शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षकों की भूमिका

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शिक्षकों का बदलाव की क्षमता से युक्त होना अनिर्वाय है।अध्यापन को प्रमाण पर आधारित व्यवसाय होना चाहिए और कि इससे बच्चों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।

रचनात्मक अभिव्यक्ति को विकसित करने में शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षकों की भूमिका


शिक्षा मनुष्य को देवत्व प्रदान करती है।
- विवेकानंद

शिक्षा सुसंस्कृत बनाने का माध्यम है। यह हमारी संवेदनशीलता और दृष्टि को प्रखर करती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पनपती है, वैज्ञानिक तरीके के अमल की संभावना बढ़ती है और समझ और चिंतन में स्वतन्त्रता आती है। साथ ही शिक्षा हमारे संविधान में प्रतिष्ठित समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लक्ष्यों की प्राप्ति में अग्रसर होने में हमारी सहायता करती है।शिक्षा की विशिष्टता के आधार पर की शिक्षा के व्यैक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्यों का सर्जन हुआ है | शिक्षा सम्बन्धी सभी उदेश्य प्राय: इन्ही दोनों उद्देश्यों में से किसी एक उदेश्य के पक्ष में बल देते हैं | व्यक्ति के विकास से ही समाज का विकास हुआ तथा दिन-प्रतिदिन हो रहा है | अत: शिक्षा को व्यक्तिगत रुचियों, क्षमताओं तथा विशेषताओं का विकास करना चाहिये |
गाँधीजी ने "हिन्द स्वराज" (पुस्तिका) में लिखा था "अंग्रेजी शिक्षा लेकर हमने अपने राष्ट्र को गुलाम बनाया है । जो लोग अंग्रेजी पढे हुए है, उनकी संतानों को नीति ज्ञान, मातृभाषा सिखानी चाहिए और हिन्दुस्तान की दूसरी भाषा सिखानी चाहिए "अन्य प्राचीन धर्मो की तरह वैदिक दर्शन की भी यह मान्यता है कि प्रकृति प्राणधारा से स्पन्दित है।

भारत की शिक्षा नीति

शिक्षा
हमारी शिक्षानीति में स्पष्ट उल्लेखित है कि राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था पूरे देश के लिये एक राष्ट्रीय शिक्षाक्रम के ढांचे पर आधारित होगी जिसमें एक ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ ; होगा और अन्य हिस्सों की बाबत लचीलापन रहेगा, जिन्हें स्थानीय पर्यावरण तथा परिवेश के अनुसार ढाला जा सकेगा। ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ में भारतीय  स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास, संवैधानिक जिम्मेदारियों तथा राष्ट्रीय अस्मिता से संबंधित अनिवार्य तत्त्व शामिल होंगे। ये मुद्दे किसी एक विषय का हिस्सा न होकर लगभग सभी विषयों में पिरोये जाएंगे। इनके द्वारा राष्ट्रीय मूल्यों को हर इंसान की सोच और जिंदगी का हिस्सा बनाने की कोशिश की जायेगी। इन राष्ट्रीय मूल्यों में ये बातें शामिल हैं  : हमारी समान सांस्कृतिक धरोहर, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरूषों के बीच समानता, पर्यावरणका रक्षण,सामाजिक समता, सीमित परिवार का महत्त्व और वैज्ञानिक तरीके के अमल की जरूरत। यह सुनिश्चित किया जायेगा कि सभी शैक्षिक कार्यक्रमधर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के अनुरूप ही आयोजित हों।

शिक्षा के उद्देश्य

1. व्यैक्तिक उद्देश्य

संकुचित अर्थ में शिक्षा के व्यैक्तिक उद्देश्य को आत्माभिव्यक्ति बालक की शक्तियों का सर्वांगीण विकास तथा प्राकृतिक विकास आदि नामों से पुकारा जाता है | इस अर्थ में यह उद्देश्य प्रकृतिवादी दर्शन पर आधारित है |इसके प्रतिपादकों का अटल विश्वास है कि समाज की अपेक्षा व्यक्ति बड़ा है | अत: उनकी धारणा है कि परिवार, समाज, राज्य तथा स्कूलों को बालक की व्यक्तिगत शक्तियों को विकसित करने के लिए ही स्थापित किया गया है | इस दृष्टि से प्रत्येक राज्य तथा सामाजिक संस्था का कर्त्तव्य है कि वह व्यक्ति के जीवन को अधिक से अधिक अच्छा, सम्पन्न तथा सुखी एवं पूर्ण बनाये |आज प्राकृतिक पर्यावरण के क्षरण और वर्तमान कष्ट का एकमात्र कारण
आधुनिक शिक्षा प्रणाली का एकान्तिक दृष्टिकोण है। यह व्यावहारिकता और यथार्थवाद से कोसों दूर है। शिक्षा का प्रारम्भ इस एकमात्र लक्ष्य को लेकर हुआ कि सामाजिक दृष्टि से अच्छे इंसान तैयार हों। किंतु अब यह विकृत होकर ऎसी प्रणाली में बदल गई है जो शरीर और बुद्धि की बात तो करती है किन्तु मनुष्य का आध्यात्मिक और भावनात्मक दृष्टि से स्पर्श नहीं करती। इसका ही परिणाम है कि असंतुलित व्यक्तित्व तैयार हो रहे हैं। जीवन के लिए आवश्यक मूल्यों का ह्रास हो रहा है और मूल्यों पर से ही लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। शिक्षाक्रम में ऐसे परिवर्तन की जरूरत है जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त साधन बन सके। यदि प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व का उतम विकास करना है तो व्यक्तिगत विभिन्नता के सिद्धांत को दृष्टि में रखना होगा | अत: प्रत्येक स्कूल का कर्त्तव्य है कि वह बालक की रुचियों, आवश्यकताओं तथा योग्यताओं को दृष्टि में रखते हुए उसके समक्ष ऐसे अवसर प्रदान करे जिनके आधार पर उसकी मूल-प्रवृतियों निखर जायें तथा उसकी समस्त शक्तियों एवं गुणों का समुचित विकास हो कर वह एक उत्तम व्यक्ति बन जाये |

2. सामाजिक उद्देश्य

दृष्टि से व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र की भलाई के लिए हैं, न कि राष्ट्र व्यक्ति के लिए है | अत: राष्ट्र का अधिकार है कि वह अपनी इच्छाओं, आवश्यकताओं तथा आदर्शों की पूर्ति के लिए व्यक्ति को जैसा चाहे बनाये तथा शिक्षा के द्वारा बालकों को जिस सांचे में ढालना चाहे, ढाले | प्रत्येक व्यक्ति का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की सत्ता को बढ़ाने के लिए अपनी सत्ता को मिटा दे तथा तन और मन से उसकी सेवा करके उसे सबल तथा सुदृढ़ बनाये। राष्ट्र स्वयं की शिक्षा की एक सुनिश्चित प्रणाली बनाकर लागू करता है | यही नहीं, पाठ्यक्रम, शिक्षण-पद्धतियों एवं अनुशासन को भी इसी प्रकार से आयोजित करता है कि व्यक्ति की इच्छाओं तथा आकांक्षाओं का संकुचन भी हो जाये और उसमे आज्ञा-पालन, अनुशासन, संगठन तथा अपार भक्ति के ऐसे भाव भी विकसित हो जायें कि वह राष्ट्र कल्याण हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे।
अत: बालक  और समाज दोनों के विकास तथा प्रगति हेतु शिक्षा के दोनों वैयक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्यों के मध्य का रास्ता निकाल लिया जाये जिससे व्यक्ति अपनी यथाशक्ति समाज को सबल बना सके तथा समाज व्यक्ति के व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए वांछनीय परिस्थितियों को उपलब्ध कर सके | इस दृष्टि से यदि हम वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ आत्माभूति तथा सामाजिक उद्देश्य का अर्थ समाज सेवा स्वीकार कर लें तो दोनों उद्देश्यों में समन्वय सरलतापूर्वक स्थापित हो सकता है | दोनों उद्देश्यों के व्यापक रूपों में समन्वय से शिक्षा की ऐसी योजना बनाई जा सकेगी जिसके द्वारा दोनों बातें सम्भव हो सकेंगी – (1) बालक के व्यक्तित्व का विकास, तथा (2) सामाजिक उन्नति।  शिक्षा के उद्देश्य के बारे में स्पष्टता की आवश्यकता है. शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है , चरित्र निर्माण व व्यक्तित्व विकास. दूसरी बात यह कि शिक्षा के द्वारा देश और समाज की वश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए.तथा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान प्राप्त होना चाहिए. उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षा में प्राचीन एवं आधुनिकता का समन्वय होना चाहिए, साथ में भौतिकता व आध्यात्मिकता का भी समन्वय होना चाहिए. व्यवहार व सिद्धांत का संतुलन होना चाहिए. शिक्षा स्वायत्त होनी चाहिए, मूल्य आधारित होनी चाहिए, मातृभाषा में होनी चाहिए, शिक्षा व्यवसाय-व्यापार न होकर सेवा का माध्यम होनी चाहिए. शिक्षा में पारिवारिक भाव का विकास एवं शैक्षिक परिवार की संकल्पना होनी चाहिए. साथ ही शिक्षा का टुकड़ों-टुकड़ों में विचार न करते हुए समग्रता व एकात्मता का   दृष्टिकोण होना चाहिए. इस प्रकार की आधारभूत बातों के आधार पर शिक्षा की नीति व्यवस्था एवं पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम का निर्धारण होना चाहिए।

रचनात्मक अभिव्यक्तियों का उन्नयन -

हमें अगर नई पीढ़ी में रचनात्मक अभिव्यक्तियों का उन्नयन करना है तो शिक्षा की प्रक्रियाओं के नवीकरण के साधनों के रूप में सभी उच्च तकनीकी संस्थान शोध कार्य में पूरी तत्परता से जुटना होगा । इनका पहला मकसद होगा उच्च कोटि की जनशक्ति उपलब्ध कराना, जो शोध और विकास में उपयोगी साबित हो सके। विकास के लिये शोध कार्य, मौजूदा प्रौद्योगिकी में सुधार, नई देशज प्रौद्योगिकी की खोज तथा उत्पादन की जरूरतों को पूरा करने से संबंधित होगा। प्रौद्योगिकी में होने वाले परिवर्तनों पर नजररखने और नये आविष्कारों का अनुमान लगाने के लिये भी उपयुक्त व्यवस्था करनी होगी ।अध्यापन कोई स्थिर व्यवसाय नहीं है बल्कि प्रौद्योगिकी , सदैव बदलते ज्ञान, वैश्विक अर्थशास्त्र के दबावों और सामाजिक दबावों से प्रभावित होकर बदलता रहता है। इसका मतलब है कि इन परिवर्तनों को संबोधित करने के लिए अध्यापन के तरीकों और कौशलों का  लगातार अद्यतन और विकास आवश्यक है।हम बिना सोचे-समझे भिन्न-भिन्न रुचियों वाले बालकों को एक ही प्रकार के कार्यों में जुटा देते हैं | ऐसी शिक्षा उनकी विशेषताओं को नष्ट करके एक निर्जीव सामान्यता की छाप लगा देती है | अत: रूसो ने कृत्रिम समाज का खण्डन करते हुए इस बात पर बल दिया कि बालक की सम्पूर्ण शिक्षा का प्रबन्ध प्रकृति के अनुसार होना चाहिये | उसने यह भी बताया कि बालक का प्राकृतिक विकास उसी समय हो सकता है जब उसकी शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था उसकी रुचियों, रुझानों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर की जायेगी।
पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने की बहुत जरूरत है और यह जागरूकता बच्चों से लेकर समाज के भी आयुवर्गों और क्षेत्रों में फैलनी चाहिए। पर्यावरण के प्रति जागरूकता विद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा का अंग होनी चाहिए। इसे शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में समाहित किया जाएगा। व्यक्तित्त्व के विकास से उसका तात्पर्य आत्माभिव्यक्ति न होकर आत्म-बोध अथवा आत्माअनुभूति है | आत्माभिव्यक्ति में आत्म-प्रकाशन  की भावना प्रधान होती है | इससे व्यक्ति अपनी मूल-प्रवृतियों के वशीभूत होकर बिना किसी रोक-टोक के स्वछंद रूप से कार्य करता है | वह यह नहीं देखता की उसकी क्रियाओं में समाज का क्या तथा कितनी हानि हो सकती है | इसके विपरीत आत्म-अनुभूति में आत्म वह आदर्श आत्म है जिसकी हम कल्पना करते हैं तथा जिसकी अनुभूति केवल दूसरों की रुचियों को ध्यान में रखते हुए ही की जा सकती है।

शिक्षकों की भूमिका -

शिक्षकों का बदलाव की क्षमता से युक्त होना अनिर्वाय है।अध्यापन को प्रमाण पर आधारित व्यवसाय होना चाहिए और कि इससे बच्चों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे। विशेष रूप से, वे सुझाते हैं कि संस्कृति में परिवर्तन की जरूरत है, जहाँ शिक्षक और राजनीतिज्ञ स्वीकार करते हैं कि हमें आवश्यक रूप से ‘पता’ नहीं होता कि क्या सबसे अच्छी तरह से काम करता है।अनुमान यह होता है कि प्रमाण पर आधारित विधि एक अच्छी चीज है और अनुशंसित परिवर्तन शिक्षकों द्वारा स्वयं अपने काम का अनुसंधान करके प्राप्त किए जा सकते हैं। वास्तव में, जिन विद्यालयों में अनुसंधान की परिपाटियाँ स्थापित हैं, वहाँ यह मान्यता होती है कि यह बात विद्यालय के सुधार में योगदान कर सकती है।अपने स्वयं के काम की व्यवस्थित ढंग से जाँच करते हैं, ताकि उसमें सुधार कर सकें।कोई समस्या पहचानें जिसे आप अपनी कक्षा में हल करना चाहते हैं: यह कोई विशिष्ट बात हो सकती है जैसे क्यों कोई छात्र प्रश्नों का उत्तर नहीं देते हैं या आपके विषय के किसी पहलू को कठिन या निरुत्साहित करने वाला पाते हैं, या यह कोई अधिक साधारण बात हो सकती है जैसे समूह कार्य को प्रभावी ढंग से कैसे आयोजित किया जाय।प्रयोजन को परिभाषित करें और स्पष्ट करें कि हस्तक्षेप का क्या प्रारूप होगा: इसमें साहित्य का संदर्भ लेना और यह लगाना शामिल होगा कि इस समस्या के बारे में पहले से क्या पता है।समस्या से निपटने के लिए परिकल्पित किसी हस्तक्षेप की योजना बनाएं।  अनुभवजन्य डेटा जमा करें और उसका विश्लेषण करें।एक और हस्तक्षेप करने की योजना बनाएं: यह इस बात पर आधारित होगा कि आपको क्या पता चलता है और उसे आपके द्वारा पहचानी गई समस्या को आगे समझने के लिए परिकल्पित किया जाएगा।अध्यापक एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो बेड़ियों में जकड़ा है. लेकिन उससे स्वतंत्र सोच वाले नागरिक बनाने की उम्मीद की जाती है. अध्यापक शैक्षिक प्रशासन के ‘भययुक्त वातावरण’ में जीता है और स्कूल में बच्चों के लिए ‘भयमुक्त माहौल’ बनाने का रचनात्मक काम करता है. बच्चों को सवाल पूछने और जवाब देने के लिए प्रेरित करता है. इससे अध्यापकों के सामने मौजूद विरोधाभाष विचारों के टकराव को समझा जा सकता है. इसके कारण अध्यापकों को वैचारिक अंतर्विरोध का सामना करना पड़ता है। शिक्षा का उपकरणीय दृष्टिकोण कक्षा में होने वाले निरर्थक अभ्यासों और गतिविधियों को अपनाकर, संवेदी क्षमताओं, जिज्ञासा को कुन्द करके और प्रतिस्पर्धात्मक रवैये को बढ़ावा देकर अपनाया जाता है।
हम इस पद्धति के उदाहरण विभिन्न विषयों (गणित, भाषाएँ, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान) के विषय-वस्तु और शिक्षण में, मूल्यांकन व्यवस्थाओं में, तथ्यों और कड़ों को रटकर ज्यों-का-त्यों उतार देने की अपेक्षा में, मानव मस्तिष्क की मौलिक सम्भावनाओं को क्षीण करते जाने में देख सकते हैं।ज़मीनी अनुभवों ने दर्शाया है कि प्रसन्न और रोमांचित रहने वाले बच्चों को जैसे-जैसे मुख्यधारा में लाया जाता है, वे उत्तरोत्तर दब्बू होते जाते हैं। उनका लिखना स्वाभाविक भावों की अभिव्यक्ति की बजाय सिर्फ ‘स्वीकृत ज्ञान’ को लिख देने तक सीमित हो जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चों से राष्ट्रीय ध्वज, नुकीले पर्वत या फूलदान में रखे कृत्रिम दिखने वाले फूलों के अलावा कोई और चित्र बनवाने के लिए ढेर सारे प्रोत्साहन और मदद की आवश्यकता होती है।हमें शिक्षा के लक्ष्यों पर पुनर्विचार करना होगा। उसे जड़ शरीर और बुद्धि को नहीं अपितु आत्मा को शिक्षित करना चाहिए। इन तीनों (धर्म, अर्थ और काम) के बीच सुव्यवस्थित संतुलन रखकर ही दुनिया में पारिस्थितिकी संतुलन को कायम रखा जा सकता है।बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिसे वह अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व को विकसित करते हुए अपनी योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार स्वतंत्र नागरिक के रूप में राष्ट्र की सेवा कर सके |चूँकि भारतवर्ष अब एक जन्तान्त्रमक समाजवादी राष्ट्र है, इसलिए अब हमारी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सच्चे, इमानदार तथा कर्मठ नागरिक उत्पन्न करना है | इस उद्देश्य के अनुसार हमारे स्कूलों ने अब स्वयं एक आदर्श समाज का रूप धारण कर लेना चाहिए | उनमें प्रेम तथा आत्म-त्याग की भावना का सुन्दर एवं उत्तम वातावरण दिखाई देना चाहिए  | पाठ्यक्रम का अर्थ अब संकुचित न होकर व्यापक होना चाहिए। उन्हें उनके अधिकारों तथा राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों से भी अवगत कराया जाना चाहिए जिससे  उनमें प्रत्यक्ष रूप से  राष्ट्र सेवा की भावना जागृत हो।

सन्दर्भ ग्रन्थ

1. आधुनिक भारतीय शिक्षा -समस्याएं और समाधान -रवींद्र अग्निहोत्री।
2. शिक्षा के दार्शनिक और सामाजिक सिद्धांत -एस के अग्रवाल।
3. आधुनिक भारतीय शिक्षा और उसकी समस्याएं -सुरेश भटनागर।
4. शैक्षिक अनुसन्धान की कार्य प्रणाली -लोकेश कौल।
5. शिक्षा में सम्पूर्ण गुणवत्ता प्रवंधन -मर्मर मुखोपध्याय






यह रचना सुशील कुमार शर्मा जी द्वारा लिखी गयी है . आप व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाध‍ि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं | अापकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभ‍िन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश‍ित हो चुकी हैं।आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं :- 1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012 2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007 3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002 4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009 इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |

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उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,431,हिंदी लेख,531,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,423,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
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शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षकों की भूमिका
शिक्षकों का बदलाव की क्षमता से युक्त होना अनिर्वाय है।अध्यापन को प्रमाण पर आधारित व्यवसाय होना चाहिए और कि इससे बच्चों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
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