आदिकाल वीरगाथाकाल की प्रमुख विशेषताएं प्रवृत्तियाँ विशेषता aadikal ki pravritiya visheshta visheshtayen आदिकाल वीरगाथाकाल की प्रमुख विशेषताएं प्रवृत्तियाँ विशेषता aadikal ki pravritiya visheshta visheshtayen
आदिकाल वीरगाथाकाल की प्रमुख विशेषताएं प्रवृत्तियाँ विशेषता
aadikal ki pravritiya visheshta visheshtayen
आदिकाल वीरगाथाकाल की प्रमुख विशेषताएं प्रवृत्तियाँ विशेषता aadikal ki pravritiya visheshta visheshtayen - वीरगाथाकाल का साहित्य राजनितिक दृष्टि से पतनोन्मुख ,सामाजिक दृष्टि से दीनहीन तथा धार्मिक दृष्टि से असंतुलित है . इस काल के साहित्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
१. आश्रयदाताओं की प्रशंसा -
इस काल के कवियों ने अपने अपने आश्रयदाताओं की बढ़ा - चढ़ाकर प्रशंसा की है . अपने आश्रयदाताओं को ऊँचा दिखाने के लिए विरोधियों को नीचा दिखाना इनका परम धर्म था . इन कवियों ने अपने आश्रयदाताओं को पराजित , कायर आदि नहीं दिखाया है . स्वर्ण मुद्रा के लोभ में इन कवियों ने इन राजाओं का झूठा यशगान किया है . परिणामत: इस काल का साहित्य स्तुतिगान हो गया है .
२. ऐतिहासिकता का अभाव -
इन रचनाओं में इतिहास प्रसिद्ध चरित्र नायकों को लिया गया है किन्तु उनका वर्णन ऐतिहासिक नहीं है . इसके कार्य - कलाप की तिथियाँ इतिहास से मेल नहीं खाती . इनमें इतिहास की अपेक्षा कल्पना की प्रधानता है . इसमें कवियों ने कल्पना और अतिरंजना का सम्रिश्रण किया है .
३. अप्रमाणिक रचनाएँ -
इस काल की रचनाओं की प्रमाणिकता संदिग्ध है . भाषा शैली और विषय वस्तु की दृष्टि से कई रचनाओं में व्यापक परिवर्तन मिलता है . लगता है , इन पुस्तकों में शताब्दियों टक परिवर्तन होने के कारण इनका वर्तमान स्वरुप संदिग्ध बन गया है .
४. युध्यों का सजीव वर्णन -
इन ग्रंथों का मुख्य विषय युध्यों और वीरता का वर्णन है . ये युध्य वर्णन अत्यंत सजीव है ,क्योंकि वे कवि राजाओं के साथ युदय भूमि में एक सैनिक की तरह भाग लेने वाले होते थे .
५. संकुचित राष्ट्रीयता -
इस काल की रचनाओं में राष्ट्रीयता का पूर्ण अभाव है . इस काल के कवियों के आश्रयदाता की उनके एक मात्र राष्ट्र थे . राजाओं ने भी अपने सौ - पचास ग्रामों को राष्ट्र समझ रखा था . यह देश का दुर्भाग्य था . राजाओं का आपसी संघर्ष ही राष्ट्रीयता के अभाव का प्रतिक है .
६. वीर तथा श्रृंगार रस -
इन वीर गाथाओं में वीर तथा श्रृंगार रस का अच्छा समनव्य दिखाई पड़ता है . उस समय बाल से लेकर ब्रिद्य टक में युध्य का उत्साह था . उस समय प्रचलित था -
"बारह बरस लौ कूकर जीवै, अरु सोरह लौ जियै सियार। बरस अठारह क्षत्री जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥
युद्धों का कारण प्रायः सुंदरियाँ होती थी . अतः उनका नख - सिख वर्णन करके राजाओं के मन में प्रेम जगाया जाता था . इस समय का श्रृंगार वासना से ऊपर नहीं उठ पाया था .
७. जन जीवन के चित्रण का अभाव -
इन चारण कवियों ने अपने की झूठी प्रशंसा में जन जीवन को भूला दिया है .
८. काव्य के दो रूप -
इस काल में मुक्तक तथा प्रबंध दोनों प्रकार की रचनाएँ मिलती है . जैन साहित्य में चरित्र साहित्य ,पुराण साहित्य ,राम काव्य ,कृष्ण काव्य ,रोमांटिक काव्य अधिक मिलते हैं . लोक साहित्य गीति शैली में लिखे गए हैं .
९. विविध छंदों के प्रयोग -
छंदों की विविधता के लिए यह काल सर्वोपरि है . दोहा , रोला , तोटक ,तोमर , गाथा ,आर्या इस काल के प्रसिद्ध छंद हैं . ये छंद प्रयोग चमत्कार प्रदर्शन से युक्त हैं .
१० . डिंगल भाषा का प्रयोग -
इस काल की मुख्य डिंगल भाषा है . यह भाषा राजस्थान की उस समय की साहित्यिक भाषा थी . कुछ लोग इस भाषा को अपभ्रंश भाषा कहते हैं .जैन साहित्य पश्चिमी अपभ्रंश और सिद्ध साहित्य पूर्वी अपभ्रंश में लिखा गया है . वीर काव्य डिंगल पिंगल में लिखे गए हैं . लौकिक काव्य पिंगल और खड़ीबोली की ओर उन्मुख हैं .
११. अंतर्विरोध -
आदिकाल अंतर्विरोध ,मतभेद और विभिन्नताओं का काल है . इसमें पूर्व और पश्चिम का भेद हैं . पश्चिम का साहित्य रूढिगत हैं . इसमें राजाओं की झूठी प्रशंसा है ,श्रृंगारिकता रचनाओं में बोली गयी हैं और मिथ्या नैतिकता का प्रचार किया गया हैं . पूर्व का साहित्य इसके विपरीत हैं . इसमें रुढियों का विरोध हैं ,ब्राह्मणवाद और जातिवाद पर प्रहार है . इस काल के एक ही कवि के एक ही काव्य में अंतर्विरोध खोजा जा सकता हैं . विद्यापति शैव भी हैं और वैष्णव भी . वह भक्त भी साथ की श्रृंगारी कभी भी रचनाएँ लिखते हैं .
१२. रासो शैली की प्रधानता -
आदिकाल में जीतने भी काव्य मिलते हैं उनमें अधिकांश की शैली रासक शैली है . रासक गेय रूपक को कहते हैं . इन्हें ताल लय के अनुसार नाच नाच कर गाया जाता हैं . इन्हें प्र्श्नोनोत्तर या दो व्यक्तियों के वार्तालाप में लिखा जाता हैं . सन्देश रासक , पृथ्वीराज रासो ,कीर्तिलता ,बाही बलिराम आदि इसी शैली का प्रयोग है . इस काल के रचना ग्रंथों में रसों शब्दों जुड़ा मिलता है .
१३. प्रकृति चित्रण -
इस काल में आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों में प्रकृति चित्रण मिलता है . नदियों ,पर्वतों ,नगरों ,प्रभात ,संध्या आदि के इन रचनाओं में सुन्दर चित्र मिलते हैं . इन चित्रों में स्वाभाविकता का प्रायः हर जगह अभाव है .
विडियो के रूप में देखें -
Thankyu so much sir
जवाब देंहटाएंThank u so Much sir
जवाब देंहटाएंSir PDF v
Nice site
जवाब देंहटाएंआदिकाल मे मुख्य किस भाषा मे काव्य लिखे जाते थे?
जवाब देंहटाएंअपभ्रंश
हटाएंThanks for help me in cce exams
जवाब देंहटाएंThanks sir
जवाब देंहटाएंThanks sir
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक सामग्री। धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंNishkarsh
जवाब देंहटाएंNishkarsh
जवाब देंहटाएंज्ञान वर्धक और उपयोगी फॉर CCE 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंVery helpful for making my assignment
जवाब देंहटाएंnice but it shoud be more
जवाब देंहटाएंआदिकालीन काव्य की विशेषताएं बताओ
जवाब देंहटाएंआपका भोहोत धन्यवाद भोहोत हि ज्ञानवर्धक सामुर्ग्री है.
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