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बालगोबिन भगत Balgobin Bhagat
बालगोबिन भगत पाठ का सार- बालगोबिन भगत रेखाचित्र के माध्यम से रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता ,लोक संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतिक है। वेश भूषा या ब्रह्य आडम्बरों से कोई सन्यासी है ,सन्यास का आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं . बालगोबिन भगत इसी आधार पर लेखक को सन्यासी लगते हैं . इस पाठ के माध्यम से सामाजिक रुढियों पर भी प्रहार किया गया है साथ ही हमें ग्रामीण जीवन की झाँकी भी दिखाई गयी है . बालगोबिन भगत ,कबीरपंथी एक गृहस्थ संत थे . उनकी उम्र साथ से ऊपर रही होगी . बाल पके थे . कपडे के नाम पर सिर्फ एक लंगोटी ,सर्दी के मौसम में एक काई कमली . रामनामी चन्दन और गले में तुलसी की माला पहनते थे . उनके घर में एक बेटा और बहु थे . वे खेतिहर गृहस्थ थे . झूठ ,छल प्रपंच से दूर रहते . दो टूक बाते करते . कबीर को अपना आदर्श मानते थे ,उन्ही के गीतों को गाते . अनाज पैदा पर कबीर पंथी मठ में ले जाकर दे आते और वहाँ से जो मिलता ,उसी से अपना गुजर बसर करते . उनका गायन सुनने के लिए गाँव वाले इकट्ठे हो जाते .
धान के रोपनी के समय में उनके गीत सुनकर बच्चे झूमने लगते ,मेंड पर खड़ी औरतें के होंठ काँप उठते थे .रोपनी करने वाले की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थी . कार्तिक ,भादों ,सर्दी - गर्मी हर मौसम में बाल गोबिन सभी को अपने गायन से सीतल करते।
बालगोबिन भक्त आदमी थे। उनकी भक्ति साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखने को मिला ,जिस दिन उनका एक मात्र पुत्र मरा , वे रुदन के बदले उत्सव मनाने को कहते थे। उनका मानना था कि आत्मा - परमात्मा को मिल गयी है। विरहणी अपनी प्रेमी से जा मिली। वे आगे एक समाज सुधारक के रूप में सामने आते हैं। अपनी पतोहू द्वारा अपने बेटे को मुखाग्नि दिलाते हैं। श्राद्ध कर्म के बाद ,बहु के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी करने को कहते हैं। बहु के बहुत मिन्नतें करने पर भी वे अटल रहते हैं। इस प्रकार वे विधवा विवाह के समर्थक हैं।
बालगोबिन की मौत उन्ही के व्यावकत्व के अनुरूप शांत रूप से हुई। अपना नित्य क्रिया करने वे गंगा स्नान करने जाते ,बुखार लम्बे उपवास करके मस्त रहते। लेकिन नेम ब्रत न छोड़ते। दो जून गीत ,स्नान ध्यान ,खेती बारी। अंत समय बीमार पड़कर वे परंपरा को प्राप्त हुए। भोर में उनका गीत न सुनाई पड़ा। लोगों ने जाकर देखा तो बालगोबिन्द स्वर्ग सिधार गए हैं।
प्रश्न अभ्यास balgobin bhagat extra question
प्र.१.खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उ १. बालगोबिन भगत एक कबीर पंथी गृहस्थ साधू थे। वे खेतबारी भी करते थे। वे कबीर को अपना साहब मानते थे। उन्ही के गीतों को गाते ,उनकी के आदेशों को मानते। वे कभी झूठ नहीं बोलते ,खरा व्वहार रखते। किसी को भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते ,न किसी से झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते न बिना पूछे व्ववहार में लाते। उपरोक्त व्ववहार उनके साधू होने के लक्षण हैं।
प्र२.भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उ२. भगत की पतोहू उन्हें अकेले इसीलिए नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि वह उनके पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी. वह उनके लिए भोजन का प्रबंध और बीमारी में सेवा टहल करना चाहती थी।
प्र३.भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उ३. भगत अपने बेटे की मृत्यु पर आनंद मनाने की बात करते हैं। उनका मानना था कि आत्मा परमत्मा के पास चली गयी। विरहणी अपने पिया के पास चली गयी। सिरहाने पर एक चिराग जला दिया और उसके सामने ही एक आसन पर बैठकर गीत गाने लगे. और अपनी पुत्र वधु को भी उत्सव मनाने को कहते हैं।
प्र.४.भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उ ४. बालगोबिन भगत एक कबीरपंथी मझोले कद के गोरे - चिट्ठे आदमी थे। उम्र साठ के ऊपर है। बाल पके थे ,लकिन साधुओं की तरह जटाजूट नहीं रखते थे। कपड़े कम पहनते थे। कमर में लँगोटी और सर पर कबीरपंथियों की सी कनपटी टोपी। जाड़े के मौसम में एक काली कमली ओढ़े रहते। मस्तक पर रामचंदी चन्दन तथा गले पर तुलसी की माला पहने रहते।
प्र५.बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उ५. बालगोबिन भगत के दिनचर्या से गाँव के लोगों को आश्चर्य होता ,वे सुबह सुबह उठकर दो मिल दूर िष्ठित नदी में स्नान कर आते थे। वापसी पर संत सगामम करते थे।
अपने व्यक्तिगत जीवन में वे झूठ नहीं बोलते थे ,न किसी की चीज़ छूते। सभी से प्रेम व्ववहार रखते। वे दूसरों के खेतों में शौच के लिए नहीं जाते थे। खेतों से जो भी अनाज पैदा होता ,उसे साहब के दरबार में ले जाकर ,दे देते ,वहाँ से जो कुछ मिलता ,उसी से अपना गुजर करते।
प्र.६.पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उ६, बालगोबिन भगत मधुर भक्ति के गीत गाया करते थे।वे प्रत्येक परिस्थिति और अवसर पर गायन कर लेते थे।धान रोपने के मौसम में वे गीत गाते थे। उनके गीत सुनकर बच्चे झूमते थे। औरतो के होंठ काँप उठते थे। भादों ,सावन ,कार्तिक हर मास के उनके गीत सुनने वाले ,मन्त्र मुग्ध हो जाते थे।गर्मियों के उमस में भी उनके गीतों का मधुर स्वर न जाने कितनों का ह्रदय शीतल करती। उनका गीत सुनकर लोग अपना सुख - दुःख भूल जाते थे।
प्र.७.कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधर पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उ ७. बालगोबिन भगत पाठ में लेखक ने कुछ ऐसे मार्मिक प्रसंग बना दिए है ,जिससे पाठकों का ध्यान जाता हैं। सामाजिक मान्यता के अनुसार वे अपने एकलौते बेटे के निधन का शोक नहीं मनाते ,बल्कि मानना है कि आत्मा - परमात्मा में मिल गयी।मृत शरीर की मुखाग्नि स्वयं न देकर अपनी पतोहू से दिलवाया।श्राद्धकर्म पूरा होने के बाद ,बहु के भाई को बुलाकर बहु की दूसरी शादी करने के लिए कहा।इस प्रकार वे विधवा विवाह के समर्थक थे।
प्र.८.धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उ८.धान की रोपाई के समय समूचे मोहल्ले को भगत की स्वर लहरियाँ चमत्कृत कर देती हैं। उनकी आवाज इतनी मनमोहक ऊँची व आरोही होती हैं कि बच्चे झूमने लगते ,मेड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते थे ,वे गुनगुनाते लगती।धान की रोपनी करने वाली अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती।इस तरह ,उनकी संगीत लहरी का जादू सारे वातावरण पर छा जाता।
रचना और अभिव्यक्ति
प्र.९.पाठ के आधार पर बताएँ की बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उ९. बालगोबिन भगत पाठ में भगत जी की कबीर पर श्रद्धा कई रूपों में आयी है।वे कबीर को अपना साहब मानते थे।अनाज में जो कुछ भी होता ,वे पहले कबीर भी दरबार में दो आते ,वहां से जो कुछ भी मित्रता ,उसे से अपना गुजर करते।वे किसी से बैर भाव नहीं रखते नहीं थे।किसी से झूठ बोलते।सभी से दो टूक बोलते।गृहस्थ होकर भी सांसारिक मोह माया से दूर रहते।इस प्रकार अपने जीवन कबीर की भाँती बिताते।
प्र.१०.आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उ१०.कबीर अपनी बातें ,आम जनमानस तक बिना बिना किसी लाग लपेटकर कहते थे। भगत जी भी कबीर को अपना आदर्श मानते थे।वे उन्ही की तरह आडम्बर रहित जीवन यापन करते थे.वे नर - नारी सभी को समान व्ववहार करते थे।गृहस्थ होकर भी साधू का सा जीते थे।ईश्वर की प्राप्ति के लिए वे संगीतज्ञ गायन भक्ति मार्ग को अपनाया।अतः उन्होंने अपना कबीर के उपदेशों के अनुरूप ढाल लिया था।
पाठ के आधार पर सिद्ध करें कि बालगोबिन भगत का चरित्र मनुष्यता लोक चेतना और सामूहिक चेतना का प्रतीक है?
जवाब देंहटाएंपाठ के अनुरूप यह स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत अपने सभी उत्तम गुणों,एक आदर्श कबीरपंथी,सरल स्वभाव,सभी से खरा व्यवहार,आत्मसम्मान ,समाज की निर्थक व गलत रूढ़िवादी विचारधारा का विरोध,सभी को सम्मान और बराबरी के दृष्टिकोण से देखना । इन सभी गुणों का उनमें गहराई से विलप्त होना उनके चरित्र को अत्यधिक चेतनावान बनाता हैं और समाज और मनुष्यों के लिए एक प्रतीक के रूप में उभरता हैं।
हटाएंBal govind ki prabhatiya kab shuru hokar kab khatm hoti thi
जवाब देंहटाएंagar thume ans pta chale to muje bhi batana
हटाएंKatik se shuru hokr falgun me khatam hoti thi
हटाएंUseful text
जवाब देंहटाएंKalam ka jadugar kise kha gya h?
जवाब देंहटाएंरामवृक्ष बेनीपुरी जी को।
हटाएंRambraksh Benipuri ko
हटाएंRambraksh Benipuri
हटाएंIsme konse muhavare prayog hue hai
जवाब देंहटाएंYe kahani kis jagah ki hai koi bta skta hai
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