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संस्कृति भदंत आनंद कौसल्यायन
sanskriti class 10 hindi summary - संस्कृति नामक निबंध भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा लिखित प्रसिद्ध निबंध है ,जिसने संस्कृति जैसे प्रश्नों की व्याख्या की गयी है। लेखक के अनुसार सभ्यता और संस्कृति जैसे प्रश्नो का सबसे प्रयोग किया जाता है लेकिन इसके साथ विशेषण का प्रयोग कर इनकी गलत व्याख्या की जाती है।
लेखक का कहना है कि आग और सुई धागे का प्रथम प्रयोग करने वाला मानव संस्कृत मानव था। जिस योग्यता ,प्रवृति अथवा प्रेरणा के बल पर आग या सुई धागे का आविष्कार हुआ ,वह संस्कृति है और जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की ,उसका नाम सभ्यता है।
एक संस्कृत किसी नयी चीज़ की खोज करता है उसके उत्तराधिकारिओं को वे चीज़ें अनायास ही प्राप्त हो जाती है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की ,आज का विद्यार्थी गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत , साथ ही अन्य नियमों को भी जानता है ,जिसे शायद न्यूटन नही होते ,लेकिन वह विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन जितना संस्कृत नहीं है।
लेखक के अनुसार हो सकता है कि प्रथम व्यक्ति ने पेट की भूख शांत करने या ठण्ड से बचने के आग का अविष्कार किया है। लेकिन जिस आदमी का पेट भरा ले,आकाश के नीचे सोकर आकाश के तारों पर जिज्ञासा प्रकट करता है। वह हमारी सभ्यता का विस्तार करता है। समाज में ऐसी मनीषी विद्यमान है ,जिन्होंने स्थूल भौतिक कारण को छोड़कर नए का आविष्कार किया है। बहुत से व्यक्ति स्वयं के भूखे रहने पर अपना भोजन दूसरों को देता है ,माँ रोगी बच्चे की सेवा करती है।रूस का लेनिन ,अपने डेस्क पर राखी डबल रोटी स्वयं न खा कर अन्य को खिला देता था। कार्ल मार्क्स संसार के मज़दूरों को सुखी देखने के लिए अपना सारा जीवन दुःख में बिता दिया।गौतम बुद्ध ने भी मानवता के लिए घर त्याग दिया।
भदंत आनंद कौसल्यायन जी का मानना रहा है कि जो योग्यता आग सुई धागे ,तारों की खोज तथा मानवता के लिए त्याग कराती , संस्कृति है। लेकिन सभ्तया क्या है ? आज मानव परस्पर कट मरने ,आत्म विनाश के साधन खोज रहा है। वह कल्याण की भावना से कोसो दूर चला गया है। संस्कृति के नाम पर कूड़े -करकट का ढेर इकठ्ठा किया गया है। मानव संस्कृति को बाँटा नहीं जा सकता है। इसमें कल्याण ही स्थायी है और अकल्याणकर स्थायी नहीं है।
प्रश्न अभ्यास ncert solutions of sanskrit class 10
उ. लेखक के अनुसार संस्कृति और सभ्यता समझ अभी तक नहीं बन पायी है ,क्योंकि इनका सबसे अधिक प्रयोग। इनके साथ विशेषण का प्रयोग कर - भौतिक सभ्तया और आध्यात्मिक सभ्यता द्वारा मनमाना प्रयोग किया जाता है। अतः इन विशेषणों की सही समझ आम जनमानस में होना चाहिए।
प्र २. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उ. आग की खोज मानव सभ्यता को नयी दिशा दी। इसके अनुसार पशु समाज से अलग हटकर मानव समाज में परिणत हुआ। शायद यह आग की खोज मांस पकाने के लिए ,जानवरों से रक्षा के लिए या फिर ठण्ड से बचने के लिए। आज भी अग्नि को सम्मान दिया जाता है। आज भी अग्नि को देवता मानकर पूजा जाता है। सबसे पहले द्वीप जलाये जाते हैं।अतः आग की खोज मानव को सभी प्राणियों में अग्रतम ले गयी।
प्र ३. वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उ. भदंत आनंद कौसल्यायन के अनुसार जो व्यक्ति अपनी योग्यता प्रवृति और प्रेरणा के बल पर किसी नए तथ्य या वस्तु की खोज करता है। वह संस्कृत मानव है। जैसे आग की खोज करने करने वाला और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला न्यूटन आदि संस्कृत मानव थे।
प्र४. न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उ. लेखक के अनुसार संस्कृत मानव वही हो सकता है जो नयी चीज़ें की खोज करता है ,भले ही उनकी संतानों को ऐसी चीज़ें आसानी से प्राप्त हो जाती है ,लेकिन वे संस्कृत नहीं है। न्यूटन जैसे व्यक्ति ने अपनी योग्यता ,प्रवृति या प्रेरणा के बलपर गुरुत्वाकर्षण जैसे सिद्धांत की खोज की। आज का विद्यार्थी न्यूटन से ज्यादा विषयों की जानकारी रखता है ,लेकिन वह सभ्य है ,न्यूटन जितना संस्कृत नहीं।
प्र ५.किन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उ. प्राचीन मानव लोहे के एक बड़े टुकड़े को घिसकर उसके एक सिरे को छेड़कर और छेद में धागा पिरोकर कपड़े के दो टुकड़ों को एक साथ जोड़ा करता था। इसका कारण शायद सर्दी से बचने या अपने शरीर की प्रवृति के कारण रहा है। मनुष्य पहले वृक्ष की छाल या पत्तों से ढककर अपना जीवन व्यतीत करता था। लेकिन सुई धागे की तकनीक अपना कर उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया उसके जीवन में क्रन्तिकारी परिवर्तन आ गया और आज भी आधुनिक मानव इस तकनीक का प्रयोग करता है।
प्र ६. ‘मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।‘ किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जब -
क. मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उ.आदिम मानव आधुनिक मानव तक की विकास यात्रा बड़ी महत्वपूर्ण व रोचक रही है। यात्रा में मानव समाज एक भी रहा है और भिन्न भी। सभ्यता के विकास के साथ मानव समाज में फुट पड़ती गयी और विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों ने जन्म लिया। आज इनमें मार -काट और हिंसा होती रहती है। अतः इनके अविभाज्य धर्म और संप्रदाय के रूप में विभाजन होता रहता है।
ख. मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
उ. मानव संस्कृति के कुछ संस्कृत मानवों करने का प्रयत्न किया जिनमें लेनिन ,बुद्ध ,महात्मा गाँधी ,ईसा आदि आते हैं। अतः कार्ल मार्क्स जैसे लोगों ने संसार के मज़दूरों को सुखी स्वयं जीवन भर उठाते रहे. अतः इन प्रबुद्ध मानवों ने त्याग द्वारा संस्कृति के एक होने का प्रमाण। दिया .
प्र ७. आशय स्पष्ट कीजिए: मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
उ. मानव ने अपनी योग्तया के बलपर न केवल आत्म विकाश के साधन खोजे ,बल्कि आत्म विनाश के साधन भी खोजे।एटम बम , हाइड्रोजन बम द्वारा अपनी ही संस्कृति का विनाश कर रहा है। दो विश्व युद्धों की मार झेल चुका मानव समाज आज तृतीय विश्व युध्य के कगार पर खड़ा है।अतः यह असंस्कृति है और अकल्याणकारी भावना है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्र ८. लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं, लिखिए।
उ. मेरे विचार से सभ्यता और संस्कृति जीवन में महत्वपुर्ण भूमिका निभाते है।संस्कृति सूक्ष्म गुण है यह किसी प्रबुद्ध मानव के अंदर पायी जाती है और वह संस्कृत मानव कहलाता है।
सभ्यता मूर्त रूप है।सभ्यता का लाभ संस्कृत मानवों की संताने उठाती है और अपनी योग्यता व आवश्यकतानुसार परिवर्तित करती रहती है।सभ्यता से हमारे खान पान रहन सहन व वेश भूषा का परिचय मिलता है।अतः संस्कृति अमूर्त और सभ्यता मूर्त रूप है।
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