मानवीय करुणा की दिव्य चमक ncert solutions मानवीय करुणा की दिव्य चमक extra questions मानवीय करुणा की दिव्य चमक question answer मानवीय करुणा की दिव्य चमक meaning आत्मकथ्य मानवीय करुणा की दिव्य चमक solution लखनवी अंदाज़ फादर बुल्के का जीवन परिचय manviya karuna ki divya chamak question answers manviya karuna ki divya chamak extra question question ans of chapter manviya karuna ki divya chamak of hindi shitij chapter 13 in hindi manviya karuna ki divya chamak questions summary of ek kahani yeh bhi manviya karuna ki divya chamak extra questions manviya karuna ki divya chamak questions and answers manviya karuna ki divya chamak ncert solutions
पाठ का सार manviya karuna ki divya chamak short summary - मानवीय करुणा की दिव्य चमक एक संस्मरण है जो की सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखा गया है।अपने को भारतीय कहने वाले फादर बुल्के जन्मे तो बेल्जियम के रैम्सचैपल शहर में जो गिरजों ,पादरियों ,धर्मगुरुओं भूमि कही जाती है परन्तु उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फादर बुल्के एक सन्यासी थे परन्तु पारम्परिक अर्थ में नहीं। सर्वेश्वर का फादर बुल्के के साथ अंतरंग सम्बन्ध थे जिसकी झलक हमें इस इस संस्मरण में मिलती है। पाठ के प्रारम्भ लेखक को ईष्वर से शिकायत है कि फादर के रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत था तो वह क्यों जहरबाद से मरे। वे प्राणी को गले लगते थे। वे इलाहाबाद लेखक से मिलने हमेशा आते थे।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी, फादर को याद करके अवसाद से भर जाते है। उसे वे दिन याद है ,जब वे परिमल की गोष्ठियों में पारिवारिक रिश्तों के रूप बंधे थे। रचनाओं सुझाव और बेबाक राय देना, घर के उत्सवों में बड़े भाई की तरग आशीष देना उनका स्वभाव था। लेखक के पुत्र का अन्नप्राशन भी फादर ने ही किया था। उनकी नीली आखों में वात्सल्य तैरता रहता था।
फादर जब बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में ,थे तभी उनके मन में सन्यासी बनने की इच्छा जाग उठी ,जब की उस समय उनके घर में दो भाई ,एक बहन और माता पिता थे। फादर को कीयाद बहुत आती। थी भारत आने के बाद अपनी जन्म भूमि रैम्सचैपाल भी गए थे।
भारत उन्होंने जीसेट संघ में दो साल धर्माचार की पढ़ाई की। कोलकाता बी.ये ,इलाहबाद में एम्. ये।प्रयाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग :उत्पत्ति और विकास पर शोध प्रबंध पूरा किया। फिर अंग्रेजी -हिंदी कोष तैयार और बाइबिल का अनुवाद। किया ४७ साल भारत वर्ष में रहने के बाद उनकी मृत्यु हुई।
फादर ने हमेशा की विकास व उन्नति के लिए कार्य किया। हर मंच से हिंदी की वकालत करते रहे। उन्हें इस बात का दुःख होता था कि ही हिंदी की उपेक्षा कर रहे हैं। १८ अगस्त ,१९८२ की सुबह दस बजे दिल्ली के निकलसन कब्रग्राह में उनका ताबूत ;लाया गया। इनका ईसाई विधि से अंतिम संस्कार किया गया। वहां पर जैनेन्द्र कुमार ,विजेंद्र स्नातक ,अजित कुमार ,डॉ. निर्मला जैन और मसीही समुदाय के सैकड़ों जान प्रस्तुत थे। फादर पास्कान ने कहा कि फादर बुल्के धरती में। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हो। सभी लोग उनकी मृत्यु पर शख व्यक्त कर रहे। लेखक ने फादर को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है और पवित्र ज्योति की तरह याद।
प्र .१. फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उ १. देवदार के वृक्ष की छाया मन को शांत करने वाली। फादर परिमल के समय में पारिवारिक रिश्ते में बंधे हुए थे। गोष्ठियों गंभीर बहस करना रचनाओं में बेबाक राय ,सुझाव घर में उत्सवों में संस्कार में वह पुरोहित की तरह आशीष देते। थे उनकी नीली आखों में वात्सलय दिखाई पड़ता था। अतः उनकी छत्रछाया देवदारु की वृक्ष की तरह थी।
प्र. २. फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
उ २. फादर बुल्के ,भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए थे।बेल्जियम से आकर वे भारत को अपनी कर्मभूमि बना लिया। वे भारत को ही अपना देश देश बना लिया। राम कथा उत्पत्ति और विकास के ऊपर उन्होंने शोध प्रबंध प्रस्तुत किया।
प्र. ३. पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उ. ३. फादर बुल्के को हिंदी से बड़ा प्रेम था। उन्होंने प्रयाग विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग से राम कथा उत्पत्ति और विकास पर शोध प्रबंध पूरा किया। आरतलिंक के प्रसिद्ध नाटक ब्लू वार्ड का रूपांतर नील पंक्षी के नाम से किया। उन्होंने अंग्रेजी हिंदी शब्द कोष तथा बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया। हर मंच से वे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत करते। उन्हें इस बात का दुःख होता कि हिंदी वाले ही हिंदी का निरादर कर रहे हैं।
प्र. ४. इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उ. ४. मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ में फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है ,उनमें वे एक आते संसायी थे। सफ़ेद चोगा धारण किया करते थे। वे बेल्जियम से आकर भारत में ही रहने लगे थे और भारत में लगे और भारत को अपना देश मान लिया था। उन्हें यहाँ की भाषा ,संस्कृति और लोगों से प्रेम था। वे लेखक (सर्वेश्वर दयाल सक्सेना) के प्रति बड़े भाई की तरग व्यवहार करते थे। वे हर मंच से हिंदी की उन्नति के लिए वकालत करते थे।
प्र. ५. लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उ.५. लेखक फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक इसीलिए कहा है कि क्योंकि फादर का व्वहार हर व्यक्ति के प्रति आत्मीय था। वे सभी के साथ एक पारिवारिक रिश्ते में बंधे थे। वे हँसी मज़ाक में निर्लिप्त रहते थे। किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित की तरह खड़े होकर आशीष देते। लेखक के बच्चे मुँह में अन्न का पहला दाना फादर ने ही डाला था। अतः उन्होंने पूरा जीवन मानव सेवा में बिताया।
प्र. ६.फादर बुल्के ने सन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उ ६. मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के का रूप अलग उभरता है। वे भारत आकर अन्य भारतीओं के साथ गहरी आत्मीयता स्तापित करते हैं। हिंदी भाषा के उत्थान के लिए वकालत करते हैं। साहित्य सेवा व जनसेवा रूचि लेते हैं। सभी के सुख - दुःख होते हैं। वे घर के उत्सवों में बड़े भाई की तरग आते थे और सभी को आशीष वचनों से भर देते थे। अतः लोग उन्हें अपने संस्कार मानते थे।
प्र. ७. आशय स्पष्ट कीजिए:
क . नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
उ.७.क. फादर की मृत्यु पर लोग इतनी संख्या में दुःख प्रकट करने वाले थे कि उन्हें गिना नहीं जा सकता था। उनके प्रियजन ,परिचित व मित्र इतनी संख्या में थे कि उन्हें गिनना असंभव था।
ख. फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत सुनने जैसा है।
उ.ख. फादर को याद करना अपने किसी आत्मीय जान को याद करना है। उनको याद करते ही मन किसी अवसाद वातावरण भर जाता है। अतः किसी शांत संगीत सुनने वातावरण जिस तरह निस्तब्ध हो जाता है ,उसी तरह फादर को याद करना होता है।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्र.८. आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उ.८. फादर ने भारत आने की योजना इस लिए बनाया होगा क्योंकि भारत एक धार्मिक देश है। यहाँ के लग आध्यात्मिक हैं और लोगों को धर्म ,साहित्य और परमात्मा के प्रति लगाव रहा है। अतः इन्ही सब बातों को खोज करने के लिए फादर आये।
प्र. ९. ‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि – रेम्सचैपल।‘ - इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं?
उ.९. उपरोक्त पंक्ति से फादर को देश प्रेम प्रकट हुआ है। उन्हें अपने जन्मभूमि रायमचैंपाल से बड़ा लगाव था। और भारत आकर भी रैम्सचिपल को भी नहीं भूले हैं।
हम जहाँ जन्म लेते हैं , वहीँ हमारी जन्मभूमि बन जाती है।धरती माता सामान है। हमें जन्मभूमि और वहां के लोगों से प्यार करना चाहिए। मानव सेवा व उनके उत्थान फादर बुल्के की तरग कार्य करना चाहिए। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे मातृभूमि को अपमानित हो , बल्कि हर जगह हमारों कामों के कारण सम्मानित हो।
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