कन्यादान Kanyadan

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कन्यादान ऋतुराज Kanyadan Rituraj


कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक़्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की

व्याख्या - प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि कन्यादान के समय माँ का दुःख बहुत ही प्रामाणिक था।कन्यादान की रस्म में माँ विवाह के समय अपनी बेटी को किसी पराए को दान दे रही हैं।माँ के जीवन भर का लाड प्यार दुलार द्वारा सँवारी बेटी - उसकी अंतिम पूँजी थी।
बेटी की उम्र ज्यादा नहीं है।उसे दुनियावी ज्ञान नहीं है।  वह बहुत ही सरल और सहृदय है। संसार में उसे केवल सुख का ही आभास था ,लेकिन ससुराल में जाने के बाद पुरुष प्रधान समाज द्वारा वैवाहिक जीवन कैसा होगा - इसी चिंताओं में माँ दुःख हैं।बेटी को केवल विवाह के सुरीले और मोहक पक्ष का ज्ञान था ,लेकिन कल्पना से इतर दुःख भी मिल सकता है। इस बात को लेकर माँ चिंतित है।


२. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे में मत रीझाना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री-जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी मत दिखाई देना।

व्याख्या -  माँ ,अपनी बेटी को सीख देते हुए कहती है कि बेटी तुम ससुराल में जाकर अपने सौंदर्य पर रीझ कर मत रह जाना। आग से सावधान रहना। आग का प्रयोग भोजन पकाने के लिए करना।  न की जलने के लिए।  तू सावधानी से रहना। पर अपने ऊपर अत्याचार न सहना। स्त्री जीवन में आभूषणों के मोह में न रहना। क्योंकि यह केवल एक बंधन है और स्त्री को मोह में फँसाती है।  माँ कहती है कि तू हमेशा की तरह निश्चल ,सरल रहना।  लेकिन लोक व्यवहार के प्रति सजग रहना ,जिससे तेरा कोई गलत लाभ न उठा सके। अन्यथा दुनिया के लोग तुझे मुर्ख बनाकर तेरा शोषण करेंगे। अतः बेटी तू सावधान रहना।


प्रश्न अभ्यास kanyadaan class 10 questions answers

प्र. १. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना ?

उ . माँ बेटी को कन्यादान के समय सीख देती हुई कहती है कि तू बचपन से जितनी सीधी ,सरल और निश्चल थी ,उतनी ही बनी रहना। लेकिन तुम्हारी कोमलता और सरलता को पुरुष प्रधान समाज के लोग कमजोरी न समझ लें और तुझ पर अत्याचार करे. अतः तुम किसी के अत्यचार को सहन मत करना बल्कि डटकर मुकाबला करना ताकि कोई तुम्हारा अनुचित लाभ न उठाये। इसीलिए माँ बेटी को लड़की (अबला ) की तरह दिखाई देने से मना करती है।
प्र. २.  आग रोटियाँ सेंकने के लिए है ,
               जलने के लिए नहीं "
क.  इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है ?

उ.  इन पंक्तियों द्वारा कवि द्वारा कवि नेबताया है कि ससुराल में बहुएँ पर घर -गृहस्थी का काम करती है। भोजन पकाने की जिम्मेदारी उन्ही की होती है। लेकिन ससुराल में ही वे आग से जलाकर हत्या करने की घटनाएँ सामने आती है।

ख. माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरुरी समझा ?

उ  . माँ ,बेटी को सचेत करना करना इसीलिए आवश्यक समझती है क्योंकि बेटी को अपनी दुनियादारी की समझ नहीं है। बेटी को केवल दुनिया का प्रकाश पक्ष ही देखा है लेकिन विवाह के बाद बहुएं की दुर्दशा भी होती है। अतः अपने ऊपर अत्याचार न होने देने के लिए माँ बेटी को समझाती है।


 प्र.३  "पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
        कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की"

  इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्द बद्ध कीजिये।  
उ.  प्रस्तुत कविता में कवि ऋतुराज जी द्वारा एक ऐसी लड़की का चित्र प्रस्तुत किया गौए है जो की बहुत सायानी नहीं है। जीवन के प्रकाश पक्ष को ही देख सकती है।  जीवन के आनंद त्यौहार को ही जानती है। उसे केवल विवाह के सुखों की ही कल्पना है।  वह मधुर कल्पना में ही रमन कर रही है। उसे जीवन की वास्तिविकता का ज्ञान नहीं है।

प्र.४.माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी लग रही थी ?

उ. माँ अब तक अपनी बेटी को पालती पोस्ती आ रही है।  उसके साथ सुख - दुःख में सम्मिलित रही है। लेकिन कन्यादान की रस्म द्वारा अपना सर्वस्व किसी अन्य पराये को देने जा रही है।  वह अपनी बेटी को अपनी सबसे बड़ी पूँजी मानकर सहेजती आ रही है। अब ससुराल चली जायेगी तो वह किससे सुख -दुःख पूछेगी और उसकी देखभाल कौन करेगा।

प्र ५. माँ ने बेटी को क्या क्या सीख दी ?

उ.  माँ ने कन्यादान के समय बहुत सारी  सीख दी जिसमे कि - 
  • वह अपने रूप सौंदर्य पर गर्व न करे।  
  • कपड़े और आभूषणों में ही उलझ कर न रह जाए।  
  • घर -गृह्श्थी भोजन के में आग का प्रयोग करे ,लेकिन स्वयं न जल जाए।  
  • सरुराल में अबला बन कर न रहे और न किसी प्रकार का अत्यचार अपने ऊपर होने दे. 


रचना और अभिव्यक्ति 

प्र.६.  आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ?

उ.  हिन्दू विवाह में विवाह में विवाह को एक संस्कार माना जाता है।  विवाह के समय कन्या पक्ष के माता -पिता अपनी कन्या को वर पक्ष को  दान करते हैं।  अतः यह विवाह को संस्कार है। अन्य धर्मों ने विवाह को संविदा  दिया गौ ,कसी प्रकार का संस्कार नहीं। हिन्दुओं में कन्यादान को धार्मिक कृत्य मानकर किया जाता है।  
मेरे विचार से विवाह के समाय कन्या पक्ष के माता -पिता को योग्य वर का ही चयन  कन्यादान करना चाहिए। तभी उसकी नाज़ों में पाली -बढ़ी बेटी सही जायेगी और तभी कन्यादान का श्रेष्ठतम रूप सामने आएगा। अन्यथा आजकल बहुओं पर अत्यचार और आग से जलाकर मार देने की घटनाएँ आम हो हो  अतः माता -पिता को योग्य वर का चुनाव कर  विवाह के धार्मिक संस्कार कन्यादान को करना चाहिए।  


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COMMENTS

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  1. Ek Kanya ke man mein vaivahik jivan ki prya kaisi Kalpana rahti hai? kanyadan Kavita ke Aadhar per likhiye? Plz tell me answer of this most important question . Ye kal mere paper me aya h Vidya Bharati ki taraf se.

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