक्तों के प्रति आदर की भावना से भरकर नेताजी की मूर्ति पर सरकंडे को चश्मा लगाते हैं।
प्रश्न . कस्बे की क्या विशेषता थी ?
उत्तर- कस्बा ज्यादा बड़ा नहीं था उसने कुछ ही मकान पक्के थे और एक बाजार था। कस्बे में एक लड़कों व एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर व एक नगरपालिका थी।
प्रश्न . मूर्ति किसने और कहाँ लगवायी ?
उत्तर- मूर्ति नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने कस्बे के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की प्रतिमा लगवायी ।
प्रश्न. मूर्ति बनाने के लिए स्थानीय कलाकार क्यों चुना गया?
उत्तर- देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी न होने या बजट कम व लागत अधिक लगने अथवा समयाभाव के कारण नेताजी की मूर्ति बनाने के लिए स्थानीय कलाकार को चुनने का निर्णय लिया गया।
प्रश्न. नेताजी की प्रतिमा कैसी थी ?
उत्तर- नेताजी की संगमरमर की प्रतिमा टोपी की नोक से लेकर कोट के दूसरे बटन तक लगभग दो फुट ऊँची थी। नेताजी सुन्दर, मासूम व कमसिन लग रहे थे। मूर्ति फौजी वर्दी में थी ।
प्रश्न. नेताजी को मूर्ति में क्या कमी खटकती थी ?
उत्तर- नेताजी की संगमरमर की मूर्ति को देखते ही एक कसर खटकती थी कि नेताजी की आँखों पर चश्मा संगमरमर का न होकर सामान्य और सचमुच का था।
प्रश्न. नेताजी की मूर्ति पर हालदार साहब की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर- नेताजी की मूर्ति देख हालदार साहब के चेहरे पर कौतुक भरी मुस्कान फैल गयी सोचा कि यह आइडिया भी ठीक है। मूर्ति पत्थर की, लेकिन चश्मा रियल ।
प्रश्न. हालदार साहब को नागरिकों का प्रयास सराहनीय क्यों लगा ?
उत्तर- हालदार साहब को कस्बे के चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगाना सराहनीय लगा क्योंकि महत्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं वरन् देशभक्ति की भावना का है अन्यथा आजकल तो देशभक्ति का भी मजाक उड़ाया जाता है।
प्रश्न . दूसरी बार मूर्ति में हालदार साहब को क्या अन्तर लगा ?
उत्तर- दूसरी बार हालदार साहब ने मूर्ति पर दूसरा चश्मा देखा। अपना पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा है। जिसे देख हालदार साहब सोचने लगे कि मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, लेकिन चश्मा तो बदल ही सकती है।
प्रश्न. कैप्टन चश्मा चेंज क्यों कर देता था ?
उत्तर- जब कोई ग्राहक कैप्टन से चश्मे का वैसा फ्रेम माँगता जो नेताजी की मूर्ति पर लगा है तो कैप्टन मूर्ति से चश्मा उतार ग्राहक को दे देता और मूर्ति को दूसरा चश्मा पहना देता ।
प्रश्न. नेताजी की मूर्ति पर चश्मा क्यों नहीं था ?
उत्तर- मूर्तिकार पत्थर में पारदर्शी चश्मा नहीं बना पाया होगा या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा या 'कुछ और बारीकी' के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा इसलिए नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं था।
प्रश्न. पानवाले ने कैप्टन का मजाक कैसे उड़ाया ?
उत्तर- पानवाले ने मजाक उड़ाते हुए कहा कि वो लँगड़ा फौज में क्या जाएगा? वह तो पागल है ? फोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं । एक देशभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना हालदार साहब को अच्छा नहीं लगा।
प्रश्न. हालदार साहब अवाक क्यों रह गए ?
उत्तर- हालदार साहब ने देखा कि कैप्टन एक बहुत बूढ़ा, मरियल सा लँगड़ा आदमी है जो सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाता है। बॉस पर चश्मे टाँग और एक छोटी-सी संदूकची पकड़े यहाँ से वहाँ फेरी लगाता है। कैप्टन का यह रूप देख हालदार साहब अवाक् रह गए।
प्रश्न. पानवाला उदास क्यों हो गया ?
उत्तर- हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा न होने की बात जब पानवाले से पूछी तो उसे सुनकर पानवाला उदास हो गया क्योंकि कैप्टन चश्मेवाला मर गया था।
प्रश्न . सब कुछ होम कर देने वालों से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर- सब कुछ होम कर देने वालों से लेखक का आशय देश पर शहीद होने वालों से है। ऐसे लोग अपनी घर-गृहस्थी त्याग कर देश की सेवा करने निकलते हैं और अपनी जिंदगी भी हँसते-हँसते देश के नाम न्यौछावर कर देते हैं।
MCQ Questions with Answers Netaji Ka Chashma
बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
प्र १. नेताजी का चश्मा कहानी के लेखक कौन है ?
a. स्वयं प्रकाश
b. उदय प्रकाश
c. प्रेमचंद
d. शिवानी
उ. a. स्वयं प्रकाश
२. स्वयं प्रकाश का जन्म कहाँ हुआ था ?
a. इंदौर
b. भोपाल
c. नैनीताल
d. अयोध्या
उ. a. इंदौर
३. वर्ष २०११ में "आनंद सागर कथाक्रम सम्मान " से किसे सम्मानित किया गया ?
a. प्रेमचंद
b. यशपाल
c. जावेद अख्तर
d. स्वयं प्रकाश
उ. d. स्वयं प्रकाश
४. नेता जी का चश्मा कहानी में हालदार साहब कस्बे में कितने समय बाद गुजरते थे ?
a. पंद्रह दिन बाद
b. महीने भर बाद
c. हर रोज
d. कभी नहीं
उ. a. पंद्रह दिन बाद
५. शहर के मुख्य बाज़ार में किसकी प्रतिमा लगायी गयी ?
a. इन्द्रिरा गाँधी की
b. महात्मा गाँधी की
c. नेताजी सुभाषचंद्र बोस
d. किसी की नहीं
उ. c. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की
६. "मूर्ति बना कर पटक देने का क्या अर्थ है ?
a. मूर्ति को तोड़ देना
b. मूर्ति न बनाना
c. धोखेबाजी करना
d. जल्दीबाजी में मूर्ति बनाना
उ. d. जल्दीबाजी में मूर्ति बनाना
७. मूर्तिकार क्या बनाना भूल जाता है ?
a. कोट का बटन
b. चेहरा
c. आँखें
d. मूर्ति पर पत्थर से पारदर्शी चश्मा बनाना
उ. d. मूर्ति पर पत्थर से पारदर्शी चश्मा बनाना
8. नेताजी की मूर्ति पर बार - बार चश्मा कौन बदलता है ?
a. हालदार साहब
b. नगरपालिका वाले
c. कैप्टेन चश्मे वाला
d. बच्चे
उ. c. कैप्टेन चश्मे वाला
९. हालदार साहब पहले बार चौराहे पर क्या करने रुके थे ?
a. मूर्ति देखने
b. पान खाने
c. खाना खाने
d. अपने मित्र से मिलने
उ. b. पान खाने
१०. हालदार साहब के अनुसार वर्तमान में क्या मज़ाक की वस्तु बन गयी है ?
a. देशभक्ति की भावना
b. मूर्ति बनाना
c. पान खाना
d. दोस्ती करना
उ. a. देशभक्ति की भावना
11. पान वाला आदमी का स्वभाव कैसा था ?
a. मजाकिया
b. बेहद कम बोलने वाला
c. धूर्त
d. उपयुक्त में से कोई नहीं
उ. a मजाकिया
१२. कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब को क्या आदत पड गयी थी ?
a. पाने वाले के पास रुकना
b. पान खाना
c. मूर्ति को ध्यान से देखना
d. उपयुक्त सभी
उ. d. उपयुक्त सभी
१३. हालदार साहब मूर्ति के सम्बन्ध में किससे बात करते हैं ?
a. मूर्तिकार से
b. नगरपालिका के चेयरमैन से
c. कैप्टन से
d. पान वाले से
उ. d. पान वाले से
१४. फेरी लगाना का क्या अर्थ है ?
a. घूम घूमकर समान बेचना
b. बोली लगाना
c. विज्ञापन देना
d. बेकार में घूमना
उ. a. घूम घूमकर समान बेचना
१५ . हालदार साहब को पान वाले की कौन सी बात अच्छी नहीं लगती है ?
a. पान के ज्यादा पैसे लेना
b. झूठ बोलना
c. कैप्टेन चश्मे वाले का मज़ाक उड़ाना
d. उपयुक्त में से कोई नहीं
उ. c. कैप्टेन चश्मे वाले का उपहास करना
१६. बच्चों द्वारा सरकंडे के चश्मे पहनाने से किस भावना का पता चलता है ?
a. देशभक्ति का
b. गरीबी का
c. नेताजी का उपहास
d. उपयुक्त में से कोई नहीं
उ. a. देशभक्ति का
१७. नेताजी का चश्मा कहानी में मुख्य पात्र कौन है ?
a. हालदार साहब
b. ड्राइंग मास्टर
c. हालदार साहब
d. कैप्टेन चश्मे वाला
उ. a. हालदार साहब
१८. प्रतिमा शब्द का क्या अर्थ होता है ?
a. घर
b. चित्र
c. मकान
d. मूर्ति
उ. d. मूर्ति
१९. होम कर देना का क्या अर्थ हैं ?
a. बलिदान देना
b. आनंद करना
c. दुखी होना
d. उपयुक्त में से कोई नहीं
उ. a. बलिदान देना
२०. कौतुक शब्द का क्या अर्थ है ?
a. हैरानी
b. आनंद
c. परेशानी
d. मज़ाक
उ. a. हैरानी
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जवाब देंहटाएंप्रश्न उत्तर के लिए
इस पाठ से दस सरल , संयुक्त वाक्य और मिश्र वाक्य छाट कर दे ?
जवाब देंहटाएं‘नेताजी का चश्मा’ कहानी के आधाय ऩय ऩानवारे का योका सचचत्र प्रस्ततु कीजजए? 10 class hindi extra question please answer
हटाएंThis is question
Murti kiski bani hoti hai
जवाब देंहटाएंSangemarmar
हटाएंMurti sangmarmar ki bani thi
हटाएंMurti sangmarmar ki bani thi
हटाएंMurti sangmarmar k mitti ki bni hui thi. .. .. .. .. .
हटाएंSangmarmar ki
हटाएंSangemarmar ke stone ki
हटाएंWho is the main character
जवाब देंहटाएंCaptian and Haldar sahab ..
हटाएंHalder Saheb
हटाएंIss chptr se hume kya shiksha milti h ?
जवाब देंहटाएंMurti ki height kitni thi
जवाब देंहटाएंmurti ki unchai sir ki topi ki nok se lekar bast ki dusri batan tak thi...
हटाएंmurti ki unchai sir ki topi ki nok se leker coat ke bast ki dusri batan tak thi....
हटाएंMurti ki height kitni thi
जवाब देंहटाएं2 Foot
हटाएंकसबे की क्या-क्या विशेषताए थी ?
जवाब देंहटाएंdj
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