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लखनवी अंदाज़ Lakhnavi Andaaz
लखनवी अंदाज़ summary - लखनवी अंदाज़ कहानी एक व्यंगात्मक कहानी है .यशपाल जी मध्यवर्गीय समाज की दोहरे मानसिकता पर व्यंग करने में सिद्धहस्त हैं .कहानी के प्रारंभ में लेखक एक पैसेंजर ट्रेन से पास के ही स्टेशन तक यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट खरीदता है .उसे ज्यदा दूर जाना नहीं था इसीलिए वह चाहता था कि एकांत में बैठकर नयी कहानी के सम्बन्ध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य भी देख सके.
लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ गया . एक बर्थ पर लखनऊ की नबाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बाद सुबदीहा से पालथी मारकर बैठे थे। उनके सामने ही दो ताज़े खीरे तौलिये पर रखे थे। सज्जन ने लकेहक के आने पर कोई उत्साह नहीं दिखाया। लेखक को लगा कि सज्जन उन्हें अपनी बराबरी का आदमी नहीं मानते।
काफी देर बाद नबाब साहब ने लेखक को सम्बोधित किया और खीरे खाने को कहा - जनाब खीरे का शौक फरमाइए। लेकिन लेखक ने सधन्यवाद सहित लौटा दिया। कुछ समय बाद नबाब साहब ने खीरे के नीचे रखा हुआ तौलिया झाड़कर सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर खीरे को खिड़की के बहार धोया और तौलिये से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाला। दोनों सिरों को काट पर गोदकर झाग निकाला। फिर जीरा मिला नमक और मिर्ची हुई लाल मिर्च लगाकर करीने से तौलिये पर सजाते गए.
यह सब करने के बाद नबाब साहब ने लेखक को खीरे के लिए पूछा और कहा कि - "वल्लाह शौक कीजिये ,लखनऊ का बालम खीरा है। " लेखक को खीरे को देखक मुँह में पानी आ रहा था लेकिन औपचारकिकतावश मेदा कमज़ोर होने की बात कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया।इसके बाद नबाब साहब ने खीरे की एक एक फाँक उठाकर होंठों तक लाकर ,फाकों को सूंघ कर ही आनंद से भरकर खिड़की से बाहर फेंखते गए। इस प्रकार रसास्वादन कर खीरे को फेंककर गर्व से पुलकित होकर कह रहे थे जैसे कि यह खानदानी रईस का तरीका हो। लेखक को नबाब साहब के पेट से डकार का शब्द भी सुनाई दिया।
यह सब देखकर लेखक सोचने लगा कि खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से आदमी का पेट भर सकता है तो बिना विचार ,घटना और पात्रों के नयी कहानी का लेखक मात्र अपनी इच्छा से कहानी क्यों नहीं लिख सकता है। लेखक ने नयी कहानी के लेखकों पर व्यंग किया है.
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प्रश्न अभ्यास
प्र. १. लेखक को नबाब साहब के किन हाव - भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है ?
उ. लेखक के अचानक डिब्बे में आ जाने से नबाब साहब की आँखों में एकांत चितंत में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। खीरे जैसी अपदार्थ भोज्य पदार्थ को खाते देखे जाने में संकोच हो सकता था। इसीलिए नबाब साहब खिड़की से बाहर देखने लगे और उन्होंने लेखक की संगती के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया।
प्र. २. नबाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा ,नमक - मिर्च बुरका ,अन्ततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेँक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा ? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है ?
उ. नबाब साहब ने बहुत यत्न के साथ खीरे काट कर नमक मिर्च और जीरे की चटनी द्वारा बुरका लगाकर रखा। था लेखक द्वारा प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने पर नबाब साहब एक एक करके होंठों तक खीरे की फाखे लगा कर रसस्वादन कर खिड़की से बाहर फेंकते गए। वह लेखक को अपनी खानदानी तहजीब ,नफासत और नजाकत दिखाना चाहते थे। इस प्रकार वे अपना मिथ्या दम्भ और प्रदर्शन प्रियता को लेखक पर दिखाया है।
प्र. ३. बिना विचार ,घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत है ?
उ. मेरे विचार में बिना विचार ,घटना और पात्रों के कोई लेखक कहानी नहीं गढ़ सकता है। उद्देश्य , घटना के साथ विचार भी होना चाहिए ,तभी कहानी पूर्ण होती है। भले ही नबाब साहब खीरे को सिर्फ कल्पना से संतुष्ट हो जाए और पेट से डकार निकाले ,लेकिन कहानी इस तरह गढ़ा नहीं जाता है।
प्र. ४. आप इस निबंध को क्या नाम देना चाहेंगे ?
उ. मैं इस कहानी को को झूठी शान या ख्याली भोजन नाम देना चाहूँगा।
रचना और अभिव्यक्ति
५ .क. नबाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिये।
उ. नबाब साहब ने खीरे के नीचे रखा हुआ तौलिया झाड़कर सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर खीरे को खिड़की के बहार धोया और तौलिये से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाला। दोनों सिरों को काट पर गोदकर झाग निकाला। फिर जीरा मिला नमक और मिर्ची हुई लाल मिर्च लगाकर करीने से तौलिये पर सजाते गए.
७. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है ? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिये।
उ.जीवन में सनक का केवल नकारात्मक रूप ही नहीं होता है ,बल्कि हमें सकारात्मक रूप भी देखने को मिलता है। हमारे दैनिक जीवन में - घर की साफ़ सफाई करना ,दाँत साफ़ करना ,मन लगाकर अच्छे अंकों के लिए खूब पढ़ना ,खेल कूद में प्रथम आने के लिए जी - तोड़ मेहनत करना आदि है। भारत की आज़ादी के लिए स्वतंत्र सेनानिओं ने अपना सकारात्मक सनक का ही उपयोग करके भारत को आज़ादी दिलवाई। इस प्रकार सनक का सकारात्मक रूप लाभप्रद होता है।
अन्य प्रश्न -
प्र. लखनवी अंदाज़ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या सन्देश देना चाहा है ?
उ. लखनवी अंदाज़ कहानी में लेखक यशपाल जी ने व्यंगात्मक दृष्टि से नयी कहानी पर व्यंग किया है। कहानी में एक नबाब साहब साहब और उनके द्वारा खीरे काट कर खिड़की से फेंकने को आधार बनाकर अपने विचार व्यक्त . नबाब साहब सिर्फ खीरे को सूँघ कर संतुष्ट होने का दिखावा करते हैं। उनका ढोंगपन अवास्तविक है। इस प्रकार केवल प्रदर्शन कर आडम्बर द्वारा नयी कहानी के लेखक बिना विचार ,उद्देश्य ,पात्र और घटना मात्र अपनी इच्छा द्वारा कहानी लिख रहे हैं। अतः लेखक ने ऐसे वर्ग पर व्यंग साधा है।
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