ऐसा कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है। अंधा होने का अर्थ यह हुआ कि जब हम कुछ भी देखने की स्थिति में ना हों या हमें कुछ भी दिखाई न दे। और जब हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता तो मात्र अनुभूति ही हमारे काम आती है।
प्यार अंधा होता है
ऐसा कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है। अंधा होने का अर्थ यह हुआ कि जब हम कुछ भी देखने की स्थिति में ना हों या हमें कुछ भी दिखाई न दे। और जब हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता तो मात्र अनुभूति ही हमारे काम आती है। दिखाई न देने का एक अर्थ यह भी होता है कि या तो हमने अपनी आंखें मूंद रखी होती है या हमें सचमुच कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा होता है। कुछ भी दिखाई न देने का तात्पर्य अंधेरा होना भी होता है। और अंधेरा यानि कालिमा।
तो क्या यह महज एक संयोग है कि कान्हा काले थे और उनका जन्म भी भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था? यानी काली रात को। अपने काले रंग के कारण ही वे कृष्ण कहे गए। कृष्ण का जादू उनके कालेपन से था या उनके प्रेमी होने के कारण, यह कौन बता सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं, प्रेम बांटने के लिए ही उन्होंने काला रंग धारण किया था, क्योंकि जहां प्रेम होता है, वहां बाकि किसी और चीज के लिए स्थान ही कहां बचता है।
एक समझ तो यह भी कहती है कि कालिमा यानि अंधकार में पूर्णता का वास होता है। अंधेरे में खाली स्थान दिखता ही कहां है, वहां तो सब कुछ भरा दिखाई देता है। ठीक वैसे ही, प्रेम से सराबोर हृदय में रिक्तता कहां होती है, जिसे बाहर के उजास से भरा जा सके। मेरा तो ऐसा मानना है कि प्रेम की अनुभूति ही कृष्ण की अनुभूति है।
प्यार को अंधा कहने से यह भी तो समझा जा सकता है कि प्यार का अस्तित्व ही कृष्ण का अस्तित्व है और प्रेम मेें अंधा होना कृष्ण से एकाकार होना है। तो क्या यह मान लिया जाए कि कृष्ण ही संपूर्ण हैं, बाकि अपूर्ण। तभी तो राधा हों, रुक्मिणी हों, मीरा हों या फिर ब्रज के गोप-गोपियां, सबने मात्र कृष्ण को चाहा, उनकी विराट छवि को नहीं। राधा के प्रेमी कृष्ण हों या रुक्मिणी के प्रेम की खातिर उन्हें स्वयंवर कर अपनी अर्धांगिनी बनाने वाले कृष्ण हों, रानी से जोगन बनी मीरा को खुद में समाने वाले कृष्ण हों या फिर गोप-गोपियों के संग लीलाएं रचाने वाले कृष्ण हों, जिसने भी अपना सर्वस्व उन्हें सौंप दिया, उसे उन्होंने पूरे मन से अंगीकार किया।
आइए, इस कृष्ण जन्माष्टमी, हम अपने अराध्य कृष्ण का प्रेम प्राप्त करने की चेष्टा करें। अगर हम सचमुच प्रेम में डूब चुके हैं, तो मेरा विश्वास है कि हमें भी कृष्ण मिलेंगे और जब तक हमारा यह जीवन है, हम इस भौतिक उजास से परे, परालौकिक प्रेमानुभूति से परमानंद को प्राप्त होते रहेंगे।
- तरु श्रीवास्तव
यह रचना तरु श्रीवास्तव जी द्वारा लिखी गयी है . आप कविता, कहानी, व्यंग्य आदि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य करती हैं . आप पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्ष 2000 से कार्यरत हैं। हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरिभूमि, कादिम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं में बतौर स्वतंत्र पत्रकार विभिन्न विषयों पर कई आलेख प्रकाशित। हरिभूमि में एक कविता प्रकाशित। दैनिक भास्कर की पत्रिका भास्कर लक्ष्य में 5 वर्षों से अधिक समय तक बतौर एडिटोरियल एसोसिएट कार्य किया। तत्पश्चात हरिभूमि में दो से अधिक वर्षों तक उपसंपादक के पद पर कार्य किया। वर्तमान में आप ,प्रभात खबर समाचारपत्र में कार्यरत हैं.आकाशवाणी के विज्ञान प्रभाग के लिए कई बार विज्ञान समाचार का वाचन यानी साइंस न्यूज रीडिंग किया।
COMMENTS