भारतीय संविधान में 396 अनुच्छेद और आठ अनुसूचियॉं थीं । बाद में इसमें कुछ महत्वपूर्ण संशोधन भी किए गए, कुछ जोड़े गए तो कुछ घटाए गए और ये सब संशोधन, पूर्ण रूप में संविधान की मूल आत्मा के दायरे में किए गए । मूल आत्मा यानी संविधान की प्रस्तावना ।
राष्ट्रीय संविधान दिवस - 26 नवम्बर
‘’हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।‘’
जी हॉं ! हम भारत के लोगों ने हमारी, हमारे ही द्वारा और हमारे ही लिए एक शासन-प्रशासन प्रणाली को
सम्पूर्णत: अंगीकार किया था एक राष्ट्र भारत के रूप में । और वो दिन था 1949 में 26 नवम्बर का,, जब इस प्रस्तावना के साथ हमने अपने नव-स्वतंत्र राष्ट्र के विकास के लिए एक रोड-मैप तैयार करके अपने आपको एक प्रणाली के सूत्र में बांधा था । फिर लोकतंत्र की यही शासन-प्रणाली संविधान लागू होने के साथ, पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को प्रभावकारी हुई थी भारतीय राष्ट्रीय संविधान के रूप में ।
संविधान सभा ने विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श के बाद, विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान के रूप में, आज़ादी के इस अमोघ अस्त्र यानी भारतीय संविधान को, देश को सौंपा था और भारत के लोगों ने गु़लामी की ज़ंजीरों को काट कर फेंक देने के बाद गर्व के साथ शांतिप्रियता एवं शिष्टता के अस्त्र को धारण करके सभ्यता और प्रगति के पथ पर चलने की शपथ लेकर, एक नए संवैधानिक, वैज्ञानिक, स्वराज्य और आधुनिक भारत के स्वतंत्र युग में प्रवेश किया था ।
भारत के प्रथम कानून मंत्री और भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर को याद और सम्मानित करने के लिए आज़ादी के बाद से सरकारी तौर पर राष्ट्रीय संविधान दिवस मनाया जाता है । यह भारत- भू का एक राष्ट्रीय उत्सव भी है जो पूरे विश्व में भारत की एक जीनियस यानी ज्ञान पुरोधा की छवि को सशक्त करता है । लम्बी गुलामी के बावजूद भारतीय मस्तिष्क ने एक ऐसा संविधान स्वयं को दिया जो अपनी विलक्षण सारगर्भिता के साथ विश्व की सर्वाधिक मान्य शासन-प्रणालियों का लोकतंत्रीय दस्तावेज़ भी है ।
पुष्पलता शर्मा |
अपने प्रारम्भिक रूप में भारतीय संविधान में 396 अनुच्छेद और आठ अनुसूचियॉं थीं । बाद में इसमें कुछ महत्वपूर्ण संशोधन भी किए गए, कुछ जोड़े गए तो कुछ घटाए गए और ये सब संशोधन, पूर्ण रूप में संविधान की मूल आत्मा के दायरे में किए गए । मूल आत्मा यानी संविधान की प्रस्तावना । विश्व मे सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। हम अपने देश को कहॉं, कैसे, किस तरह ले जानाचाहते हैं, इसका स्पष्ट दिशा-निर्देश इस प्रस्तावना में वर्णित है । साथ ही यह भी कि हम किस रास्ते, कभी नहीं जा सकते । यानी सीमाऍं भीं ।
भारतीय संविधान ने, अपने नागरिकों को कर्तव्यों के साथ ही हर वो मौलिक अधिकार भी प्रदान करने की गारंटी देता है जो गण के तंत्र के समानान्तर, किसी भी नागरिक के साथ भाषा, धर्म, लिंग, जाति जैसे मूल सरोकारों के आधार पर किसी तरह के भेदभाव को खारिज भी करता है, सुरक्षित भी रखता है और न्याय पाने का अधिकार भी देता है । यह सब सुनिश्चित होता है संविधान में प्रदत्त, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, संसदीय प्रणाली, न्यायिक पुनरीक्षा, संवैधानिक उपचार जैसे प्रावधानों के माध्यम से । मौलिक अधिकारों के उल्लघंन की स्थिति में आर्टिकल 32 और आर्टिकल 226 के तहत सर्वोच्च और उच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी भी देता है ।
नागरिकों के लिए एकल राष्ट्रीयता के प्रावधान के साथ, संघात्मक होते हुए भी एकात्मक स्वरूप वाला, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बेहतर शक्ति-सन्तुलन से युक्त, जरूरत के अनुरूप कठोरऔर लचीला । तो ऐसा है हमारा संविधान । राष्ट्रीय संविधान दिवस के महान और पावन अवसर पर, पूरा राष्ट्र, बाबा साहेब आम्बेडकर सहित, ‘भारतीय संविधान’ के सभी महान निर्माताओं को याद करके स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
यह रचना पुष्पलता शर्मा 'पुष्पी' जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी आपकी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सम-सामयिक लेख ( संस्कारहीन विकास की दौड़ में हम कहॉं जा रहे हैं, दिल्ली फिर ढिल्ली, आसियान और भारत, युवाओं में मादक-दृव्यों का चलन, कारगिल की सीख आदि ) लघुकथा / कहानी ( अमूमन याने....?, जापान और कूरोयामा-आरी, होली का वनवास आदि ), अनेक कविताऍं आदि लेखन-कार्य एवं अनुवाद-कार्य प्रकाशित । सम्प्रति रेलवे बोर्ड में कार्यरत । ऑल इंडिया रेडियो में ‘पार्ट टाइम नैमित्तिक समाचार वाचेक / सम्पादक / अनुवादक पैनल में पैनलबद्ध । कविता-संग्रह ‘180 डिग्री का मोड़’ हिन्दी अकादमी दिल्ली के प्रकाशन-सहयोग से प्रकाशित हो चुकी है । Email - platasharma6gmail.com ,http://pushpi6.blogspot.in/
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