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मानवाधिकार
हाल के दिनों में मानवाधिकारों के प्रश्न को काफी महत्व दिया गया है . आज आज मानवाधिकारों के हनन या उलंघन को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और लोकतंत्र के समर्थकों द्वारा अत्यंत गंभीरता से लिया जाता है . इसी पृष्ठभूमि के कारण अधिकांश देशों ने स्वयं अपने यहाँ स्वतंत्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों की स्थापना की है .
मानवाधिकार |
मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो जीने और सामान्य मानवीय आस्तित्व के लिए मौलिक अधिकार है . यह इस अवधारणा पर आधारित है कि प्रत्येक स्त्री और पुरुष चाहे उसकी जाति ,पंथ -रंग ,प्रजाति और राष्ट्रीयता कुछ भी हो , वह कुछ मौलिक अधिकारों जैसे - जीने का अधिकार ,अभिव्यक्ति ,स्वतंत्रता ,न्याय आदि के साथ पैदा होता है . इसीलिए ये अधिकार देशों के सविंधान में उल्लेखित होते हैं . दुनिया के देश इन मूल अधिकारों को बनाये रखें और इनका पालन करें इसे सुनिच्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी स्थापना के तुरंत बाद ही मानव अधिकार चार्टर अंगीकार कर लिया था . संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा १० दिसंबर १९४८ को अंगीकृत मानव अधिकारों की सव्र्भामुक घोषणा में मानव के कुछ मूलभूत अधिकारों के बारे में उल्लेख किया गया है . ये अधिकार व्यक्ति के जीवन , स्वंतत्र और सुरक्षा ,अभिव्यक्ति या बोलने की आज़ादी , नयनिक अधिकार , आने - जाने की आज़ादी ,देश के प्रश्शन में हिस्सा लेने का अधिकार आदि से सम्बंधित हैं . दूसरे प्रकार के अधिकार आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार हैं . ये अधिकार है -
१.काम का अधिकार ,
२.सम्मान के साथ जीने का अधिकार ,
३.आराम और फुर्सत का अधिकार ,
४.शिक्षा का अधिकार ,
५.समान काम के लिए समान वेतन ,
६. समानता का अधिकार आदि .
मानव अधिकारों की समाश्या है की अलग - अलग लोगों और देशों द्वारा इस शब्द का अर्थ और इसकी सुरक्षा की अवधारणा अलग अलग मायने रखती है . कुछ देशों में सभी नागरिकों ओ राजनैतिक नहीं दिए गए हैं अथवा उनके लिए गारंटी नहीं दी गयी है . कुछ और देश में आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार प्रवृत नहीं किये गए हैं . अतः मानव अधिकारों के बारे में जोर देने के पीछे मूल विचार यह है कि सभी सरकारों को इन मौलिक अधिकारों को बनाये रखना चाह्हिये और देखना चाहिए कि इस सम्बन्ध में सभी प्रकार के भेद - भाव को समूल समाप्त कर देना चाहिए .
इसके बावजूद विश्व के कई भागों में मनाव अधिकारों में भेद - भाव और उलंघन की घटनाएँ देखी गयी है . यह सच है कि रंग - भेद के नाम से जाना वाला भेद जो दक्षिण अफ्रीका में प्रच्लान में था अब वह दुनिया के किसी भी भाग में आस्तित्व में नहीं है . इसके बावजूद आज भी लोगों को अपने जन्म स्थाथ्नो से भागना और दयनीय हालतों में शरणार्थी शिवरों में दिन बिताना पद रहा है .
आज दुनिया के अनेक भागों में अल्पसंख्यक वर्ग को कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नहीं है . युध्यबंदी के प्रति क्रूरता ,कैदियो के साथ जेलों में अमानवीय व्यवहार ,आर्थिक भेद - भाव , जातिवाद ,बलात्कार ,बाल श्रम ,बाल वेश्यावृति आदि मानव अधिकारों के हनन के एनी रूप या प्रकार है .
मानव अधिकारों की रक्षा और बहाली प्रयेक सरकार का मौलिक कर्तव्य है.संयुक्त राष्ट्रसंघ ,अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ और निगरानी अगेंसियाँ इन मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन को सुनिंचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं . सभी देशों को , विशेष रूप से लोकतान्त्रिक देशों को इस दिशा में एकजुट होकर आवश्यक आग्रह्परक और यहाँ तक कि बाध्यकारी कार्यवाही करनी चाहिए ताकि दुनिया भर के लोग , संस्थाएँ और देश इन मौलिक अधिकारों के अनुपालन को सुनिश्चित कर सकें .
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