'रामायण' कविता में महाकाव्य रामायण के सार को चंद पंक्तियों में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास है। 'मोती' एवं'सुख का मान' कविताएँ शब्दचयन व विशिष्ट शिल्पसौंदर्य को लिए अनूठी हैं। परमगति कबूतर की और बापू फिर मत आना व्यंग्य की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं । कई जगह व्यंग्य के तीर मर्मस्थान को भेदकर गहरे चिंतन को विवश कर देते हैं
पुस्तक समीक्षा : मन दर्पण
प्रतीत होता है कि कविता लेखक की प्रिय विधा रही है। हर प्रकार के विषय को उनकी सशक्त लेखनी ने स्पर्श किया है।
मन दर्पण |
'मोती' एवं'सुख का मान' कविताएँ शब्दचयन व विशिष्ट शिल्पसौंदर्य को लिए अनूठी हैं।
परमगति कबूतर की और बापू फिर मत आना व्यंग्य की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं । कई जगह व्यंग्य के तीर मर्मस्थान को भेदकर गहरे चिंतन को विवश कर देते हैं, यथा-
"हिंदी के वास्ते सब एक कीजिए,
कुछ नहीं तो इंडिया गेट पर एजिटेट कीजिए"
( गुलामी )
"पैसा जुबानी नहीं समझता
ये सिर चढ़कर बोलता है, और
कभी कभी चौराहे पर
कपड़े भी खोलता है !"
( पैसा और पोटली )
अनेक कविताओं में वे गंभीर दार्शनिक सी बातें कहते हुए सीख व संदेश सहजता से दे जाते हैं-
"पानी में हवा का बुलबुला
अपनी क्षणिकता जीवन को दे गया है"
( ज्ञान का पुनर्दान )
"ब्रह्मा ने बीज सृष्टि के लाए थे छाँटकर
पर मिल गए अंजाने में सारे एक संग"
(रंगबिरंगी सृष्टि)
"भेड़िए ही घूमते हैं, आज मानव वेश में
इंसानियत परिवर्तित हुई,क्लेश और द्वेष में"
(मेरा भारत महान)
विशेष बात यह है कि हास्य व्यंग्य,हाजिरजवाबी एवं विनोद का पुट होने से कहीं भी नीरसता या बोरियत नहीं होती-
"शायद मरघट पर
आज के गीत बजाए जाएँ तो
मुर्दे भी खड़े होकर नाचने लगेंगे"
(मुर्दा नाचा)
"भीड़ से कतराए जो
उनको ये मंशा दीजिए
जाकर कहीं एवरेस्ट पर
एक कमरा लीजिए"
(छींटाकशी)
प्रेम और श्रृंगार की कविताएँ जैसे - 'बातें-यादें', धड़कन, सिंदूर मेरे, रो जाता हूँ, आदि अनेक कविताओं में अनुराग के कोमल, नम, भावुक, सुंदर अहसासों को समेटे हुए हैं -
"बिन तेरे बात मैं ना कर पाऊँ
होठ बस बंद-बंद रहते हैं
याद में तेरी जो कह पाऊँ
सब उसे छंद काव्य कहते हैं"
(छंद-काव्य)
'रिश्ते-नाते, घरौंदा बाबूजी का, बहना का ब्याह, मेरे अपने, लाड़ली जैसी कविताएँ परिवार एवं रिश्ते-नातों में लेखक की प्रगाढ़ आस्था का साक्षात्कार कराती हैं ।
"काश ! अपनों पर तुम भरोसा करो
या उन्हें अपना कहना ही तुम छोड़ दो"
(मेरे अपने)
ममता और वात्सल्य से भरा कवि हृदय छलकता दिखाई देता है 'गुड़िया, हश्र, बहना का ब्याह' जैसी कविताओं में....
'एक चिट्ठी माँ के नाम' तो मातृप्रेम का पुख्ता दस्तावेज ही कही जा सकती है ।
इनके अलावा 'एक पौधा, एक और पौधा, चंदामामा, बरसात, फूलों की बात, गुड़िया जैसी अनेक कविताएँ हैं जिनका बेहतरीन बालसाहित्य में एवं पाठ्यपुस्तकों में समावेश किया जा सकता है।
गद्य की बात करें तो 'द्वंद्व अभी जारी है' रोचक कहानी है जिसमें प्रेम में असफल प्रेमी के मन का द्वंद्व उभरकर सामने आता है ।
एकांतर कथा में रोचक कहानी के माध्यम से पानी के अपव्यय की पोल खोली गई है ।
'प्रतीकात्मकता'सशक्त लेख है जो प्रतीकरूप में विशेष दिनों को मनाने की वास्तविक सच्चाई और दिखावे का पर्दाफाश करता है ।
'राष्ट्रीय पर्व' एवं 'रिटायरमेंट' नागरिकों के जागरूक एवं सजग होने पर बल देते अच्छे आलेख हैं ।
भाषा पर पकड़, सरलता, सुबोधता, भावगम्यता और लेखक की स्पष्ट विचारधारा का दर्शन प्रत्येक रचना में होता है ।
स्पष्ट-सुंदर छपाई, आकर्षक मुखपृष्ठ एवं ना के बराबर त्रुटियाँ - पुस्तक का दूसरा सबल पक्ष हैं ।
साराँशतः पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है ।
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समीक्षाकार - श्रीमती मीना शर्मा जी
रचना – मन दर्पण.
रचनाकार – माड़भूषि रंगराज अयंगर.
प्रकाशक – बुक बजूका पब्लिकेशन्स, कानपुर.
मूल्य – रु. 175 मात्र ( डाक खर्च अलग).
कैसे प्राप्त करें – नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके ऑर्डर किया जा सकता है.
ISBN : 978-81-933482-3-9
पुस्तक ई बुक व पेपरबैक दोनों रुपों में उपलब्ध है.
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