उषा शमशेर बहादुर सिंह

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उषा शमशेर बहादुर सिंह Usha Shamsher Bahadur Singh उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता usha kavita shamsher bahadur singh usha poem by shamsher bahadur singh उषा कविता की व्याख्याशमशेर बहादुर सिंह की कविता उषा का अर्थ उषा कविता की व्याख्या शमशेर बहादुर सिंह की कविता और आलोचना शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा उषा पर कविता शमशेर बहादुर सिंह की कविता बात बोलेगी उषा कविता का भावार्थ शमशेर की कविता shamsher bahadur singh ki kavita usha usha hindi poem class 12 hindi poems explanation hans rahi usha poem meaning summary of hindi poems of class 12 shamsher bahadur singh kavita in hindi class 12 hindi chapters summary cbse class 12 hindi poems

उषा शमशेर बहादुर सिंह
Usha Shamsher Bahadur Singh


उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता usha kavita shamsher bahadur singh  usha poem by shamsher bahadur singh उषा कविता की व्याख्या - 

१. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)

व्याख्या - प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रातःकाल के सूर्योदय का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया है .कवि कहता है कि प्रातःकालीन आकाश नीले शंख जैसे प्रतीत हो रहा है .प्रातःकाल आकाश ग्रामीण चौके जैसे राख से लीपा हुआ प्रतीत होता है .लीपा हुआ चौका गीला लग रहा है ,जिससे वातावरण में नमी बनी हुई है .

२. बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

व्याख्या - सूर्योदय के साथ आकाश पहले काली सिल जैसे प्रतीत होती हैं लेकिन काली सिल को सूर्य के उदय के साथ ही लाल केसर से धो दिया गया है .अब आकाश में परिवर्तन हो गया है .आकाश सूर्योदय के पहले काली स्लेट लगता था ,लेकिन सूर्य के उदय के साथ किसी ने लाल खड़िया चाक ,आकाश में मल दिया है .अब आकाश लाल खड़िया चाक के समान लगता है .

३. नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।

और...
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

व्याख्या - कवि कहता है कि सूर्योदय के समय आकाश नीले रंग के समान हो जाता है .वह किसी नीले रंग के जलाशय के समान प्रतीत होता है और ऐसे जलाशय के समान प्रतीत होता है और ऐसे जलाशय में गौर रंग की सुंदरी की देह हिल रही हैं .इस प्रकार सूर्योदय के समय उषा का सौन्दर्य हमेशा बदलता रहता है .इस प्रकार पूर्ण सूर्योदय के समय उषा का जादू का प्रभाव कम हो जाता है .



उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता usha kavita shamsher bahadur singh summary उषा कविता का भावार्थ उषा कविता का मूलभाव /केन्द्रीय भाव - 


उषा कविता शमशेर बहादुर सिंह जी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कविता है .इस कविता में कवि ने बिम्ब ,नए प्रतिक ,नए उपमान कविता में प्रयोग किये हैं .यहाँ तक पुराने उपमानों में भी नए अर्थ की चमक भरने का प्रयास कवि ने किया है .अपना आस -पड़ोस  कविता का हिस्सा बनाया .इस प्रकार उषा कविता सूर्योदय के ठीक पहले के पल - पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द चित्र हैं .कवि ने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है .सूर्योदय के समय आकाश नीले रंग के शंख की तरह दिखाई पड़ता है .वह राख से लिपे हुए चौके की तरह लगता है ,जो नमी के कारण गीला हो गया है .कवि को सूर्योदय से पहले आकाश काले सिल की तरह लगता है ,जिस प्रकार सूर्योदय के कारण लाल केसर मल दिया गया है .आकाश भी नीले रंग के जलाशय से समान लगता है ,जिसमें गौर रंग की सुंदरी की देह झिलमिल कर रही हैं .अतः सूर्योदय के साथ उषा के जादू का प्रभाव समाप्त हो जाता है .कवि भोर के आसमान का मूकदर्शक नहीं है .वह भोर की आसमानी गति को धरती के जीवन भरे होलाहल से जोड़ने वाला स्रस्टा भी है .इसीलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है - वहां सिल है ,राख से लीपा हुआ चौका है और है स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ .यह एक ऐसे दिन की शुरुवात है ,जहाँ रंग हैं ,गति है और भविष्य की उजास है और है हर कालिमा को चीरकर आने का एहसास कराती उषा .
इस प्रकार कवि हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले दृश्यों उपमानों का प्रयोग करके जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है और प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधा गया है .


उषा शमशेर बहादुर सिंह की कविता usha kavita shamsher bahadur singh  usha poem by shamsher bahadur singh questions and answers  कविता के साथ



प्र.१. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है ?

उ.१. कवि ने प्रस्तुत कविता में नए बिम्ब ,नए प्रतिक और नए उपमानों का प्रयोग किया है .प्रकृति में होने वाला परिवर्तन मानवीय जीवन का चित्र बनकर अभिव्यक्त किया गया है .सूर्योदय के समय आकाश नीले रंग के शंख की तरह दिखाई पड़ता है .वह राख से लिपे हुए चौके की तरह लगता है ,जो नमी के कारण गीला हो गया है .कवि को सूर्योदय से पहले आकाश काले सिल की तरह लगता है ,जिस प्रकार सूर्योदय के कारण लाल केसर मल दिया गया है .आकाश भी नीले रंग के जलाशय से समान लगता है ,जिसमें गौर रंग की सुंदरी की देह झिलमिल कर रही हैं .अतः सूर्योदय के साथ उषा के जादू का प्रभाव समाप्त हो जाता है .इस प्रकार कवि हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले दृश्यों उपमानों का प्रयोग करके जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है और प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधा गया है .

प्र.२. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नयी कविता में कोष्ठक ,विराम चिन्हों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है .उपयुक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है ? समझाइये . 

उ.२. कवि ने प्रस्तुत कविता में कोष्ठकों ,विराम चिन्हों और पंक्तियों के बीच का स्थान प्रयोग करके कविता को नया अर्थ दिया गया है .कोष्ठक में कही गयी बात पूर्व पंक्तियों में कही बातों के पूरक का काम करती है .जैसे कि राख से लीपा हुआ चौका अर्थात सूर्योदय के पहले आकाश गाँव में मिटटी का चौका राख से लीपा गया है .अतः कोष्ठक में अभी गीला पड़ा है का अर्थ वातावरण में नमी बनी है .अतः कोष्ठक से हमें आसमानी नमी और ताजगी की जानकारी मिलती है .तो इस प्रकार कोष्ठकों से कविता अधिक प्रभावपूर्ण बन पड़ी है और पाठक कविता में किये गए प्रयोगों से चमत्कृत हो जाता है .


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COMMENTS

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  1. जादूगर इस कविता में सूर्य हैं जो सूर्योदय करने के पश्चात् अनेक रकम की आकाश, में बदलाव देखने को मिलते हैं जैसे कोई जादू हो रहा हो। इस कविता के आधार पर हम यह कह सकते हैं की जादूगर और कोई नही स्वयं सूर्य हैं।

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उषा शमशेर बहादुर सिंह
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