शरणागत वृंदावनलाल वर्मा

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शरणागत वृंदावनलाल वर्मा
Sharnagat Vrindavan lal Verma

शरणागत कहानी का सारांश sharnagat summary in hindi - शरणागत वृंदावनलाल वर्मा जी एक महत्वपूर्ण एवं शिक्षाप्रद कहानी है।इस कहानी का प्रमुख पात्र रज्जब अपना व्यवसाय करके अपने गाँव ललितपुर लौट रहा था। उसके साथ उसकी बीमार पत्नी थी। रास्ता बीहड़ सुनसान था।  दिन समाप्त हो रहा था और गाँव अभी दूर था।  इस कारण वह अपनी पत्नी के साथ भड़पुरा गाँव में रूककर रात बिताना चाहता था।  रज्जब कई दरवाज़ों पर शरण के लिए गया परन्तु उसकी जाती और व्यवसाय को जानकार किसी ने भी उसे शरण नहीं दी। अंत में वह शरण की आशा से एक ठाकुर साहब के द्वार पर जाकर सलाम करके बोलै कि वह दूर से आ रहा है। उसकी पत्नी बीमार है। अतः रात भर के लिए कहीं शरण ले दीजिये।  उसकी जाति सुनकर प्रारम्भ में ठाकुर साहब शरण देना अस्वीकार कर देते हैं। परन्तु उसकी दीनता सुनकर अंत में शरण दे देते हैं। रज्जब अपनी पत्नी के साथ रात्रि में विश्राम करता है और प्रातः अन्धकार में ही चले जाने की बात कहता है।

रज्जब के सो जाने के बाद कुछ आते हैं हैं। उनकी बात -चीत से लगता है कि ये राहजनी करने वाले गिरोह के सदस्य हैं।  वे रज्जब का पीछा कर रहे हैं परन्तु सफल नहीं हो सके थे।

सबेरे रज्जब न जा सके क्योंकि उसकी पत्नी ठीक न हो सकीय।  विवश होकर उसने एक गाड़ी किराये पर लिया।  बीमार पत्नी के साथ वह ललितपुर के लिए काफी दिन चढ़े चला। गाड़ीवान बड़ी मंद गति से गाडी चला रहा था। इससे रज्जब और गाड़ीवान में बड़ी गरमा गरम बहस हुई।  घर पहुँचने के पूरब पुनः अन्धकार हो गया। बीच रास्ते में ही राहजनी करने वाले का दाल उसे मिला।  इस दल के नेता वही ठाकुर साहब थे जिनके यहाँ रज्जब रात में शरण लिया था। ठाकुर साहब रज्जब को पहचान जाते हैं।  उन्हें शरणागत धर्म की बात याद आती हैं। अपने साथियों द्वारा विरोध करने पर वह रज्जब की रक्षा करते हैं और वह लुटे जाने से बच जाता है।

ठाकुर साहब का चरित्र चित्रण 

शरणागत ललितपुर का रहने वाला रज्जब नामक कसाई था।  वह अपनी पत्नी को लेकर अपने पेशे का व्वसाय करके वापस लौट रहा था।पत्नी के अचानक तबियत ख़राब हो जाने से सर्वप्रथम जिस समय रज्जब ठाकुर साहब के द्वार पर जाकर शरण की याचना करता  करता है। उस समय एक अपरचित कसाई को अपने यहाँ शरण देना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। परन्तु जब वह दीन वाणी में बार -बार गिड़गिड़ाता है तो उनके मन में उसके प्रति दया उत्पन्न होती है। यहाँ कहानीकार ने यह बताना चाहा है कि ठाकुर साहब बड़े आदमी होकर बी एक दयावान और नेक इंसान हैं।  वे बहुत विचार वान व्यक्ति हैं और किसी कार्य को करने से पहले वे काफी आगे - पीछे सोचकर और समय आने पर सही निर्णय लेते हैं।  वह इस शर्त के साथ शरण देते हैं कि प्रातः काल ही वह उनके यहाँ से प्रस्थान कर देगा। इस प्रकार ठाकुर साहब के इस ववशार से उनका शरणागत धर्म भाव झलकता है।  वह अपनी गरिमा तथा इस धर्म की गरिमा से प्रभावित होकर उसके साथ यथोचित व्वहार करते हैं।  रज्जब वहीँ ठाकुर साहब की व्वसथानुसार रात्रि में विश्राम करता हैं।




ठाकुर साहब दूसरे दिन उसे गाड़ी करके चले जाने का प्रस्ताव रखते हैं। इस माध्यम से वह आसानी से घर पहुँच सकता था।  ठाकुर साहब का शरणागत के प्रति अच्छा व्वहार उस समय प्रकट होता है जब ठाकुर साहब के ही दल ने रज्जब को लूटने का बार -बार प्रयास किया। वह रज्जब को पहचान जाते हैं और शरणागत को लूटना वह अधर्म समझकर अपने साथियों के विरोध के वावजूद भी उसकी रक्षा करते हैं क्योंकि वह उनकी शरणागति में रहा है। अतः जिसे शरण का सहारा दिया जाय उसे लूटना ,प्रताड़ित करना और कष्ट पहुँचना उचित ही नहीं बल्कि बहुत बाद पाप और अधर्म हैं। शरणागति की रक्षा के लिए तो लोग अपने प्राण की बाज़ी तक लगा देते हैं।  ठाकुर साहब अपनी गरिमा और शरणागति धर्म की गरिमा को भली प्रकार समझते हैं।  वह निर्भीक प्रकृति के व्यक्ति हैं।  इसी कारण अपने दल के लोगों पर उनका अच्छा रोब है।  इसी रोब और अधिकार से वह रज्जब की रक्षा करने में सफल सिद्ध होते हैं।

अंततः ठाकुर साहब का चरित्र एक ऐसे संत व्यक्ति का चरित्र है जिसमें शरणागत धर्म की रक्षा का बहुत महान गुण है।  शरणागत की रक्षा उनका एक ऐसा महान गुण है जो उनके सभी अवगुणों को ढक कर समाप्त सा कर देता है।

शरणागत कहानी शीर्षक की सार्थकता

शरणागत व्यक्ति ललितपुर का रज्जब नामक कसाई था।  वह अपना व्वसाय करके अपनी पत्नी के साथ घर लौट रहा था।  उसकी पत्नी बीमार थी।मार्ग अत्यंत बीहड़ और निर्जन था।ललितपुर अभी बहुत दूर था। रात्रि हो चुकी थी। अतः कहीं शरण लेना उसके लिए आवश्यक हो गया था।वह भड़पुरा गाँव में शरण लेना चाहता था।परन्तु कसाई जाति का जानकार कोई भी उसे शरण देने को तैयार नहीं था।

अतः वह चारो ओर से निराश होकर गाँव के ठाकुर  शरण के पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने अपनी मज़बूरी का बयान किया। प्रारम्भ में तो ठाकुर साहब ने भी शरण देना स्वीकार नहीं किया परन्तु रज्जब के बार -बार अनुनय - विनय करने पर उन्हें दया आ गयी और उन्होंने रज्जब को शरण दे दी। कहानीमें ठाकुर साहब ऐसे  व्यक्ति का चरित्र है जिसमें शरणागत धर्म की रक्षा का बहुत महान गुण है।  शरणागत की रक्षा उनका एक ऐसा महान गुण है जो उनके सभी अवगुणों को ढक कर समाप्त सा कर देता है।

शरणागत कहानी के प्रमुख पात्र

वृन्दावनलाल वर्मा श्रम के महत्व के प्रबल समर्थक हैं, साथ ही मानव जीवन के लिए प्रेम और सहृदयता को आवश्यक तत्व मानते हैं।वर्माजी ने अपनी कहानी में शरणागत की रक्षा को प्रमुख उद्देश्य माना है। उनकी कहानी का शीर्षक ही उनके उद्देश्य पर प्रकाश डालता है। शीर्षक में कुछ महत्वपूर्ण गुणों का होना आवश्यक माना जाता है। शीर्षक में जिज्ञासावर्धक, संक्षिप्त और सारभाव अन्तर्निहित होना चाहिए। प्रस्तुत कहानी में शरणागत कौन है और उसकी रक्षा कैसे हुई यह बताया गया है। तुलसीकृत 'रामचरितमानस' में श्रीराम ने विभीषण को शरणागति दी थी और रावण से उनकी रक्षा भी की। यहाँ पर मड़पुरा गाँव के ठाकुर ने रज्जब कसाई को एक रात अपने यहाँ रुकने की इजाजत दी थी। ठाकुर ने उसे शरणागत माना और रास्ते में उसको लुटने से बचाया। अतः इस कहानी का शीर्षक सार्थक है। यदि कथानक कहानी का मेरुदण्ड है तो पात्र कहानी के प्राण हैं। पात्र नियोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कहानी की मूल घटनाएँ और अनुभूति इसी के द्वारा प्रकट की जाती है। पात्रों के चरित्र-चित्रण, मानसिक संघर्ष और गतिशीलता द्वारा ही कहानी में स्वाभाविकता आती है। 

इस कहानी में दो प्रकार के पात्र हैं-मूल पात्र और गौण पात्र । मूल पात्र कहानी के परम लक्ष्य का नायक होता है, यही वह शक्ति होती है जिसके सहारे कहानी में मूल संवेदना को उत्तेजित करने में सहायक होते हैं तथा मूल पात्र की आत्माभिव्यक्ति में माध्यम का कार्य करते हैं। कहानी में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए साथ-ही-साथ उनके चरित्र-चित्रण में विश्वसनीयता का बोध होना चाहिए। उक्त कहानी का प्रमुख पात्र 'ठाकुर' है। ठाकुर गरीब है तथा उसके पास थोड़ी-सी ही जमीन है। वह दबंग किस्म का व्यक्ति है। उसके प्रभाव को व्यक्त करने के लिए कहानीकार ने लिखा है कि गाँव के लोग उससे डरते हैं इसलिए उसे 'राजा' कहकर पुकारते हैं। 'वर्माजी' ने कहानी के इस पात्र के द्वारा यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि जब उस गाँव में कसाई होने के कारण रज्जब की कोई सहायता नहीं करता ऐसी परिस्थिति में वह यह जानते हुए भी कि गाँव के लोगों को इस बात का पता लगेगा तो उन्हें बुरा लगेगा, रज्जब को अपने यहाँ शरण देता है। ठाकुर निर्भीक, स्वाभिमानी, दयालु, सहृदय, अपनी बात का मान रखने वाला व्यक्ति है। अपने लुटेरे साथियों के साथ उपक निर्भीकता का परिचय देता है और कहता है, "परन्तु बुन्देला शरणागत के साथ घात नहीं करता, इस बात को गाँठ बाँध लेना।" यह कथन उसको चरित्र की ऊँचाई तक ले जाता है।

अन्य पात्रों में रज्जब, उसकी पत्नी, ठाकुर के साथी और बैलगाड़ी वाला है। इसमें रज्जब कसाई है, उसकी पत्नी बीमार होने के कारण सहायता की अपेक्षा करती है। ठाकुर के साथी रात में छोटी-मोटी लूटमार करते हैं और गाड़ीवाला भीरु व्यक्ति है। ये सभी पात्र कहानी को गति प्रदान करते हैं और उसे अपने उद्देश्य तक पहुँचाते हैं।

शरणागत कहानी के प्रश्न उत्तर

प्रश्न. रज्जब कौन था?उसका पेशा क्या था? वह अपने पेशे से मिले धन को लेकर कहाँ जा रहा था?क्या वह अपने गन्तव्य स्थल पर पहुँच सका? यदि हाँ, तो कैसे? 'शरणागत' कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
 
उत्तर- रज्जब एक गरीब इंसान है। वह जाति से कसाई तथा ललितपुर का रहने वाला था। इस समय रोजगार के लिए वह बाहर गया था जहाँ से लगभग तीन सौ रुपये की कमाई करके वह लाया था। उसके साथ उसकी पत्नी थी जो बुखार से तप रही थी। लौटते में देर हो गयी थी इसलिए उसे रात बिताने के लिए दो हाथ जगह चाहिए थी। उसे वापस ललितपुर जाना है।
 
रास्ता काफी सुनसान था और बीच में ही उसकी पत्नी की तबियत खराब हो गई, जिसके कारण उसने यह तय किया कि वह मड़पुरा गाँव में रातभर के लिए रुक जाये, लेकिन उसकी समस्या यह थी कि गाँव के लोग जानते हैं कि वह कसाई है इसलिए किसी ने उसे आश्रय नहीं दिया।अन्त में उसने गाँव के एक ठाकुर के घर जाने का निर्णय किया। ठाकुर ने उसे अपने मकान के एक कोने में रहने की अनुमति दे दी। रज्जब अपनी पत्नी के साथ वहाँ सो जाता है। सुबह होते ही ठाकुर उसे बाहर निकल जाने का हुक्म दे देता है।
 
उस समय रज्जब की पत्नी एक कदम भी चलने के योग्य न थी। वह जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है और यह सोचता है कि उसकी पत्नी शायद कुछ समय में ठीक हो जाये, परन्तु ऐसा न हुआ। अन्त में उसने एक गाड़ी किराये पर लेकर आगे जाने का निर्णय लिया। बड़ी मुश्किल के बाद उसे एक छोटी जाति का व्यक्ति अधिक किराया लेकर ले जाने के लिए राजी हुआ।

कुछ दूर चलने के बाद संध्या हो गई रास्ता काटने के उद्देश्य से रज्जब ने बातचीत की पहल की और गाड़ीवान से पूछा कि गाँव यहाँ से कितनी दूर मिलेगा।

बातचीत के दौरान गाड़ी थोड़ी दूर चली होगी कि बैल रुक गये। रास्ते में एक टुकड़ी खड़ी हुई थी जिसमें से एक आदमी ने कहा कि खबरदार जो कोई आगे बढ़ा। वे रज्जब से उसका नाम पूछते हैं और यह जानने पर कि वह कसाई है, उसमें से एक ने कहा इसका नाम रज्जब है इसे छोड़ दो। परन्तु गाड़ी पर खड़े लठैत ने कहा मैं आपकी बात न मानूँगा। जिस पर नीचे खड़े लठैत ने कहा कि उसे छूना मत, नहीं तो मैं तुम्हारी खोपड़ी चूर कर दूँगा, क्योंकि यह मेरी शरण में आया था। इतना कहने के बाद गाड़ीवान से कहा कि इसे ठिकाने तक पहुँचाना और इस बात का जिक्र किसी से मत करना ।

प्रश्न. शरणागत कहानी से आपको क्या शिक्षाएँ मिलती हैं? बुन्देला शरणागत के साथ कैसा व्यवहार करता है - कहानी के आधार पर स्पष्ट करें। 

उत्तर - वृन्दावन लाल वर्मा की शरणागत कहानी एक उद्देश्य-पूर्ण कहानी है। इस कहानी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के इस उच्च मूल्य की स्थापना की गई है कि शरणागत की हर प्रकार से सुरक्षा, संरक्षण व सहायता करनी चाहिए। कहानीकार ने प्रस्तुत कहानी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि प्रतिकूल परिस्थिति होने के बावजूद किस प्रकार उस ठाकुर ने रज्जब और उसकी पत्नी की सहायता की (रक्षा की), जबकि पूरा गाँव किसी कसाई को शरण देने के लिए तैयार भी नहीं था जो कि समाज की अस्पृश्यता की समस्या को प्रकट करता है। ऐसी परिस्थिति में ठाकुर उसे (रज्जब को) शरण देता है। वहीं दूसरी ओर कहानीकार ने शरणागत की रक्षा की घटना के माध्यम से एक अव्यक्त संदेश व शिक्षा देने का प्रयास किया है।
 
रज्जब एक कसाई था जो अपनी बीमार पत्नी के साथ अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। मार्ग में उसने रात के लिए आश्रय खोजने का प्रयास किया परंतु उसका व्यवसाय देखकर किसी ने भी उसे आश्रय नहीं दिया। अंत में गाँव का एक निर्धन ठाकुर बुन्देला उन्हें शरण देता है जिसे गाँव वाले व्यंजना से 'राजा' सम्बोधित करते थे । वह रज्जब को शरण ही नहीं देता बल्कि जान-माल की रक्षा भी करता है। जब उसके अपने साथी उस कमाई को लूटने की योजना लेकर उसके पास आते हैं तो बुन्देला उन्हें निरुत्साहित करने के लिए कहता है कि- कसाई की कमाई नहीं छूनी चाहिए क्योंकि वह अशुद्ध होती है।
 
कहानीकार ने बताया है कि सभी लोग अपना स्वार्थ व हित देखते हैं-रज्जब, गाड़ीवान, लुटेरे आदि सभी अपने-अपने हित को साधने में लगे हैं। रज्जब कैसे भी अपने गाँव पहुँच जाना चाहता है। गाड़ीवान अधिक से अधिक पैसे कमाने के लालच में रज्जब की पत्नी की बीमारी को भी अपना किराया बढ़ाने का वरदान मानता है। रज्जब स्वयं इस अवसर की तलाश में है कि समय मिलते ही उस लोभी गाड़ीवान का हिसाब कर दिया जाए। लुटेरे रज्जब का धन लूटने की ताक में हैं।
 
ऐसे में बुन्देला एक मात्र ऐसा व्यक्ति है, जो इन सभी लोगों के स्वार्थों से परे है। वह भारतीय संस्कृति का प्रतीक बनकर स्थिर खड़ा रहता है। वह रज्जब और उसकी सम्पत्ति को लुटने नहीं देता क्योंकि रज्जब उसकी शरण में रह चुका है। अपने शरणागत की रक्षा करना भारतीय संस्कृति का एक उच्च जीवन मूल्य है। यही कारण है किं वह अपने साथियों की अप्रसन्नता को भी झेल जाता है और उन्हें ललकार कर कहता है- "बुन्देला शरणागत के साथ घात नहीं करता, इस बात की गाँठ बाँध लेना।"
 
इस प्रकार लेखक ने कहानी के माध्यम से बताया है कि जीवन में अच्छा बुरा व्यवसाय चलता रहता है। लोग अपनी आजीविका के प्रसंग में तरह-तरह के कार्य करते हैं, परंतु मानवता की रक्षा करना सबसे ऊपर है। मानवता का यह आग्रह है कि शरण में आए व्यक्ति या प्राणी की हर संभव सुरक्षा व सहायता की जाए।

प्रश्न . "बहुत कोशिश की, परन्तु मेरे खोटे पेशे के कारण कोई सीधा नहीं हुआ ।" - वक्ता ने अपने पेशे को खोटा क्यों कहा? इसमें निहित भाव को स्पष्ट करते हुए प्रस्तुत कहानी के शीर्षक की सार्थकता लिखिए। 

उत्तर - प्रस्तुत कहानी 'शरणागत' वृन्दावन लाल वर्मा द्वारा लिखित एक सामाजिक कहानी है जिसमें लेखक बताना चाहता है कि अभी भी समाज में जात-पात व छुआछूत जैसे रोग विद्यमान हैं। वक्ता रज्जब पेशे से कसाई का काम करता है। वह अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। उसके पास दो-तीन सौ रुपए की बड़ी रकम थी। साथ में उसकी बीमार पत्नी थी। उसने 'मड़पुरा' नामक गाँव में रुकने का निश्चय किया पर किसी ने ठहरने के लिए जगह नहीं दी। वह अपनी 'कसाई' जात को छिपा भी नहीं सकता था क्योंकि रज्जब की पत्नी के पहनावे को देखकर कोई भी उनकी जात को पहचान सकता था ।
 
गाँव में एक गरीब ठाकुर रहता था। उसने रज्जब की जात पूछी। पहले तो उसने भी शरण देने से मना किया। ठाकुर ने कहा- "जानता है, यह किसका घर है ? यहाँ तक आने की कैसे हिम्मत की तूने ?" रज्जब बोला मैं जानता हूँ यह राजा का घर है। इसलिए शरण में आया हूँ। ठाकुर ने पूछा- "किसी ने तुमको बसेरा नहीं दिया ?" रज्जब ने उत्तर दिया- "बहुत कोशिश की परन्तु मेरे खोटे पेशे के कारण कोई सीधा नहीं हुआ।"
 
रज्जब को उसके पेशे के कारण गाँव का कोई व्यक्ति शरण देने को तैयार नहीं था। ठाकुर ने भी उससे कहा कि काम तो तुम्हारा बहुत बुरा है। रज्जब की मजबूरी थी। पेट के लिए कोई व्यवसाय तो करना ही था। वह कहता है- “क्या करूँ पेट के लिए करना पड़ता है। परमात्मा ने जिसके लिए जो रोजगार मुकर्रर किया है, वही उसको करना पड़ता है।" 

रात को कुछ लोग ठाकुर को बुलाने आए उनमें से एक ने कहा कि कोई कसाई रुपयों की गठरी बाँधे इसी ओर आया है। इस पर ठाकुर ने कहा वह कसाई का पैसा नहीं छुएगा। प्रातः होने पर ठाकुर ने रज्जब को घर से जाने को कह दिया।रज्जब की पत्नी का ज्वर तो हल्का हो गया था पर उसके बदन में दर्द था। वह एक कदम भी नहीं चल सकती थी।अतः उसने बहुत विनती की पर ठाकुर न माना, हालाँकि गाँव में उसका दबदबा था। रज्जब भी इस बात को मानता था। वह पत्नी को लेकर गाँव के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। इस समय वह हिन्दू मात्र को मन ही मन कोसने लगा।

रज्जब की पत्नी की अवस्था ऐसी नहीं थी कि वह पैदल चल सके अतः उसने गाड़ीवान को बुलाया। मुश्किल से एक छोटी जाति का व्यक्ति बहुत किराया लेकर चलने को तैयार हुआ। उस पर भी बीच में वह किराया कम होने की बात करने लगा। तब रज्जब दाँत पीसने लगा लेकिन फिर संयत होकर बोला- “भाई आफत सबके ऊपर आती है। मनुष्य मनुष्य को सहारा देता है। जानवर तो देते नहीं, तुम्हारे भी बाल-बच्चे हैं। कुछ दया के साथ काम लो।”
 
गाड़ीवान को टस से मस न होते देख रज्जब ने उसे और पैसे दिये तब वह आगे बढ़ा। बीच में रज्जब ने उससे पूछा कि वह कल फिर से पैसे तो नहीं माँगेगा उसने धमकी दी- "जानता है, मेरा नाम रज्जब है। अगर बीच में गड़बड़ करेगा तो साले को यहीं छुरी से काटकर कहीं फेंक दूँगा और गाड़ी लेकर ललितपुर चल दूँगा।"
 
गाड़ीवान चुपचाप चलने लगा। थोड़ी देर बाद ही कुछ लोगों को सामने देखकर गाड़ीवान रुक गया। उन्होंने रज्जब पर आक्रमण करना चाहा। रज्जब ने विनती करते हुए कहा कि वह बहुत गरीब आदमी है। उसकी औरत बीमार पड़ी है। अतः उसे जाने दिया जाए। लाठी वाले व्यक्ति ने भी कहा- "इसका नाम रज्जब है, छोड़ो, चलो यहाँ से"।पर दूसरा साथी नहीं माना और बोला- “असाई कसाई हम कुछ नहीं मानते," ठाकुर ने उसे रोकना चाहा लठैत बोला- “मैं कसाइयों की दवा हूँ।" नीचे खड़े व्यक्ति ने कहा कि यह मेरी शरण में आया है अगर तुमने इसे छुआ तो तुम्हारा सिर चकनाचूर कर दूँगा और गाड़ीवान को गाड़ी हाँकने का आदेश दिया, इस प्रकार रज्जब की जान बची। 

रज्जब को अपने कसाई के पेशे के कारण रास्ते में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसकी पत्नी ज्वर से पीड़ित थी। इस असहाय अवस्था में भी लोग उससे बात करने तक को तैयार नहीं थे। गाँव के एक गरीब ठाकुर ने शरण दी पर उसके मन में भी गाँव वालों का डर था। उसने रज्जब को सवेरा होते ही घर खाली करने को कहा क्योंकि अपने पेशे के कारण वह परेशानी में पड़ सकता था। इसलिए रज्जब को अपना पेशा खोटा लगा जिसमें कोई सम्मान न था। लेकिन ठाकुर ने शरणागत वत्सलता सिद्ध कर दी। अतः कह सकते हैं पाठ का नाम 'शरणागत' एकदम सही है। शीर्षक पढ़ते ही पूरी कहानी का चित्र आँखों में आ जाता है। इसके अतिरिक्त यह शीर्षक संक्षिप्त व उत्सुकता पैदा करने वाला है तथा पूरी कहानी अपने में समेटे हुए हैं। प्रारम्भ से अन्त तक सम्पूर्ण कहानी शीर्षक के ही इर्द-गिर्द घूमती है। अपने नाम को सार्थक करती है। 


MCQ Questions with Answers Sharnagat Kahani


बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर
 
1. शरणागत कहानी के लेखक का नाम लिखो - 

a. प्रेमचंद 
b. जयशंकर प्रसाद 
c. सुदर्शन 
d. वृंदावनलाल वर्मा 

उ. d. वृन्दावनलाल वर्मा 

२. "वह कसाई का पैसा नहीं छुएगा ". यह वाक्य किसने कहा ?

a. ठाकुर ने . 
b. रज्जब ने . 
c. लेखक ने . 
d. गाँव के लोगों ने . 

उ. a. ठाकुर ने 

३. गाँव के लोग ठाकुर को क्या कह कर बुलाते थे . 

a. किसान 
b. राजासाहब 
c. भाईसाहब 
d. चौकीदार 

उ. b. राजासाहब 

४. ठाकुर के गाँव का क्या नाम था ?

a. हरिपुर 
b. भडपूरा 
c. केशवपुर 
d. रामपुर 

उ. b. भडपूरा 

५. रज्जब कौन था ?

a. एक कसाई 
b. व्यापारी 
c .किसान 
d. ग्रामीण 

उ. a. एक कसाई 

६. रज्जब की पत्नी को क्या हुआ था ?
a. बुखार 
b. चोट लगी थी . 
c. सर्दी खाँसी 
d. तपेदिक 

उ. a.बुखार 

७. ठाकुर का पेशा क्या था ?

a. खेतीबारी करना . 
b. व्यापार करना 
c. राहजनी करना . 
d. किसानी करना 

उ. c. राहजनी करना 

8. रज्जब को किसने शरण दी थी ?

a. ठाकुर ने .
b. गाँव वालों ने 
c. गाँव के एक व्यक्ति ने 
d. किसी ने नहीं .

उ. a. ठाकुर ने 

९. ठाकुर किसानों से क्या वसूलता था ?

a. अनाज 
b. पेशगी लगान 
c. फसल 
d. गन्ना 

उ. b. पेशगी लगान 

१०. लोगों ने रज्जब को गाँव में शरण क्यों नहीं दी ?

a. वह चोर था . 
b. कोई उसे पहचानता नहीं था . 
c. वह पेशे से कसाई था 
d. लोग उससे नफरत करते थे . 

उ. c. वह पेशे से कसाई था . 

11. गाड़ीवान रज्जब की पत्नी को क्यों नहीं ले जाना चाहता था .
a. वह उसे जानता नहीं था . 
b. गाड़ीवान अधिक पैसा चाहता था . 
c. ठाकुर ने मना किया था . 
d. उसका जाने का मन नहीं था . 

उ. b. गाड़ीवान अधिक पैसा चाहता था . 

१२. "काम तो तुम्हारा बहुत बुरा है ." यह वाक्य किसने कहा ?

a. गाँव वालों ने 
b. राजा ठाकुर ने 
c. रज्जब ने 
d. गाड़ीवान ने 

उ. b. राजा ठाकुर ने 

१३. कहानी में शरण किसने किसको दिया ?

a. राजा ठाकुर ने रज्जब कसाई को 
b. गाँव वालों ने गाड़ीवान को 
c. लेखक ने ठाकुर को 
d. रज्जब ने ठाकुर को 

उ. a. राजा ठाकुर ने रज्जब कसाई को 

१४. बुंदेला किसे कहते है ?

a. गाँव के लोगों को 
b. गाड़ीवान को 
c. रज्जब कसाई को 
d. बुंदेलखंड के लोगों को 

उ. d. बुंदेलखंड के लोगों को 

१५. रज्जब कहाँ का रहने वाला था ?

a. भडपूरा 
b. ललितपुर 
d. रेवतीगंज 

उ. b. ललितपुर 

१६. "शरणागत कहानी " का उद्देश्य क्या है ?

a. भारतीय संस्कृति के महत्व को दर्शाना 
b. ग्रामीण सभ्यता का परिचय देना 
c. छुआछूत की बुराईयों से अवगत कराना 
d. मानवीय गुणों को दर्शाना 

उ. a. भारतीय संस्कृति के महत्व को दर्शाना 

१७. "भाई आफत सबके ऊपर आती है . मनुष्य - मनुष्य को सहारा देता है ." किसने ,किससे कहा ?

a. ठाकुर ने रज्जब से . 
b. रज्जब ने ठाकुर से 
c. रज्जब ने गाड़ीवान से . 
d. रज्जब ने गाँव वालों से 

उ. c. रज्जब ने गाड़ीवान से 

१८. ठाकुर के मकान को लोग आदर से क्या कहते थे ?
a. पौर 
b. गढ़ी 
c. गढ़ 
d. महल 

उ. b. गढ़ी 



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शरणागत वृंदावनलाल वर्मा
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