भक्तिकाल की पृष्ठभूमि भक्ति काल की कविता भक्तिकाल के कवियों की सूची भक्तिकाल की परिस्थितियाँ भक्तिकाल का विभाजन सगुण भक्ति काव्य की विशेषता भक्तिकाल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है भक्तिकाल की विशेषताएँ भक्तिकाल की पृष्ठभूमि सगुण काव्य धारा की प्रवृत्तियाँ सगुण काव्यधारा की प्रवृत्तियाँ भक्ति काल की कविता भक्तिकाल के कवियों की सूची भक्तिकाल की परिस्थितियाँ bhakti kaal ki pravritti bhakti kaal ki prabhatiya bhakti kaal ke kavi ki kavita bhakti kaal ki paristhitiya bhakti kaal ka naamkaran nirgun bhakti in hindi sagun bhakti in hindi nirgun bhakti kavya dhara in hindi
भक्तिकाल की प्रवृत्तियाँ विशेषताएँ
bhakti kaal ki visheshtayen bhakti kaal ki pravritti
bhakti kaal ki visheshtayen bhakti kaal ki pravritti - भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का महत्वपूर्ण काल है . यह साहित्य अपने पूर्ववर्ती तथा परवर्ती साहित्य से सर्वथा भिन्न विशिष्ट साहित्य है . साहित्य के इतिहास का वह काल जिसमें संत कवियों ने अपनी अमृतवाणी से जनमानस को सिंचित कर उनके ज्ञान का दीप जलाया और पत्नोंमुख समाज में अपनी दिव्यवाणी से नवीन चेतना जागृत कर मानवीय मूल्यों की स्थापना की ,भक्तिकाल के नाम से विख्यात है . डॉ. श्यान्सुन्दर दास ने इस काल के सम्बन्ध में कहा है कि " जिस युग में कबीर ,जायसी ,सूर,तुलसी जैसे रस - सिद्ध कवियों और महात्माओं की दिव्य वाणी उनके अंत करणों से निकलकर देश के कोने कोने में फैली थी ,उसे साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल कहते हैं .निश्चय ही वह हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग है ." इस सन्दर्भ में हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताओं का वर्णन कर रहे हैं -
१. नाम का महत्व -
कीर्तन भजन आदि के रूप में भगवान् का गुण सभी शाखाओं कवियों में पाया जाता है .सभी कवियों ने अपने अपने इष्ट देव के नाम का स्मारक किया है .गोस्वामी तुलसीदास तो नाम को राम से भी बड़ा मानते हैं .
तुसलीदास जी कहते हैं - मोर मत बड नाम दुहूँ . जेहि किए जग नित बल बूते .
२. गुरु का महत्व -
इस काल में गुरु का महत्व ईश्वर के समान या उससे बढ़कर बताया गया है . कबीर गुरु को ईश्वर से बड़ा बताते हैं -
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
३. भक्ति भावना की प्रधानता -
सभी कवियों में भक्ति भावना की प्रधानता है .कबीर ने तो यहाँ तक कहा है - हरि भक्ति जाने बिना ,बूढी मुआ संसार . सूर और तुलसी का सम्पूर्ण भक्ति प्रधान है .
४. आडम्बर का विरोध -
सभी भक्ति कवियों ने ब्राह आडम्बरों का विरोध किया है . कबीर के शब्दों में - जप माला छापा तिलक ,सरे एक एको काम .
५. समनवय की भावना -
भक्ति काल के साहित्य में धार्मिक ,सामाजिक ,दर्धानिक आदि सभी क्षेत्रों में समनवय की भावना मिलती हैं . तुलसीदास में तो समनवय की विराट चेष्टा मिलती है . भक्ति ज्ञान दर्शन के साथ भाषा शैली एवं सगुण और निर्गुण में भि तुलसी में समन्वय की चेष्टा की है .
६. अलौकिक साहित्य -
इस काल में जितने भी काव्य लिखे गए हैं ,सभी ईश्वरीय हैं .किसी व्यक्ति पर काव्य लिखने का इसमें कोई प्रयास नहीं किया गया है .इस प्रकार ये सभी रचनाएँ आध्यात्मिक कोटि की हैं .
७. दरबारी साहित्य का त्याग -
जायसी के अतिरिक्त अन्य कोई कवि कभी कसी राजाश्रय में नहीं रहा .ए कवि राजाश्रय से मुक्त रहकर स्वतंत्र रचना करते थे .
८. काव्य रूप -
इस काल के कृष्णमार्गी तथा ज्ञानमार्गी कवियों ने मुक्तक काव्य की रचना की है . इस विपरीत प्रेम मार्गी तथा राज्मार्गी कवियों ने मुक्तक और प्रबंध दोनों प्रकार के काव्यों में रचना की है . भाषा की विविधता इस काल की विशेष प्रधानता है . इस काल के कवियों ने मुक्तक ,गेय,पद ,दोहा ,चौपाई ,सोरठा आदि विविध छंदों का प्रयोग किया है. शांत रस इस काल का प्रधान रस हैं .
इस प्रकार भक्तिकालीन साहित्य में आदर्शवाद की प्रधानता है . मानव में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना भरी गयी हैं .
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जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हटाएंnoice
हटाएंऐसी दुर्लभ जानकारी देने के लिए,आपका बहुत-बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
भक्ति काल की प्रमुख प्रवृत्तियों पर विचार करें
जवाब देंहटाएंKarishma
हटाएंBhakti Kaal ki visheshtaye batane ke liye bahut bahut aap ka dhanyavad
जवाब देंहटाएंGood information
जवाब देंहटाएंThanks for giving information
जवाब देंहटाएंभकतिकाल को किस परवति के आधार भकतिकाल नाम दिया बताते हुए सगुण भकतिधारा की विशेषताओं पर परकाश डालिए
जवाब देंहटाएंThanks very helpfull
जवाब देंहटाएंvery good
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंधनयवाद।
जवाब देंहटाएंIska answer do
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंThank s
जवाब देंहटाएंDhanyvad
जवाब देंहटाएंThank you so much 🙏🙏
जवाब देंहटाएंThanks a lot
जवाब देंहटाएंThank
जवाब देंहटाएंManabta ki parathasta
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