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अँधेरे का दीपक
Andhere ka deepak By Harivansh Rai Bachchan
हरिवंशराय बच्चन की कविता "अँधेरे का दीपक" एक ऐसी रचना है जो जीवन के उतार-चढ़ाव, सुख-दुख और अस्तित्व के गूढ़ रहस्यों को बड़ी ही मार्मिकता से उजागर करती है। यह कविता एक ओर जहां व्यक्तिगत दुःख और क्षति के भावों को व्यक्त करती है, वहीं दूसरी ओर जीवन की अनश्वरता और आशावाद का संदेश भी देती है।"अँधेरे का दीपक" एक ऐसी कविता है जिसे पढ़कर मन को शांति मिलती है। यह कविता हमें जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में मदद करती है। यह कविता हमें बताती है कि जीवन में सुख और दुःख दोनों ही अस्थायी हैं। हमें हमेशा आशावादी बने रहना चाहिए और जीवन के हर पल का आनंद लेना चाहिए।
अँधेरे का दीपक कविता का भावार्थ व्याख्या
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था ,
भावना के हाथ से जिसमें वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहना चाहते हैं कि अँधेरी रात में प्रकाश के लिए दीपक जलाना चाहिए। हमें कभी निराश नहीं होना चाहिए। कवि यह कहता है कि काली अँधेरी रात है। हर तरफ अँधेरा छाया हुआ है। इस अँधेरे को मिटाने के लिए दीपक जला लेना चाहिए क्योंकि अँधेरे में दीपक जलाना मना नहीं है। दूसरे अर्थ में यह कहा जा सकता है कि जब हर निराशा और दुख का अँधेरा हो तो हमें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि उस दुख के अँधेरे में आशा का दीपक जला लेना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में आशान्वित होना अथवा आशा का दीपक जलाना मना नहीं है।
कवि कहता है कि हमने अपनी कल्पनाओं में जिस सुन्दर और मनोहारी घर की रचना की थी उस घर में हमने भावनारूपी चंदवा फैला रखा था अर्थात् प्रेम की भावना से उस घर का विस्तार किया था। इस प्रकार हमने उस घर को बड़ी ही रुचि से अपने सपनों के अनुसार सजाया था। उस घर को बड़ी मुश्किल से मिलने वाले रंग से रंगीन किया था अर्थात् ये मनोहारी रंग स्वर्ग जैसा आनन्द देने वाले होते हैं। लेकिन अचानक वह रंगीन और कमनीय मंदिर के नष्ट हो जाए अथवा किसी कारण से ढह जाए तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। ऐसे समय में हमें ईंट, पत्थर और कंकड़ों से फिर अपने घर बनाना कहीं भी मना नहीं है। ऐसा घर जिसमें शान्ति हो। इस प्रकार अंधेरी रात में दीपक जलाना कब मना है अर्थात् कभी मना नहीं किया गया है।
बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम,
प्रथम उशा की किरण की लालिमासी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम,
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनो हथेली,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - कवि कहते हैं कि बादलों ने बरस कर अर्थात् अपने आँसुओं से आसमान को धोकर चमका दिया है। नीलम मणि से मदिरा का पात्र बनाया गया है जो मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेने वाला तथा बहुत ही सुन्दर है। प्रथम ऊषा अर्थात् बाल सूर्य की किरणें जिस प्रकार लाल रंग की होती हैं उसी रंग जैसी मदिरा भी है। वह लाल मदिरा उस मनमोहक मदिरा के पात्र में भरी हुई है। पात्र में भरी हुई मदिरा ठीक वैसे चमक रही है, जैसे नवीन बादलों में बिजली चमकती है।
कवि कहता है कि वह मदिरा से भरा पात्र यदि टूट जाए तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी परिस्थिति में जब आपका पात्र और मदिरा दोनों ही नष्ट हो जाएँ, हमें अपनी दोनों अंजुलियों को जोड़कर किसी स्वच्छ झरने के जल से प्यास बुझा लेनी चाहिए। इस प्रकार यहाँ कवि यह समझाना चाहता है कि यदि सुख रूपी मदिरा का पात्र टूट जाए अर्थात् सुख नष्ट हो जाए तो हमें निराश होकर दुख नहीं मनाना चाहिए बल्कि सुख के अन्य साधनों से अपनी प्यास बुझा लेनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार जब घोर अँधियारी रात होने पर दीपक जलाने से कोई मना नहीं करता है, क्योंकि अँधेरे को पराजित करने के लिए एक दीपक भी पर्याप्त है।
क्या घड़ी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छा
आँख से मस्ती झपकती, बातसे मस्ती टपकती,
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार माना,
पर अथिरता पर समय की मुसकुराना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ऐसे समय की बात कर रहा था कि जब उसकी साथी अर्थात् उसकी पत्नी, उसका साथ छोड़कर चली जाती है।जब वह जीवित थी तब के समय के बारे में सोचते हुए कवि कहता है किं समय बहुत अच्छा था, किसी प्रकार की चिंता नहीं होती थी। कवि पूरी तरह से निश्चित था । कवि कहता है कि मेरे उस साथी की उपस्थिति के समय दुख का कालापन तो दूर मेरी पलकों पर दुख के सपने अथवा दुख की परछाईं भी नहीं छू पाती थी । निराशा के भाव करीब भी नहीं आते थे।
कवि अपने उस साथी की बातें याद करते हुए कहता है कि उसकी आँखों में मस्ती और आनन्द ही दिखाई देता था। उसकी हर बात में आनन्द होता था। उसकी हँसी ऐसी थी जिसकी खिलखिलाहट को सुनकर बादल भी शरमा जाते थे अर्थात् इस खुशी को देखकर दुख के बादल कभी समीप तक नहीं आए। कवि कहते हैं जब उनका साथी अर्थात् उनकी पत्नी उनके जीवन से दूर जाती है तो वह अपने साथ सारा आनन्द भी लेकर चली जाती है, क्योंकि कवि अपनी पत्नी को अपने आनन्द का आधार मानते थे। इतना होने के बाद भी कभी समय नहीं रुकता समय तो अस्थिर है, हमेशा चलता ही रहता है। इसी कारण सुख और दुख का आना-जाना लगा ही रहता है। ऐसे समय में दुखी रहने के स्थान पर मुस्कराना चाहिए। इसलिए कवि कहता है कि निराशा के अँधेरे में आशा का दीपक जलाना आवश्यक है।
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिसमें राग जागा,
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा,
एक अंतर से ध्वनित हो दूसरे में जो निरन्तर,
भर दिया अंबरअवनि को मत्तता के गीत गागा,
अन्त उनका हो गया तो मन बहलने के लिये ही,
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - कवि कहता है कि एक समय ऐसा था, जब हम हमेशा मस्त रहते थे जिसके कारण हमारे मन में प्रेम जाग जाता था। वह प्रेम इतना प्रिय था कि उस प्रेम के लिए हम सभी प्रकार धन-सम्पत्ति के सुखों की तरफ ध्यान भी नहीं देते थे। बस उस प्रेम के गीतों के गाने का आशीर्वाद ही माँगा, जिससे वह प्रेम हमेशा बना रहे। ये गीत एक दिल से ध्वनित होकर अपने आप दूसरे के दिल तक पहुँच जाते थे। इन दिलों के गीतों ने धरती से आसमान तक को गुंजायमान कर दिया था। हम सिर्फ मस्ती के ही गीत गाते थे ।
अब जब हमारा वह साथी बिछड़ गया जिसके साथ हमने प्रेम के गीत गाए। अब वो गीत भी बंद हो गए। अब मन बहलाने के लिए कोई अधूरी पंक्ति तो गुनगुनाई जा सकती है, क्योंकि बिना प्रिय के गीत पूर्ण हो ही नहीं सकते। उन अधूरे क्षणों की कुछ अधूरी पंक्तियों को लेकर जीवन को नीरस से सरस बनाना चाहिए। इस प्रकार निराशा के उन क्षणों में गीतों की अधूरी पंक्तियाँ आशा के दीपक की तरह हैं जो जीवन में आशा का संचार करती हैं। इस प्रकार निराशा भरे अँधेरे में आशारूपी दिया जलाना मना नहीं है।
हाय वे साथी कि चुम्बक लौहसे जो पास आए,
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए,
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे,
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह बताना चाहते हैं कि उनके साथी का आगमन किस प्रकार हुआ और वह कैसे उनके मन में समा गई। जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है वैसे ही उनके साथी ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया। इस प्रकार साथी चुम्बक और लोहे की तरह आने के बाद इतना करीब आए कि मानो हृदय में बस गए। जब मेरा प्रिय साथी मेरे साथ था, तब मेरे दिन बड़ी मधुरता से बीत रहे थे। वे दिन ऐसे बीत रहे थे जैसे तार, वीणा से मिलकर उसे सुरीला बना देता है उसी प्रकार अपने साथी से मिल जीवन भी सुरीला हो गया था। कवि कहता है कि हम दोनों तार और वीणा की तरह एक साथ मिलकर मधुरता से भरा प्यारा गीत गा रहे थे।
कवि का साथी हमेशा के लिए उन्हें छोड़कर चला जाता है। साथी इतनी दूर चला जाता है कि यह तय हो जाता है कि वह लौटकर फिर कभी नहीं आएगा। जब निश्चित हो गया कि मेरा साथी दुबारा नहीं आएगा तो ऐसे में निराश होने की आवश्यकता नहीं है बल्कि एक नए मित्र को खोज कर उसी मित्र को आशा की ज्योति मानकर जीवन में आशा का संचार करना मना नहीं है। इस प्रकार निराशा भरी अंधेरी रात में नए मित्ररूपी आशा की लौ जलाना मना नहीं है। यह जीवन हमेशा दुख मनाने के लिए नहीं है। हमें जीवन की सच्चाई को समझकर प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए।
क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना,
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना,
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका,
किन्तु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह बताता है कि इतनी तेज हवाएँ थीं कि मानो आँधी हो। जिस प्रकार आँधी के चलने से बने और बसे-बसाए घर उजड़ जाते हैं, उसी प्रकार उन तेज हवाओं ने कवि के उस घर को नष्ट कर दिया जिसमें प्यार रचा-बसा था। ऐसे समय में बहुत शोर मचाया, बहुत रोया-धोया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। इस प्रकार प्रकृति के इस विनाश लीला के सामने मनुष्य कितना बेबस हो जाता है। कवि कहता है कि शक्ति बहुत प्रबल है। उन कठोर और प्रबल नियमों पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं है। इस प्रकार बसे बसाए प्रेम को प्रकृति के नष्ट की शक्ति पूरी तरह से समाप्त कर देती है।
कवि मनुष्य को सृजनात्मकता का प्रतिनिधि मानते हुए कहता है कि मनुष्य को अपनी सृजनात्मक शक्ति प्रकृति को दिखानी होगी। यह भले ही प्रकृति का कठोर नियम है जो भी बसता है वह उजड़ता अवश्य है। लेकिन मनुष्य के हाथ में सृजन की शक्ति है वह फिर से उजड़े हुए आशियाने का फिर से निर्माण कर सकता है। इसलिए मनुष्य को यह चाहिए कि वह उजड़े हुए प्रेम के आशियानों को फिर से बसाए। इस प्रकार प्रकृति के इस विनाशक अँधेरे में सृजन के दीपक की ज्योति जलाना मना नहीं है।
अँधेरे का दीपक कविता का मूलभाव समरी इन हिंदी Andhere Ka Deepak Poem Summary
अँधेरे का दीपक कविता हरिवंशराय बच्चन जी द्वारा लिखित एक आशावादी कविता है . उनका मानना है कि जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए . आशावाद ही जीवन का ध्येय होना चाहिए ,बल्कि ऐसी अँधेरी रात में दीपक जलाना चाहिए .हरिवंशराय बच्चन जी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने अपने काव्य के माध्यम से मनुष्य के नैराश्यपूर्ण जीवन में आशा का दीपक प्रज्ज्वलित किया। बच्चन जी की अनेक रचनाएँ इस भावना से ओत-प्रोत हैं। प्रस्तुत कविता 'अँधेरे का दीपक' भी एक ऐसी ही कविता है।
प्रस्तुत कविता में बच्चन जी यह कहते हैं कि रात कितनी भी अँधेरी हो उससे घबराना नहीं चाहिए। कवि कहता है कि ऐसी अँधेरी रात में दीपक जला लेना चाहिए। यहाँ अँधेरा नैराश्य का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर दीपक आशा की लौ है।हमारी कल्पनाओं का महल जो भावनाओं में फैला हुआ था जिसको अनेक दुष्प्राप्य रंगों से सजाया था यदि वह कभी टूट जाए तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। अपितु पुनः बिखरे सामानों को इकट्ठा कर एक कुटिया बनाने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार विनाश से हताश होने के स्थान पर निर्माण की ओर प्रवृत्त होना चाहिए।
कवि कहता है कि जब उसकी संगिनी उसके साथ थी, तब उसे किसी भी प्रकार की चिंता नहीं थी। नैराश्य और दुख की परछाई भी कभी उसके निकट नहीं आई। कवि अपनी संगिनी की आँखों में, बातों में जीवन का आनन्द पाता है। लेकिन वह संगिनी भी जो कवि के आनन्द का कारण थी उसके जीवन से चली गई। लेकिन दुख की यह घड़ी कब समय के साथ बीत जाती है। समय बीतने के बाद मुस्कराहट के रूप में जीवन में आशा का संचार करना आवश्यक है।
कवि अपने आनन्द के क्षणों को याद करते हुए कहता है कि हम हमेशा अपने प्रेम में मग्न होकर प्रेम का गीत गाते रहते थे। उस गीत से आसमान और धरती दोनों गुंजायमान होते थे। माना कि संगिनी के जाने से उन गीतों का अंत हो गया लेकिन स्मृति पटल पर अंकित उन गीतों की अधूरी पंक्तियों को गुनगुनाना मना नहीं है। ये अधूरी पंक्तियाँ आशा का संदेश सुनाएँगी। इस प्रकार संगिनी से वह ऐसे मिला जैसे चुम्बक और लोहा एक दूसरे के साथ मिलते हैं। वे कब दिलों में बस गये कि पता ही न चला। साथ मिलकर वीणा की भाँति अनेक मधुर गीत गाए। अंत में वह कभी लौटकर वापस न आने के इरादे से छोड़कर गयी तो मन उदास हो गया। परन्तु ऐसे समय में भी दूसरा मन मीत खोजकर जीवन को फिर से सृजित करना मना नहीं है।
उसी प्रकार जीवन में समय का तूफान ऐसा चलता है कि सपनों के महलों को चूर-चूर कर देता है। यह माना जा सकता है कि प्रकृति के आगे किसी का वश नहीं चलता। लेकिन यदि प्रकृति में नाश करने की शक्ति है तो मनुष्य में भी निर्माण करने की शक्ति है। इसलिए उजड़ों को बसाना मनुष्य का कर्त्तव्य है। यही कवि का संदेश है।
कवि हरिवंशराय बच्चन का साहित्यिक परिचय
श्री हरिवंशराय बच्चन जी का जन्म सन् 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ 'बच्चा' या संतान होता है। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए। इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू. बी. यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।
सन् 1926 में 19 वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय 14 वर्ष की थीं। लेकिन 1936 में श्यामा की टी.बी. के कारण मृत्यु हो गई। पांच साल बाद 1941 में बच्चन ने तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं। इसी समय उन्होंने 'नीड़ का पुनर्निर्माण' जैसी कविताओं की रचना की। तेजी बच्चन से अभिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए। अभिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर ने अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया है। श्री हरिवंश राय बच्चन जी का 18 जनवरी, 2003 को मुम्बई में निधन हो गया।
उनकी कृति 'दो चट्टानें' को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
बच्चन व्यक्तिवादी गीत कविता या हालावादी काव्य के अग्रणी कवि हैं। अपनी काव्य-यात्रा के आरम्भिक दौर में बच्चन जी 'उमर खैयाम' के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे और उनकी प्रसिद्ध कृति, 'मधुशाला' उमर खैयाम की रुबाइयों से प्रेरित होकर ही लिखी गई थी। मधुशाला को मंच पर अत्यधिक प्रसिद्धि मिली और बच्चन काव्य प्रेमियों के लोकप्रिय कवि बन गए। बच्चन जी सुकुमारता और कोमलता के कवि हैं। बच्चन जी ने माना है कि जीवन मधुकलश की तरह है, जिसे दुनियारूपी मधुशाला में, कल्पना की साकी द्वारा पाठकों को यह जीवन रस पिलाया जाता है। जीवन के इस कड़वे खट्टे घूँट को सहजता से स्वीकार करना चाहिए। इसे ही बच्चन का हालावादी दर्शन कहा गया है। बच्चन जी स्वच्छंद काव्यधारा के कवि हैं।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं-
काव्य संग्रह - मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1939), निशा- निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, मिलन- यामिनी, हलाहल, आरती और अंगारे, धार के इधर-उधर, आदि ।
आत्मकथा - क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर-फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।इन रचनाओं के साथ बच्चन जी ने अनेक रचनाओं का अनुवाद भी किया।
अँधेरे का दीपक कविता का प्रश्न उत्तर
प्रश्न. 'अँधेरे का दीपक' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है, समझाकर लिखें।
उत्तर- 'अँधेरे का दीपक' कविता में हरिवंशराय बच्चन जी ने अनेक उदाहरणों के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि हमें कभी भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार एक छोटा-सा दीपक अंधकार को नष्ट करने के लिए काफी है ठीक उसी प्रकार निराशा और दुख को दूर करने के लिए आशा की एक किरण ही काफी है।
कवि ने कहा है कि हम अपने जीवन को भावनात्मक रूप से सजाते हैं। अगर यह भावनाओं का संसार किसी कारण टूट जाता है तब हमें उन बिखरे हुए सामानों से नए घर का निर्माण करना चाहिए।
ढह गया वह तो जुटाकर, ईंट, पत्थर, कंकड़ों को,
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है ?
इस प्रकार यहाँ कवि ने निराशा में आशा का संचार किया है। जब सुख के दिन नहीं रहे तो दुख के दिन भी नहीं रहेंगे। अतः मनुष्य को दुख से निराश न होकर उसे स्वीकारना चाहिए। उससे संघर्ष करते हुए सुख की ओर आगे बढ़ना चाहिए। इस प्रकार कवि ने इन पंक्तियों में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा दी है।
अँधेरे का दीपक इस कविता में कवि ने एक दार्शनिक की भाँति जीवन की व्याख्या की है। मानव जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद साथ ही साथ प्रवाहित होते रहते हैं। इस जीवन का यदि आधा भाग दुख से परिपूर्ण है तो आधा भाग सुख से भी भरा हुआ है। इस कविता में कवि ने दुख से घबराने की बजाय उसे स्वीकार करने और उसका सामना करने पर बल दिया है। प्रकृति के नियमों के सामने कभी किसी की नहीं चली है। विनाश के बाद ही निर्माण का आरंभ होता है।
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से,
के पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है ?
यहाँ कवि हमें यही शिक्षा देना चाहता है कि जीवन के उतार-चढ़ाव से हमें विचलित नहीं होना चाहिए। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। प्रकृति में सृजन और संहार चलता ही रहता है। इन परिवर्तनों से विचलित होने की अपेक्षा मुस्कराने का संदेश देना ही कवि का उद्देश्य है।
प्रश्न. 'पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है ?' के द्वारा कवि ने आस्थावादी संदेश दिया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हरिवंशराय बच्चन जी छायावादी युग के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपने काव्य में मानवीय भावनाओं को एक मनोवैज्ञानिक अभिव्यक्ति प्रदान की है। प्रस्तुत कविता बच्चन जी की ऐसी कविता है जिसमें सुख और दुख के प्रति दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है। प्रकृति के नियम कठोर हैं वे हमारे अनुसार नहीं चलते अपितु हमें उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होता है। रात अँधेरी है सर्वत्र निराशा है ऐसे समय में आशा का दीपक जलाना मना नहीं है। कविता की प्रथम पंक्ति इसी बात का संदेश देती है । है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है ? इतना ही नहीं कवि कहता है कि अपने प्रिय से विरह का दर्द बहुत पीड़ादायक होता है। लेकिन ऐसा होने पर भी मरने के साथ मरा नहीं जाता। कवि के अनुसार ऐसे समय में एक नए साथी की खोज कर जीवन में आशा का संचार करना बहुत आवश्यक है।
वे गए तो सोचकर यह, लौटने वाले नहीं वे,
खोज मन का मीत कोई, लौ लगाना कब मना है ?
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि बच्चन जी आशावादी कवि हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से आशावाद का संदेश देने का प्रयास किया है। इसी आशा के बल पर हम बड़े से बड़ा दुख उठाकर भी जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। यह कविता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। दुख में भी मुस्कराने की प्रेरणा देती है। कवि इस कविता में दुख के महत्व को भी बताता है। कवि कहता है कि दुख से जीवन में निखार आता है। दुख आने पर ही हम उससे बचने के लिए सृजन के विकल्प का चयन करते हैं। कई लिए ठीक जो बसे हैं वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से, पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है ?
कवि के अनुसार जीवन जीने के लिए है, जीवन का आनंद लेना चाहिए। यही कवि का आस्थावादी दृष्टिकोण है। प्रकृति के सृजन और संहार से विचलित हुए बिना जीवन में हमेशा मुस्कराते रहना ही आशावदिता का परिचायक है। हर परिस्थिति में आनंदित रहना ही जीवन जीने की कला है।
प्रश्न. भावपक्ष और कलापक्ष के आधार पर 'अँधेरे का दीपक' कविता का विवेचन कीजिए।
उत्तर- हरिवंशराय बच्चन छायावादी युग के आस्थावादी कवि थे। बच्चन जी की कविताओं में जीवन की अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति हुई है। कवि ने अपनी कविताओं में जीवन के उतार-चढ़ाव से विचलित नहीं होना चाहिए। कवि आम आदमी से जुड़े हुए हैं। आम आदमी की पीड़ा ही इनके काव्य का प्रतिपाद्य है। हर परिस्थिति में हमें आनंदित रहना चाहिए।
बच्चन जी कोमलता और सुकुमारता के कवि हैं। इन्होंने आम आदमी की पीड़ा, उसके दुख-दर्द को बड़े ही सामान्य ढंग से अपने गीतों में प्रयुक्त किया है। कवि ने निराशा में आशा का संचार किया है। जब सुख के दिन नहीं रहे तो दुख के दिन भी नहीं रहेंगे। ऐसा विचार कर कवि कहता है कि अगर हमारा कमनीय महल नष्ट हो जाए तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है-
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को,
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है।
कवि यह भी कहता है कि बसे हुओं को उजाड़ना प्रकृति का कठोर नियम है। जहाँ एक ओर प्रकृति विनाश करना चाहती है वहीं दूसरी ओर मनुष्य में सृजन की क्षमता भी है। इसीलिए उजड़े हुए को बसाना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है, यह बताते हुए कवि कहता है कि-
जो बसे हैं, वो उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है?
बच्चन जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। भाषा सरल, स्पष्ट और मार्मिक है। जीवन के गहरे से गहरे भाव को अभिव्यक्त करना ही उनकी काव्य कला की विशेषता है। बच्चन जी ने सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदन से शैली का प्रयोग किया है।
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई ।
इस प्रकार बच्चन जी की कविता में अपनी सरल भाषा में भावनाओं का सुंदर संयोजन किया है। इस प्रकार बच्चन जी के काव्य का भावपक्ष जितना सबल है. उनका काव्य पक्ष भी उतना ही सक्षम है।
प्रश्न . 'पठित कविता में कवि ने आशा से निराशा पर विजय प्राप्त करने का संदेश दिया है।' इस कथन को सोदाहरण समझाइए ।
उत्तर- 'अँधेरे का दीपक' कविता में हरिवंशराय बच्चन जी ने अनेक उदाहरणों के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि हमें कभी भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जिस प्रकार एक छोटा-सा दीपक अंधकार को नष्ट करने के लिए काफी है ठीक उसी प्रकार निराशा और दुख को दूर करने के लिए आशा की एक किरण ही काफी है।
कवि ने कहा है कि हम अपने जीवन को भावनात्मक रूप से सजाते हैं। अगर यह भावनाओं का संसार किसी कारण टूट जाता है तब हमें उन बिखरे हुए सामानों से नए घर का निर्माण करना चाहिए।
ढह गया वह तो जुटाकर, ईंट, पत्थर, कंकड़ों को,
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है ?
इस प्रकार यहाँ कवि ने निराशा में आशा का संचार किया है। जब सुख के दिन नहीं रहे तो दुख के दिन भी नहीं रहेंगे। अतः मनुष्य को दुख से निराश न होकर उसे स्वीकारना चाहिए। उससे संघर्ष करते हुए सुख की ओर आगे बढ़ना चाहिए। इस प्रकार कवि ने इन पंक्तियों में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा दी है।
अँधेरे का दीपक इस कविता में कवि ने एक दार्शनिक की भाँति जीवन की व्याख्या की है। मानव जीवन में सुख-दुख, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद साथ ही साथ प्रवाहित होते रहते हैं। इस जीवन का यदि आधा भाग दुख से परिपूर्ण है तो आधा भाग सुख से भी भरा हुआ है। इस कविता में कवि ने दुख से घबराने की बजाय उसे स्वीकार करने और उसका सामना करने पर बल दिया है। प्रकृति के नियमों के सामने कभी किसी की नहीं चली है। विनाश के बाद ही निर्माण का आरंभ होता है।
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से, पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है ? यहाँ कवि हमें यही शिक्षा देना चाहता है कि जीवन के उतार-चढ़ाव से हमें विचलित नहीं होना चाहिए। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। प्रकृति में सृजन संहार चलता ही रहता है। इन परिवर्तनों से विचलित होने की अपेक्षा मुस्कराने का संदेश देना ही कवि का उद्देश्य है।
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harivansh rai bachchan
Andhere ka deepak By Harivansh Rai Bachchan
अँधेरे का दीपक एक्सप्लेनेशन
Badal kya hota hai
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