आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध नाटक है।आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रियंगुमंजरी राजकन्या है।वह महाकवि कालिदास की पत्नी बनती है।कथानक के रंगमंच पर वह अल्प समय के लिए आती है।दूसरे अंक में मातृगुप्त (कालिदास ) के साथ जाती हुई वह कालिदास के गाँव में रूकती है।
आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रियंगुमंजरी
आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध नाटक है।आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रियंगुमंजरी राजकन्या है।वह महाकवि कालिदास की पत्नी बनती है।कथानक के रंगमंच पर वह अल्प समय के लिए आती है।दूसरे अंक में मातृगुप्त (कालिदास ) के साथ जाती हुई वह कालिदास के गाँव में रूकती है। वह मल्लिका के घर जाकर उससे भी मिलती है , यहाँ उसके चरित्र की उदारता और सहृदयता का परिचय दर्शकों को मिल जाता है।नाटककार ने कथानक में प्रियंगुमंजरी की स्थिति विशेष प्रयोजन से रखी है।मल्लिका कालिदास की प्रेमिका है।आगे चलकर प्रियंगुमंजरी कालिदास की पत्नी बनती है।मल्लिका अपने त्याग से स्वयं उसके लिए स्थान रिक्त कर देती है।उपनायिका के रूप में नाटककार ने प्रियंगुमंजरी को प्रवेश कराकर उसे कौशल से नायिका का स्थान दिया है और सह नायिका जनित संघर्ष की स्थिति नहीं आने दी है।कथानक के दूसरे अंक में प्रियंगुमंजरी की जो संक्षिप्त झाँकी आती है ,वह सुन्दर है और उसके चरित्र की उदारता एवं सहृदयता को प्रकाशित करने में सहायक है।प्रियंगुमंजरी के चरित्र का विश्लेषण निम्न प्रकार किया जा सकता है -
प्रियंगुमंजरी मंच पर आते ही अपनी उदारता और सहृदयता का परिचय देती है।वह कालिदास के गाँव आती है और मातुल के यहाँ ठहरती है। उसके द्वारा मातुल का घर बनवाया जा चुका है।वह मातुल के प्रति सहृदयता प्रकट करती हुई कहती है -
"देखिये ,आज भी आपके यहाँ भटक रहे होंगे। जाकर उन्हें एक बाद देख लीजिये। "
प्रियंगुमंजरी मल्लिका की प्रसंसा करती हुई कहती है - " सचमुच वैसा ही जैसी कल्पना की थी। "
प्रियंगुमंजरी मल्लिका के घर आती है और बड़ी आत्मीयता का परिचय देती है।
"नहीं ,बैठना नहीं है। तुम्हे और तुम्हारे घर को देखना चाहती हूँ। उन्होंने बहुत बार इस घर की और तुम्हारी चर्चा की है। जिन दिनों मेघदूत लिख रहे थे ,उन दिनों प्रायः यहाँ का स्मरण किया करते थे। "
प्रियंगुमंजरी प्रकृति से प्रेम करती है।वह उन स्थलों की प्राकृतिक सुषमा को देखने को उत्सुक है ,जहाँ कि कालिदास की कविता का स्फुरण हुआ था।वह यहाँ की विभूति भी अपने साथ ले जाना चाहती है।
इतना ही नहीं प्रियंगुमंजरी मल्लिका को अपनी सखी बनाकर चाहती है और किसी अधिकारी से उसका विवाह कर देने का प्रस्ताव रखती है।वह मल्लिका की माँ के प्रति भी संवेदना प्रकट करती है :-
" मैं आपका कष्ट समझ रही हूँ ,जो भी सहायता मुझसे बन पड़ेगी। अवश्य करूंगी।"
संक्षेप में प्रियंगुमंजरी के चरित्र में हम निम्न विशेषताएँ देखते हैं -
- प्रियंगुमंजरी राजकन्या और कवि कालिदास की पत्नी है।
- प्रियंगुमंजरी की कथानक में स्थिति यद्यपि उपनायिका के रूप में हैं।परन्तु मल्लिका के त्याग के कारण संघर्ष की स्थिति नहीं आती।
- मल्लिका स्वयं पीछे हटकर प्रियंगुमंजरी स्थान रिक्त कर देती है।
- प्रियंगुमंजरी को कालिदास के काव्य से प्रेम है और यह प्रेम ही उसके कालिदास से विवाह कारण बनता है।
- प्रियंगुमंजरी राज वैभव शालिनी अनिद्य सुंदरी ,राजनीति एवं निति कुशल सहृदया और व्यववहार कुशल है।
इस प्रकार उपयुक्त विवेचन से कह सकते हैं कि प्रियंगुमंजरी के चरित्र की जो संक्षिप्त झाँकी सामने आती है , वह सहृदयता और उदारता से पूर्ण है।
बढ़िया
जवाब देंहटाएंAchha hai
जवाब देंहटाएंकृपया बताएं कि मातुल प्रियंगु से कुलीनता की क्या व्याख्या करता है??
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