नदी में नथ - बच्चों की कहानियां बहुत समय पहले की बात है.चमनपुर में एक ग्वाला रहता था.नाम था नंदू .वह बहुत ईमानदार आदमी था . उसके पास सात गायें थी .सूरज निकलने से पहले वह उठता ,गायों को चारा पानी देता .
नदी में नथ - बच्चों की कहानियां
बहुत समय पहले की बात है.चमनपुर में एक ग्वाला रहता था.नाम था नंदू .वह बहुत ईमानदार आदमी था . उसके पास सात गायें थी .सूरज निकलने से पहले वह उठता ,गायों को चारा पानी देता .फिर नहा - धोकर गायों का दूध निकालता .उन्हें चारागाह में भेज देता और स्वयं दूध बेचने चला जाता .दोपहर तक दूध बेचकर लौट आता .थोड़ी देर आराम करता .तब तक गायें लौट आती .वह फिर उनके लिए सानी पानी लगा जाता .
नदी |
ग्वाले की पत्नी थी चंपा .वह बहुत चतुर और चालाक थी .वह हमेशा ऊँचे - ऊँचे सपने देखा करती .उसकी इच्छा थी कि वह खूब अच्छा पहने ,खूब अच्छा खाए . हमेशा नंदू को दूध में पानी मिलाने के लिए कहती .नंदू की पत्नी की यह बात पसंद न आती .वह उसे डांटता तो चंपा चुप हो जाती और मन की मन नंदू को भला बुरा कहती .
नंदू के ग्राहक उस पर बहुत विश्वास करते थे /वह सबको खरा दूध देता और अच्छे अच्छे पैसे लेता .उसका दूध मंहगा तो जरुर था पर था एकदम शुद्ध .इसीलिए सभी लोग उसकी इज्जत करते थे ,इससे नंदू हमेशा खुश रहता .
एक दिन वह गाय दुह रहा था .उसी समय एक कौवा उड़ता हुआ निकला .उसके पंजों में रोटी का टुकड़ा अटका था .अचानक वह टुकड़ा उसके पंजों से छूट गया और सीधा गाय की पीठ पर आ गिरा .इससे गाय चौंक गयी और तेज़ी से उछाल पड़ी .उछालने से गाय का एक पैर नंदू के दाहिने पैर पर पड़ा .वह चबूतरे से नीचे गिर पड़ा .सारा दूध बह गया .गिरने से नंदू के हाथ की हड्डी टूट गयी .चंपा ने यह देखा ,तो दौड़ पड़ी .नंदू को उठाया .हड्डी टूट जाने की वजह से दर्द होने लगा .दर्द जब सहा न गया ,तो उसकी आँखों से आँसू आ गए .चंपा दौड़कर वैद्यजी को बुला लायी .उन्होंने नंदू के हाथ पर लेप किया .खप्पचियों बाँधी फिर आराम करने के लिए कहकर चले गए .
अब घर का सारा बोझ चंपा पर आ पड़ा .खाना बनाने से लेकर गायों को चारा देने ,दूध दुहने और बेचने भी उसे ही जाना पड़ता .इसके अलावा उसे नंदू की देखभाल भी करनी पड़ती . नंदू चुपचाप बैठा तमाशा देखता .भला एक हाथ से वह कर भी क्या कर सकता था .उसे अपने आप पर गुस्सा आता .कभी - कभी तो वह उबकर खुद ही काम करने लगता .पर चंपा उसे मना कर देती .बेबस नंदू मन मसोसकर रह जाता .
अब चंपा की चाँदी थी .वह मनमानी करती .उसको रोकने वाला तो बिस्तर पर पड़ा था .दूध बेचने जाते समय राह में एक नदी पड़ती थी .चंपा नदी से थोड़ा सा पानी मिला देती . अब दूध ज्यादा पैसे में बिकता .कोई जब पूछता कि दूध पतला क्यों हैं ,तो वह कह देती कि बरसात का महिना है ,इसीलिए दूध पतला है .नंदू को पता न चले ,इसीलिए अतिरिक्त पैसे अपने अलग इकट्ठे करती रहती .
नंदू जानता था ,चंपा बहुत लालची है . वह बार - बार पूछता कि तुम नदी से पानी तो नहीं मिला लेती . पर चंपा हर बार साफ़ झूठ बोल देती . भोला - भाला नंदू उसकी बात पर विश्वास कर लेता .धीरे - धीरे एक माह बीत गया .नंदू की हड्डी जुड़ गयी .वह थोड़ा बहुत काम करने लगा .लेकिन दूध बेचने अब भी चंपा ही जाती थी .
एक महीने में चंपा के पास ढेर सार पैसे इकट्ठे हो गए . एक दिन दूध बेचकर लौटते समय ,वह सुनार की दूकान पर जा पहुँची .अपने पैसों से उसने अच्छी की नाथ खरीदी और ख़ुशी - ख़ुशी घर की ओर चल पड़ी .
नदी के पास पहुँच उसने सोचा - मैं नथ पहनकर देखू . पता तो चले ,इसे पहनकर कितनी सुन्दर दिखती हूँ .
यह सोचते हुए वह नदी किनारे खड़ी हो गई . नदी में उस समय पानी कम था .वह एकदम शांत थी . चंपा ने नथ निकली और पानी में अपनी परछाई देखकर उसे पहनने लगी .अचानक नथ उसके हाथ से छूट गयी .नथ को पकड़ने के चक्कर में चंपा का पैर फिसला . वह नदी में गिर पड़ी . नथ मिलना तो दूर ,उलटे एक बड़े पत्थर से टकराकर उसके माथे में चोट गयी .खून बहने लगा .पानी का पैसा पानी में जा मिला .ऊपर से चोट भि लगी . चंपा ने साडी के पल्लू से खून पोंछा और भारी क़दमों से घर की ओर चल पड़ी . उसने मन की मन फैसला कर लिया कि अब कभी वह दूध में पानी नहीं मिलाएगी .
कहानी से शिक्षा -
१. हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए .
२. धोखा देकर ,झूठ बोलकर बेईमानी से पैसे नहीं कमाना चाहिए ,नहीं तो चंपा जैसी स्थिति हो जायेगी .
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