रुणा भास्कर के साथ खुश नहीं है । वह जब भी किसी पार्टी आदि में अरुणा से मिलता तो उसकी ओर खिंचा चला जाता । पर जैसा कि भास्कर ने अभी-अभी बताया था , आज तो अरुणा भी घर पर नहीं थी । भुवन के मन में आया कि वह भास्कर का निमंत्रण ठुकरा दे ।
चारा / विज्ञान कथा
भास्कर अपनी लैब से निकला और भुवन के लैब की ओर चल पड़ा । वे दोनों राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र की अंतरिक्ष इकाई में काम करने वाले वैज्ञानिक थे । भास्कर की चाल सधी हुई थी , मानो वह जानता था कि वह क्या कर रहा था । भुवन सुदूर अंतरिक्ष से आने वाली रेडियो-तरंगों का अध्ययन करता था । कई बार उसने इनके बारे में भास्कर से भी चर्चा की थी । दोनों वैज्ञानिक काफ़ी समय से इन खगोलीय रेडियो-तरंगों पर अलग-अलग काम कर रहे थे ।
शाम में अपने घर आने का न्योता दिया । बातों-ही-बातों में उसने भुवनेश्वर को यह भी बताया कि उसके पास खगोलीय रेडियो-तरंगों की एक डिस्क थी जो उसे न्यूज़ीलैंड से उसके एक वैज्ञानिक मित्र ने भेजी थी ।
भुवन और भास्कर में खगोलीय रेडियो-तरंगों को लेकर प्रतिस्पर्धा रहती थी । हालाँकि भुवन की भास्कर से बहुत ज़्यादा बनती नहीं थी , पर उसे श्रीमती भास्कर यानी अरुणा अच्छी लगती थी । उसे लगता था कि अरुणा भास्कर के साथ खुश नहीं है । वह जब भी किसी पार्टी आदि में अरुणा से मिलता तो उसकी ओर खिंचा चला जाता । पर जैसा कि भास्कर ने अभी-अभी बताया था , आज तो अरुणा भी घर पर नहीं थी । भुवन के मन में आया कि वह भास्कर का निमंत्रण ठुकरा दे । पर जब भास्कर ने खगोलीय रेडियो-तरंगों वाली नई डिस्क का ज़िक्र किया तो भुवन उसे टाल नहीं सका । उसे आमंत्रित करके भास्कर तो चला गया लेकिन भुवनेश्वर सोचता रहा -- भास्कर जैसा गम्भीर और नीरस आदमी अरुणा जैसी शोख़ युवती को कैसे खुश रख पाता होगा ।
शाम को अपने लैब का काम निपटा कर भुवन कैम्पस में ही स्थित भास्कर के घर की ओर चल पड़ा । पश्चिमी क्षितिज पर आकाश पिघले हुए सोने का समुद्र लग रहा था । समुद्र से बह कर आने वाली ठंडी हवा उसके रोम-रोम को पुलकित कर रही थी । उसका ध्यान फिर से अरुणा की ओर चला गया । गोरा, छरहरा बदन । पतली कमर । कमनीय काया । वह जब भी अरुणा को देखता , उसकी भूरी आँखों की गहराइयों में खो जाता ।
कॉल-बेल बजाने पर भास्कर ने दरवाज़ा खोला । इधर-देखती उसकी निगाहों के जवाब में भास्कर ने कहा , " बताया तो था , श्रीमती जी आज बाहर गई हुई हैं । " भास्कर के चेहरे पर एक अतिरिक्त मुस्कान थी । आज यह भास्कर इतना ' चम्मी ' और ' पैली ' क्यों बन रहा है -- भुवनेश्वर ने सोचा । बैठक से होते हुए वे दोनों भीतर के कमरे में चले गए । वहाँ भास्कर ने पहले से ही व्हिस्की-सोडा का प्रबंध कर रखा था । साथ में नमकीन के रूप में ' चखना ' भी था । उसने भुवनेश्वर को एक ' एक्स्ट्रा-लार्ज ' बना कर दिया और खुद भी भरा गिलास ले कर बैठ गया ।
खगोलीय रेडियो-तरंगों पर बातें होने लगीं । हब्ब्ल टेलेस्कोप का ज़िक्र भी आया । भुवन ने इस क्षेत्र में अपने अनुभव सुनाए । वह भास्कर से उस डिस्क के बारे में पूछता , इससे पहले ही भास्कर ने वह फ़्लापी डिस्क कम्प्यूटर में लगा दी । दोनों वैज्ञानिक डिस्क में मौजूद खगोलीय रेडियो-तरंगों के बारे में चर्चा करने लगे ।
तभी भुवन को चक्कर-सा आया । उसे साँस लेने में तकलीफ़ होने
लगी । उठने की कोशिश करते हुए वह कार्पेट पर ही गिर गया । उसकी मांसपेशियाँ बेजान होने लगीं । उसकी अँतड़ियों में ऐंठन होने लगी । आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा । शरीर नीला पड़ने लगा ।
उसके सामने भास्कर की धुँधली आकृति थी । भास्कर उससे पूछ रहा था , " कैसे हो , भुवन ? अरे , तुम्हारी देह तो नीली पड़ती जा रही है ? क्या तुम जानते हो , तुम्हें क्या हुआ है ? नहीं , तुम्हें तो पता भी नहीं कि तुम्हारे शरीर में
सुशांत सुप्रिय |
' पोटैशियम सायनाइड ' नामक विष जा चुका है । जानते हो , क्यों ? क्योंकि मैंने उस रात बॉस की पार्टी में तुम्हें और अपनी पत्नी अरुणा को एक-दूसरे को चूमते हुए देख लिया था । उसी दिन मैंने ठान लिया था कि तुम्हें तो मैं ठिकाने लगा कर रहूँगा । भुवन , तुम अब चंद पलों के ही मेहमान हो । तुम्हारी कोई अंतिम इच्छा ? "
पर भुवन अपनी चेतना खोता जा रहा था । मौत उसके माथे पर दस्तख़त करने जा रही थी । घुप्प अंधकार में उसके ज़हन में अरुणा की छवि किसी खगोलीय रेडियो-तरंग-सी कौंधी । फिर उसकी चेतना किसी थके हुए तैराक-सी विस्मृति के महा-समुद्र में डूबती चली गई । अब उसके मुँह से झाग बाहर आने लगा था , जिससे पता चल रहा था कि विष उसकी देह में फैल चुका था । सायनाइड की वजह से उसकी देह की कोशिकाओं में ऑक्सीजन का प्रवाह रुक गया था ।
भास्कर शांति से उठा और उसने कम्प्यूटर में से खगोलीय रेडियो-तरंगों वाली डिस्क बाहर निकाल ली । शिकार फँस कर मारा जा चुका था । चारे ने अपना काम कर दिया था ।
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