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is nibhand me last me kya bolna he yah to bataya hi nahi phir bhi thik he very nice
जवाब देंहटाएंBest article on Guru ki mahima, thanks
जवाब देंहटाएंGurudakchina lena jaruri hai kya?
जवाब देंहटाएंराम राम जी 🙏
जवाब देंहटाएंशुद्ध परंपराओं का पालन करते हुए गुरु शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कहा गया है
जवाब देंहटाएंगुरु कहिए जांच
पानी पीजिए छान!
ब्रह्म गुरु है वर्षों के व्यक्तित्व का निर्माण करता है संसार की स्थिति उपस्थित और प्रलय के हेतु।
गुरु विष्णु हैं वह शिष्य की रक्षा करते हैं उसके अंदर के नकारात्मकता को दूर करते हैं और उसके गुणों को दूर भगाते हैं भगवान विष्णु किसी भी कारणवश भूले भटके शिष्य को भी शब्द मार्ग पर लाकर सहज रूप से स्वीकार कर लेते हैं भगवान विष्णु के प्रति प्रेम रखने वाला मनुष्य बैकुंठधाम को जाता है। वह मनुष्य के जन्म मृत्यु के भय का नाश करने वाला है। भक्ति प्रवाह को पढ़ाने वाला है।
शंकर जी यानी महादेव चराचर के गुरु भय रहित शांति मूर्ति आत्माराम और जगत के परम आराध्य देव हैं। घमंडी और धर्म की मर्यादा को तोड़ने वाले का विनाश करने वाले।
भारतीय साहित्य में गुरु के महत्व की महत्ता बहुत अधिक हैं जो शिष्य के अंधकार को दूर करके सत मार्ग पर लाने का काम करता है ज्ञान का दीपक जलाता है।
हम एक प्रसंग यहां देना उचित समझते हैं क्योंकि हिंदीकुंज काम एक बड़ी संस्था है हम भी इस पर एक सामान्य लेखक के रूप में कार्य करते हैं हमारी कुछ रचनाएं हिंदीकुंज काम ने विगत कई वर्षों से अपनी साइड पर प्रकाशित कर रखा है इसलिए मैं एक अयोध्या का प्रसंग देता हूं।
अयोध्या नरेश चक्रवर्ती राजा दशरथ के गुरु वशिष्ट जी थे जिन की सलाह के बिना अयोध्या का दरबार में कोई भी कार्य नहीं किया जाता था।
गुरु वशिष्ट जी के आदेशों का अक्षर से पालन किया जाता था।
बहुत-बहुत धन्यवाद
गुरु के गुण अनगिनत हैं। उन गुणों का वर्णन करने में समस्त सागरों के जल से बनी स्याही भी असफल रहती है। संत कबीर का यह दोहा हमें गुरु की महिमा बताता है।
जवाब देंहटाएंसबधरतीकागदकरूँ, लेखनीसबवनराय।
सातसमुद्रकीमसिकरूँ, गुरुगुनलिखानजाए।।
कितने ही भिन्न-भिन्न विषयों पर हम गुरुओं से मार्गदर्शन पा सकते हैं। उनका कार्यक्षेत्र विशाल होता है। वे शिष्य के मन की स्थिति को तो समझते ही हैं, साथ ही ये भी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि उसके लिये सही क्या है।
राजा-महाराजाओं के समय उनके गुरु ही शासनादि विषयों में उनके सलाहकार होते थे। राजधर्म और प्रजा का पालन करने की सभी जरूरी बातों का शिक्षण करते थे। महान सम्राट चंद्रगुप्त को उनके गुरु चाणक्य ने ही प्रशिक्षित और पथ-प्रदर्शन किया था। गुरु न केवल शिष्य के हित का ख्याल रखते हैं बल्कि समाज की भी दशा और परिस्थितियों को सुधारने के यत्न करते हैं।गुरु को ईश्वर से भी अधिक पूज्य कहा गया है। हमारे ग्रंथ कहते हैं-
गुरुर्ब्रह्मागुरुर्विष्णुगुरुर्देवोमहेश्वरा।
गुरुर्साक्षातपरब्रह्मतस्मैश्रीगुरवेनमः।।
अर्थात गुरु साक्षात परमात्मा है। क्योंकि परमात्मा की ही तरह गुरु के पास भी शिष्य का जीवन सँवारने या नष्ट करने का अवसर होता है।
उनके वचनों और आदेशों को समझना और पालन करना शिष्य के हित में होता है। ईश्वर का ज्ञान हमें गुरु के सत्संग से ही मिलता है। वही हमारा ईश्वर तक पहुँचने में मार्ग प्रशस्त करते हैं। यदि गुरु के प्रति ही प्रेम भाव और भक्ति न हो तो व्यक्ति ईश्वर को पाने की अमूल्य निधि से वंचित रह जाएगा।जो भी महान लोग हुए हैं, चाहे वे कृष्ण हों या राम, गाँधी या बुद्ध हों या कोई और हों- इन सभी के गुरु थे। सभी से इन्होंने कुछ-न-कुछ सीखा था। किंतु जिन लोगों के जीवन में कोई गुरु नहीं होता, उनका सिर्फ पतन होता है, उत्कर्ष नहीं।
ऐसे लोग केवल धन, पद आदि के लिये मारे-मारे फिरते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता। गुरु के अभाव में जीवन की कल्पना करना ही असंभव है।
गुरु एक कुम्हार की भाँति होता है, जो शिष्य को एक मिट्टी के घड़े की तरह सही आकार देता है। यदि मिट्टी को उचित कुशल कुम्हार न मिलें तो वह आजीवन मिट्टी ही रह जाएगी और उत्कर्ष न पा सकेगी।